ज़रा सोचिए… अगर आपके पिता अरबपति हों, जिनकी संपत्ति इतनी विशाल हो कि उसे गिनने में भी कैलकुलेटर थक जाए, तो आप क्या उम्मीद करेंगे? यही कि एक दिन वो दौलत आपके हाथ आएगी। लेकिन अब सोचिए, जब पिता के निधन के बाद यह खबर आए कि आपको एक रुपये तक का हिस्सा नहीं मिला, बल्कि सारी संपत्ति सीधे आपके बच्चों को सौंप दी गई है, तो आप किस सदमे में चले जाएंगे?
यही हुआ सिंगापुर के दिग्गज उद्योगपति Goh Cheng Liang के साथ। 98 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने से पहले उन्होंने जो वसीयत बनाई, उसमें उन्होंने अपने बच्चों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया और अपनी 1,16,521 करोड़ रुपये की संपत्ति सीधे पोते-पोतियों के नाम कर दी। उनके इस अनोखे फैसले ने बिजनेस जगत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया।
Goh Cheng Liang के निधन के बाद जब उनकी संपत्ति के वारिसों की घोषणा हुई, तो हर कोई हैरान रह गया। उम्मीद यही थी कि उनके बेटे-बेटियाँ इस दौलत को संभालेंगे, क्योंकि यही एशिया का परंपरागत तरीका है। अमूमन चीन, जापान, भारत या सिंगापुर जैसे देशों में अरबपति पिता अपने बच्चों को ही उत्तराधिकारी बनाते हैं।
लेकिन गोह ने पूरी परंपरा को तोड़ते हुए कहा—“मेरी दौलत सीधे मेरी तीसरी पीढ़ी को मिलेगी।” इस एक फैसले से उनके छह पोते-पोतियाँ रातों-रात अरबपति बन गए। कल्पना कीजिए, जो कल तक आम युवाओं की तरह अपनी पढ़ाई, शोध या छोटे-मोटे सामाजिक कार्यों में लगे थे, वो अचानक अरबों डॉलर के मालिक बन गए। अब सवाल उठता है कि आखिर गोह ने ऐसा क्यों किया? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
दरअसल, यह केवल दौलत का बंटवारा नहीं था, बल्कि यह उनकी सोच, दूरदृष्टि और पारिवारिक रणनीति का हिस्सा था। उन्होंने बच्चों को कंपनी में सीधे हिस्सेदारी नहीं दी, लेकिन उन्हें पूरी तरह नज़रअंदाज भी नहीं किया। दूसरी पीढ़ी यानी उनके बच्चों को वोटिंग अधिकार दिए गए, ताकि कंपनी पर नियंत्रण उनके हाथ में बना रहे। यानी यह मॉडल बिल्कुल नया था—जहाँ पैसा और हिस्सेदारी नई पीढ़ी के पास होगी, लेकिन असली ताकत और फैसले पुरानी पीढ़ी के पास ही रहेंगे। यह संतुलन बनाने की एक चतुर कोशिश थी, जो आने वाले दशकों तक परिवार और बिजनेस को एकजुट रख सकती है।
Goh Cheng Liang की ज़िंदगी की कहानी भी किसी फिल्म से कम नहीं है। उनका जन्म एक बेहद साधारण परिवार में हुआ था। बचपन में उनके पास न संसाधन थे, न कोई बड़ी डिग्री, लेकिन उनके पास सपने थे।
उन्होंने छोटी-छोटी नौकरियाँ करके अपनी जिंदगी शुरू की। कहा जाता है कि शुरुआती दिनों में वे इतनी गरीबी में थे कि गुज़ारे के लिए मामूली काम भी करना पड़ता था। लेकिन उनके भीतर एक दृढ़ निश्चय था—कि एक दिन वे कुछ बड़ा करेंगे। 1960 के दशक में उन्होंने जापान की Nippon Paint Holdings के साथ साझेदारी की और एशिया में पेंट का कारोबार शुरू किया। उस समय किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक दिन यह कंपनी पूरे एशिया-पैसिफिक की सबसे बड़ी पेंट निर्माता बन जाएगी।
धीरे-धीरे उन्होंने वूथेलम होल्डिंग्स की नींव रखी। यह वही कंपनी है जिसने बाद में Nippon Paint Holdings में सबसे बड़ी हिस्सेदारी ले ली। गोह की अगुवाई में Nippon Paint ने चीन, भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया, कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और यहां तक कि अमेरिका तक अपने पैर फैला लिए। कंपनी न केवल रंग बेच रही थी, बल्कि सपनों को रंग रही थी। उनके नेतृत्व में Nippon Paint सिर्फ एक पेंट कंपनी नहीं रही, बल्कि एक ऐसी ताकत बन गई जो एशिया की अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करती थी। यही कारण था कि Goh Cheng Liang को सिंगापुर का दूसरा सबसे अमीर व्यक्ति माना जाता था।
लेकिन जितना बड़ा साम्राज्य उन्होंने खड़ा किया, उतना ही बड़ा सवाल उनके उत्तराधिकार को लेकर था। जब उम्र ने 90 का आंकड़ा पार किया, तो उन्होंने सोचना शुरू किया कि उनकी विरासत किसके हाथ जाएगी। दिसंबर 2023 में उन्होंने वूथेलम होल्डिंग्स से Nippon Paint Holdings की 55% हिस्सेदारी सीधे अपने पोते-पोतियों को ट्रांसफर कर दी। इस एक फैसले ने उनके वारिसों की जिंदगी पूरी तरह बदल दी।
उनकी पोती एप्रिल गोह इस ट्रांसफर की सबसे बड़ी विजेता रहीं। अकेले उनके पास 3.4 अरब डॉलर की हिस्सेदारी आ गई। लेकिन एप्रिल सिर्फ नाम की अरबपति नहीं हैं। उन्होंने Columbia University में पढ़ाई की है, चीन सेंटर फॉर सोशल पॉलिसी में फेलो रह चुकी हैं और जेंडर आधारित हिंसा पर रिसर्च किया है। यानी उनके पास न केवल पैसा है, बल्कि समाज की समझ और जिम्मेदारी भी है। यही वजह है कि अब वे अपने भाई-बहनों की संपत्ति का प्रबंधन भी करती हैं।
उनकी अन्य पोतियाँ—शार्लोट, हेनरिटा और विक्टोरिया—को भी करीब 1.1 अरब डॉलर के शेयर मिले। शार्लोट ने बाली में एक फाउंडेशन शुरू किया है, जो गरीब बच्चों को स्कॉलरशिप, स्वास्थ्य सेवा और काउंसलिंग देता है। इस फाउंडेशन ने हज़ारों बच्चों की जिंदगी बदल दी है। यह दिखाता है कि गोह की अगली पीढ़ी केवल दौलत संभालने में ही नहीं, बल्कि समाज को वापस देने में भी यकीन रखती है।
गोह की बेटी चियाट जिन लंबे समय से गोह फाउंडेशन से जुड़ी हुई हैं। यह फाउंडेशन 1995 में शिक्षा और मेडिकल रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया था। इसी परिवार के एक और वारिस मार्टिन युएन-आन लावो Sustainir Agriculture के सह-संस्थापक बने। यह एक वर्टिकल फार्मिंग स्टार्टअप है, जिसे सिंगापुर की बड़ी कंपनी Temasek का समर्थन हासिल है। इसका मकसद खेती के नए तरीकों को अपनाकर खाद्य संकट का समाधान करना है।
लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यही रही कि बच्चों को सीधे हिस्सेदारी नहीं मिली। उनके बेटे गोह हप जिन के पास Nipsea International में 91% वोटिंग अधिकार हैं। इसका मतलब यह है कि भले ही पैसे और हिस्सेदारी पोते-पोतियों के पास चली गई हो, लेकिन कंपनी चलाने और बड़े फैसले लेने का अधिकार अभी भी बच्चों के पास है। यह व्यवस्था बिल्कुल वैसी है जैसे घर में बुज़ुर्ग अपनी संपत्ति बच्चों को दे दें लेकिन घर का असली ताला चाबी अपने पास ही रखें।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह योजना बेहद समझदारी भरी है। अक्सर एशियाई परिवारों में दूसरी पीढ़ी भाई-बहनों के बीच आपसी झगड़ों में फँस जाती है। तीसरी पीढ़ी तक पहुंचते-पहुंचते संपत्ति बिखर जाती है। लेकिन गोह ने यह खतरा पहले ही पहचान लिया। उन्होंने बच्चों को नियंत्रण दिया और पोते-पोतियों को आर्थिक ताक़त। यानी दोनों पीढ़ियाँ संतुलन में रहेंगी और कंपनी का भविष्य भी सुरक्षित रहेगा।
इस फैसले की चर्चा दुनिया भर में हो रही है। बिजनेस स्कूलों में इसे एक सफल उत्तराधिकार मॉडल की तरह पढ़ाया जा सकता है। भारत में अंबानी परिवार की कहानी सब जानते हैं—जहाँ संपत्ति के बंटवारे ने कई बार विवाद खड़े किए। दक्षिण कोरिया के Samsung ग्रुप में भी उत्तराधिकार को लेकर लंबे विवाद चले। अमेरिका का वॉल्टन परिवार (Walmart मालिक) भी पीढ़ियों से अपनी संपत्ति संभालने के लिए संघर्ष करता रहा है। लेकिन गोह का मॉडल एक अलग दिशा दिखाता है—जहाँ भविष्य और वर्तमान, दोनों का संतुलन बनाया जा सकता है।
गोह चेंग लियांग खुद एक साधारण जीवन जीते थे। वे मीडिया से दूरी बनाए रखते थे। उन्हें बोटिंग और फिशिंग का बहुत शौक़ था। उनके पास कई लग्ज़री यॉट्स थे, लेकिन सबसे खास थी उनकी 84 मीटर लंबी व्हाइट रैबिट गोल्फ। बावजूद इसके उन्होंने कभी अपने अमीर होने का दिखावा नहीं किया। उनका परिवार भी हमेशा लाइमलाइट से दूर रहा। न कोई ज्यादा इंटरव्यू, न सार्वजनिक बयानबाज़ी। यह गोपनीयता उनके पारिवारिक जीवन और कारोबारी रणनीति दोनों में दिखती है।
उनका यह फैसला भी उनकी इसी सोच का नतीजा था। उन्होंने दौलत को केवल पैसे के रूप में नहीं देखा, बल्कि इसे जिम्मेदारी माना। शायद यही वजह थी कि उन्होंने बच्चों के बजाय पोते-पोतियों को चुना। बच्चों के पास पहले से ही करियर और बिजनेस थे, लेकिन पोते-पोतियों को विरासत देकर उन्होंने उन्हें जिम्मेदारी का अहसास कराया। यह फैसला आने वाले दशकों तक एशियाई बिजनेस जगत के लिए मिसाल बना रहेगा।
Conclusion
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