Downfall: Jayaprakash Associates Yamuna Expressway का सपना अधूरा, कैसे डूबा गौड़ परिवार का साम्राज्य? 2025

ज़रा सोचिए… एक कंपनी जिसने उत्तर भारत की पहचान बदल दी, जिसका नाम सुनते ही भव्य टाउनशिप, ऊँचे-ऊँचे सीमेंट प्लांट, पावर प्रोजेक्ट्स और सबसे बढ़कर यमुना एक्सप्रेसवे जैसी इंजीनियरिंग की मिसाल याद आती थी, वही कंपनी आज 55 हज़ार करोड़ से ज्यादा कर्ज़ में डूबी हुई है। वह कंपनी जो कभी “भारत का राजा” कहलाती थी, आज अपने ही बोझ से ढह गई है और बिक चुकी है। यह केवल एक बिज़नेस की हार नहीं है, बल्कि एक परिवार की महत्वाकांक्षा, एक युग की कहानी और लाखों लोगों की उम्मीदों का बिखरना है। यह कहानी है जेपी एसोसिएट्स की।

आज से पंद्रह-बीस साल पहले, उत्तर भारत में हर कोई इस नाम से वाक़िफ़ था—Jayaprakash Associates। यह सिर्फ़ एक कंपनी नहीं, बल्कि एक ब्रांड था। लोग कहते थे, अगर कोई बड़ा प्रोजेक्ट होगा तो जेपी ही बनाएगा। चाहे पावर प्लांट हो या टाउनशिप, चाहे हाईवे हो या स्पोर्ट्स सिटी—जेपी का नाम हर जगह सुनाई देता था। पर अब खबर आई कि यह साम्राज्य खत्म हो चुका है। 5 सितंबर 2025 को यह ऐलान हुआ कि वेदांता ग्रुप ने जेपी एसोसिएट्स को 17,000 करोड़ रुपये में खरीद लिया। इस बोली की दौड़ में अदाणी भी थे, लेकिन आखिरकार अनिल अग्रवाल की वेदांता ने बाज़ी मार ली।

लेकिन सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि जिस कंपनी ने उत्तर भारत की तस्वीर बदल दी, वही कंपनी दिवालिया हो गई? कहाँ हुई वह चूक, जिसने गौड़ परिवार की दशकों की मेहनत को मिट्टी में मिला दिया? और क्या वाक़ई अब जेपी का साम्राज्य इतिहास बन चुका है? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

आपको बता दें कि जेपी ग्रुप की कहानी शुरू होती है इसके संस्थापक जयप्रकाश गौड़ से। 1931 में उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के एक छोटे से गाँव में जन्मे गौड़ का बचपन साधारण था। शिक्षा भी छोटे शहरों में हुई। लेकिन उनके भीतर बड़ा सपना पल रहा था। 1948 में उन्होंने थॉम्पसन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, रुड़की (आज का IIT Roorkee) में दाखिला लिया और 1950 में सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा हासिल किया।

इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग में नौकरी की। सात साल तक वे सरकारी इंजीनियर रहे। यहाँ काम करते हुए उन्होंने बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स को पास से देखा। उन्हें एहसास हुआ कि भारत की तरक्की के लिए बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स ज़रूरी हैं—बांध, नहरें, पावर प्लांट्स। और तभी उनके मन में एक सपना जन्मा—क्यों न वह खुद ऐसे प्रोजेक्ट्स का हिस्सा बनें, क्यों न वह अपना साम्राज्य खड़ा करें।

1979 में उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी और सिर्फ़ 10,000 रुपये की पूंजी से “जयप्रकाश एसोसिएट्स” की नींव रखी। शुरुआत छोटे ठेकों से हुई। सड़कें बनाई गईं, बांध बनाए गए। धीरे-धीरे कंपनी को पहचान मिलने लगी। जयप्रकाश गौड़ की मेहनत और दूरदर्शिता रंग लाई। उन्होंने समझ लिया था कि अगर भारत को आगे बढ़ना है, तो बिजली और इंफ्रास्ट्रक्चर ही सबसे बड़ी ज़रूरत होगी।

1980 और 1990 का दशक कंपनी के लिए तेजी से उभरने का दौर था। छोटे-छोटे कॉन्ट्रैक्ट्स से बढ़ते-बढ़ते कंपनी ने पावर सेक्टर और सीमेंट मैन्युफैक्चरिंग में कदम रखा। फिर 2000 का दशक आया, जब भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ रही थी और सरकार बड़े पैमाने पर हाईवे, मेट्रो और टाउनशिप जैसी परियोजनाओं में निजी कंपनियों को साझेदार बना रही थी। यही वह दौर था जब जेपी ग्रुप हर जगह छा गया।

जेपी ने केवल प्रोजेक्ट्स ही नहीं, बल्कि सपनों का निर्माण किया। उन्होंने रियल एस्टेट में विश टाउन जैसे मेगा प्रोजेक्ट्स लांच किए। उन्होंने नोएडा में स्पोर्ट्स सिटी बनाई, जहाँ अंतरराष्ट्रीय स्तर का क्रिकेट स्टेडियम खड़ा किया। उन्होंने यमुना नदी पर दुनिया का सबसे लंबा छह लेन एक्सप्रेसवे बनाने का बीड़ा उठाया।

यमुना एक्सप्रेसवे—यह प्रोजेक्ट 2003 में जेपी ने हाथ में लिया। नोएडा से आगरा तक 165 किलोमीटर लंबा हाईवे। लागत 13,000 करोड़ रुपये। यह केवल एक सड़क नहीं थी, बल्कि उत्तर भारत की तस्वीर बदलने वाला सपना था। 9 अगस्त 2012 को अखिलेश यादव ने इसका उद्घाटन किया। लाखों लोग आज भी दिल्ली से आगरा इसी एक्सप्रेसवे से जाते हैं। यह प्रोजेक्ट जेपी की महत्वाकांक्षा का सबसे बड़ा प्रतीक था।

लेकिन महत्वाकांक्षा जितनी बड़ी होती है, Risk भी उतने ही बड़े होते हैं। जेपी ने एक साथ कई क्षेत्रों में कदम रखा—सीमेंट, पावर, हॉस्पिटैलिटी, टाउनशिप। और इसके लिए उन्होंने बैंकों से हज़ारों करोड़ का कर्ज़ लिया। शुरुआत में सब ठीक चला। लेकिन 2008 का वैश्विक आर्थिक संकट आया। रियल एस्टेट की मांग गिर गई। घर खरीदारों ने पैसे देना बंद कर दिया।

जेपी का सपना “विश टाउन” एक बुरे सपने में बदल गया। 30,000 से अधिक घर खरीदारों ने पैसे दिए थे, लेकिन प्रोजेक्ट अधूरे रह गए। लोग कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने लगे। कई परिवारों की जिंदगी की पूंजी इसमें फँस गई। लोगों ने प्रदर्शन किए, सड़कें जाम कीं। धीरे-धीरे जेपी की साख गिरने लगी।

2011 के बाद से हालत और बिगड़ी। पावर प्लांट्स घाटे में जाने लगे। रियल एस्टेट में बिक्री रुक गई। सीमेंट सेक्टर भी दबाव में आया। बैंक बार-बार कर्ज़ वसूली का दबाव डालने लगे। 2018 में ICICI बैंक ने जेपी एसोसिएट्स के खिलाफ दिवालियापन की याचिका डाली। 2022 में SBI ने भी कदम उठाया।

3 जून 2024 को इलाहाबाद बेंच के NCLT ने जेपी एसोसिएट्स को दिवालिया घोषित कर दिया। उस वक्त कंपनी पर 55,493 करोड़ रुपये का कर्ज़ था। यह बोझ किसी भी कंपनी के लिए असहनीय था। जेपी का साम्राज्य धीरे-धीरे बिकने लगा। सीमेंट बिज़नेस पहले ही अल्ट्राटेक को बेच दिया गया था। पावर प्रोजेक्ट्स भी अलग-अलग कंपनियों को ट्रांसफर हुए। और अब बचा-खुचा साम्राज्य 2025 में वेदांता के हाथ में चला गया।

तो आखिर कहाँ हुई चूक? सबसे बड़ी गलती थी—अत्यधिक विस्तार और अत्यधिक कर्ज़। जयप्रकाश गौड़ ने साम्राज्य तो खड़ा किया, लेकिन यह नहीं सोचा कि कैश फ्लो कहाँ से आएगा। उन्होंने एक साथ इतने प्रोजेक्ट्स शुरू किए कि कंपनी संभाल नहीं पाई। दूसरी गलती थी—रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स में देरी। घर खरीदारों का भरोसा टूटना किसी भी रियल एस्टेट कंपनी के लिए सबसे बड़ा झटका होता है। और जेपी यही झेल गया।

इस कहानी का एक मानवीय पहलू भी है। उन 30,000 घर खरीदारों की पीड़ा, जिनकी पूंजी जेपी में फँसी। जिनके सपनों का घर अधूरा रह गया। जो कोर्ट और सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहे। यह केवल एक कंपनी की हार नहीं, बल्कि हजारों परिवारों की उम्मीदों की बर्बादी भी है। लेकिन यह भी सच है कि भारत की इन्फ्रास्ट्रक्चर कहानी जेपी के बिना अधूरी है। चाहे यमुना एक्सप्रेसवे हो या नोएडा का क्रिकेट स्टेडियम, जेपी ने वो काम किए जो आने वाली पीढ़ियाँ भी देखेंगी।

अब बात करते हैं भविष्य की। वेदांता ग्रुप ने 17,000 करोड़ की बोली लगाकर जेपी को खरीदा है। अनिल अग्रवाल की योजना है कि कंपनी के प्रोजेक्ट्स को पूरा किया जाए और कर्ज़ का बोझ कम किया जाए। लेकिन क्या वाक़ई यह संभव होगा? क्या जेपी को नई जिंदगी मिलेगी? यह समय ही बताएगा।

इतिहास गवाह है—साम्राज्य बनाना कठिन है, लेकिन उसे संभालना उससे भी ज्यादा कठिन। जयप्रकाश गौड़ ने साम्राज्य तो खड़ा किया, लेकिन उसे बचा नहीं पाए। यही उनकी सबसे बड़ी चूक थी।

जेपी की कहानी हमें यह सिखाती है कि बिज़नेस केवल महत्वाकांक्षा से नहीं चलता। पारदर्शिता, समय पर काम और संतुलित वित्तीय रणनीति ही किसी भी कंपनी को लंबे समय तक जिंदा रख सकती है। और अंत में यही सवाल रह जाता है—क्या जेपी का नाम हमेशा एक असफलता के प्रतीक के रूप में याद किया जाएगा? या फिर आने वाले सालों में वेदांता इसे एक नई पहचान देगा?

Conclusion

अगर हमारे आर्टिकल ने आपको कुछ नया सिखाया हो, तो इसे शेयर करना न भूलें, ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी और लोगों तक पहुँच सके। आपके सुझाव और सवाल हमारे लिए बेहद अहम हैं, इसलिए उन्हें कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बेहतर बनाने में मदद करती हैं।

GRT Business विभिन्न समाचार एजेंसियों, जनमत और सार्वजनिक स्रोतों से जानकारी लेकर आपके लिए सटीक और सत्यापित कंटेंट प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। हालांकि, किसी भी त्रुटि या विवाद के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं। हमारा उद्देश्य आपके ज्ञान को बढ़ाना और आपको सही तथ्यों से अवगत कराना है।

अधिक जानकारी के लिए आप हमारे GRT Business Youtube चैनल पर भी विजिट कर सकते हैं। धन्यवाद!”

Spread the love

Leave a Comment