नमस्कार दोस्तों, क्या भारत वास्तव में चीन का विकल्प बनने के लिए तैयार हो गया है? क्या Apple और अन्य Global टेक कंपनियों का भारत की ओर झुकाव, चीन को इतना परेशान कर रहा है कि वह इसे रोकने के लिए नई साजिशें रच रहा है? भारत, जिसने इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में हाल के वर्षों में ऐतिहासिक वृद्धि दर्ज की है, अब एक बड़े Global खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है।
भारत सरकार द्वारा लॉन्च की गई प्रोडक्शन लिंक्ड इनिशिएटिव (PLI) स्कीम ने इस सेक्टर को जबरदस्त बढ़ावा दिया, और इसका सबसे बड़ा फायदा Apple को मिला। Apple, जिसने पहले अपने अधिकांश iPhone चीन में बनाए थे, अब भारत को एक मजबूत विकल्प के रूप में देख रहा है। 2024 में भारत ने 1 लाख करोड़ रुपये के iPhone एक्सपोर्ट का ऐतिहासिक आंकड़ा पार कर लिया है। यह उपलब्धि भारत के लिए गर्व की बात है, लेकिन यह चीन के लिए चिंता का विषय क्यों बना हुआ है।
चीन, जो दशकों से Global इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग का केंद्र रहा है, अब इस बदलाव से असहज महसूस कर रहा है। चीन जानता है कि अगर भारत मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो गया, तो उसकी Global पकड़ कमजोर हो सकती है। इसीलिए चीन ने अब भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को प्रभावित करने की रणनीति बनाई है। रिपोर्ट्स के अनुसार, चीन अब भारत को आवश्यक हाई-टेक मशीनरी की Supply रोकने की कोशिश कर रहा है।
भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को आगे बढ़ाने के लिए हाई-टेक Equipment की जरूरत होती है, जो फिलहाल भारत में बड़े पैमाने पर उपलब्ध नहीं हैं। यही वजह है कि भारत अभी भी कई मामलों में चीन पर निर्भर है। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि चीन अब भारत को ऐसी मशीनें और Equipment देने में आनाकानी कर रहा है, जो स्मार्टफोन, लैपटॉप, इलेक्ट्रिक वाहनों, और Solar panels के Production में इस्तेमाल होती हैं। यह भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है क्योंकि अगर इन Equipment की सप्लाई में देरी होती है, तो भारत में Production की गति धीमी पड़ सकती है।
चीन की इस चाल का सबसे ज्यादा असर उन कंपनियों पर पड़ सकता है, जो भारत में मैन्युफैक्चरिंग का विस्तार कर रही हैं। experts का कहना है कि चीन का यह कदम भारत में Apple के Supplier, Foxconn, ईवी निर्माता BYD और Lenovo जैसी कंपनियों की मैन्युफैक्चरिंग योजनाओं को रोकने के लिए उठाया गया है। इन कंपनियों ने हाल ही में भारत में बड़े स्तर पर Investment किया था, और अगर उन्हें सही समय पर Equipment और तकनीकी सहयोग नहीं मिला, तो उनके प्रोजेक्ट्स में देरी हो सकती है।
Foxconn, जो Apple के iPhone बनाती है, इस स्थिति से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही है। Foxconn एक ताइवानी कंपनी है, जो पहले पूरी तरह से चीन पर निर्भर थी, लेकिन कुछ साल पहले उसने अपने ऑपरेशंस को भारत की ओर शिफ्ट करना शुरू किया। कंपनी ने तमिलनाडु और कर्नाटक में अपने दो बड़े प्लांट स्थापित किए, जहां हजारों कर्मचारी काम कर रहे हैं। लेकिन चीन इस बदलाव को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है।
“Rest of World” की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि Foxconn के कई चीनी कर्मचारियों को भारत आने से रोक दिया गया है। जिन इंजीनियरों और टेक्निकल एक्सपर्ट्स को भारत आकर Production प्रक्रिया को स्थापित करने में मदद करनी थी, उन्हें अचानक यात्रा रद्द करने के निर्देश दिए गए। चीन ने यहां तक कि उन कर्मचारियों को भी भारत जाने से रोक दिया, जिनके पास पहले से वीजा और फ्लाइट टिकट थे।
यह सिर्फ यात्रा रोकने तक सीमित नहीं है। जो चीनी कर्मचारी पहले से भारत में काम कर रहे थे, उन्हें भी वापस बुलाने के लिए कहा गया। यह रणनीति साफ दर्शाती है कि चीन भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को मजबूत नहीं होने देना चाहता। चीन जानता है कि अगर भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य high तकनीक वाले प्रोडक्ट्स का Production तेज हुआ, तो उसकी खुद की इंडस्ट्री पर असर पड़ेगा।
भारत में मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए, प्रोडक्शन लिंक्ड इनिशिएटिव (PLI) स्कीम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। Apple जैसी कंपनियों को इस स्कीम के तहत कई फायदे दिए गए, जिससे उनका भारत में Investment बढ़ा। नतीजा यह हुआ कि Apple ने 2024 में 12.8 अरब डॉलर के iPhone एक्सपोर्ट किए। यह आंकड़ा चीन को परेशान कर रहा है क्योंकि पहले यह पूरा Production चीन में होता था।
क्या भारत इस चुनौती का सामना कर पाएगा?
भारत सरकार इस स्थिति से पूरी तरह अवगत है और इस समस्या से निपटने के लिए नए उपाय तलाश रही है। PLI स्कीम को और मजबूत किया जा रहा है, ताकि घरेलू स्तर पर मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा दिया जा सके। सरकार अब स्वदेशी तकनीक और इनोवेशन को बढ़ावा देने की दिशा में भी काम कर रही है, ताकि चीन पर निर्भरता कम हो।
Foxconn और अन्य कंपनियां भी इस समस्या से निपटने के लिए नए रास्ते तलाश रही हैं। स्थानीय कंपनियों को टेक्नोलॉजी अपग्रेड करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिससे भारत में ही हाई-टेक Equipment का Production हो सके। लेकिन यह एक लंबी प्रक्रिया है, और चीन तब तक भारत पर दबाव बनाता रहेगा।
भारत के लिए यह समय बेहद महत्वपूर्ण है। अगर चीन की यह रणनीति सफल होती है, तो भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स और टेक्नोलॉजी मैन्युफैक्चरिंग की रफ्तार धीमी हो सकती है। लेकिन अगर भारत इस चुनौती से पार पा लेता है, तो वह दुनिया के सबसे बड़े मैन्युफैक्चरिंग हब में से एक बन सकता है।
अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव के कारण Apple जैसी कंपनियां अब “China plus One” नीति को अपना रही हैं। इस रणनीति के तहत कंपनियां चीन पर अपनी निर्भरता कम करके अन्य देशों में Production बढ़ा रही हैं। भारत इसका सबसे बड़ा लाभार्थी हो सकता है, लेकिन यह तभी संभव होगा जब भारत अपनी मैन्युफैक्चरिंग क्षमता और तकनीकी क्षमताओं को तेजी से विकसित करे।
अब सवाल यह है कि क्या भारत इस चुनौती को अवसर में बदल सकता है?
अगर भारत अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को मजबूत करना चाहता है, तो उसे कई महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे। सबसे पहले, भारत को अपने हाई-टेक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में अधिक Investment करना होगा। चीन पर निर्भरता खत्म करने के लिए स्थानीय Production बढ़ाना होगा और नई तकनीकों को अपनाना होगा।
भारत को Foxconn, Apple, और अन्य कंपनियों को सपोर्ट करने के लिए एक स्पष्ट और मजबूत पॉलिसी बनानी होगी, जिससे वे बिना किसी बाधा के अपने प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ा सकें। इसके अलावा, भारत को सेमीकंडक्टर्स और अन्य हाई-टेक Equipment के निर्माण में आत्मनिर्भर बनना होगा।
इसके अलावा, चीन का यह कदम साफ दर्शाता है कि वह भारत को एक मजबूत मैन्युफैक्चरिंग हब बनने से रोकना चाहता है। लेकिन भारत को इस चुनौती को अवसर में बदलना होगा। अगर भारत खुद को टेक्नोलॉजी और इनोवेशन में मजबूत कर लेता है, तो चीन की यह साजिश ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाएगी।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत इस चुनौती का जवाब कैसे देता है। क्या भारत इस संकट से निपटने के लिए नई रणनीति अपनाएगा? क्या Foxconn और Apple जैसी कंपनियां भारत में अपना Production बढ़ाने में सफल होंगी? क्या चीन भारत की इस ग्रोथ स्टोरी को रोकने में सफल होगा, या भारत अपनी नई रणनीतियों से चीन को मात देगा? इन सभी सवालों के जवाब आने वाले वर्षों में भारत की नीतियों और Global व्यापार रणनीति पर निर्भर करेंगे।
लेकिन एक बात तो तय है—यह सिर्फ एक व्यापारिक लड़ाई नहीं, बल्कि दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच एक आर्थिक युद्ध है, जिसमें भारत को अपनी स्थिति मजबूत करनी होगी।
Conclusion
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