Big Update: Dog Lovers सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, खुशियों की जीत या नई चुनौती? 2025

ज़रा सोचिए… आप सुबह की सैर पर निकले हैं। हल्की-हल्की ठंडी हवा चल रही है, लेकिन अचानक ही आपकी नज़र पड़ती है सड़कों पर बैठे कुत्तों के झुंड पर। कोई मासूम आँखों से आपको देख रहा है, तो कोई ज़ोर-ज़ोर से भौंक रहा है। आपके मन में सवाल उठता है—क्या ये हमारे साथी हैं या हमारी सुरक्षा के लिए खतरा? यह सवाल सिर्फ आपका नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों का है। यही सवाल महीनों से अदालतों और समाज में गूँज रहा था और अब सुप्रीम कोर्ट ने इस पर ऐसा फैसला दिया है, जिसने पूरे देश का ध्यान खींच लिया है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश Dog Lovers के लिए किसी बड़ी जीत से कम नहीं है। दिल्ली-एनसीआर में पकड़े गए आवारा कुत्तों को लेकर पहले अदालत ने कहा था कि सभी को पकड़कर शेल्टर होम में रखा जाए। यह आदेश सुनकर उन लोगों ने राहत की सांस ली, जो लगातार शिकायत कर रहे थे कि आवारा कुत्तों का आतंक बढ़ रहा है।

बच्चों पर हमले, बुज़ुर्गों को काटने की घटनाएँ और रात में झुंड बनाकर दौड़ते कुत्तों का डर—यह सब शहरवासियों की जिंदगी का हिस्सा बन चुका था। लेकिन दूसरी ओर, Dog Lovers और एनजीओ ने सवाल उठाए—क्या यह जानवरों की आज़ादी छीनने जैसा कदम नहीं है? क्या इंसान का डर इन मासूमों की ज़िंदगी से ज्यादा अहम है?

इन्हीं सवालों ने अदालत को मजबूर किया कि वह अपने पुराने आदेश पर दोबारा विचार करे। और अब तीन जजों की बेंच—जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया—ने फैसला सुनाया है कि आवारा कुत्तों को पूरी तरह से कैद में नहीं रखा जाएगा। बल्कि उन्हें कृमिनाशक दवा, टीकाकरण और नसबंदी के बाद फिर से उसी जगह छोड़ा जाएगा, जहाँ से उन्हें पकड़ा गया था। यानी कुत्तों को अब शेल्टर में ज़िंदगी भर कैद नहीं रहना होगा। यह फैसला डॉग लवर्स के लिए एक बड़ी राहत है।

लेकिन यह राहत बिना शर्त नहीं है। अदालत ने साफ किया है कि आक्रामक कुत्ते या वे जो रेबीज जैसी बीमारी से ग्रसित हैं, उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर छोड़ा नहीं जाएगा। ऐसे कुत्ते हमेशा के लिए शेल्टर होम में ही रहेंगे। यह प्रावधान उन परिवारों के लिए सुकून लाने वाला है, जो अपने बच्चों और बुज़ुर्गों की सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते हैं। अदालत का इरादा साफ है—कुत्तों के अधिकार भी सुरक्षित रहें और इंसानों की सुरक्षा भी।

अब आते हैं उस मुद्दे पर, जिसने सबसे ज़्यादा बहस छेड़ी है—कुत्तों को खाना खिलाने का। भारत में हमेशा से लोग सड़कों पर आवारा कुत्तों को रोटी, दूध या बिस्कुट खिलाते आए हैं। कई लोग तो इन्हें अपने परिवार का हिस्सा मानते हैं और रोज़ाना पार्क, मंदिर या मोहल्ले की सड़कों पर इन्हें खाना देने जाते हैं।

लेकिन अदालत ने कहा है कि अब सार्वजनिक स्थानों पर ऐसा करने की अनुमति नहीं होगी। इसके बजाय नगर निगम और प्रशासन को ऐसे विशेष स्थान बनाने होंगे, जहाँ कुत्तों को भोजन दिया जा सके। अगर कोई व्यक्ति नियम तोड़कर सड़क या पार्क में कुत्तों को खिलाते हुए पकड़ा जाता है, तो उस पर कार्रवाई होगी। यह बदलाव छोटा लग सकता है, लेकिन यह हमारे व्यवहार और सोच में बड़ा परिवर्तन लाने वाला है।

दिलचस्प बात यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ दिल्ली-एनसीआर तक ही यह मामला सीमित नहीं रखा। अब यह मुद्दा पूरे देश का है। अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पक्षकार बनाया है और कहा है कि सुनवाई के बाद एक राष्ट्रीय नीति तैयार की जाएगी। सोचिए, यह नीति सिर्फ कुत्तों को लेकर नहीं होगी, बल्कि इसमें इंसानों और जानवरों के बीच सह-अस्तित्व, सुरक्षा और अधिकारों का संतुलन तय होगा। यह शायद पहली बार होगा जब भारत में कुत्तों को लेकर इस स्तर की नीति बनेगी।

लेकिन अदालत यहीं नहीं रुकी। उसने यह भी कहा कि कोई भी डॉग लवर या एनजीओ, जो इस मामले में दखल देना चाहता है, उसे शुल्क चुकाना होगा। व्यक्तिगत याचिकाकर्ता को 25,000 रुपए और किसी एनजीओ को 2 लाख रुपए जमा कराने होंगे। यह कदम इसलिए उठाया गया है ताकि लोग बिना वजह अदालत में भीड़ न लगाएँ और सिर्फ वही लोग इस मुद्दे को आगे बढ़ाएँ, जिनका मकसद सच में समाधान ढूँढना है।

अब ज़रा इस फैसले के सामाजिक पहलू पर बात करें। भारत में कुत्तों को हमेशा से इंसानों का साथी माना गया है। गाँवों में वे घर की रखवाली करते हैं, बच्चों के खेल के साथी होते हैं और कई परिवारों के लिए भावनात्मक सहारा भी। शहरी इलाकों में भी लोग उन्हें सिर्फ जानवर नहीं, बल्कि परिवार का सदस्य मानते हैं। वहीं दूसरी ओर, सड़कों पर आक्रामक कुत्तों की बढ़ती संख्या ने लोगों को डरा भी दिया है। ऐसे में यह फैसला संतुलन बनाने की कोशिश है—जहाँ इंसान और कुत्ते दोनों के अधिकार और सुरक्षा का ध्यान रखा गया है।

नगर निगमों की जिम्मेदारी भी अब पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है। उन्हें न सिर्फ कुत्तों के भोजन के लिए स्थान बनाने होंगे, बल्कि एक हेल्पलाइन भी शुरू करनी होगी। यह हेल्पलाइन लोगों को यह सुविधा देगी कि अगर कोई व्यक्ति नियम तोड़ता है या कुत्तों से जुड़ी कोई समस्या होती है, तो वे तुरंत शिकायत कर सकें। इससे व्यवस्था पारदर्शी होगी और लोगों को यह भरोसा रहेगा कि उनकी चिंताओं पर तुरंत ध्यान दिया जाएगा।

कोर्ट ने एक और अहम बात कही—किसी भी गोद लिए गए कुत्ते को वापस सड़कों पर नहीं छोड़ा जाएगा। इसका मतलब यह है कि अगर किसी परिवार ने कुत्ते को अपनाया है, तो वह उनकी जिम्मेदारी हमेशा बनी रहेगी। यह प्रावधान खास तौर पर उन लोगों के लिए है, जो कुत्तों को अपनाने के बाद उन्हें सड़कों पर छोड़ देते थे। अब ऐसा करना कानून के खिलाफ होगा।

लेकिन यहाँ एक बड़ा सवाल उठता है—क्या यह आदेश अमल में आ पाएगा? भारत में अक्सर कानून बनते हैं, लेकिन ज़मीन पर उनका असर दिखना मुश्किल होता है। क्या नगर निगम सच में भोजन स्थल बनाएँगे? क्या हेल्पलाइन नंबर सही से काम करेंगे? क्या लोग सड़कों पर कुत्तों को खाना खिलाने से खुद को रोक पाएँगे? ये सारे सवाल आने वाले समय में इस फैसले की असली परीक्षा लेंगे।

इस फैसले का अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य भी दिलचस्प है। कई विकसित देशों में पहले से ऐसी नीतियाँ लागू हैं। यूरोप के देशों में कुत्तों को नसबंदी और टीकाकरण के बाद उनके इलाके में ही छोड़ा जाता है। अमेरिका और जापान में डॉग शेल्टर और गोद लेने की व्यवस्था बहुत मजबूत है। भारत में यह शुरुआत देर से सही, लेकिन ज़रूरी समय पर हुई है।

डॉग लवर्स के लिए यह एक भावनात्मक पल है। उनके लिए यह जीत है कि कुत्तों को शेल्टर में कैद नहीं किया जाएगा। लेकिन यह चुनौती भी है कि अब उन्हें भी जिम्मेदारी उठानी होगी। उन्हें नियमों का पालन करना होगा, उन्हें सुनिश्चित करना होगा कि उनका प्यार समाज की सुरक्षा के खिलाफ न जाए। वहीं, आम नागरिकों के लिए यह सुकून की बात है कि आक्रामक कुत्तों से उन्हें बचाया जाएगा और एक संगठित नीति बनेगी।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सिर्फ एक कानूनी आदेश नहीं है, यह इंसान और जानवर के रिश्ते की नई परिभाषा है। यह संदेश है कि सह-अस्तित्व तभी संभव है जब दोनों के अधिकार और जिम्मेदारियाँ बराबर हों। यह हमें याद दिलाता है कि कुत्ते हमारी सड़कों, हमारी गलियों और हमारे जीवन का हिस्सा हैं। उन्हें कैद नहीं किया जा सकता, लेकिन उन्हें अनियंत्रित छोड़ना भी खतरनाक है।

21वीं सदी का भारत अब ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहाँ उसे यह तय करना है कि विकास और दया, सुरक्षा और सह-अस्तित्व के बीच कैसे संतुलन बनाया जाए। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश इसी संतुलन की दिशा में पहला बड़ा कदम है।और यही वजह है कि लोग अब पूछ रहे हैं—क्या यह फैसला डॉग लवर्स की जीत है या समाज के लिए नई चुनौती? शायद इसका जवाब आने वाले वर्षों में हमारे व्यवहार और हमारी जिम्मेदारियों से मिलेगा।

Conclusion

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