Hidden Power: Data की ताकत! कैसे आपकी आदतें और जानकारी बन रही हैं अरबों की इंडस्ट्री का ईंधन। 2025

ज़रा सोचिए… आप एयरपोर्ट पर खड़े हैं। आपके चारों ओर शोरगुल है, लोग इधर-उधर भाग रहे हैं, फ्लाइट की घोषणाएँ गूँज रही हैं। आप थके हुए हैं और एक कॉफ़ी लेने का मन करता है। एयरपोर्ट की कैफ़े में जाते हैं तो मेन्यू देखकर चौंक जाते हैं—एक कप कॉफ़ी 250 रुपये की। तभी कोई कहता है, “भाई, आपका क्रेडिट कार्ड है न? लाउंज में जाइए, वहाँ सबकुछ फ्री है—खाना, पेय पदार्थ, यहाँ तक कि आराम करने की जगह भी।” आप कार्ड दिखाते हैं और बिना एक पैसा खर्च किए, शानदार बुफे में बैठकर खाना खाते हैं।

उसी समय आपके मोबाइल पर नोटिफिकेशन आता है—यूपीआई पेमेंट से आपने अभी-अभी 50 रुपये की चाय का भुगतान किया था। चाय महँगी थी लेकिन ट्रांज़ैक्शन मुफ्त। सवाल उठता है—आख़िर यह सब मुफ्त कैसे है? कोई तो है जो इसका खर्च उठा रहा है। और जब कोई आपको मुफ्त सुविधा देता है, तो समझ लीजिए कि असली कीमत कहीं और से वसूली जा रही है—आपके Data, आपकी आदतों और आपके भरोसे से। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

यूपीआई—यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस—आज भारत के डिजिटल वित्तीय ढाँचे का सबसे चमकता सितारा है। गाँव की किराने की दुकान से लेकर बड़े शॉपिंग मॉल तक, हर जगह क्यूआर कोड स्कैन करते ही पैसा सीधे बैंक खाते में पहुँच जाता है। बिना कार्ड, बिना कैश और बिना किसी झंझट के।

यह इतनी सहजता से हमारे जीवन का हिस्सा बन गया है कि हम सोचते भी नहीं कि इसके पीछे कितनी बड़ी मशीनरी काम करती है। बैंक, एनपीसीआई, मोबाइल ऑपरेटर, सर्वर, साइबर सिक्योरिटी सिस्टम—all मिलकर यह सुनिश्चित करते हैं कि आपका लेन-देन सुरक्षित और तुरंत पूरा हो। लेकिन इस पूरी व्यवस्था पर अरबों रुपये खर्च होते हैं। और दिलचस्प बात यह है कि आपसे इसके लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता।

यहाँ असली सवाल उठता है—अगर बैंक न्यूनतम बैलेंस न रखने पर आपसे 200 रुपये का जुर्माना वसूल सकता है, तो फिर यूपीआई पर लाखों ट्रांज़ैक्शन मुफ्त में क्यों करवाता है? जवाब है सरकार और सब्सिडी। डिजिटल इंडिया का सपना तभी पूरा हो सकता है जब हर नागरिक कैशलेस लेन-देन करने लगे।

सरकार चाहती है कि लोग नक़द की जगह डिजिटल पेमेंट्स करें ताकि अर्थव्यवस्था पारदर्शी बने, टैक्स चोरी कम हो और काले धन पर अंकुश लगे। यही वजह है कि सरकार यूपीआई सिस्टम पर सब्सिडी देती है। लेकिन यह कहानी सिर्फ़ सब्सिडी तक सीमित नहीं है। असली खेल डेटा का है।

हर बार जब आप यूपीआई से पेमेंट करते हैं, तो उसके साथ आपकी जानकारी भी जुड़ती है—आप कहाँ हैं, किसे पेमेंट कर रहे हैं, कितनी बार खरीदारी करते हैं, किस प्रोडक्ट पर ज्यादा पैसा खर्च करते हैं। यह सब डेटा केवल बैंक तक सीमित नहीं रहता। यह धीरे-धीरे पेमेंट कंपनियों, एनालिटिक्स फर्म और टेक्नोलॉजी पार्टनर्स तक पहुँचता है।

फिर उस डेटा का इस्तेमाल होता है—किस इलाके में कौन-सा विज्ञापन चलाना है, किस ग्राहक को किस प्रकार का लोन ऑफर करना है, कौन-सा उत्पाद किसे बेचना है। यानी आपने सोचा कि आपने सिर्फ़ 100 रुपये का पेमेंट किया है, लेकिन दरअसल आपने अपने बारे में हज़ारों रुपये की जानकारी किसी और के हाथ में दे दी।

यही वजह है कि दुनिया कहती है—“अगर कुछ मुफ्त है, तो समझ लीजिए कि आप खुद प्रोडक्ट हैं।” फेसबुक, गूगल, इंस्टाग्राम—सभी ने यह मॉडल अपनाया है। वे कहते हैं कि प्लेटफ़ॉर्म मुफ्त है, लेकिन असली कमाई आपके डेटा से होती है। अब वही मॉडल बैंकिंग और पेमेंट्स की दुनिया में उतर चुका है। यूपीआई मुफ्त है, लेकिन इसकी कीमत आपके खर्च करने की आदतों से निकल रही है।

अब एयरपोर्ट के लाउंज की तस्वीर देखिए। जहाँ बाहर एक चाय के लिए 200 रुपये देने पड़ते हैं, वहीं अंदर लाउंज में आपको बुफे डिनर मुफ्त मिलता है। वहाँ पर सॉफ्ट ड्रिंक, स्नैक्स, कॉफ़ी, हाई-स्पीड वाईफाई, चार्जिंग स्टेशन, आरामदायक सोफे, और कई जगहों पर तो शावर और स्पा तक मिल जाते हैं। आप सोचते हैं कि यह तो बैंक की मेहरबानी है। लेकिन हकीकत यह है कि हर बार जब आप लाउंज में प्रवेश करते हैं, तो आपका बैंक उस लाउंज को भुगतान करता है।

भारत में घरेलू लाउंज के लिए यह भुगतान 600 से 1200 रुपये प्रति विजिट होता है, और अंतरराष्ट्रीय लाउंज के लिए यह 25 से 30 डॉलर तक पहुँच जाता है। यानी जब आप सोचते हैं कि आपने मुफ्त खाना खाया, तो असल में बैंक ने आपका बिल चुकाया। बैंक यह खर्च क्यों उठाता है? क्योंकि उसे पता है कि अगर आप उसके कार्ड से खुश होंगे, तो बार-बार उसी कार्ड का इस्तेमाल करेंगे। और जब आप खर्च करेंगे, तो बैंक को हर लेन-देन से कमीशन मिलेगा। यानी यह सब एक लॉयल्टी प्रोग्राम का हिस्सा है।

लेकिन यहाँ भी डेटा ही असली खेल है। जब आप बार-बार एयरपोर्ट लाउंज जाते हैं, तो बैंक को पता चलता है कि आप कितनी बार यात्रा करते हैं, किस शहर से किस शहर जाते हैं, आपकी औसत यात्रा खर्च क्या है। यह जानकारी आगे चलकर बैंक को यह तय करने में मदद करती है कि आपको प्रीमियम कार्ड बेचना है या आपको बिज़नेस लोन ऑफर करना है। यानी मुफ्त की चाय या कॉफ़ी के बदले आपने अनजाने में अपने जीवन की दिनचर्या बैंक को सौंप दी।

वित्तीय सलाहकार बताते हैं कि कई बार ये लाउंज खुद तो बिचौलिये की तरह काम करते हैं। वे हज़ारों लाउंज से साझेदारी करके बैंकों को एक्सेस बेचते हैं। बैंक उन्हें थोक में पैसे देते हैं और फिर ग्राहकों को सुविधा का एहसास कराते हैं। लेकिन यह सब आपके ही खर्च से निकलता है। आप सोचते हैं कि आपने कार्ड पर कोई वार्षिक शुल्क नहीं दिया, लेकिन आपके हर स्वाइप में छिपा हुआ चार्ज इस खर्च को पूरा करता है। यानी अंत में जो कीमत चुकाई जाती है, वह सीधे या परोक्ष रूप से आपकी ही जेब से निकलती है।

यूपीआई और लाउंज की यह कहानी हमें एक ही बात सिखाती है—कुछ भी मुफ्त नहीं होता। अगर आपसे पैसे नहीं लिए जा रहे, तो समझ लीजिए कि कीमत आपके डेटा और आपकी आदतों से वसूली जा रही है। यही वजह है कि भारत में आज डिजिटल पेमेंट्स, क्रेडिट कार्ड नेटवर्क और लॉयल्टी प्रोग्राम अरबों डॉलर की इंडस्ट्री बन चुके हैं।

दुनिया अब डेटा को नया तेल कहती है। जैसे 20वीं सदी में तेल ने दुनिया की राजनीति और अर्थव्यवस्था को बदल दिया, वैसे ही 21वीं सदी में डेटा ने यह भूमिका ले ली है। और यूपीआई और लाउंज इसी डेटा इकॉनमी की मिसाल हैं। आप सोचते हैं कि आपने सिर्फ़ चाय के लिए भुगतान किया, लेकिन उस भुगतान से किसी कंपनी ने आपके भविष्य के खर्च का नक्शा बना लिया।

कई केस स्टडीज़ यह दिखाती हैं कि मुफ्त सेवाओं के बदले में डेटा लीक होना कितना खतरनाक हो सकता है। यूरोप में जीडीपीआर कानून आने से पहले कई पेमेंट कंपनियाँ ग्राहकों का डेटा विज्ञापन कंपनियों को बेच देती थीं। भारत में भी कई बार यह सवाल उठा है कि पेमेंट कंपनियाँ ग्राहक का डेटा कितनी सुरक्षित रख रही हैं। यही वजह है कि सरकार बार-बार डिजिटल प्राइवेसी कानूनों की बात करती है।

लेकिन आम ग्राहक के लिए यह चेतावनी ही काफी है—जब भी कोई सेवा मुफ्त हो, तो सोचिए कि उसका असली दाम कौन चुका रहा है। अगर आप एयरपोर्ट लाउंज में बैठकर मुफ्त खाना खा रहे हैं, तो कहीं न कहीं आपके बैंक अकाउंट और आपके खर्च करने की आदतों का डेटा इस्तेमाल हो रहा है। अगर आप यूपीआई से मुफ्त ट्रांज़ैक्शन कर रहे हैं, तो उसका बोझ सरकार, बैंक और अंततः आपके डेटा पर डाला जा रहा है।

Conclusion

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