India अड़ गया है! ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी को करारा जवाब, 9 जुलाई से पहले बदल गया पूरा गेम!

कल्पना कीजिए… एक विशाल global platform पर भारत खड़ा है, और सामने है दुनिया का सबसे ताकतवर देश—अमेरिका। दोनों के बीच बातचीत चल रही है, लेकिन अचानक सब थम जाता है। डेडलाइन नज़दीक है, 9 जुलाई बस आने ही वाला है। अमेरिका चाहता है समझौता… लेकिन India अब अड़ चुका है। अब यह सिर्फ व्यापार का मामला नहीं है, यह भारत की प्रतिष्ठा, आत्मनिर्भरता और Global दबावों के खिलाफ खड़े होने का इम्तिहान बन चुका है। और इस बार भारत झुकने को तैयार नहीं है।

अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप, जो दुनिया भर में अपनी दबंग शैली के लिए जाने जाते हैं, India की इस चुप्पी से बेचैन हैं। पहले चीन ने उन्हें झटका दिया था और अब भारत की दीवार सामने खड़ी है। सवाल उठता है—आखिर 9 जुलाई से पहले क्या कोई चमत्कार होगा? या फिर भारत अमेरिका को साफ संदेश देने वाला है: अब हम अपनी शर्तों पर ही समझौता करेंगे। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

दरअसल, India और अमेरिका के बीच का यह व्यापार गतिरोध, कोई एक दिन में खड़ा हुआ तूफान नहीं है। यह महीनों से चल रही उन खींचतान का परिणाम है, जिसमें दोनों देश एक-दूसरे की प्राथमिकताओं को समझने की कोशिश कर रहे थे—पर समझौते का रास्ता अब भी धुंधला है। इस बार असहमति के केंद्र में हैं ऑटो पार्ट्स, स्टील और कुछ प्रमुख कृषि उत्पाद जैसे सोयाबीन, मक्का, गेहूं, इथेनॉल और डेयरी उत्पाद।

अमेरिका चाहता है कि भारत इन पर Import duty घटाए, जिससे अमेरिकी उत्पाद भारत में आसानी से प्रवेश कर सकें। लेकिन India इन वस्तुओं को ग्रामीण रोजगार और खाद्य सुरक्षा से जोड़ता है—और इन्हें सस्ते में खोलना, भारत के लिए रणनीतिक रूप से खतरे का संकेत हो सकता है।

ट्रंप प्रशासन India से ऐसे समय में झुकने की उम्मीद कर रहा है जब खुद अमेरिका घरेलू स्तर पर राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहा है। ट्रंप पहले ही चीन के साथ टैरिफ की लड़ाई में पीछे हट चुके हैं। अब वे India से ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ यानी जवाबी शुल्क को हटाने की अपेक्षा कर रहे हैं। लेकिन भारत इस बार तेजी में नहीं है। भारतीय अधिकारी कह चुके हैं कि भारत सिर्फ ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर करेगा, जो संतुलित हो, आपसी लाभकारी हो और उसकी नीतियों के अनुरूप हो। वे साफ कर चुके हैं कि भारत जल्दबाज़ी में नहीं है, और अगर समझौता नहीं होता—तो भी भारत तैयार है।

यह स्थिति तब और दिलचस्प हो जाती है जब हम देखें कि पहले किस तरह संकेत मिल रहे थे कि India समझौता कर लेगा। ट्रंप ने पहले दावा किया था कि भारत ने अमेरिकी Products पर नो-टैरिफ समझौते का प्रस्ताव दिया है। कुछ अधिकारियों ने इशारा भी किया था कि India अमेरिका के साथ प्राथमिकता में है और जल्द ही डील हो सकती है। लेकिन अब वही बातचीत रुक चुकी है। तीन भारतीय सरकारी अधिकारियों ने रॉयटर्स को बताया कि अमेरिका अभी तक भारत की मांगों को स्वीकार करने को तैयार नहीं है।

India चाहता है कि अमेरिका स्टील और ऑटो पार्ट्स पर लगाए गए टैरिफ में छूट दे, साथ ही 9 जुलाई से लागू होने वाले 26% जवाबी शुल्क को वापस ले। बदले में India ने पिस्ता, बादाम, अखरोट जैसी वस्तुओं पर शुल्क में छूट देने की पेशकश की है। इसके साथ-साथ ऊर्जा, ऑटोमोबाइल और रक्षा जैसे क्षेत्रों में अमेरिकी Investment को प्राथमिकता देने की बात भी सामने रखी गई है। लेकिन अमेरिकी पक्ष, खासतौर पर कृषि Products पर टैरिफ कम करवाने और गैर-टैरिफ बाधाओं को हटाने पर अड़ा है। यही वजह है कि समझौते की उम्मीद कमजोर होती जा रही है।

अमेरिका के व्यापारिक प्रतिनिधियों और वॉशिंगटन स्थित भारतीय दूतावास के बीच बातचीत जारी है, लेकिन अब यह बातचीत एक तात्कालिक हल से अधिक, दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी की दिशा में मुड़ गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी India को अमेरिका के लिए एक भरोसेमंद आर्थिक भागीदार के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि Apple, Tesla जैसी कंपनियां India में आएं। India चीन के स्थान पर Global सप्लाई चेन का केंद्र बने। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि व्यापारिक रिश्ते पारदर्शिता और संतुलन पर टिके हों, न कि दबाव और हड़बड़ी पर।

India की रणनीति अब स्पष्ट है—वह उत्सुक तो है, लेकिन बेताब नहीं। पहले एक सरकारी सूत्र ने कहा, “हम 9 जुलाई से पहले समझौता करना चाहते हैं, लेकिन किसी भी कीमत पर नहीं।” यह एक नई नीति का संकेत है—जहां India खुद को एक मजबूत, आत्मनिर्भर और संप्रभु आर्थिक ताकत के रूप में प्रस्तुत कर रहा है। और यही वह सोच है जो इस बार भारत को केवल ‘विकासशील देश’ की श्रेणी से उठाकर ‘Global policy makers’ की ओर बढ़ा रही है।

भारतीय अधिकारी इस बात को लेकर एकमत हैं कि वे अमेरिका के साथ एक दीर्घकालिक साझेदारी चाहते हैं। वे यह भी मानते हैं कि अमेरिका एक विश्वसनीय रणनीतिक सहयोगी है। लेकिन साथ ही वे यह भी स्पष्ट करते हैं कि India किसी ‘विन-लॉस’ डील को स्वीकार नहीं करेगा। मतलब साफ है—या तो दोनों को फायदा हो या कोई समझौता नहीं। भारत की व्यापारिक नीति अब ‘संतुलन’ और ‘न्याय’ पर आधारित है, न कि केवल अवसरवाद पर।

यह रुख सिर्फ अमेरिका के साथ ही नहीं है। India ने हाल ही में ब्रिटेन के साथ FTA पर बातचीत पूरी की है और यूरोपीय संघ के साथ भी फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर वार्ता तेज की है। भारत चाहता है कि उसके पास विविध विकल्प हों, ताकि किसी एक देश पर निर्भरता न हो। और यह सोच इस बात का संकेत है कि भारत अब Global राजनीति में अपनी शर्तों पर चलना चाहता है—भले ही सामने अमेरिका क्यों न हो।

राम सिंह, जो कि भारतीय विदेश व्यापार संस्थान के प्रमुख हैं, कहते हैं, “अब गेंद अमेरिका के पाले में है। भारत किसी भी ऐसी डील का हिस्सा नहीं बनेगा जिसमें सिर्फ एक पक्ष को लाभ मिले।” उनका यह कथन India की बदली हुई सोच और नीतिगत दृढ़ता का परिचायक है।

अगर अमेरिका India पर जवाबी शुल्क लगाए, तो India उसके असर को झेलने के लिए भी तैयार है। भारतीय अधिकारी मानते हैं कि भारत की Competition वियतनाम और चीन जैसे देशों से है, और टैरिफ के बावजूद भारतीय उत्पाद अब भी Competitive बने हुए हैं। अप्रैल-मई 2024 के आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका को भारत का Export 17.25 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह 14.17 अरब डॉलर था। यानी टैरिफ का सीधा असर फिलहाल कम रहा है।

अब देखना यह है कि क्या आखिरी समय पर कोई चमत्कार होता है। क्या ट्रंप और मोदी खुद बातचीत में हस्तक्षेप करते हैं? क्या 9 जुलाई से पहले कोई समझौता हो पाता है? या फिर यह गतिरोध आने वाले समय की नई व्यापार नीति की नींव बन जाएगा? एक बात तय है—India अब पहले वाला India नहीं रहा। और यही बदला हुआ भारत, अब न सिर्फ अपनी आवाज़ उठा रहा है, बल्कि उसका वजन भी महसूस कराया जा रहा है।

Conclusion

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