जब व्हाइट हाउस की आलीशान मेज़ पर कुर्सी लगाई गई, तो सबने सोचा वहां कोई राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या कोई बड़ा राजनयिक बैठेगा। लेकिन जैसे ही दरवाज़ा खुला और अंदर पाकिस्तान की वर्दी में लिपटा एक चेहरा दाखिल हुआ, तो हर किसी की आंखें फैल गईं। यह शख्स था असीम मुनीर—पाकिस्तान का आर्मी चीफ। और जो उसे बुलाने वाला था, वो कोई और नहीं, बल्कि अमेरिका का सबसे विवादास्पद और चर्चित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप था। सवाल उठता है I
आख़िर ट्रंप ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को दरकिनार करके सेना प्रमुख को दावत पर क्यों बुलाया? और वह ऐसा क्या व्यापार करना चाहते हैं जो प्रधानमंत्री की बजाय सेना से बात करना ज़रूरी समझा गया? कहानी यहीं से शुरू होती है, एक ऐसे सौदे की, जिसमें सिर्फ पैसा ही नहीं, बल्कि शक्ति, तकनीक और राजनीति भी गहराई से जुड़ी हुई है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
डोनाल्ड ट्रंप को दुनिया एक ऐसे नेता के रूप में जानती है जो पारंपरिक राजनयिक रिवाजों की परवाह नहीं करता। वो सीधे डील करता है, और वह भी उस शख्स से जिसे वो असली ताकत समझता है। पाकिस्तान के मामले में भी उसने यही किया। शहबाज शरीफ उस समय अपने प्रधानमंत्री कार्यालय में व्यस्त रहे होंगे, जबकि व्हाइट हाउस में असली बातचीत हो रही थी—अमेरिका और पाकिस्तान के बीच एक ऐसे भविष्य की जो राजनीति से नहीं, बल्कि पैसा और तकनीक से तय होना है। और इस सौदे की सबसे अहम कड़ी है—Cryptocurrency।
क्रिप्टोकरेंसी—जिसे कभी ट्रंप ने धोखा कहा था, आज वही उनके व्यापारिक भविष्य की धुरी बन चुकी है। उनके बेटे एरिक ट्रंप ने ‘अमेरिकन बिटकॉइन’ नाम से एक माइनिंग कंपनी शुरू की है, जो हट 8 नाम की एक क्रिप्टो फर्म के साथ मिलकर बिटकॉइन माइनिंग करेगी। कंपनी का लक्ष्य है—बिटकॉइन माइनिंग करके उसे वॉल स्ट्रीट पर बेचकर भारी मुनाफा कमाना। लेकिन इस बिज़नेस के लिए चाहिए सस्ती और लगातार बिजली, जमीन, और सरकार का सहयोग। अमेरिका में यह सब महंगा है। चीन में यह सब बैन है। लेकिन पाकिस्तान में? यहां ट्रंप को वह सुनहरा मौका दिखा, जिसे भुनाने के लिए उन्होंने असीम मुनीर को सीधे न्योता दे डाला।
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति इस समय बेहद नाज़ुक दौर से गुजर रही है। विदेशी कर्ज़, गिरती मुद्रा और घटती नौकरियों ने सरकार को बेचैन कर रखा है। लेकिन सेना? वह आज भी पाकिस्तान की सबसे संगठित और प्रभावशाली संस्था है। उसे न केवल देश का भरोसा प्राप्त है, बल्कि वो ऐसे फैसले भी ले सकती है जो सरकार के दायरे से बाहर हों। ऐसे में ट्रंप के लिए असीम मुनीर से बात करना बहुत स्वाभाविक हो जाता है, खासकर तब जब व्यापार की बात हो—और वो भी ऐसा व्यापार जो भविष्य की दिशा तय कर सकता है।
असीम मुनीर और ट्रंप की व्हाइट हाउस मीटिंग में जिन मुद्दों पर बात हुई, उनमें सबसे ज़्यादा ध्यान खींचने वाला विषय था—क्रिप्टोकरेंसी। इसके साथ-साथ एआई, ऊर्जा, आतंकवाद से लड़ाई और आर्थिक विकास जैसे मुद्दों पर भी चर्चा हुई, लेकिन असली फोकस रहा क्रिप्टो के व्यापार पर। और यहां पाकिस्तान ट्रंप के लिए सिर्फ एक देश नहीं, बल्कि एक संभावनाओं से भरा प्लेटफॉर्म है।
पाकिस्तान में हाइड्रोपावर यानी जलविद्युत परियोजनाएं पहले से मौजूद हैं, जिनसे सस्ती बिजली पैदा होती है। यही बिजली अगर क्रिप्टो माइनिंग में इस्तेमाल हो, तो अमेरिका की तुलना में लागत बहुत कम हो सकती है। और यहीं से शुरू होता है वो प्रस्ताव जिसे ट्रंप सीधे सेना प्रमुख को देना चाहते हैं। सेना वहां सुरक्षा और नीति दोनों नियंत्रित करती है, और अगर उसे मुनाफा दिखाई दे, तो वह न केवल ऐसे उद्योग को बढ़ावा दे सकती है, बल्कि अमेरिका जैसे देश से आर्थिक भागीदारी भी बढ़ा सकती है।
लेकिन ट्रंप का प्लान सिर्फ बिटकॉइन माइनिंग तक सीमित नहीं है। उन्होंने पहले ही क्रिप्टो मार्केट में NFT के जरिए करोड़ों डॉलर का Revenue बटोरा है। ट्रंप डिजिटल ट्रेडिंग कार्ड्स की उनकी सीरीज़ न सिर्फ अमेरिका में, बल्कि इंटरनेशनल मार्केट में भी बिक चुकी है। और अब अगला कदम है—एक ऐसा देश खोजना जहां वह क्रिप्टो व्यापार को फिजिकल रूप में स्थापित कर सकें। यानी डेटा सेंटर, माइनिंग फार्म्स, और क्रिप्टो इंफ्रास्ट्रक्चर। पाकिस्तान इसके लिए एक सस्ता और रणनीतिक स्थान बन सकता है।
ट्रंप की यह नीति सिर्फ आर्थिक नहीं है, यह एक रणनीतिक दांव भी है। चीन ने अपने देश में क्रिप्टो पर बैन लगा रखा है। ऐसे में अमेरिका चाहता है कि एशिया में कोई दूसरा हब बने, जहां से टेक्नोलॉजी, डाटा और फाइनेंस को एक साथ संचालित किया जा सके। पाकिस्तान की लोकेशन, सस्ती लेबर, और अमेरिका की मदद के लिए बेताब सरकार, इस हब को हकीकत में बदल सकती है। और अगर यह हकीकत बनी, तो ट्रंप न केवल व्यापार में मुनाफा कमाएंगे, बल्कि चीन की रणनीतिक पकड़ को भी कमजोर करेंगे।
अब यहां से एक और परत खुलती है—पाकिस्तान की मंशा की। देश इस समय IMF और वर्ल्ड बैंक जैसे संस्थानों से कर्ज़ की भीख मांग रहा है। लेकिन बार-बार शर्तें और रेटिंग्स के चक्रव्यूह में फंसता जा रहा है। ऐसे में अगर उसे कोई ऐसा विकल्प मिल जाए जो उसे अमेरिकी बाजार से जोड़ दे, तो वह न केवल कर्ज़ के दबाव से उबरेगा, बल्कि ग्लोबल मंच पर अपनी छवि भी सुधार सकेगा। क्रिप्टो सेक्टर में प्रवेश और उसमें अमेरिकी भागीदारी से यह सपना साकार हो सकता है।
असीम मुनीर को ट्रंप द्वारा दिया गया आमंत्रण केवल औपचारिकता नहीं था, वह एक संदेश था—एक संकेत कि अमेरिका अब पाकिस्तान से गंभीरता से व्यापार करना चाहता है, लेकिन उसके लिए सरकार नहीं, सेना को सही साझेदार मानता है। और यह पाकिस्तान की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका है। ट्रंप का यह कदम बताता है कि दुनिया भले ही लोकतंत्र की बात करे, लेकिन असली डील वहां होती है, जहां शक्ति होती है। और पाकिस्तान में वह शक्ति सिविल गवर्नमेंट में नहीं, बल्कि जीएचक्यू रावलपिंडी में है।
लेकिन हर सौदे की एक कीमत होती है। इस मामले में वह कीमत हो सकती है—अंतरराष्ट्रीय आलोचना। पहले भी ट्रंप के बिजनेस हितों को लेकर सवाल उठते रहे हैं। अब जब उनके परिवार की क्रिप्टो कंपनियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम कर रही हैं, और वह खुद राष्ट्रपति हैं, तो हितों के टकराव का मुद्दा और बड़ा हो जाता है। लेकिन ट्रंप को शायद इसकी परवाह नहीं। उनके लिए नतीजे से ज़्यादा ज़रूरी होता है—सौदे की सफलता।
पाकिस्तान भी इस स्थिति को समझता है। उसके पास खोने के लिए बहुत कुछ है—लेकिन पाने के लिए उससे कहीं ज़्यादा। अगर ट्रंप जैसा शख्स वहां Investment करता है, तो वह संदेश पूरी दुनिया में जाएगा कि पाकिस्तान अब सिर्फ आतंकवाद और अस्थिरता का प्रतीक नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी और Investment का हब बन सकता है। और यही वह छवि है जिसे पाकिस्तान पिछले कई दशकों से बदलना चाहता है।
अंत में, यह कहानी एक राष्ट्रपति, एक सेना प्रमुख और एक तकनीक के इर्द-गिर्द घूमती है। ट्रंप ने यह दिखा दिया है कि भविष्य उन्हीं का है जो पुराने रास्तों से हटकर नए अवसरों को पहचानते हैं। और असीम मुनीर ने इस निमंत्रण को स्वीकार करके यह साबित कर दिया कि वह भी केवल एक सैनिक नहीं, बल्कि पाकिस्तान के नए आर्थिक रास्तों के रणनीतिकार बन चुके हैं।
अब देखना यह है कि यह ‘क्रिप्टो डील’ पाकिस्तान के लिए वरदान बनती है या एक और ऐसे व्यापारिक प्रयोग में बदल जाती है, जो सत्ता के खेल में खो जाता है। लेकिन एक बात तय है—इस बार बातचीत कागज़ों पर नहीं, बल्कि बिट्स और ब्लॉक्स की दुनिया में हो रही है। और उस दुनिया में नियम नहीं, नेटवर्क चलता है। शायद यही ट्रंप का असली खेल है—जहां ताकत सिर्फ सेना या सरकार नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी और पैसा भी।
Conclusion
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