Alert: Walkie-talkie अब नहीं होगा दुरुपयोग! सरकार की सख्ती से सुरक्षित हुआ आपका संवाद I 2025

एक ऐसा उपकरण, जिसे आपने अक्सर फिल्मों में देखा होगा—जासूसों के हाथ में, पुलिस की जेब में, और आतंकवादियों के गुप्त ठिकानों में। वह उपकरण जो बिना किसी नेटवर्क, बिना किसी सिम के भी दो लोगों को जोड़ सकता है। लेकिन क्या हो अगर आप सोचें कि ये सिर्फ एक बच्चों का खिलौना है और उसे बिना रोक-टोक ऑनलाइन खरीद लें? और फिर पता चले कि आपके हाथों में एक ऐसा यंत्र है जो कानून तोड़ रहा है, और हो सकता है आपकी सुरक्षा को भी खतरे में डाल रहा हो।

भारत सरकार ने अब इस खतरनाक गलती को रोकने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। CCPA यानी Central Consumer Protection Authority ने ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर बेचे जा रहे, Walkie-talkie जैसे रेडियो उपकरणों की अनियमित बिक्री पर नकेल कस दी है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

आपको बता दें कि यह सिर्फ एक उत्पाद को हटाने का मामला नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा, उपभोक्ता अधिकार और डिजिटल बाजार की पारदर्शिता से जुड़ा हुआ एक अहम फैसला है। कई सालों से भारत के डिजिटल मार्केटप्लेस पर Walkie-talkie जैसे उपकरण धड़ल्ले से बिक रहे थे। देखने में ये आम रेडियो उपकरण लगते थे, लेकिन इनमें कई ऐसे मॉडलों की भरमार थी, जो बिना किसी लाइसेंस के, बिना किसी सरकारी स्वीकृति के, खुलेआम बिक रहे थे। न तो इनकी फ्रीक्वेंसी रेंज बताई जाती थी, न ही यह कि आम आदमी इन्हें चला सकता है या नहीं। लोग इन्हें खरीदे जा रहे थे—जैसे वे कोई मोबाइल केस या स्पीकर ले रहे हों। पर असलियत बहुत गंभीर थी।

CCPA को जैसे ही इस गड़बड़ी की भनक लगी, उन्होंने दूरसंचार विभाग और गृह मंत्रालय के साथ मिलकर एक गहन समीक्षा शुरू की। क्योंकि यह केवल उपभोक्ताओं के गुमराह होने का मामला नहीं था, बल्कि यह राष्ट्रीय संप्रभुता और Strategic Communications Network की संभावित सेंधमारी से जुड़ा मामला भी बन चुका था। इन Walkie-talkie सेट्स का उपयोग बिना लाइसेंस के किया जाना, देश के वायरलेस कम्युनिकेशन कानूनों का खुला उल्लंघन है। और इसका फायदा उठाया जा सकता है—देश विरोधी तत्वों द्वारा।

जब सरकार ने जांच की, तो यह सामने आया कि कई बड़े डिजिटल मार्केटप्लेस, जैसे कि Amazon, Flipkart, Snapdeal, और अन्य, पर हजारों ऐसे उत्पाद उपलब्ध थे, जिनके विवरण में न तो फ्रीक्वेंसी रेंज का उल्लेख था और न ही ETA—यानि Equipment Type Approval—का कोई जिक्र। ग्राहकों को यह बताने की कोई कोशिश नहीं की जा रही थी कि उन्हें इन उपकरणों को इस्तेमाल करने से पहले सरकारी मंजूरी की जरूरत है या नहीं। यानी एक आम उपभोक्ता यह मानकर चल रहा था कि इनका इस्तेमाल करना पूरी तरह कानूनी है। लेकिन नहीं, यह सरासर गुमराह करना था।

CCPA ने इस पर सख्त रुख अपनाया। सबसे पहले 13 बड़े ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स को नोटिस जारी किए गए। इन नोटिसों में यह स्पष्ट किया गया कि उनके पोर्टल्स पर 16,970 ऐसे उत्पाद उपलब्ध हैं, जो कानूनों के मुताबिक अवैध हैं। यह कोई छोटी संख्या नहीं थी। यह दर्शाता है कि डिजिटल बाजार में किस स्तर पर नियमों की अनदेखी हो रही थी। और यह अनदेखी केवल व्यापार की लापरवाही नहीं, बल्कि उपभोक्ता अधिकारों का घोर उल्लंघन थी।

अब जब नई गाइडलाइंस लागू की गई हैं, तो इनके तहत ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर केवल वही Walkie-talkie बेचे जा सकेंगे, जो ETA अप्रूव्ड होंगे और जिनकी फ्रीक्वेंसी रेंज वैध होगी। साथ ही, यह भी अनिवार्य होगा कि हर उत्पाद की लिस्टिंग में तकनीकी पैरामीटर, लाइसेंसिंग आवश्यकताएं, और उपकरण के प्रयोग की सीमाएं स्पष्ट रूप से लिखी जाएं। इससे उपभोक्ता पूरी जानकारी के साथ निर्णय ले सकेगा, न कि भ्रम में।

पर यह सवाल भी उठता है—ETA आखिर होता क्या है? Equipment Type Approval एक ऐसा सरकारी प्रमाणपत्र होता है जो बताता है कि, कोई भी वायरलेस उपकरण भारत के दूरसंचार नियमों के मुताबिक है या नहीं। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि उपकरण न तो अन्य सरकारी या सार्वजनिक संचार नेटवर्क में हस्तक्षेप करेगा, और न ही सुरक्षा के लिए खतरा बनेगा। लेकिन जब यह जरूरी प्रक्रिया ही पूरी नहीं होती, और ऐसे उपकरण सीधे आम लोगों को बेचे जाते हैं, तो Risk कई गुना बढ़ जाते हैं।

अब आप सोचिए, अगर कोई बिना ETA वाला Walkie-talkie किसी बच्चे के हाथ में चला गया, और वो गलती से किसी ऐसी फ्रीक्वेंसी से जुड़ गया जो सेना या पुलिस की इंटरनल कम्युनिकेशन लाइन है? या कोई असामाजिक तत्व ऐसा ही डिवाइस लेकर छुपकर इंटरसेप्टिंग या हस्तक्षेप कर सके? यही खतरे सरकार को मजबूर कर रहे थे कि वह डिजिटल बिक्री पर सख्त नियंत्रण बनाए।

CCPA के इस फैसले का एक और पहलू भी है—ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स की जवाबदेही। अब सिर्फ यह कहना काफी नहीं होगा कि “हम तो सिर्फ एक माध्यम हैं, विक्रेता की जिम्मेदारी है।” नए नियमों के तहत, प्लेटफॉर्म्स को खुद यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके पोर्टल पर जो भी Walkie-talkie या रेडियो फ्रीक्वेंसी डिवाइस बेचे जा रहे हैं, वे सभी नियामक शर्तों को पूरा करते हैं या नहीं। उन्हें खुद दस्तावेज देखने होंगे, ETA की कॉपी लेनी होगी, और Non-compliant products को तुरंत हटाना होगा।

इसका फायदा सीधा उपभोक्ताओं को मिलेगा। पहले की तरह कोई भी गलती से अवैध उपकरण नहीं खरीद सकेगा। साथ ही, मार्केट में भरोसा बढ़ेगा। उपभोक्ता जान सकेगा कि जो भी उत्पाद उसे दिखाया जा रहा है, वह पूरी तरह प्रमाणित है। यह कदम न केवल ग्राहकों की सुरक्षा करेगा, बल्कि पूरे डिजिटल इकोसिस्टम की गुणवत्ता भी सुधारेगा।

लेकिन यहां एक और दिलचस्प बात है। भारत के Consumer Protection Act 2019 की धारा 2(47) और धारा 18 के तहत, किसी भी उपभोक्ता को अगर गुमराह किया जाता है, तो यह एक दंडनीय अपराध है। और जब उत्पाद की जानकारी ही अधूरी होती है, जैसे कि लाइसेंस की आवश्यकता या तकनीकी सीमाएं नहीं बताई जातीं, तो यह उपभोक्ता को धोखे में डालने का सीधा मामला बनता है। CCPA का ताज़ा आदेश इसी कानून के दायरे में आता है, और इसीलिए यह कानूनी रूप से बहुत मजबूत और क्रांतिकारी फैसला माना जा रहा है।

अब सवाल यह है कि इसका असर क्या होगा? सबसे पहला असर उन छोटे और अनऑथराइज्ड विक्रेताओं पर पड़ेगा, जो चीन या अन्य देशों से रेडियो डिवाइस इम्पोर्ट कर रहे थे और भारत में ऑनलाइन बेच रहे थे। इनमें से कई उपकरण ऐसे होते हैं जो भारत में गैरकानूनी फ्रीक्वेंसी पर काम करते हैं। न ही इनकी कोई मंजूरी होती है, न ही कोई उपयोग की सीमा। अब ऐसे उत्पाद सीधे हटाए जाएंगे, और अगर कोई नियमों की अनदेखी करता है तो भारी जुर्माना और कानूनी कार्यवाही भी होगी।

दूसरा असर यह होगा कि रेडियो फ्रीक्वेंसी सिस्टम की शुद्धता और सुरक्षा बढ़ेगी। अभी तक बाजार में फैले इन अनियमित उपकरणों की वजह से बहुत बार सरकारी या आपातकालीन संचार लाइन में हस्तक्षेप की शिकायतें आती थीं। कई बार रेलवे, एयरपोर्ट और रक्षा प्रतिष्ठानों के पास ऐसे उपकरणों के सिग्नल कैच हो जाते थे, जिससे सिस्टम में बाधा आती थी। अब इस पर पूरी तरह से लगाम लगेगी।

तीसरा बड़ा प्रभाव पड़ेगा उपभोक्ता जागरूकता पर। इस कदम से लोगों को पता चलेगा कि हर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस, खासकर वायरलेस डिवाइस, कोई खिलौना नहीं होता। इसके लिए नियम होते हैं, सीमाएं होती हैं, और उनके पालन की जिम्मेदारी उपभोक्ता की भी है। अब हर ग्राहक खरीदने से पहले सोच-समझकर ही क्लिक करेगा।

Conclusion

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