China Disruption: Rare Earth में भारत की मास्टरस्ट्रोक! ऑस्ट्रेलिया के साथ डील से चीन को बड़ा झटका। 2025

सोचिए एक ऐसा कच्चा माल… जो न हो तो दुनिया की टेक्नोलॉजी रुक जाए। मोबाइल फोन से लेकर इलेक्ट्रिक कार, विंड टरबाइन से लेकर मिसाइल तक… सब कुछ थम जाए। और अब सोचिए, उस कच्चे माल पर एक ऐसा देश अपना नियंत्रण जमा ले, जो आपकी हर रणनीति को चुनौती देता हो… और जब चाहें, आपके सपनों की सप्लाई चोक कर दे। यही कहानी है Rare Earth Elements की… और यही चाल चलने की कोशिश की थी चीन ने। लेकिन अब भारत ने ऐसा दांव खेला है, जिससे ड्रैगन की ये पूरी रणनीति धरी की धरी रह गई। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

जी हाँ, भारत ने अब Rare Earth Elements यानी rare minerals को लेकर चीन पर निर्भर रहना लगभग खत्म कर दिया है। और इसका सबसे बड़ा कारण बना है कंगारू देश—ऑस्ट्रेलिया। वही ऑस्ट्रेलिया, जिसके पास rare minerals के अकूत भंडार हैं, लेकिन जो कभी इस व्यापार में प्रमुख खिलाड़ी नहीं बन पाया। अब हालात बदल रहे हैं। भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच Rare Earth Elements को लेकर जो करार हुआ है, वह सिर्फ एक डील नहीं—बल्कि एक Global balance of power का हिस्सा है।

एनर्जी वीक 2025 में जब ऑस्ट्रेलिया के उच्चायुक्त फिलिप ग्रीन ने मंच पर खड़े होकर यह कहा कि, “हम भारत जितने बड़े विनिर्माण देश नहीं हैं, लेकिन हमारे पास rare minerals का भंडार है,” तो वहां मौजूद हर चेहरा समझ गया कि आज एक नई शुरुआत हो रही है। ऑस्ट्रेलिया ने खुलकर कहा—हम भारत को Rare Earth की Supply करने के लिए तैयार हैं, और यही भरोसे का वो बीज था, जिससे एक मजबूत और टिकाऊ साझेदारी का पौधा उगने वाला है।

दरअसल, Rare Earth Elements किसी भी देश के ऊर्जा परिवर्तन और टेक्नोलॉजी भविष्य की रीढ़ बन चुके हैं। इलेक्ट्रिक व्हीकल्स हों, हाइब्रिड गाड़ियाँ हों, पवन ऊर्जा के टरबाइन या हाई-परफॉर्मेंस मैगनेट्स—हर जगह Rare Earth की ज़रूरत है। चीन अब तक इस क्षेत्र में सबसे बड़ा खिलाड़ी रहा है। दुनिया के करीब 60 से 65% Rare Earth का उत्पादन अकेले चीन करता है, और उसने हाल ही में कई देशों पर इसके Export को सीमित कर दिया। इसका सीधा असर भारत जैसे उभरते देशों पर पड़ने वाला था। लेकिन भारत ने तुरंत कदम उठाया—और अब चीन की जगह लेने वाला है एक नया Supplier: ऑस्ट्रेलिया।

यह साझेदारी केवल कारोबारी नहीं, बल्कि रणनीतिक है। जब दुनिया जलवायु परिवर्तन से जूझ रही है, तब भारत और ऑस्ट्रेलिया मिलकर Renewable Energy के क्षेत्र में एक नया अध्याय लिखने जा रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स (NSW) राज्य की व्यापार और Investment Commissioner मालिनी दत्त ने साफ कहा—NSW में Rare Earth की प्रचुरता है और भारत जैसे भरोसेमंद साझेदार के साथ मिलकर हम वैश्विक सप्लाई चेन में बदलाव लाना चाहते हैं। यह कोई आम बयान नहीं है। यह उस भरोसे की आवाज़ है, जो दोनों देशों की सरकारों के बीच तेजी से मजबूत हो रही है।

Quad सम्मेलन में भी यही मुद्दा प्रमुखता से उठाया गया। भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की इस रणनीतिक चौकड़ी ने Rare Earth Elements पर खुलकर बात की। इसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ऑस्ट्रेलिया के पीएम एंथोनी अल्बानीज की सोच पूरी तरह मेल खा रही है—दोनों देश चाहते हैं कि तकनीक और संसाधनों के इस खेल में वे चीन पर निर्भर न रहें, बल्कि खुद एक स्वतंत्र, टिकाऊ और भरोसेमंद व्यवस्था खड़ी करें।

इसी दिशा में अब दोनों देशों ने Renewable Energy को प्राथमिकता देना शुरू किया है। भारत को दुनिया का अगला मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना है, लेकिन अगर Rare Earth की सप्लाई चीन से बाधित होती रही, तो यह सपना अधूरा रह जाएगा। वहीं ऑस्ट्रेलिया के पास संसाधन तो हैं, लेकिन उनका उपयोग नहीं हो पा रहा। ऐसे में भारत और ऑस्ट्रेलिया का यह मेल एकदम स्वाभाविक बनता है—एक के पास कच्चा माल है, तो दूसरे के पास क्षमता।

फिलिप ग्रीन ने यह भी कहा कि भारत की भूमिका जलवायु परिवर्तन की लड़ाई में अहम है। उन्होंने बताया कि ऑस्ट्रेलिया प्रति व्यक्ति Rooftop Solar के मामले में नंबर वन है, और वो अपनी तकनीकी विशेषज्ञता भारत से साझा करना चाहता है। मतलब अब बात सिर्फ खनिजों की नहीं, बल्कि एक पूरी ऊर्जा क्रांति की है, जिसमें भारत और ऑस्ट्रेलिया कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रहे हैं।

अब सवाल उठता है—आखिर Rare Earth Elements इतने खास क्यों हैं? इन खनिजों में मौजूद तत्व जैसे Neodymium, Dysprosium, Terbium और Lanthanum का इस्तेमाल चुंबकीय मोटर्स, सेंसर, मोबाइल के स्पीकर और ग्रीन एनर्जी सिस्टम में होता है। यानी ये वो सामग्री है, जो भविष्य की तकनीक को चलाएगी। और अगर आप इन पर निर्भर हैं, तो आप उस देश की मेहरबानी पर टिके हैं जो इन्हें कंट्रोल करता है।

इसीलिए भारत ने अब चीन पर निर्भर रहना बंद कर दिया है। हाल ही में पीएम मोदी ने अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर मिलेई के साथ भी Rare Earth और रणनीतिक खनिजों पर बातचीत की। इसका साफ संकेत है कि भारत अब अपने लिए एक Global Resource Network तैयार कर रहा है—जिसमें न चीन होगा, न उसकी दादागिरी।

इस समझौते का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि यह केवल राजनीतिक सहमति नहीं है, बल्कि उद्योग स्तर पर Implementation के लिए भी पूरी तरह तैयार है। भारत अब Rare Earth पर आधारित स्थानीय वैल्यू चेन तैयार करना चाहता है—जिसमें ऑस्ट्रेलिया से कच्चा माल आएगा और भारत में उसका Refining, manufacturing और उपयोग किया जाएगा। इससे एक तरफ भारत की इंडस्ट्री को फायदा होगा, और दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया को भी अपने संसाधनों का मूल्यवर्धन मिलेगा।

लेकिन यहां एक बड़ा बदलाव और भी है—भारत अब Global Supply Chain में सिर्फ एक ग्राहक नहीं, बल्कि एक निर्णायक भूमिका में आना चाहता है। चीन की रणनीति रही है कि वह Rare Earth के जरिए टेक्नोलॉजी पर नियंत्रण बनाए रखे। लेकिन भारत की रणनीति है—Decentralization। यानी ज्यादा साझेदार, ज्यादा विकल्प और ज्यादा पारदर्शिता।

इस डील के बाद भारत Rare Earth Elements की Long term supply सुनिश्चित कर सकेगा। इससे भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को स्थिरता मिलेगी। खासकर EV इंडस्ट्री, सेमीकंडक्टर, डिफेंस और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण निर्माण में भारत की आत्मनिर्भरता का सपना साकार होगा। यह केवल एक खनिज डील नहीं है, बल्कि Make in India की रीढ़ है।

अब जब दुनिया के बड़े देश टेक्नोलॉजी की दौड़ में Rare Earth के पीछे भाग रहे हैं, भारत ने समय रहते सही दांव चला है। चीन की चाल नाकाम हो गई, और ऑस्ट्रेलिया जैसे दोस्त के साथ भारत ने वो साझेदारी की है जो आने वाले दशक में भू-राजनीति की दिशा बदल सकती है।

आज Rare Earth Elements सिर्फ खनिज नहीं, बल्कि सामरिक शक्ति बन चुके हैं। और इस शक्ति का संतुलन अब बदल रहा है। भारत इस शक्ति के केंद्र में आता दिख रहा है, और यह बदलाव उस सोच का नतीजा है जो कहती है—“अब हम किसी पर निर्भर नहीं रहेंगे, हम अपने दम पर खड़े होंगे।”

इस कहानी का यही सार है—अगर आप समय पर समझ जाएं कि अगला युद्ध मिसाइलों से नहीं, माइक्रोचिप्स और खनिजों से लड़ा जाएगा, तो आप आधी जंग पहले ही जीत जाते हैं। और शायद भारत ने यह जंग जीतनी शुरू कर दी है।

Conclusion

अगर हमारे आर्टिकल ने आपको कुछ नया सिखाया हो, तो इसे शेयर करना न भूलें, ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी और लोगों तक पहुँच सके। आपके सुझाव और सवाल हमारे लिए बेहद अहम हैं, इसलिए उन्हें कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बेहतर बनाने में मदद करती हैं।

GRT Business विभिन्न समाचार एजेंसियों, जनमत और सार्वजनिक स्रोतों से जानकारी लेकर आपके लिए सटीक और सत्यापित कंटेंट प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। हालांकि, किसी भी त्रुटि या विवाद के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं। हमारा उद्देश्य आपके ज्ञान को बढ़ाना और आपको सही तथ्यों से अवगत कराना है।

अधिक जानकारी के लिए आप हमारे GRT Business Youtube चैनल पर भी विजिट कर सकते हैं। धन्यवाद!”

Spread the love

Leave a Comment