ज़रा सोचिए… आप बाजार से अपनी बीमार मां के लिए दवा खरीदते हैं। पैकेट पर नाम वही, सील लगी हुई, और ब्रांड भी पहचाना हुआ। लेकिन जैसे ही वो दवा उनके शरीर में जाती है, इलाज करने के बजाय ज़हर का काम कर देती है। या फिर आप सुबह की चाय में डालने के लिए दूध लाते हैं, लेकिन वो दूध असल में केमिकल, डिटर्जेंट और स्टार्च का घोल निकलता है।
यह कोई काल्पनिक डरावनी कहानी नहीं, बल्कि हमारे चारों ओर फैली हकीकत है—नकली का खेल। यह खेल इतना बड़ा है कि आपके किचन से लेकर आपकी अलमारी, आपकी गाड़ी से लेकर आपके मोबाइल चार्जर तक—हर जगह इसकी पकड़ है। और सबसे खतरनाक बात यह है कि इसमें शामिल लोगों के लिए आपकी सेहत, आपकी जान और आपका पैसा—तीनों की कोई कीमत नहीं है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
आपको बता दें कि नकली सामान की समस्या सिर्फ भारत की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की है। लेकिन भारत की हालत इससे कहीं ज्यादा चिंताजनक है। दुनिया के बाजार में नकली सामान की हिस्सेदारी करीब 5% है, जबकि भारत में यह आंकड़ा 30% तक पहुंच जाता है। इसका मतलब है कि हर 10 में से 3 प्रोडक्ट जो आपके हाथ में आते हैं, वो असली नहीं होते। ये सिर्फ सस्ती क्वालिटी के नहीं, बल्कि कई बार सीधे जानलेवा साबित होते हैं।
फास्ट मूविंग कंस्यूमर गुड्स—यानी FMCG सेक्टर—इस नकली खेल का सबसे बड़ा शिकार है। सोचिए, आपके घर की रसोई में रखा तेल, मसाले, चाय, पैकेट वाले स्नैक्स, यहां तक कि साबुन, शैम्पू, टूथपेस्ट और क्लीनिंग लिक्विड—इनमें से कितने असली हैं, और कितने नकली, आपको पता भी नहीं होगा।
हेल्थकेयर में ओवर-द-काउंटर दवाएं, पर्सनल केयर प्रोडक्ट, यहां तक कि स्टेशनरी और कपड़े तक इस जाल में फंसे हुए हैं। फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोबाइल और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स—ये सेक्टर भी 20 से 25% नकली सामान से प्रभावित हैं। और ये तो सिर्फ वो हिस्सा है जो पकड़ा जाता है, असली आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा हो सकता है।
अब सुनिए, यह नकली का जाल कितना गहरा और संगठित है। दिल्ली, यूपी, उत्तराखंड, हिमाचल, हरियाणा और तेलंगाना—कई राज्यों में कैंसर, डायबिटीज और किडनी जैसी गंभीर बीमारियों की नकली दवाएं बनाने वाले गिरोह पकड़े गए। ये दवाएं किसी गली के गोदाम में नहीं, बल्कि बाकायदा फैक्ट्री जैसे सेटअप में तैयार हो रही थीं।
इनके सप्लाई नेटवर्क में चेन बनी हुई थी—थोक व्यापारी से लेकर कुछ नामी अस्पतालों का स्टाफ तक शामिल था। पुलिस की छापेमारी में ऐसे मामले सामने आए, जहां कैंसर और कोरोना के नकली इंजेक्शन लेने से लोगों की मौत हो गई। सोचिए, एक मरीज जिसने भरोसे के साथ इलाज शुरू किया, वो नकली के शिकार होकर दुनिया से चला गया—क्योंकि किसी ने पैसे के लिए उसकी जिंदगी से खिलवाड़ किया।
हालांकि, ये खेल सिर्फ दवाओं तक सीमित नहीं है। पिछले महीने राजस्थान में 30 से ज्यादा फैक्ट्रियों पर छापे पड़े, जहां नकली बीज और खाद बनाए जा रहे थे। आप सोचेंगे, इसमें खतरनाक क्या है? लेकिन जब आपको पता चलेगा कि इन्हें बनाने के लिए संगमरमर का कचरा, पत्थर की धूल और कैंसर पैदा करने वाले केमिकल मिलाए जा रहे थे, तो आपकी रूह कांप जाएगी। ये नकली खाद खेत में जाएगी, फसल में जाएगी, और फिर सीधा आपके खाने की थाली में पहुंच जाएगी।
दिल्ली, यूपी, केरल और तमिलनाडु में नकली दूध और डेयरी प्रोडक्ट बनाने के मामले भी पकड़े गए। दूध, पनीर, घी—सबमें सस्ते केमिकल, डिटर्जेंट, यहां तक कि सिंथेटिक पाउडर मिलाकर बेचा जा रहा था। यह सिर्फ मिलावट नहीं, बल्कि एक धीमा ज़हर है, जो धीरे-धीरे आपके शरीर में घुलता है।
इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर भी इससे अछूता नहीं। तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में जुलाई में पुलिस ने Apple के करीब 3 करोड़ रुपये के नकली प्रोडक्ट जब्त किए। गोवा में मार्च में एक करोड़ रुपये का नकली इलेक्ट्रॉनिक्स पकड़ा गया। इंडियन स्टैंडर्ड्स ब्यूरो ने देश के कई शहरों में Amazon और Flipkart के गोदामों पर छापेमारी कर 4000 से ज्यादा नकली सामान जब्त किए। इनमें नकली ISI मार्क लगे रूम हीटर, मिक्सर, इंडक्शन, ईयरफोन, चार्जर—सब शामिल थे।
लेकिन इस नकली खेल का असर सिर्फ आपकी जेब या सेहत पर ही नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी है। फिक्की की रिपोर्ट कहती है कि सिर्फ पांच सेक्टर—FMCG, टेक्सटाइल और ऐपैरल, पर्सनल हेल्थकेयर, अल्कोहल और टोबैको—इनमें नकली सामान की वजह से सरकार को 8 लाख करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान होता है। इतना ही नहीं, 16 लाख से ज्यादा रोजगार इस नकली व्यापार की भेंट चढ़ चुके हैं। अकेले FMCG सेक्टर में ही 68% नौकरियां खत्म हो गईं। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि भारत के 31% उपभोक्ता जानते हुए भी नकली सामान खरीदते हैं—खासतौर पर कपड़े और जूते। वजह? सस्ता दाम। यानी हम खुद भी इस खेल को बढ़ावा दे रहे हैं।
और अब सोचिए, नकली का यह खेल कितनी गहराई तक गया है। पिछले साल दिल्ली के करावल नगर में दो फैक्ट्रियों पर छापेमारी में 15 हजार किलो नकली मसाले जब्त किए गए। ये मसाले सड़े हुए चावल, लकड़ी का बुरादा, जामुन की गुठली का पाउडर और हानिकारक केमिकल से बनाए जा रहे थे। राजस्थान के अजमेर में 18,000 लीटर नकली रिफाइंड तेल पकड़ा गया, जिसे असली ब्रांड के लेबल लगाकर बेचा जा रहा था। नकली हेयर ऑयल और फेस क्रीम बेचने वाले गिरोह भी पकड़े गए, जो इन्हें ऑनलाइन बेच रहे थे।
इस नकली कारोबार का नुकसान हर स्तर पर है। उपभोक्ता के लिए यह पैसे और सेहत का नुकसान है। बिजनेसमैन के लिए यह उनके ब्रांड और भरोसे पर चोट है। सरकार के लिए यह टैक्स और राजस्व की बड़ी हानि है।
तो सवाल है—इससे कैसे बचा जाए? सबसे पहला कदम है—जागरूकता। खरीदारी करते समय पैकेजिंग, लोगो, प्रिंट क्वालिटी पर ध्यान दें। सामग्री की जानकारी, सिलाई, फिनिशिंग—इन छोटी-छोटी बातों से नकली पहचान में आ सकता है। ऑनलाइन खरीदारी के लिए सिर्फ भरोसेमंद वेबसाइट या ब्रांडेड स्टोर्स का इस्तेमाल करें।
लेकिन अगर फिर भी आपके हाथ में नकली सामान आ जाए तो क्या करें? शिकायत कहां करें? यहां सरकार ने कई माध्यम दिए हैं—
नैशनल कंज्यूमर हेल्पलाइन: 1800-11-4000 या 1915 पर कॉल करें, या consumerhelpline पर ऑनलाइन शिकायत दर्ज करें।
स्थानीय पुलिस: अगर मामला आपराधिक गतिविधि का है, तो सीधे पुलिस में केस दर्ज कराएं।
उपभोक्ता आयोग: जिला आयोग, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग में शिकायत दर्ज की जा सकती है, रकम के आधार पर।
शिकायत के लिए जरूरी दस्तावेज भी संभालकर रखें—बिल, रसीद, ऑर्डर नंबर, पहचान पत्र।
कानून भी सख्त हैं—नकली सामान बनाने वाले को छह महीने से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है, और जुर्माना 1 लाख से 10 लाख तक। मौत होने पर उम्रकैद तक।
विशेषज्ञ कहते हैं, सजा को और कड़ा करना चाहिए और उपभोक्ताओं को डरना नहीं चाहिए। हर शिकायत दर्ज होनी चाहिए, ताकि इस बाजार से नकली का जाल धीरे-धीरे खत्म हो। असली जीत तब होगी, जब हर नागरिक अपने अधिकार को जाने और उसका इस्तेमाल करे।
Conclusion
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