एक शांत सुबह थी… लेकिन भारत की रणनीतिक गलियों में एक बेचैनी सी तैर रही थी। राजनाथ सिंह China की यात्रा पर थे, और एनएसए अजीत डोभाल भी बीजिंग से लौटे ही थे। लग रहा था जैसे भारत और चीन एक बार फिर एक समझदारी की ओर बढ़ रहे हैं… लेकिन तभी China ने अचानक कुछ ऐसा किया, जिसने सबको चौंका दिया।
मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के लिए जरूरी टनल बोरिंग मशीन रोक दी गई… रेयर अर्थ मैग्नेट्स की सप्लाई रुक गई… और खास Fertilizers का Export भी ठप पड़ गया। ये महज़ संयोग नहीं था… ये था एक सोचा-समझा ‘डिप्लोमैटिक अटैक’। सवाल ये नहीं था कि चीन क्या कर रहा है… असली सवाल था—चीन भारत को क्या मैसेज देना चाहता है? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
आपको बता दें कि China के इस अचानक कदम ने भारत की राजनयिक नीति को चौंका दिया। एक तरफ डेलिगेशन गर्मजोशी से हाथ मिला रहे थे, कैमरे मुस्कानें कैद कर रहे थे, लेकिन दूसरी तरफ चीन अपने बंदरगाहों पर उन वस्तुओं को रोक रहा था, जिनकी भारत को तत्काल आवश्यकता थी। China के इस दोहरे रवैये ने सिर्फ विदेश मंत्रालय को नहीं, बल्कि भारतीय उद्योग जगत को भी सकते में डाल दिया।
सबसे पहले हमला हुआ भारत की तकनीकी महत्वाकांक्षा पर—रेयर अर्थ मैग्नेट्स की आपूर्ति बंद करके। ये वही चुंबकीय तत्व हैं जो भारत की इलेक्ट्रिक व्हीकल नीति, विंड टर्बाइन निर्माण और हाईटेक उपकरणों की नींव में होते हैं। ये China की सबसे गुप्त ताकतों में से एक है—और उसने इन्हें भारत के ख़िलाफ़ रणनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया।
लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती। कृषि, जो भारत की आत्मा है, उसे भी इस दबाव की राजनीति का शिकार बनाया गया। Special fertilizers—जो भारत के खेतों में पोषण की कमी पूरी करते हैं—अब चीनी बंदरगाहों पर ‘कस्टम जांच’ के नाम पर रोके जा रहे हैं। ये वही वक्त है जब भारत को बुआई की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है, और global level पर Food security को लेकर चिंता पहले से ही गहराई हुई है।
और फिर टनल बोरिंग मशीनें… मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना में इस्तेमाल होने वाली ये विशालकाय मशीनें China से आनी थीं। लेकिन इन्हें भी बिना किसी कारण बताए रोक दिया गया। ये वही प्रोजेक्ट है जिसमें जापान Invest कर रहा है, और भारत इसे एशिया के सबसे तेज़ रेल मार्गों में से एक बनाना चाहता है। China का यह कदम न सिर्फ एक आर्थिक झटका है, बल्कि यह एक कूटनीतिक अपमान जैसा भी है। अब सवाल ये है—China ये सब क्यों कर रहा है? क्या ये सिर्फ व्यापारिक बाधा है या इसके पीछे कोई गहरी रणनीति है?
जवाब है—ये रणनीति है। बेहद सटीक और योजनाबद्ध। China भारत को एक साफ संदेश देना चाहता है—”हमारे साथ नहीं चले तो तुम्हारी प्रगति थम जाएगी।” यह वही मानसिकता है जिससे चीन ने पूरी दुनिया को आर्थिक रूप से झुकाने की कोशिश की है। और अब, भारत उस निशाने पर है।
चीनी अधिकारी दावा करते हैं कि ये रोक ‘तकनीकी कारणों से है—Fertilizer के मामले में उन्होंने कहा कि उनके कृषि नियम और घरेलू आवश्यकताएं प्राथमिक हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि China ने बिना किसी आधिकारिक प्रतिबंध के, सिर्फ नौकरशाही हथियारों का उपयोग करते हुए भारत को ब्लॉक करना शुरू कर दिया है। यह है ‘शीत युद्ध’ की नई परिभाषा—जहाँ बुलेट्स की जगह बिज़नेस ब्लॉकेज हैं।
ET की एक रिपोर्ट के अनुसार, China ने भारत भेजे जाने वाले सामान की “औपचारिक जांच” तक नहीं की। बस चुपचाप उन्हें रोक दिया गया। सोल्युबल फर्टिलाइज़र इंडस्ट्री एसोसिएशन के अध्यक्ष राजीब चक्रवर्ती ने बताया कि चीन पिछले कुछ वर्षों से भारत को लगातार परेशान कर रहा है, लेकिन इस बार मामला पूरी तरह ‘स्टैंडस्टिल’ का है।
असल में यह सब एक प्रतिक्रियात्मक नीति का हिस्सा भी है। 2020 में गलवान घाटी की घटना के बाद भारत ने चीनी Investment, टेक्नोलॉजी और डिजिटल सेक्टर में कठोर प्रतिबंध लगाए थे। टिकटॉक, यूसी ब्राउज़र, कैम स्कैनर जैसे ऐप्स पर बैन लगा दिया गया। भारत ने FDI नियमों में बदलाव कर दिया ताकि चीन जैसी सीमावर्ती शक्तियों को बिना मंजूरी Investment की छूट न हो। और China, ये सब भूला नहीं है।
China का मानना है कि भारत की इन नीतियों ने उसे दक्षिण एशिया के सबसे बड़े बाजार से दूर कर दिया है। उसकी मल्टीनेशनल कंपनियों के रास्ते बंद हो गए हैं, और अब वह भारत को ये बताना चाहता है कि इस ‘अलगाव’ की कीमत क्या होती है। तो अब बड़ा सवाल उठता है—क्या भारत के पास कोई विकल्प है?
और इसका जवाब है—हां, है। भारत ने China पर निर्भरता कम करने की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दी थी। आज रूस भारत को सबसे बड़ा Fertilizer supplier बन चुका है। ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान के साथ मिलकर भारत रेयर अर्थ मिनरल्स के लिए नई साझेदारियां बना रहा है। साथ ही Product Link incentive स्कीम्स के तहत भारत खुद उत्पादन को बढ़ावा दे रहा है।
लेकिन ये आसान नहीं है। रेयर अर्थ मैग्नेट्स जैसी चीज़ों को तुरंत किसी और देश से मंगवाना महंगा भी है और समय भी लगता है। और यही China की रणनीति है—भारत की ‘सहनशीलता’ की परीक्षा लेना। अब देखना होगा कि भारत कब तक बिना झुके यह दबाव सहता रहेगा।
इस सबके बीच एक अजीब बात है। China ऊपर से दोस्ती दिखा रहा है—राजनाथ सिंह और अजीत डोभाल की बीजिंग यात्राओं से ऐसा आभास होता है कि संबंध सामान्य हो रहे हैं। लेकिन अंदर ही अंदर China भारत पर व्यापारिक हथियारों से हमला कर रहा है। यह वही दोहरी रणनीति है जिसमें वह एक हाथ से झंडी लहराता है और दूसरे हाथ में छुरा छुपाए रखता है।
चीन चाहता है कि भारत सीमा विवाद में नरमी दिखाए, नई तकनीकों और Investment के लिए दरवाज़े खोले। लेकिन भारत अब पुराने भारत की तरह नहीं है। अब वह समानता, आत्मनिर्भरता और रणनीतिक संतुलन की बात करता है।
राजनाथ सिंह ने चीन को साफ शब्दों में संदेश दिया कि रिश्तों में मजबूती तभी आएगी जब सीमा पर स्थायित्व और भरोसा बना रहेगा। उन्होंने ये भी कहा कि हमें एक सकारात्मक माहौल बनाए रखना चाहिए, ना कि नई परेशानियां पैदा करनी चाहिए। यह बयान चीन को पसंद नहीं आएगा—लेकिन भारत की स्थिति अब स्पष्ट है।
इस कहानी का अंत अब चीन और भारत की अगली चालों पर निर्भर करता है। क्या चीन अपने दबावों को बढ़ाएगा या वार्ता के रास्ते पर लौटेगा? क्या भारत घरेलू उत्पादन और नई साझेदारियों से इस दबाव को मात देगा? या एक नया आर्थिक शीत युद्ध हमारी आंखों के सामने आकार ले रहा है? जो साफ है वो ये—अब व्यापार सिर्फ व्यापार नहीं रहा। यह युद्ध का नया मैदान बन चुका है। और भारत, इस बार पूरी तैयारी में है।
Conclusion
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