First Company से गुलामी तक का सफर! अब भारतीयों को परोस रही है चाय-कॉफी और शाही विरासत I 2025

एक अजीब-सी विडंबना है… वो कंपनी जिसने भारत को लूटा, गुलाम बनाया, और सैकड़ों साल तक राज किया—आज वही कंपनी ऑनलाइन चॉकलेट बेच रही है। ज़रा सोचिए—जिसने कभी बंदूकों और सेनाओं से भारत पर कब्जा जमाया, अब वह ई-कॉमर्स साइट पर चाय और कॉफी की सेल चला रही है। लेकिन इससे भी चौंकाने वाली बात ये है कि इस कंपनी के मालिक अब कोई अंग्रेज नहीं, बल्कि भारतीय मूल के एक बिज़नेसमैन हैं—संजीव मेहता।

क्या आप जानते हैं कि भारत की सबसे First Company कौन-सी थी? कैसे उसने व्यापार की आड़ में साम्राज्य खड़ा किया और अब कैसे एक बार फिर एक भारतीय ने उसे खरीदकर उसके इतिहास को पलटने की कोशिश की? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

आपको बता दें कि आज भारत में लगभग 28 लाख से अधिक कंपनियाँ रजिस्टर्ड हैं। हर साल हजारों नई कंपनियाँ खुलती हैं। इनमें से कई स्टार्टअप बनते हैं, कुछ यूनिकॉर्न, कुछ सफल तो कुछ असफल भी। लेकिन इन सभी के बीच एक सवाल अब भी खड़ा है—भारत की सबसे First Company कौन-सी थी?

और अब वह कंपनी कहाँ है, क्या कर रही है? यह सवाल सिर्फ एक ऐतिहासिक जिज्ञासा नहीं, बल्कि यह जानना जरूरी है कि भारतीय व्यापार की नींव कैसे रखी गई, और कैसे एक विदेशी कंपनी ने इसे हथिया कर सदियों तक इसका फायदा उठाया। आज जब हम आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं, तब उस पहले पन्ने को पलटना ज़रूरी हो जाता है।

इसका जवाब हमें इतिहास के पन्नों में 400 साल पीछे ले जाता है। साल 1600, 31 दिसंबर की रात—लंदन में कुछ व्यापारी एक महत्वाकांक्षी योजना पर हस्ताक्षर करते हैं। यह योजना एक कंपनी की थी, जिसका नाम रखा गया—”द ईस्ट इंडिया कंपनी”। नाम भले ही सीधा-साधा हो, पर इरादे बेहद गहरे थे। कंपनी को ब्रिटिश सम्राट की ओर से व्यापार का विशेषाधिकार दिया गया—मगर ये व्यापार सिर्फ सौदों तक सीमित नहीं था। इसमें युद्ध का अधिकार, अपने सैनिक रखने का अधिकार, और यहां तक कि संप्रभु भूमि पर कब्जा करने की छूट भी शामिल थी।

यानी यह एक कंपनी नहीं, एक पूरा शासनतंत्र था—जो व्यापार के नाम पर किसी भी देश को अपने कब्जे में ले सकती थी। और उसकी सबसे बड़ी प्रयोगशाला बनी—भारत। ईस्ट इंडिया कंपनी एक अनोखा उदाहरण थी जिसमें व्यापार, कूटनीति और सैन्य शक्ति एक ही संस्था में समाहित हो गई थी। यह आधुनिक वैश्विक निगमों की जड़ थी, लेकिन इसके पीछे साम्राज्यवादी मंशाएं थीं, जो धीरे-धीरे एक उपनिवेश की शक्ल में भारत को जकड़ने लगीं।

जब यूरोप के बाकी देश भारत के मसालों से अपनी तिजोरियाँ भर रहे थे, तब ब्रिटेन ने भी एक रास्ता चुना। पुर्तगालियों ने वास्को डिगामा के जरिए भारत का रास्ता दिखाया। यूरोप में भारतीय मसालों की मांग इतनी तेज़ हुई कि पूरा महाद्वीप उसकी खुशबू से मोहित हो गया। ईस्ट इंडिया कंपनी को भी समझ आ गया था कि अगर इस व्यापार को काबू में करना है, तो भारत को काबू में लेना होगा। मसालों की इस दौड़ में कंपनी ने एक महत्वाकांक्षी नजरिया अपनाया, जिसमें सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि सत्ता भी हासिल करना था।

कंपनी की पहली सफलता एक लूट से शुरू हुई। एक पुर्तगाली जहाज को लूट कर उसे 900 टन मसाले मिले। और इन मसालों की बिक्री से कंपनी ने जो मुनाफा कमाया, वह था 300 प्रतिशत! सोचिए—एक कंपनी जिसका गठन हुआ था Investors के पैसे से, अब लूट को व्यापार कह रही थी और उस लूट का हिस्सा बांट रही थी इन्वेस्टर्स में। यह वो क्षण था जब लालच ने नीति को मात दी, और कंपनी ने तय कर लिया कि अब उसका असली ध्येय सिर्फ व्यापार नहीं बल्कि पूर्ण नियंत्रण होगा।

साल 1613 में कंपनी ने भारत में अपना पहला कारखाना स्थापित किया—सूरत में, मुगल सम्राट जहांगीर की अनुमति से। यह एक कूटनीतिक चाल थी—दरवाजे शांति से खोले गए, ताकि भीतर युद्ध लाया जा सके। फिर कलकत्ता, बॉम्बे, मद्रास… धीरे-धीरे व्यापारिक चौकियाँ सैन्य अड्डों में बदलती गईं। व्यापार की भाषा में अब तलवारें बोलने लगी थीं। ये वो समय था जब भारत धीरे-धीरे एक व्यापारिक उपनिवेश से एक राजनीतिक गुलामी की ओर बढ़ रहा था, और इसका संचालन कर रही थी एक कंपनी।

कंपनी को सबसे बड़ा झटका और सीख फ्रांसीसी कंपनी ‘डेस इंडेस’ से मिला। लेकिन असली निर्णायक मोड़ आया साल 1764 में, बक्सर की लड़ाई में। इस लड़ाई ने कंपनी को ऐसा राजनीतिक नियंत्रण दे दिया, जिससे उसने धीरे-धीरे पूरे भारत पर कब्जा जमा लिया। यह अब सिर्फ एक कंपनी नहीं रही, यह अब ‘कंपनी राज’ बन चुकी थी। टैक्स वसूली, कानून व्यवस्था और यहां तक कि सैन्य संचालन तक कंपनी ही देखती थी। इसने भारत को व्यापार से लेकर प्रशासन तक, पूरी तरह अपने शिकंजे में ले लिया था।

यह शासन चला 1857 तक। उस साल वह विद्रोह हुआ जिसने भारत के हर कोने को जला दिया। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की क्रूरता के खिलाफ जनता सड़कों पर थी। लेकिन विद्रोह का नतीजा यह हुआ कि ब्रिटिश सरकार ने कंपनी से भारत का शासन छीन लिया और खुद सीधे भारत पर राज करने लगी। इस एक घटना ने कंपनी के शासन की समाप्ति कर दी, और भारत में ब्रिटिश राज की शुरुआत हो गई। लेकिन इस प्रक्रिया में कंपनी ने जो विरासत छोड़ी, वह सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि आर्थिक और सामाजिक जख्मों से भरी हुई थी।

यहाँ से ईस्ट इंडिया कंपनी का राजनीतिक युग खत्म हुआ। वह अब इतिहास में दफन होने लगी। और जब ब्रिटिश साम्राज्य खत्म हुआ, तब तो इसकी यादें भी लगभग मिट गईं। लोग इसे इतिहास की एक क्रूर कहानी मानकर भूलने लगे। परंतु जो बात कम लोग जानते हैं वह यह है कि यह ब्रांड—ईस्ट इंडिया कंपनी—कभी पूरी दुनिया में सत्ता का प्रतीक था। और उसकी परछाईं आज भी व्यापार की दुनिया में कहीं न कहीं ज़िंदा थी।

साल 2010 में एक भारतीय बिज़नेसमैन, संजीव मेहता ने इतिहास को पलटना चाहा। उन्होंने 15 मिलियन डॉलर में ईस्ट इंडिया कंपनी का नाम, ब्रांड और ट्रेडमार्क खरीद लिया। अब यह कंपनी किसी सरकार या सेना की नहीं, एक भारतीय की थी। वही भारत, जिसे इस कंपनी ने कभी गुलाम बनाया था, अब उसकी बागडोर एक भारतीय के हाथों में थी। यह सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि प्रतीकात्मक न्याय था। एक ऐतिहासिक पल जिसमें पराजित ने विजेता की विरासत को अपने नाम कर लिया।

संजीव मेहता ने इसे एक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के रूप में बदल दिया। अब यह कंपनी चाय, कॉफी, चॉकलेट, और लग्ज़री फूड प्रोडक्ट्स बेचती है। यानी जो कंपनी कभी देश बेचती थी, अब वो चाय बेच रही है। एक प्रतीकात्मक पल—इतिहास की सबसे बड़ी पुनर्रचना।

अब बात करें भारत की सबसे पुरानी घरेलू कंपनी की—तो वो है वाडिया ग्रुप। 1736 में लवजी नुसरवानजी वाडिया ने इसकी स्थापना की थी। यह कंपनी भी ब्रिटिश शासन में फली-फूली, लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी से अलग—वाडिया ग्रुप ने भारत के लिए जहाज बनाए, डॉकयार्ड बनाए और निर्माण में योगदान दिया।

बॉम्बे बर्मा ट्रेडिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड—वाडिया ग्रुप की एक सहायक कंपनी, जो 1863 में बनी—आज भी भारत की सबसे पुरानी पब्लिकली लिस्टेड कंपनी है। यानी जब ईस्ट इंडिया कंपनी खत्म हो रही थी, तब भारत में घरेलू बिजनेस ग्रुप्स खड़े हो रहे थे।

Conclusion

अगर हमारे आर्टिकल ने आपको कुछ नया सिखाया हो, तो इसे शेयर करना न भूलें, ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी और लोगों तक पहुँच सके। आपके सुझाव और सवाल हमारे लिए बेहद अहम हैं, इसलिए उन्हें कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बेहतर बनाने में मदद करती हैं।

GRT Business विभिन्न समाचार एजेंसियों, जनमत और सार्वजनिक स्रोतों से जानकारी लेकर आपके लिए सटीक और सत्यापित कंटेंट प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। हालांकि, किसी भी त्रुटि या विवाद के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं। हमारा उद्देश्य आपके ज्ञान को बढ़ाना और आपको सही तथ्यों से अवगत कराना है।

अधिक जानकारी के लिए आप हमारे GRT Business Youtube चैनल पर भी विजिट कर सकते हैं। धन्यवाद!”

Spread the love

Leave a Comment