सोचिए… आपने जिंदगी भर सिर्फ एक सपना देखा—पढ़ाई, मेहनत, और एक दिन एक बड़ी नौकरी। फिर कल्पना कीजिए, आपने उस सपने को पाने के लिए दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाएं पास कीं, दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटियों से डिग्री ली, और फिर… एक दिन आप खुद को स्कूटर पर बैठकर खाना पहुंचाते हुए पाते हैं। नहीं, ये किसी फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं है। यह हकीकत है, एक ऐसे देश की—जो खुद को सुपरपावर कहलाना पसंद करता है। चीन। और यह कहानी है Ding Yuanzhao की… जो ऑक्सफोर्ड और सिंगहुआ जैसे संस्थानों से पढ़कर भी आज फूड डिलीवरी कर रहे हैं। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
आपको बता दें कि Ding Yuanzhao का मामला सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी नहीं है, यह पूरे चीन के उस छिपे हुए रोजगार संकट की झलक है, जिसे अब दुनिया नजरअंदाज नहीं कर सकती। चीन में लाखों युवा, जो कभी देश की शान माने जाते थे—अब डिलीवरी ऐप्स के सहारे जीवन चला रहे हैं। ये वही युवा हैं जिन्होंने कभी Engineering, Medical, Science, और international relations जैसे क्षेत्रों में ऊंचे अंक लाकर खुद को भविष्य के नेता माना था। लेकिन अब वो हताश हैं, परेशान हैं और संघर्ष कर रहे हैं।
डिंग ने साल 2004 में चीन की सबसे कठिन और प्रतिस्पर्धी परीक्षा ‘गाओकाओ’ में लगभग परफेक्ट स्कोर हासिल किया था। यह स्कोर उन्हें सीधे चीन के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान—सिंगहुआ यूनिवर्सिटी—ले गया। फिर उन्होंने पेकिंग यूनिवर्सिटी से एनर्जी इंजीनियरिंग में मास्टर्स किया, सिंगापुर की नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी से बायोलॉजी में पीएचडी, और अंत में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से Biodiversity में मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की। अब आप सोचिए, क्या इससे बेहतर कोई शैक्षणिक रिकॉर्ड हो सकता है?
लेकिन इस पूरी यात्रा के अंत में, डिंग का ठिकाना बना बीजिंग की सड़कों पर चलने वाला एक स्कूटर। जहां वो फूड डिलीवरी करते हैं। ये सिर्फ डिंग की नियति नहीं है, ये पूरे चीन की नई हकीकत है। और यह हकीकत उस समय सामने आ रही है जब चीन भारत के साथ प्रॉक्सी वॉर में उलझा है, अमेरिका से तकनीकी युद्ध लड़ रहा है और Global supply chain से कटता जा रहा है।
भारत में बेरोजगारी की बात जब भी होती है, लोग अक्सर कहते हैं—“कम से कम चीन में तो सबको नौकरी मिलती है।” लेकिन अब वह भ्रम टूट चुका है। चीन का रोजगार बाजार तेजी से सिकुड़ रहा है, और इसका सबसे बड़ा झटका उन युवाओं को लग रहा है जिन्होंने सबसे ज्यादा Investment अपनी शिक्षा में किया है। डिंग की तरह ही लाखों ऐसे युवा हैं, जो गिग इकोनॉमी—यानी अस्थायी, अनौपचारिक और अक्सर कम भुगतान वाली नौकरियों—की ओर मजबूरी में बढ़ रहे हैं।
फूड डिलीवरी, टैक्सी ड्राइविंग, पैकेज डिलीवरी, ऑनलाइन ट्यूटरिंग—ये अब चीन के उच्च शिक्षित युवाओं के लिए भी आम बात बन गई है। और इसका कारण सिर्फ इतना नहीं कि नौकरियां नहीं हैं। इसका कारण है—चीन की आर्थिक व्यवस्था में मौजूद गहरे structural flaws। एक ऐसी व्यवस्था जो दशकों तक भारी निर्माण, Export और सरकारी Investment पर टिकी रही, लेकिन अब बदलती दुनिया में अपना संतुलन खो चुकी है।
चीन की यह समस्या केवल घरेलू नहीं है। इसका सीधा संबंध उसकी विदेश नीति, व्यापार युद्धों और खासकर भारत से चल रहे प्रॉक्सी संघर्ष से है। पाकिस्तान, म्यांमार, नेपाल और यहां तक कि अफ्रीका में चीन की ‘दोस्ती’ अब आर्थिक रूप से भारी पड़ रही है। अमेरिका और यूरोपीय देशों से लगाई गई तकनीकी पाबंदियों ने उसके हाई-टेक इंडस्ट्री को झटका दिया है। और Global Investors चीन से दूरी बना रहे हैं। भारत की बढ़ती ताकत और विश्वसनीयता ने चीन के लिए एक और खतरा खड़ा कर दिया है।
2025 के मई महीने में चीन के National Bureau of Statistics ने बताया कि वहां 16 से 24 वर्ष के युवाओं में बेरोजगारी दर 15% तक पहुंच गई है। यह आंकड़ा तब और डरावना बन जाता है जब हम जानते हैं कि यह वही उम्र है जब युवा सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे, सबसे ज्यादा ऊर्जावान और सबसे ज्यादा उम्मीदों से भरे होते हैं। और अब वही युवा फूड पैकेट्स में भविष्य ढूंढ रहे हैं।
डिंग युआनझाओ की कहानी उस हताशा को बयान करती है जो किसी देश की ‘आर्थिक चुप्पी’ से उपजती है। एक ऐसा देश जो बाहर से चमकता हुआ लगता है, लेकिन अंदर से खोखला होता जा रहा है। और यह खोखलापन सिर्फ डेटा और GDP ग्रोथ से नहीं भर सकता। जब आपकी सबसे योग्य पीढ़ी ही गुमनाम होती जा रही हो, तो उस देश के नेतृत्व को आत्मचिंतन करना ही होगा।
क्या चीन यह स्वीकार करेगा कि उसकी शिक्षा व्यवस्था और नौकरियों के बीच अब मेल नहीं रहा? क्या वो यह मान लेगा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर की गई आक्रामकता ने उसकी घरेलू अर्थव्यवस्था को संकट में डाल दिया है? और सबसे बड़ा सवाल—क्या चीन को यह समझ आएगा कि एक देश की ताकत उसके युवाओं के रोजगार से होती है, न कि टावरों, पुलों या एक्सपोर्ट आंकड़ों से?
भारत में डिंग की कहानी वायरल हो चुकी है। लोगों को यह देखकर झटका लगा है कि इतना पढ़ा-लिखा व्यक्ति इतनी असमान स्थिति में कैसे पहुंच गया। लेकिन साथ ही यह भी समझना जरूरी है कि यही संकट भारत में भी सिर उठा सकता है, अगर हमने अपने युवाओं की शिक्षा और कौशल को रोजगार से नहीं जोड़ा। यह कहानी चीन की ज़रूर है, लेकिन सबक हमारे लिए भी उतना ही सटीक है।
डिंग जैसे युवाओं की उम्मीदें अब नीतियों से नहीं, बल्कि समाज से जुड़ी हैं। उन्हें अब सरकार नहीं, सहयोग चाहिए। उन्हें करियर नहीं, अवसर चाहिए। और सबसे ज़्यादा, उन्हें चाहिए वो सम्मान—जो उन्हें उनकी शिक्षा और मेहनत के लिए मिलना चाहिए था, पर नहीं मिला।
चीन का यह संकट आने वाले समय में उसके वैश्विक कद को प्रभावित कर सकता है। अगर वहां की युवा शक्ति, जो कभी ‘चीनी चमत्कार’ की रीढ़ थी, अब अस्थायी कामों में उलझी रहेगी, तो उसकी Competition धीरे-धीरे फीकी पड़ जाएगी। और यही मौका है भारत जैसे देशों के लिए—जहां युवा जनसंख्या आज भी देश का सबसे बड़ा बल है। हमें इस संकट से सीखकर अपनी नीतियों को मज़बूती से तैयार करना होगा, ताकि हमारे डिंग युआनझाओ कभी स्कूटर पर नहीं, बल्कि किसी Research Laboratory या Institute for Policy Making में दिखें।
हालांकि, फूड डिलीवरी करना कोई शर्म की बात नहीं। लेकिन जब आपका टैलेंट, आपका अनुभव, और आपकी शिक्षा का स्तर दुनिया के शीर्ष 1% में आता हो, और फिर भी आपको ऐसी स्थिति में काम करना पड़े—तो यह समाज और सिस्टम की विफलता मानी जाती है, व्यक्ति की नहीं।
डिंग ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा कि वो निराश नहीं हैं, लेकिन थोड़ा थके हुए ज़रूर हैं। वो चाहते हैं कि समाज यह देखे कि उनके जैसे लाखों लोग कौन हैं, कहाँ हैं, और क्यों इस स्थिति में हैं। उनकी ये बात एक सवाल छोड़ जाती है—क्या हम भी अपने डिंग को पहचान पाएंगे, या उन्हें भी सड़कों पर भुला देंगे? इस सवाल का जवाब हमें अभी देना होगा—वरना एक दिन हम भी अपने सबसे प्रतिभाशाली नागरिकों को गुमनामी के अंधेरे में जाते हुए देखेंगे।
Conclusion
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