Dixon Technologies का बड़ा धमाका: सबकी जान, किसी को न पहचान! 2025

क्या आपने कभी किसी ऐसे खिलाड़ी के बारे में सुना है, जो मैदान में सबसे बेहतरीन परफॉर्म करता है, लेकिन न तो टीवी पर आता है, न अखबार में और न ही सोशल मीडिया पर उसकी कोई चर्चा होती है? वो खिलाड़ी ना तो शोर करता है, ना किसी कॉन्ट्रोवर्सी में पड़ता है, बस चुपचाप रिकॉर्ड बनाता है और इतिहास रचता जाता है। भारत की टेक इंडस्ट्री में भी एक ऐसा ही नाम है—जो अब तक परदे के पीछे रहकर दुनिया के सबसे बड़े ब्रांड्स को ताकत देता रहा। लेकिन अब वो नाम खुद सुर्खियों में है। वो नाम है—Dixon Technologies। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

22 अप्रैल 2025 की सुबह Dixon Technologies के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई। उस दिन कंपनी के शेयरों में ज़बरदस्त उछाल आया और कुछ ही घंटों में इसका मार्केट कैप 1 लाख करोड़ रुपये के पार पहुंच गया। ये वही कंपनी है, जिसे आम लोग शायद नाम से न जानते हों, लेकिन जिसके कारखानों से निकले उत्पाद हर घर में मौजूद हैं। और यही तो इसकी सबसे बड़ी ताकत है—Low Profile, High Impact। इस कंपनी का नाम भले ही Google या Apple जितना बड़ा न हो, लेकिन आज यही कंपनी उन दिग्गजों के सबसे भरोसेमंद साझेदारों में गिनी जा रही है।

असल में जिस खबर ने बाजार में Dixon को चर्चा के केंद्र में ला दिया, वो थी Google की पेरेंट कंपनी Alphabet Inc की योजना। Alphabet अब अपने फ्लैगशिप Pixel स्मार्टफोन का एक बड़ा हिस्सा, Dixon के ज़रिए भारत में बनवाने पर विचार कर रही है। खबर ये भी है कि इसके लिए दोनों कंपनियों के बीच बातचीत शुरू हो चुकी है। इस कदम का मुख्य कारण है अमेरिका और वियतनाम के बीच ट्रंप प्रशासन द्वारा लगाए गए टैरिफ, जिससे बचने के लिए गूगल भारत की ओर रुख कर रहा है।

अब आप सोच रहे होंगे कि भारत और वियतनाम के टैरिफ में क्या फर्क है? फर्क है पूरे 20 फीसदी का। ट्रंप ने वियतनाम से इलेक्ट्रॉनिक्स इंपोर्ट पर 46% और भारत पर 26% का टैरिफ लगाया है। अब सोचिए, अगर कोई कंपनी करोड़ों डॉलर के स्मार्टफोन्स बनाती है, तो 20% का टैरिफ कितना बड़ा फर्क पैदा करता है? और यहीं Dixon Technologies गेम चेंज करता है—Google को सिर्फ सस्ता प्रोडक्शन नहीं, बल्कि क्लास और क्लैरिटी भी यहीं मिलती है।

पर Dixon की कहानी आज की नहीं है। इसकी शुरुआत 1993 में Sunil Vachani ने की थी, जब भारत इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग के मामले में शिशु अवस्था में था। 1994 में कंपनी ने भारत में पहला रंगीन टीवी बनाना शुरू किया, और धीरे-धीरे अपने पोर्टफोलियो को इतना विस्तार दिया कि आज वह Washing Machine, LED TV, Lighting Solutions, CCTV, Mobile Phone से लेकर Refrigerator तक—हर सेगमेंट में अपनी मौजूदगी दर्ज कर चुकी है।

आज Dixon Technologies भारत की सबसे बड़ी Design-Focused Electronics, Manufacturing Services (EMS) कंपनियों में से एक है। यह कंपनी न केवल मैन्युफैक्चरिंग करती है, बल्कि उसके पास इनोवेशन, रिसर्च और रिवर्स लॉजिस्टिक्स की भी अपनी पूरी चेन है। यानी सिर्फ नया प्रोडक्ट बनाना नहीं, बल्कि पुराने प्रोडक्ट्स को रिपेयर और Refurbish करने की क्षमता भी Dixon के पास है। और यही खासियत उसे बाकी कंपनियों से अलग बनाती है।

आज Dixon की 23 मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और आंध्र प्रदेश में फैली हुई हैं। इनके अलावा कंपनी के पास भारत और चीन में 3 रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर हैं, जहां नए प्रोडक्ट्स और तकनीक पर लगातार काम हो रहा है। Dixon के पास 22,000 से अधिक कर्मचारियों की एक फौज है, जो दिन-रात नए आइडिया को प्रोडक्ट में बदलने का काम करती है। यह workforce ही उसकी असली ताकत है, जिसे दुनिया अब धीरे-धीरे पहचानने लगी है।

और बात सिर्फ Google की नहीं है। Dixon के क्लाइंट्स की लिस्ट देखेंगे तो आप हैरान रह जाएंगे—Samsung, Motorola, Xiaomi, Bajaj, Lloyd, Voltas, Wipro जैसी कंपनियां Dixon के भरोसे अपने प्रोडक्ट बनवा रही हैं। यानी जिस टीवी या मोबाइल का नाम देखकर आप खरीदारी करते हैं, उसके अंदर की आत्मा शायद Dixon Technologies की होती है। लेकिन Dixon कभी इस बात का दावा नहीं करता, क्योंकि उसका फोकस शोर मचाना नहीं, क्वालिटी डिलीवर करना है।

Dixon अब सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रहना चाहता। 9 अप्रैल 2025 को कंपनी ने तमिलनाडु सरकार के साथ एक समझौता किया है, जिसके तहत चेन्नई में 1000 करोड़ रुपये की लागत से एक नई इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग यूनिट बनाई जाएगी। यह यूनिट Dixon की उत्पादन क्षमता को नई ऊंचाई देगी और 5000 से अधिक नई नौकरियों का सृजन करेगी। यानी Dixon अब भारत में मेक इन इंडिया का सबसे चमकता हुआ सितारा बन चुका है।

आज भारत में बनने वाले Pixel स्मार्टफोन्स में से 70% Dixon के प्लांट में ही बनते हैं। बाकी के मॉडल Foxconn बनाता है, जो पुराने वर्जन पर काम करता है, जबकि Dixon नई पीढ़ी के Pixel फोन्स पर ध्यान देता है। ये वही मॉडल्स हैं जिन्हें Google अमेरिका में बेचता है। यानी अब ‘Made in India’ का टैग सिर्फ घरेलू प्रोडक्ट तक सीमित नहीं, बल्कि ग्लोबल टेक्नोलॉजी में भी उसकी गूंज सुनाई दे रही है।

अब बात करते हैं Dixon के ताजा आंकड़ों की। दिसंबर 2024 की तिमाही में कंपनी ने 217 करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा कमाया, जो पिछले साल की समान तिमाही से 124% अधिक है। कंपनी का रेवेन्यू भी 117% बढ़कर 10,461 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। EBITDA की बात करें तो यह 398 करोड़ रुपये रहा, जो पिछले साल की तुलना में दोगुना से अधिक है।

इस पूरे सफर की सबसे बड़ी खूबसूरती यह है कि Dixon ने ये सब बिना किसी ग्लैमर, बिना किसी सेलिब्रिटी ब्रांडिंग और बिना किसी शोर के किया है। यह कंपनी अपने काम से जानी जाती है, न कि प्रचार से। और यही कारण है कि Dixon अब भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में ‘Quality Partner’ के रूप में उभर रही है।

इस समय जब दुनिया के टेक दिग्गज चीन से दूरी बना रहे हैं और वियतनाम की लागत बढ़ रही है, Dixon के पास एक ऐसा अवसर है, जो उसे ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग लीडर बना सकता है। भारत सरकार की PLI (Production Linked Incentive) स्कीम और Make in India अभियान Dixon के लिए बोनस जैसा काम कर रहे हैं। Dixon बस सही समय, सही पॉलिसी और सही पार्टनर के साथ पूरी दुनिया में अपना झंडा गाड़ने के लिए तैयार है।

और इस पूरी कहानी में एक बड़ा संदेश छिपा है—कि भारत की असली ताकत सिर्फ नामी ब्रांड्स में नहीं, बल्कि उन कंपनियों में है जो देश की ज़मीन से उठी हैं, भारतीय हाथों से बनी हैं और ग्लोबल ब्रांड्स को भारत की मिट्टी में पनपने का मौका दे रही हैं। Dixon सिर्फ एक कंपनी नहीं, एक प्रतीक है उस नए भारत का, जो टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर बनना चाहता है।

तो अगली बार जब आप कोई स्मार्टफोन या टीवी खरीदें, तो सिर्फ ब्रांड का नाम मत देखिए, यह भी सोचिए कि उसके पीछे की असली ताकत क्या है। और हो सकता है, उस प्रोडक्ट की नींव Dixon Technologies ने रखी हो—एक ऐसा नाम जो आज भारत का गर्व है, और कल पूरी दुनिया का लीडर बनने की ओर बढ़ रहा है।

Conclusion

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