एक मासूम सी आवाज़ कमरे में गूंजती है—”मम्मा ऑफिस जाती हैं…” यह वाक्य साधारण लग सकता है, लेकिन जब आप जानेंगे कि यह किसने कहा और किसके बारे में कहा गया, तो शायद आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। एक दो साल का बच्चा, जो अभी बोलना सीख ही रहा है, यह समझता है कि उसकी मां रोज़ ऑफिस जाती है I
वो मां कोई आम महिला नहीं, बल्कि भारत के सबसे अमीर और प्रभावशाली कारोबारी घराने, अंबानी परिवार की बहू है—श्लोका मेहता अंबानी। इस एक वाक्य में ना केवल एक मां की मेहनत झलकती है, बल्कि यह एक पूरी पीढ़ी की सोच बदलने वाला वाक्य बन जाता है। एक ऐसी सोच, जो कहती है कि सपने, जिम्मेदारियों से नहीं रुकते—बल्कि उनके साथ और मजबूत होते हैं। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
श्लोका मेहता अंबानी का जीवन बाहर से देखने पर बेहद आलीशान और परीकथा जैसा लगता है। करोड़ों की संपत्ति, देश की सबसे प्रभावशाली फैमिली, विश्व के सबसे महंगे घर में रहन-सहन, और हर वो चीज़ जो एक इंसान कल्पना कर सकता है—लेकिन इस चकाचौंध के पीछे एक ऐसा व्यक्तित्व है, जो बहुत गहराई और संवेदनशीलता लिए हुए है।
श्लोका ने ये साबित किया है कि जब इरादे मजबूत हों, तो जीवन की परिस्थितियां चाहे जितनी भी आरामदायक हों, इंसान सेवा और उद्देश्य के रास्ते पर चलने से नहीं रुकता। यही वजह है कि उन्होंने “ConnectFor” जैसी संस्था की नींव रखी—एक ऐसा प्लेटफॉर्म जिसने हजारों जिंदगियों को जोड़कर समाज में वास्तविक बदलाव लाया है।
ConnectFor सिर्फ एक नाम नहीं है, यह एक मिशन है। यह एक सपना है जिसे श्लोका ने अपनी दोस्त और सह-संस्थापक मनीति शाह के साथ मिलकर साकार किया। एक ऐसा सपना, जो कहता है कि अगर सही लोग, सही समय पर, सही इरादों से जुड़ जाएं—तो बदलाव होना तय है।
इस मंच के जरिए अब तक एक लाख से ज्यादा स्वयंसेवकों को 1,000 से अधिक Non-Governmental Organizations (NGO) से जोड़ा जा चुका है। यह जुड़ाव सिर्फ आंकड़ों में नहीं है, बल्कि यह उन चेहरों की मुस्कान में है, जिनकी ज़िंदगी में रोशनी आई। और सबसे बड़ी बात—इस काम के जरिए लगभग 21 करोड़ रुपये की लागत की बचत हुई है, जो यह दर्शाता है कि सेवा और प्रोफेशनल मैनेजमेंट जब एक साथ आते हैं, तो चमत्कार होते हैं।
लेकिन क्या ये सब श्लोका के लिए आसान था? बिल्कुल नहीं। श्लोका बताती हैं कि मां बनने के बाद जिम्मेदारियां तो बढ़ीं ही, लेकिन उनके भीतर बदलाव लाने की आग और भी तेज़ हो गई। एक मां के रूप में जहां उन्हें अपने बेटे की देखभाल करनी थी, वहीं एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में ConnectFor को आगे बढ़ाना था। उन्होंने इस दोहरी भूमिका को कभी बोझ नहीं बनने दिया, बल्कि प्रेरणा का स्रोत बना लिया। उनका मानना है कि एक बच्चा वही सीखता है जो वो देखता है—और जब वो देखेगा कि उसकी मां कुछ अच्छा कर रही है, तो वह भी वही मूल्य जीवन में अपनाएगा।
इस यात्रा में एक सबसे मजबूत स्तंभ था—अंबानी परिवार का समर्थन। श्लोका खुलकर कहती हैं कि उनके ससुराल वालों, विशेषकर उनके पति आकाश अंबानी ने हर कदम पर उनका साथ दिया। जहां अक्सर ससुराल को एक महिला के सपनों की सीमा समझा जाता है, वहीं अंबानी परिवार उनके लिए एक उड़ान की ज़मीन बन गया। उन्होंने बताया, “हमारे माता-पिता और पति को हम पर बहुत गर्व है। वे हमारी उपलब्धियों को हमसे भी बेहतर तरीके से लोगों को बताते हैं।” इस तरह का समर्थन ही असल में एक महिला को अपने सपनों को बिना किसी डर के जीने की शक्ति देता है।
श्लोका का शिक्षा और सेवा से जुड़ाव भी बेहद प्रेरणादायक रहा है। उन्होंने प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से मानव विज्ञान की पढ़ाई की और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से कानून में विशेषज्ञता ली। उनकी थीसिस और रिसर्च सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित थीं—जैसे बाल शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण विकास। ये सिर्फ अकादमिक विषय नहीं थे, बल्कि उनके दिल के बेहद करीब थे। शायद यही वजह रही कि उन्होंने एक फॉर्मल करियर की बजाय एक ऐसा रास्ता चुना जो दिल से जुड़ा था—जिसका मकसद सिर्फ नौकरी नहीं, बल्कि समाज को कुछ लौटाना था।
ConnectFor की शुरुआत भी उतनी ही साधारण और दिलचस्प थी। श्लोका और मनीति ने पहले स्वयंसेवकों को जोड़ने के लिए गूगल फॉर्म बनाए, NGOs से खुद संपर्क किया, उनके दफ्तरों का दौरा किया और धीरे-धीरे एक नेटवर्क तैयार किया।
इस नेटवर्क में न कोई बड़ी टीम थी, न फंडिंग का सहारा—बस एक विचार था कि समाज को जोड़ने के लिए बड़े संसाधनों की नहीं, बड़े दिलों की ज़रूरत होती है। और जब दिल से कोई काम शुरू होता है, तो रास्ते खुद बनने लगते हैं। उन्होंने दिखाया कि सेवा के क्षेत्र में भी कॉर्पोरेट जैसी प्रोफेशनल अप्रोच अपनाई जा सकती है।
एक और बात जो इस सफर को और खास बनाती है, वह है निरंतरता। श्लोका गर्व से कहती हैं, “पिछले 10 सालों में एक भी दिन ऐसा नहीं आया जब ConnectFor बंद हुआ हो।” सोचिए, जब लाखों संस्थाएं संसाधनों की कमी, कर्मचारियों की अनुपस्थिति या निजी कारणों से रुक जाती हैं, वहीं एक मां, एक बहू और एक समाजसेवी मिलकर एक संस्था को एक दशक तक बिना रुके चलाती हैं—यह सिर्फ समर्पण नहीं, यह एक आदर्श है।
और इस समर्पण का सबसे प्यारा फल तब सामने आता है, जब उनका दो साल का बेटा बिना सिखाए कहता है—“मम्मा ऑफिस जाती हैं।” ये शब्द एक मां के लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं। श्लोका कहती हैं, “मैं चाहती हूं कि मेरा बेटा यह जाने कि उसकी मां किसी चीज़ के लिए जुनूनी थी और उसने उसे पूरा किया।” ये लाइन आज की हर महिला को एक संदेश देती है—कि मातृत्व कोई सीमा नहीं, बल्कि ताकत है।
श्लोका ने समाज में यह भी बदलाव लाया है कि अब लोग स्वयंसेवा को एक गंभीर और महत्वपूर्ण कार्य मानने लगे हैं। पहले वह और मनीति अपने कार्यों के बारे में ज्यादा नहीं बोलती थीं। उनका मानना था कि काम की गूंज खुद पहुंचेगी, लेकिन अब उन्होंने यह निर्णय लिया है कि अपने मिशन की बात लोगों तक पहुंचाई जाए ताकि ज्यादा लोग इससे जुड़ें, और समाज को और बेहतर बनाया जा सके। क्योंकि अब समय आ गया है कि लोग जानें कि ConnectFor क्या कर रहा है और कैसे वे भी इसका हिस्सा बन सकते हैं।
आज ConnectFor सिर्फ एक मंच नहीं, बल्कि एक आंदोलन बन चुका है। एक ऐसा आंदोलन जो कहता है कि सेवा सिर्फ पैसे से नहीं होती, बल्कि समय, भावना और इंसानी रिश्तों से होती है। और यही ‘कम्युनिटी कैपिटल’ की परिभाषा है—जो इस संगठन का मूल मंत्र है। जब लोग समय देते हैं, जब वे जमीनी स्तर पर काम करते हैं, तो सामाजिक बदलाव स्थायी बनता है।
श्लोका की ये कहानी हमें ये भी सिखाती है कि जीवन में काम का मूल्य घंटों से नहीं, भावना से होता है। वो कहती हैं, “आप गृहिणी हों, कॉर्पोरेट में काम करने वाली हों या किसी मिशन की संस्थापक—आपका हर काम उतना ही मूल्यवान है। फर्क बस इतना है कि आप उसमें कितनी निष्ठा और उद्देश्य लेकर काम कर रहे हैं।” यही सोच है जो आज ConnectFor को लोगों के दिलों तक पहुंचा रही है।
और आखिर में, यह कहानी एक बहुत बड़ी सीख देकर जाती है—कि जब एक महिला अपने सपनों को खुलकर जीती है, जब उसका परिवार उसे उड़ने की इजाजत देता है, जब उसके बच्चे उसे सम्मान की नजर से देखते हैं, और जब वह समाज को कुछ वापस देती है—तो वह न सिर्फ एक प्रेरणा बनती है, बल्कि एक चलती-फिरती क्रांति बन जाती है। श्लोका मेहता अंबानी आज उस क्रांति की मिसाल हैं।
Conclusion
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