अंधेरे में कोई दरवाज़ा नहीं खटखटाता… लेकिन कुछ झटके ऐसे होते हैं, जो घर की दीवारों से नहीं, खेतों की मिट्टी से सुनाई देते हैं। भारत की ज़मीन में जब Nutrition की कमी होती है, तो किसान खामोश नहीं रहते—वे बेचैन होते हैं, असहाय महसूस करते हैं। और इस बार उनकी बेचैनी की वजह बारिश या बुआई नहीं, बल्कि चीन है। जी हां, वही चीन, जिसने पहले रेयर अर्थ मिनरल की सप्लाई पर ब्रेक लगाया और अब भारत को चुपचाप एक और झटका दे दिया है—स्पेशल Fertilizer की सप्लाई रोककर।
कोई आधिकारिक ऐलान नहीं, कोई वॉर्निंग नहीं—बस खामोशी से शिपमेंट को रोक दिया गया। सवाल ये है कि चीन आखिर भारत से इतना चिढ़ता क्यों है? और क्या भारत के पास कोई रास्ता बचा है? यह कहानी अब सिर्फ व्यापार की नहीं, Food security और राष्ट्रीय रणनीति की बन चुकी है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए खाद यानी Fertilizer सिर्फ एक केमिकल नहीं, एक जीवनरेखा है। किसान फलों, सब्ज़ियों, और लाभकारी फसलों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए खास किस्म के Fertilizers का इस्तेमाल करते हैं—जिन्हें हम स्पेशलिटी Fertilizer कहते हैं। और इनकी 80% Supply आज भी एक ही देश से होती है—चीन से।
यही चीन अब भारत के लिए Supply की नाड़ियों को दबा रहा है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि बीते दो महीनों से चीन ने भारत जाने वाले Fertilizer शिपमेंट की फैक्ट्री-स्तर पर जांच बंद कर दी है, जबकि बिना इस निरीक्षण के माल देश से बाहर नहीं भेजा जा सकता। जब एक देश किसी दूसरे देश की कृषि नींव पर दबाव बनाना शुरू करता है, तो यह सामान्य व्यापार नहीं, बल्कि एक ‘साइलेंट वॉर’ बन जाता है।
बड़ी बात ये है कि चीन यह Fertilizer अन्य देशों को अब भी भेज रहा है, लेकिन भारत के लिए उसने अनौपचारिक बैन जैसा माहौल बना दिया है। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, कई बड़े भारतीय Importers को दो महीने से चीन से स्पेशलिटी Fertilizer की खेप नहीं मिल रही है। यह संकट केवल Supply का नहीं, बल्कि रणनीतिक संतुलन का है—जिसमें एक देश कृषि पर निर्भर दूसरे देश पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। अगर भारत अपने Nutrition-based agricultural reforms के दौर में है, तो ऐसे में यह रुकावट केवल व्यापार को नहीं, बल्कि किसानों की Income और देश की Food security को भी प्रभावित करती है।
SFIA (Soluble Fertilizer Industry Association) के अध्यक्ष राजीब चक्रवर्ती बताते हैं कि, चीन पिछले कुछ वर्षों से भारत के खिलाफ धीरे-धीरे इस क्षेत्र में नियंत्रण बढ़ाता जा रहा है। पहले वो आंशिक रूप से Supply रोकता था, अब उसने लगभग पूरी तरह रुकावट डाल दी है। गौर करने वाली बात यह है कि यह सब कुछ बिना किसी सरकारी अधिसूचना या प्रतिबंध के हो रहा है—एक साइलेंट वारफेयर, जिसमें गोलियां नहीं, लेकिन व्यापारिक नालियां बंद हो रही हैं। इससे यह साफ होता है कि चीन भारत को रणनीतिक रूप से कमजोर करना चाहता है, ताकि व्यापारिक दबाव के ज़रिए भारत की नीतियों को प्रभावित किया जा सके।
अब समझना जरूरी है कि ये स्पेशलिटी Fertilizer क्या होते हैं और भारत को इनकी इतनी ज़रूरत क्यों है। इनमें वॉटर सॉल्यूबल फर्टिलाइज़र (WSF), लिक्विड वर्जन, माइक्रोन्यूट्रिएंट्स, बायोस्टिमुलेंट्स, ऑर्गेनिक वैरायटी और नैनो टाइप्स शामिल होते हैं। ये Fertilizer Conventional fertilizers से अधिक असरदार होते हैं क्योंकि ये फसल को Targeted nutrition प्रदान करते हैं, मिट्टी की गुणवत्ता को सुधारते हैं और पर्यावरणीय नुकसान को कम करते हैं। इनका उपयोग कम मात्रा में अधिक प्रभाव लाने के लिए होता है, जिससे किसानों को उत्पादन में बढ़ोतरी मिलती है और बाजार में गुणवत्ता वाले उत्पाद जाते हैं।
FAI (Fertilizer Association of India) के आंकड़े बताते हैं कि भारत हर साल जून से दिसंबर के बीच, 1.5 लाख से 1.6 लाख टन तक स्पेशलिटी Fertilizer का Import करता है, और इनमें से 80% केवल चीन से आता है। ऐसे में जब चीन अचानक शिपमेंट को रोक देता है, तो यह केवल व्यापारिक संकट नहीं, बल्कि Food security और कृषि उत्पादकता का सीधा हमला बन जाता है। यह Supply में खलल न केवल कृषि को प्रभावित करती है, बल्कि उससे जुड़े पूरे Value chain—food processing, export और किसानों की आमदनी—पर भी असर डालती है।
लेकिन संकट यहीं नहीं रुकता। experts का कहना है कि भारत के पास इन Fertilizers का घरेलू उत्पादन बहुत कम है, क्योंकि इनकी मांग पहले सीमित थी और उत्पादन की लागत अधिक थी। इससे स्थानीय निर्माण इकाइयां आर्थिक रूप से टिक नहीं पाईं। अब जब मांग तेज़ी से बढ़ रही है, तब तक चीन ने सप्लाई को रोककर भारत को अपने संसाधनों के लिए विवश कर दिया है। इसका असर छोटे किसानों पर सबसे पहले पड़ता है, जो सीमित संसाधनों के साथ बेहतर उत्पादन के लिए इन Fertilizers पर निर्भर रहते हैं।
FAI के अनुमानों के अनुसार, भारत का माइक्रोन्यूट्रिएंट Fertilizer बाजार 2029 तक 1 बिलियन dollar से पार जा सकता है, बायोस्टिमुलेंट मार्केट 734 मिलियन dollar तक पहुंचने की उम्मीद है और ऑर्गेनिक Fertilizer का क्षेत्र 2032 तक 1.13 बिलियन dollar का हो सकता है। ये आँकड़े बताते हैं कि भारत में इस क्षेत्र की संभावनाएं अपार हैं, लेकिन अगर कच्चा माल ही ना मिले, तो ये ग्रोथ अधूरी रह जाएगी। इसलिए भारत को चाहिए कि वह इस क्षेत्र में घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए एक दीर्घकालिक रणनीति बनाए और उसे ज़मीन पर उतारे।
अब सवाल यह है कि भारत क्या कर सकता है? क्या वह केवल चीन पर निर्भर रह सकता है? जवाब है—नहीं। भारत के पास विकल्प हैं, लेकिन उन पर तुरंत और सख्त निर्णय लेने की ज़रूरत है। पहला विकल्प है—Import का विविधीकरण। भारत जॉर्डन, यूरोप, इज़राइल, और दक्षिण कोरिया जैसे देशों से भी Fertilizer Import कर सकता है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती समय और मात्रा की है। क्योंकि सप्लाई चेन को फिर से खड़ा करने में समय लगता है और तब तक भारत की खेती रुक नहीं सकती। इसके लिए लॉजिस्टिक्स सुधार और नए व्यापार समझौते तत्काल प्रभाव से आवश्यक हो जाते हैं।
दूसरा विकल्प है—घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करना। दीपक Fertilizer, पारादीप, नागार्जुन Fertilizer जैसी भारतीय कंपनियाँ पहले से इस क्षेत्र में काम कर रही हैं, लेकिन उन्हें निवेश, नीति और तकनीकी सहयोग की ज़रूरत है। सरकार को चाहिए कि वो PLI जैसी योजनाएं इन कंपनियों को दे ताकि वे चीन की सप्लाई को भारत में ही दोहराने का आधार बन सकें। यदि यह काम योजना के अनुसार हो, तो भारत आने वाले पांच वर्षों में आत्मनिर्भर बन सकता है और वैश्विक सप्लायर के रूप में भी उभर सकता है।
तीसरा विकल्प है—नीति और कूटनीति। भारत को इस मुद्दे को WTO या द्विपक्षीय व्यापार वार्ताओं के ज़रिये उठाना चाहिए। अगर चीन बिना आधिकारिक प्रतिबंध लगाए भारत को परेशान कर रहा है, तो यह ट्रेड प्रैक्टिस के खिलाफ है और अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत चुनौती दी जा सकती है। इससे चीन पर नैतिक और वैश्विक दबाव बन सकता है, जिससे वह दोबारा इस तरह की एकतरफा रणनीति अपनाने से पहले सोचे।
लेकिन असली लड़ाई कूटनीति या उत्पादन की नहीं—सामर्थ्य की है। क्या भारत तैयार है एक ऐसे भविष्य के लिए जिसमें वह किसी दूसरे देश पर कृषि के लिए निर्भर न रहे? क्या हम उस सप्लाई चेन को भारत के भीतर खड़ा कर सकते हैं? और सबसे जरूरी—क्या हमारे किसान उस परिवर्तन के लिए तैयार हैं? यह आत्मनिरीक्षण केवल नीति निर्धारकों का नहीं, हर नागरिक का होना चाहिए।
Conclusion
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