CoinDCX की ताकत या साज़िश? 2361 करोड़ की चोरी के पीछे छिपी क्रिप्टो दुनिया की मास्टरमाइंड कहानी!

एक ऐसी रात जब पूरा भारत चैन की नींद सो रहा था, तभी इंटरनेट की अंधेरी गलियों में कुछ ऐसा हुआ जिसने देश के सबसे भरोसेमंद क्रिप्टो एक्सचेंजों को हिला कर रख दिया। करोड़ों की डिजिटल दौलत एक झटके में गायब हो गई। न बैंक लुटा, न तिजोरी टूटी—फिर भी 2361 करोड़ रुपये हवा में उड़ गए। सवाल उठा—कैसे? और सबसे अहम—इन कंपनियों के मालिक कौन हैं, जिनकी छत्रछाया में ये टेक्नोलॉजी की दुनिया के किले खड़े हुए थे?

CoinDCX और WazirX जैसे नाम जिन पर युवा आंख मूंदकर भरोसा करते थे, अब साइबर अपराधियों के शिकार बन चुके थे। लेकिन इस तबाही के पीछे छिपी कहानी सिर्फ हैकिंग की नहीं—बल्कि कुछ ऐसे भारतीय युवाओं की भी है, जिन्होंने एक नए युग की शुरुआत की थी। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

निश्चल शेट्टी—एक नाम जो आज क्रिप्टो वर्ल्ड का जाना-माना चेहरा बन चुका है। लेकिन उनकी शुरुआत उतनी ही साधारण थी जितनी आपकी हमारी। मुंबई की गलियों से निकलकर कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई करने वाला यह युवक कभी नहीं जानता था कि, वह एक दिन देश के सबसे बड़े क्रिप्टो प्लेटफॉर्म वज़ीरएक्स का फाउंडर कहलाएगा। विश्‍वेश्वरैया टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी से 2007 में ग्रैजुएट होने के बाद उन्होंने सबसे पहले एक सॉफ्टवेयर डेवलपर के तौर पर काम किया।

लेकिन जो दिल से क्रिएटर होता है, वो कोड में सिर्फ बाइट्स नहीं ढूंढ़ता—वो उसमें बदलाव का सपना देखता है। इसी सपने ने जन्म दिया Crowdfire को, एक ऐसा सोशल मीडिया मैनेजमेंट ऐप जिसने उन्हें पहली बार पहचान दिलाई। लेकिन असली कहानी तब शुरू हुई जब 2018 में उन्होंने एक ऐसा कदम उठाया जिसने भारतीय टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री में क्रांति ला दी। उन्होंने शुरू किया वज़ीरएक्स—भारत के लिए बना एक क्रिप्टो एक्सचेंज, जो इस नई डिजिटल करेंसी को हर आम आदमी तक पहुंचाने का सपना लेकर आया था।

WazirX ने कुछ ही सालों में एक करोड़ से ज्यादा यूज़र्स का आंकड़ा पार कर लिया। लोग उस वक्त क्रिप्टो को लेकर जितने कन्फ्यूज़ थे, उतना ही भरोसा उन्हें वज़ीरएक्स पर था। और फिर आया वो मोड़ जब 2019 में दुनिया के सबसे बड़े क्रिप्टो एक्सचेंज Binance ने वज़ीरएक्स को अधिग्रहित कर लिया। यह किसी भारतीय टेक स्टार्टअप के लिए किसी अवार्ड से कम नहीं था। लेकिन क्या यह सफलता स्थायी थी?

साल 2022 में जब पूरी दुनिया ब्लॉकचेन की अगली पीढ़ी की ओर बढ़ रही थी, निश्चल ने एक और प्रोजेक्ट लॉन्च किया—Shardeum। ये सिर्फ एक नया ब्लॉकचेन प्लेटफॉर्म नहीं था, बल्कि एक मिशन था लाखों यूज़र्स के लिए स्केलेबल और डीसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी को सुलभ बनाने का। यही तो उनके सफर की सबसे बड़ी खासियत रही—हर बार नया सोचना, हर बार कुछ बड़ा करना।

लेकिन जैसे-जैसे नाम और नेटवर्क बढ़ते हैं, वैसे-वैसे खतरे भी। और यही हुआ 2023 में जब वज़ीरएक्स को एक बड़े साइबर अटैक का सामना करना पड़ा। इस हमले में करीब 230 मिलियन डॉलर यानी 1983 करोड़ रुपये यूज़र्स की होल्डिंग्स हैकर्स चुरा ले गए। सोशल मीडिया पर भूचाल आ गया—यूज़र्स ने सवाल उठाए, सरकार ने जवाब मांगे, और निश्चल शेट्टी की टीम को हर दिशा से झेलनी पड़ी आलोचना।

और अभी यह मामला शांत भी नहीं हुआ था कि जुलाई 2024 में CoinDCX पर हमला हो गया। इस बार नुकसान का आंकड़ा था 44 मिलियन डॉलर यानी लगभग 378 करोड़ रुपये। CoinDCX, जो भारत में क्रिप्टो ट्रेडिंग का दूसरा सबसे बड़ा नाम बन चुका था, अब खुद साइबर अपराध की चपेट में आ चुका था। इन दोनों घटनाओं ने कुल मिलाकर 2361 करोड़ की डिजिटल लूट को जन्म दिया। अब सवाल उठा—CoinDCX का मालिक कौन है? क्या वह भी किसी टेक जादूगर की तरह साधारण शुरुआत से उठकर यहां तक पहुंचा है?

इस सवाल का जवाब है—हां। CoinDCX के फाउंडर हैं सुमित गुप्ता और नीरज खंडेलवाल। इन दोनों ने 2018 में इस कंपनी की नींव रखी थी। सुमित गुप्ता—IIT बॉम्बे के उस छात्र का नाम है, जिसने मात्र 19 साल की उम्र में अपनी पहली कंपनी शुरू कर दी थी। उनकी सोच में क्रिप्टो को लेकर जो स्पष्टता थी, वो इस बात से झलकती है कि उन्होंने टोक्यो जैसी ग्लोबल लोकेशन पर भी काम किया, और भारतीय बाजार को समझते हुए CoinDCX को एक मजबूत प्लेटफॉर्म बनाया।

CoinDCX जल्द ही उस मुकाम पर पहुंच गया जहां वो भारत में Binance और वज़ीरएक्स को टक्कर देने लगा। लेकिन क्रिप्टो का खेल सिर्फ टेक्नोलॉजी का नहीं, भरोसे और सुरक्षा का भी होता है। और जब 19 जुलाई को CoinDCX पर अटैक हुआ, तो ये भरोसा एक बार फिर से हिल गया। इंटरनल अकाउंट से चोरी हुए करोड़ों ने एक सवाल फिर खड़ा कर दिया—क्या भारत डिजिटल रूप से तैयार है?

कई लोगों को ये सब स्कैम लगता है। लेकिन हकीकत ये है कि टेक्नोलॉजी जितनी तेज़ी से बढ़ रही है, खतरे उससे दोगुनी रफ्तार से। निश्चल शेट्टी और सुमित गुप्ता जैसे युवा उद्यमियों ने एक सपना देखा—भारत को क्रिप्टो रेवोल्यूशन में लाने का। और इस सपने को उन्होंने ज़मीन पर उतारा भी। लेकिन जब देश की लॉ और साइबर सेफ्टी में अभी तक स्पष्टता ही नहीं है, तो इन नए स्टार्टअप्स से हर बार सुरक्षा की पूरी गारंटी कैसे मांगी जा सकती है?

हाल ही में Business Today की एक रिपोर्ट ने यह भी खुलासा किया कि निश्चल शेट्टी, और वज़ीरएक्स के को-फाउंडर सिद्धार्थ मेनन अब भारत छोड़कर दुबई शिफ्ट हो चुके हैं। हालांकि कंपनी के ऑफिस अब भी मुंबई और बेंगलुरु में काम कर रहे हैं, लेकिन यह माइग्रेशन एक बड़ा संकेत है। क्या भारत का regulatory माहौल इतना जटिल है कि इनोवेटिव लोग बाहर का रास्ता चुन रहे हैं?

सरकार की भूमिका भी यहां कम नहीं है। क्रिप्टो को लेकर न तो कोई स्पष्ट नीति है, न टैक्सेशन की स्थिरता, और न ही कोई रेगुलेटरी फ्रेमवर्क। RBI इसे शक की नजरों से देखता है, जबकि युवा इसे भविष्य मानते हैं। ऐसे में बीच में फंसे हैं प्लेटफॉर्म्स—जिन पर एक ओर यूज़र्स का विश्वास है, और दूसरी ओर कानून की अनिश्चितता।

क्रिप्टो में Investment करना सिर्फ फायदे या नुकसान की बात नहीं रह गई है। यह अब एक बड़ा सामाजिक, आर्थिक और टेक्नोलॉजिकल बहस बन चुका है। CoinDCX और WazirX जैसी कंपनियां इस नए भारत की पहचान हैं—जहां युवा अपने दम पर कुछ बड़ा कर रहे हैं, लेकिन साथ ही उन्हें अपनी ही जमीन पर संघर्ष भी झेलना पड़ रहा है।

एक तरफ ये युवा उद्यमी हैं जिन्होंने लाखों लोगों को क्रिप्टो की ताकत दी। दूसरी तरफ वो सिस्टम है जो हर बार इन प्लेटफॉर्म्स की वैधता पर सवाल उठाता है। और जब ऐसे में साइबर अटैक होते हैं, तो दोनों ओर से तीर चलने लगते हैं—एक तरफ से ‘देखा, यही तो होता है क्रिप्टो में’, और दूसरी तरफ से ‘अगर रेगुलेशन होता तो ऐसा न होता’।

इस कहानी में कोई एक विलन नहीं है। ना हैकर, ना प्लेटफॉर्म, ना ही सरकार। असली समस्या है—हमारी डिजिटल सुरक्षा की तैयारी और तकनीकी पारदर्शिता की कमी। CoinDCX और WazirX पर हुए हमलों ने ये साफ कर दिया है कि अब भारत को सिर्फ स्टार्टअप्स नहीं, साइबर सुरक्षा के स्टार्टअप्स भी चाहिए।

आज जब हम इंटरनेट पर सिर्फ रील्स और मेम्स नहीं, बल्कि अपनी कमाई, Investment और भविष्य रख रहे हैं, तो सिस्टम को भी उतनी ही गंभीरता से सोचने की ज़रूरत है जितनी इन फाउंडर्स ने दिखाई है। निश्चल शेट्टी और सुमित गुप्ता जैसे युवाओं की कहानी हमें ये सिखाती है कि टेक्नोलॉजी सिर्फ एक आइडिया नहीं—बल्कि ज़िम्मेदारी भी है।

और शायद अब वक्त आ गया है कि भारत इन जिम्मेदारियों को समझे—न सिर्फ क्रिप्टो की संभावना को, बल्कि उसकी सुरक्षा की प्राथमिकता को भी। क्योंकि अगला साइबर हमला सिर्फ एक कंपनी को नहीं, देश के डिजिटल विश्वास को हिला सकता है।

Conclusion

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