आधी रात का सन्नाटा था… छत्तीसगढ़ के सरकारी महकमों में अचानक खलबली मच गई। फोन की घंटियाँ बजने लगीं, वॉट्सऐप पर अफसरों के ग्रुप एक्टिव हो गए, और फाइलों के ढेर में दबी एक सख्त चेतावनी गूंजने लगी—“अब Corruption नहीं चलेगा।” और सुबह होते-होते वो हो गया जो शायद आज़ाद भारत में बहुत कम बार हुआ है। एक ही दिन में एक पूरे विभाग—Excise Department के—22 अफसर सस्पेंड कर दिए गए। जी हां, 22 अधिकारी… एक झटके में… बिना किसी लीपापोती के। ये सिर्फ एक प्रशासनिक फैसला नहीं था, बल्कि एक साफ संदेश था—अब नहीं बचेगा कोई भी, चाहे कुर्सी कितनी भी बड़ी क्यों न हो। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
छत्तीसगढ़ की नई सरकार ने सत्ता में आने के कुछ ही महीनों के भीतर ऐसा कदम उठाया, जिससे पूरे देश के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में खामोशी सी छा गई। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की अगुवाई में राज्य सरकार ने यह सिद्ध कर दिया कि ‘जीरो टॉलरेंस’ कोई नारा नहीं, बल्कि अब ज़मीन पर उतर चुका सिस्टम है। और इस सिस्टम में अब ‘पद’ नहीं, ‘काम’ देखा जाएगा… ‘रुतबा’ नहीं, ‘ईमानदारी’ पर नंबर मिलेगा।
यह कार्रवाई जुड़ी है उस शराब घोटाले से, जिसने छत्तीसगढ़ की राजनीति और प्रशासन को झकझोर दिया था। बात हो रही है 3,200 करोड़ के उस बहुचर्चित शराब घोटाले की, जो 2019 से 2023 के बीच हुआ था—जब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी। EOW यानी Economic Offenses Investigation Branch की जांच में यह खुलासा हुआ कि, किस तरह अफसरों ने बिना वैध लाइसेंस और शुल्क के शराब बेचने की अनुमति दी, और सरकार को करोड़ों का नुकसान पहुंचाया। इतना ही नहीं, खुद इन अफसरों ने 80 से 88 करोड़ रुपये तक की अवैध कमाई कर ली—कमीशन के नाम पर।
अब तक इस मामले में कुल 29 अधिकारियों पर चार्जशीट दायर की जा चुकी है, जिनमें 7 रिटायर्ड अधिकारी भी शामिल हैं। लेकिन जो बात सबसे बड़ी है—वो यह कि मौजूदा मुख्यमंत्री ने यह ऐलान कर दिया है कि “चाहे कोई कितना भी वरिष्ठ क्यों न हो, अगर उसने जनता के विश्वास से गद्दारी की है, तो वो कानून की पकड़ से नहीं बच पाएगा।” और यही बात इस पूरी कहानी को सबसे अलग बनाती है—यह सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं, सोच का परिवर्तन है।
इन कार्रवाइयों से जो सबसे बड़ी बात उभरकर सामने आई है, वो ये है कि छत्तीसगढ़ में अब “क्लीन गवर्नेंस” सिर्फ भाषणों की शोभा नहीं, बल्कि एक सिस्टमेटिक रिफॉर्म की दिशा बन चुकी है। और इस बदलाव की नींव रखी गई है टेक्नोलॉजी से। आज छत्तीसगढ़ की सरकार ने अपने सारे प्रशासनिक कामकाज को डिजिटल बना दिया है। चाहे वह ई-ऑफिस हो, मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल हो, या फिर विभागीय मोबाइल ऐप्स—हर कदम पर पारदर्शिता को आधार बना लिया गया है।
जब कोई आम नागरिक अब शिकायत दर्ज कराता है, तो वह सिर्फ फॉर्म भरने तक सीमित नहीं रह जाता। वह जान सकता है कि उसकी शिकायत कहां तक पहुंची, किस अधिकारी के पास है, और कब तक उसका समाधान होगा। यानी अब प्रशासनिक व्यवस्था ‘फॉलो अप’ की चपेट में है, और हर अफसर को यह मालूम है कि जनता अब केवल सवाल नहीं, जवाब भी चाहती है।
अब बात करें निगरानी की। पहले जहां निरीक्षण केवल दस्तावेज़ों तक सीमित था, अब सरकार ने निगरानी प्रणाली को पूरी तरह डिजिटल कर दिया है। हर सरकारी योजना का जमीनी सत्यापन तकनीकी माध्यमों से हो रहा है। ड्रोन, मोबाइल ट्रैकिंग, GPS टैगिंग—हर गड़बड़ी अब सिर्फ पकड़ी ही नहीं जा रही, उसका डिजिटल रिकॉर्ड भी तैयार किया जा रहा है। इससे दो फायदे हो रहे हैं—पहला, अफसर अब जानते हैं कि उन्हें ‘देखा जा रहा है’। और दूसरा, जनता को भी ये भरोसा हो रहा है कि ‘सिस्टम’ अब सिर्फ नेताओं का हथियार नहीं, उनकी आवाज भी बन सकता है।
यहां सबसे दिलचस्प बात यह है कि सरकार की कार्रवाई सिर्फ Excise Department तक सीमित नहीं है। बलौदाबाज़ार, महासमुंद और राजनांदगांव जैसे जिलों में हाल ही में फ्लाइंग स्क्वॉड ने छापेमारी की है। नतीजा—कुछ सर्कल इनचार्ज सस्पेंड, छह वरिष्ठ अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस। यानी अब सरकार एक-एक कड़ी को पहचान रही है और उसे सुधारने के लिए समय पर एक्शन ले रही है।
इस बदले हुए प्रशासनिक दृष्टिकोण ने छत्तीसगढ़ की जनता को यह यकीन दिलाना शुरू कर दिया है कि सरकार अब ‘फाइलों में नहीं, फील्ड में’ काम कर रही है। आज वो दिन हैं जब गलती करने वाले अफसर रातभर चैन से नहीं सो सकते। क्योंकि अगली सुबह उन्हें सस्पेंशन लेटर मिल सकता है।
इन सबके बीच राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मच चुकी है। सत्तारूढ़ पार्टी इसे ‘Corruption पर सर्जिकल स्ट्राइक’ बता रही है, तो विपक्ष इसे ‘पूर्ववर्ती सरकार को निशाना बनाने’ की रणनीति कह रहा है। लेकिन जनता देख रही है—कि क्या सच में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी ने सत्ता में आकर सिर्फ बातें नहीं, काम किया है?
विश्लेषकों की राय बंटी हुई है। कुछ मानते हैं कि ये कदम साहसी और वक्त की जरूरत हैं। तो कुछ इसे ‘पॉलिटिकल ड्रामा’ कहते हैं। लेकिन एक आम नागरिक के लिए सबसे जरूरी बात यही है—क्या Corruption पर वाकई लगाम लग रही है? और इस सवाल का जवाब अब ‘हाँ’ की ओर बढ़ रहा है।
क्योंकि यह साफ दिख रहा है कि यह सख्ती सिर्फ एक बार की कार्रवाई नहीं, बल्कि एक संस्थागत सुधार की शुरुआत है। सरकार केवल जांच नहीं कर रही, बल्कि टेक्नोलॉजी, निगरानी, जवाबदेही और समयबद्ध क्रियान्वयन के ज़रिए सिस्टम को फिर से डिज़ाइन कर रही है। और यह डिज़ाइन ऐसा है, जो अब दूसरे राज्यों को भी प्रेरित कर रहा है।
छत्तीसगढ़ का यह मॉडल अब एक उदाहरण बन चुका है। बाकी राज्यों की सरकारों पर भी दबाव बन रहा है कि वे भी अपने सिस्टम को पारदर्शी बनाएं। सवाल उठ रहे हैं कि क्या उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य भी छत्तीसगढ़ की तरह अफसरों पर कार्रवाई करेंगे? क्या वहां भी टेक्नोलॉजी आधारित निगरानी प्रणाली लागू की जाएगी?
भ्रष्टाचार के खिलाफ यह लड़ाई केवल कानून से नहीं जीती जा सकती। इसे जीतने के लिए इच्छाशक्ति, सही नीति, और क्रियान्वयन की सख्ती जरूरी है। और छत्तीसगढ़ सरकार ने यही करके दिखाया है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने न सिर्फ अपने प्रशासन पर विश्वास जताया है, बल्कि जनता को भी भरोसा दिलाया है कि अब सरकार सिर्फ वादा नहीं करेगी—अभी, यहीं और पूरी ताकत से एक्शन लेगी।
अब सवाल है—क्या यह बदलाव स्थायी होगा? क्या सिस्टम एक बार फिर पुराने ढर्रे पर लौटेगा? या क्या यह ‘वास्तविक बदलाव’ की शुरुआत है? इतिहास गवाह है कि जब भी किसी सरकार ने सच्चे मन से बदलाव की कोशिश की है, जनता ने उसका साथ दिया है।
छत्तीसगढ़ की जनता अब सतर्क है, सजग है, और शायद उम्मीद से भरी हुई भी। क्योंकि जब सरकार खुद ईमानदारी के साथ काम करती है, तो जनता को भी आवाज़ उठाने का हौसला मिलता है। और यही लोकतंत्र की असली ताकत है।
आज जब एक गांव का किसान, एक शहर का व्यापारी, या एक छात्र यह देखता है कि अफसर सस्पेंड हो रहे हैं, तो वह यह जान पाता है कि भ्रष्टाचार अब ‘नॉर्मल’ नहीं रहा। और शायद यही है सबसे बड़ा बदलाव। यह कहानी किसी स्कैम की नहीं, एक सिस्टम के बदलने की है। एक ऐसी कहानी जो साबित करती है कि अगर इरादा साफ हो, तो सबसे गंदा महकमा भी सबसे पारदर्शी बन सकता है।
Conclusion
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