Crisis: Reserve! भारत का मज़बूत सोना-डॉलर भंडार, जबकि पाकिस्तान का रिज़र्व बना सिरदर्द! 2025

क्या आपने कभी किसी ऐसे घर को देखा है जो बाहर से तो आलीशान दिखता है, लेकिन भीतर की दीवारें धीरे-धीरे दरक रही हों? उसकी नींव खोखली हो, लेकिन ऊपर चमचमाते बल्बों और पर्दों से उसे स्थिर और सुरक्षित दिखाने की कोशिश की जा रही हो? आज पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बिल्कुल उसी घर जैसी हो चुकी है। ऊपर से Reserve भरे हुए दिखाए जा रहे हैं, IMF की शर्तें पूरी होती नज़र आ रही हैं, लेकिन हकीकत?

एक खतरनाक जाल, जो किसी भी पल सब कुछ ध्वस्त कर सकता है। और इसी खतरे की घंटी बजाई है एक नामचीन चार्टर्ड अकाउंटेंट और पब्लिक पॉलिसी सलाहकार असद अली शाह ने, जिनकी चेतावनी अगर पाकिस्तान ने नहीं मानी—तो अगली श्रीलंका बनने में देर नहीं लगेगी। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

IMF के बेंचमार्क 14 अरब डॉलर से ऊपर जाने पर पाकिस्तान में जश्न जैसा माहौल था। लेकिन असद अली शाह ने इसके पीछे की सच्चाई को बेनकाब कर दिया। उनका साफ कहना है—ये कोई आर्थिक स्थिरता नहीं, सिर्फ एक दिखावा है। जो भंडार दिखाया जा रहा है, वह पूरी तरह कर्ज पर आधारित है। यानी, पाकिस्तान किसी अमीर रिश्तेदार से उधार लेकर अपने मेहमानों को दिखा रहा है कि उसके पास सब कुछ है। लेकिन खुद की जेब में कुछ नहीं।

असल में यह हालात उतने ही चिंताजनक हैं, जितने श्रीलंका ने अपने पतन से पहले दिखाए थे। उस वक्त भी वहीं की सरकार ने जनता और वैश्विक संस्थानों को भरोसा दिलाया था कि सब ठीक है, लेकिन अंत में देश दिवालिया हो गया। पाकिस्तान भी वही गलती दोहरा रहा है—बचाव के उपाय करने की बजाय, बचे हुए संसाधनों को जलाना और उस राख पर स्थिरता का झूठा महल बनाना।

बिजनेस रिकॉर्डर की रिपोर्ट बताती है कि पाकिस्तान का 14.5 अरब डॉलर का foreign currency reserves, दरअसल वास्तविक भंडार नहीं बल्कि केवल ‘रोलओवर’ यानी कर्ज की अवधि बढ़ाकर दिखाए गए आंकड़े हैं। इसमें से लगभग 16 अरब डॉलर का हिस्सा सिर्फ पहले से लिए गए कर्ज को टालने से जुड़ा है। स्टेट बैंक ने खुले बाजार से 8 अरब डॉलर खरीदकर रिजर्व बढ़ाया है, जिससे डॉलर की भारी कमी पैदा हो गई है और पाकिस्तानी रुपया पहले से भी अधिक गिर गया है। ऐसे में सरकार भले कहे कि उसके पास पैसा है, लेकिन ज़मीनी सच्चाई कहती है—न घर के हैं, न घाट के।

असद अली शाह ने यह भी कहा कि यह ‘स्थिरता’ किसी सुधार की निशानी नहीं है, बल्कि पतन को दोबारा पैक कर के पेश किया गया है। ये वही रणनीति है, जो श्रीलंका ने अपनाई थी। तब उन्होंने प्रबंधित दरों और घटते भंडार के सहारे अंतरराष्ट्रीय दबावों को टालने की कोशिश की, लेकिन वो असफल रहे। पाकिस्तान भी exchange control, आर्टिफिशियल डॉलर स्टेबिलिटी और भारी उधारी के सहारे देश को झूठी उम्मीद दे रहा है।

सबसे डरावनी बात यह है कि पाकिस्तान में ‘मैक्रोइकोनॉमिक स्ट्रेस इंडिकेटर्स’—यानी आर्थिक संकट के सूचक—तेज़ी से बिगड़ रहे हैं। मैन्युफैक्चरिंग गिरकर -1.52% हो चुकी है। बेरोजगारी 22% पर पहुंच चुकी है और गरीबी की दर 44.2% तक जा पहुंची है। इन आंकड़ों को अगर किसी और देश के संदर्भ में देखा जाता, तो शायद अंतरराष्ट्रीय मीडिया इसे ‘इमरजेंसी इकोनॉमिक फेल्योर’ घोषित कर देता।

शाह का मानना है कि अगर पाकिस्तान को वाकई कुछ बदलना है, तो उसे IMF पर स्थायी रूप से निर्भर रहने के बजाय खुद को प्रोडक्टिव बनाना होगा। उनकी सलाह स्पष्ट है—डिफॉल्ट करो, तकलीफ झेलो, और आत्मनिर्भर बनो। क्योंकि जब तक आप उधार के पैसों से अपने घर की रौशनी जला रहे हो, तब तक कभी असली उजाला नहीं मिल सकता।

अब सवाल उठता है—क्या चीन, जो पाकिस्तान का सबसे बड़ा कर्जदाता है, इस लगातार बढ़ते आर्थिक बोझ से हाथ खींच लेगा? जून में चीन ने पाकिस्तान को 3.4 अरब डॉलर का कर्ज दिया, जिसमें से 2.1 अरब पहले से ही स्टेट बैंक के पास था और बाकी 1.3 अरब नया रोलओवर था। यानी चीन भी पाकिस्तान को बचाए रखने की कोशिश कर रहा है—कम से कम IMF के मानकों को पूरा करने के लिए। इसके अलावा मिडिल ईस्ट बैंकों से 1 अरब और मल्टीलेटरल फाइनेंशियल संस्थानों से 50 करोड़ डॉलर का अतिरिक्त प्रवाह भी हुआ।

लेकिन ये मदद कब तक चलेगी? एक दिन चीन भी पूछेगा—Return on investment कहां है? क्या CPEC से वाकई कोई रिटर्न मिल रहा है या पाकिस्तान सिर्फ एक फंसा हुआ साथी बन चुका है? यही वो मोड़ है जहां पाकिस्तान को गंभीर आत्ममंथन करना होगा। क्योंकि एक दिन अगर चीन भी हाथ खींच ले, तो न IMF, न अमेरिका और न अरब देश—कोई भी उसकी डूबती नैया को नहीं बचा पाएगा।

पाकिस्तान के पास अभी भी समय है। लेकिन यह समय उधारी का नहीं, सुधार का है। शैलेश शाह जैसे विशेषज्ञों की चेतावनी सिर्फ आर्थिक सलाह नहीं, बल्कि भविष्य का आईना है। एक ऐसा आईना, जिसमें पाकिस्तान खुद को देखे और समझे कि अब और दिखावा नहीं चलेगा। उन्हें अब कर्ज के सहारे “दिखने वाला” भंडार नहीं, “वास्तविक” उत्पादन चाहिए।

इस चेतावनी को नजरअंदाज करना पाकिस्तान को उसी रास्ते पर ले जाएगा जिस पर श्रीलंका चला था। वहां भी पहले Investors की नजरें चमकदार थीं, और फिर देखते ही देखते सड़कों पर दंगे, राशन की लाइनें और सरकारों का पतन हुआ। पाकिस्तान में भी स्थितियां धीरे-धीरे उस मोड़ की ओर बढ़ रही हैं। गरीबी का स्तर खतरनाक हो चुका है, foreign investment घट रहा है और जनता का विश्वास डगमगा रहा है।

इस पूरे मामले में सबसे खतरनाक पक्ष यह है कि, पाकिस्तान की सरकार अब भी इस कर्ज आधारित स्थिरता को एक उपलब्धि के रूप में पेश कर रही है। लेकिन एक समझदार नागरिक जानता है कि उधार पर लिया गया संतुलन, असल में सबसे बड़ा असंतुलन होता है।

कर्ज का बोझ तब तक ठीक लगता है जब तक आपको उसकी कीमत चुकानी न पड़े। लेकिन जब एक दिन वह बोझ गले की फांस बन जाए, तब देश की अर्थव्यवस्था ही नहीं, जनता की ज़िंदगी भी दांव पर लग जाती है। और पाकिस्तान अब उसी कगार पर खड़ा है—जहां से एक गलत कदम, सीधे बर्बादी की खाई में गिरा सकता है।

चीन के साथ उसके रिश्ते अब केवल रणनीतिक नहीं, आर्थिक बोझ बनते जा रहे हैं। CPEC जैसी परियोजनाएं, जो कभी पाकिस्तान के विकास की उम्मीद मानी जाती थीं, आज लोन रीपेमेंट और ब्याज के जाल में उलझी हुई हैं। ऊपर से IMF की शर्तें—जो किसी भी मदद के बदले सख्त आर्थिक अनुशासन मांगती हैं—वो पाकिस्तान के लिए एक अलग तनाव हैं।

असद अली शाह जैसे लोग पाकिस्तान की आत्मा की आवाज़ हैं—जो कह रहे हैं कि अब वक्त है सच्चाई स्वीकारने का। IMF के भरोसे, चीन के कर्ज से या सऊदी अरब की मदद से देश नहीं चलते। देश चलता है—उत्पादन से, व्यापार से, कौशल से और सबसे ज़्यादा—ईमानदारी से।

तो सवाल ये नहीं कि पाकिस्तान का रिजर्व 14 अरब डॉलर पार कर गया या नहीं। असली सवाल है—क्या वो पैसा उनका है? क्या उसे कमाया गया है? या फिर वो सब सिर्फ दिखावा है—कर्ज का नकाब पहनकर स्थिरता का अभिनय? अगर ये सवाल पाकिस्तान के नीति-निर्माताओं ने खुद से नहीं पूछा, तो अगली रिपोर्ट में “श्रीलंका जैसी स्थिति” सिर्फ चेतावनी नहीं, हकीकत बन जाएगी।

क्योंकि एक देश तभी बचता है जब वो खुद को सुधारने का साहस करे। IMF या चीन किसी देश को उठा नहीं सकते, अगर वो खुद गिरने को तैयार हो। अब फैसला पाकिस्तान को करना है—सच देखेगा या फिर उधार की रोशनी में खुद को चमकता समझता रहेगा?

Conclusion

अगर हमारे आर्टिकल ने आपको कुछ नया सिखाया हो, तो इसे शेयर करना न भूलें, ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी और लोगों तक पहुँच सके। आपके सुझाव और सवाल हमारे लिए बेहद अहम हैं, इसलिए उन्हें कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बेहतर बनाने में मदद करती हैं।

GRT Business विभिन्न समाचार एजेंसियों, जनमत और सार्वजनिक स्रोतों से जानकारी लेकर आपके लिए सटीक और सत्यापित कंटेंट प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। हालांकि, किसी भी त्रुटि या विवाद के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं। हमारा उद्देश्य आपके ज्ञान को बढ़ाना और आपको सही तथ्यों से अवगत कराना है।

अधिक जानकारी के लिए आप हमारे GRT Business Youtube चैनल पर भी विजिट कर सकते हैं। धन्यवाद!”c

Spread the love

Leave a Comment