Apple की भारत में धमाकेदार ग्रोथ: कैसे बना इलेक्ट्रॉनिक्स हब और चीन के लिए सबसे बड़ा खतरा? 2025

नमस्कार दोस्तों, अगर आप कुछ साल पहले की बात करें, तो भारत के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग एक सपने जैसा था। भारत उन देशों में गिना जाता था, जो चीन, वियतनाम और ताइवान जैसे देशों से इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स और Equipment का भारी मात्रा में Import करता था। लेकिन अब कहानी पूरी तरह बदल चुकी है।

भारत अब सिर्फ एक Importer नहीं, बल्कि एक बड़े Exporter के रूप में उभर रहा है। और यह बदलाव इतना बड़ा है कि यह चीन की पकड़ को कमजोर कर सकता है, खासकर Apple जैसे दिग्गज ब्रांड के लिए। एक समय था जब iPhone, MacBook, AirPods, Apple Watch और Apple Pencil जैसी हाई-टेक डिवाइसेज को बनाने के लिए लगभग सारे कंपोनेंट्स चीन और वियतनाम में तैयार होते थे।

लेकिन अब भारत इन कंपोनेंट्स को चीन और वियतनाम को ही भेजने लगा है, जो इस उद्योग में भारत की बढ़ती ताकत का संकेत है। यह ट्रांसफॉर्मेशन भारत के लिए ‘मेक इन इंडिया’ पहल का एक ऐतिहासिक परिणाम है और यह सिर्फ शुरुआत है। आने वाले समय में भारत Apple और अन्य टेक कंपनियों के लिए Global इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की ओर तेजी से बढ़ रहा है।

इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत की यह छलांग सिर्फ किसी एक घटना का नतीजा नहीं, बल्कि पिछले कुछ वर्षों की सुनियोजित रणनीति और Investment का परिणाम है। भारत बीते दो दशकों से चीन और वियतनाम जैसे देशों से कंपोनेंट और सब-असेंबली का Import करता रहा है। लेकिन अब भारत खुद इन कंपोनेंट्स को बना रहा है और दूसरे देशों को एक्सपोर्ट कर रहा है। यह बदलाव न सिर्फ भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद है, बल्कि यह चीन के लिए एक बड़ी चुनौती भी है।

Apple को चीन और वियतनाम पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिए एक नए मैन्युफैक्चरिंग हब की तलाश थी, और भारत ने इस अवसर को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब भारत, Apple के लिए एक बड़े विकल्प के रूप में उभर रहा है। पहले भारत में केवल iPhone असेंबल किए जाते थे, लेकिन अब स्थिति बदल रही है। भारत में MacBook, AirPods और Apple Watch के कंपोनेंट भी बनने लगे हैं।

भारत में Apple के लिए इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट बनाने वाली प्रमुख कंपनियों में मदरसन ग्रुप, Jabil, एक्वस और टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी कंपनियां शामिल हैं। Jabil एक अमेरिकी कंपनी है, जिसका प्लांट भारत के पुणे में स्थित है। इसी प्लांट में AirPods के लिए मैकेनिक्स तैयार किए जा रहे हैं। इसी तरह, कर्नाटक में स्थित एक्वस कंपनी MacBook के लिए मैकेनिक्स तैयार कर रही है। मदरसन ग्रुप ने हाल ही में Apple के सप्लाई चेन नेटवर्क में एंट्री की है और iPhone एनक्लोजर बनाने का काम कर रहा है।

यह बदलाव Apple की “चीन-प्लस-वन” रणनीति का हिस्सा है। इसका मतलब यह है कि Apple अब अपनी मैन्युफैक्चरिंग केवल चीन में करने की बजाय भारत जैसे दूसरे देशों में भी Production बढ़ा रहा है, ताकि उसकी सप्लाई चेन ज्यादा विविधतापूर्ण और मजबूत हो। इस रणनीति का मुख्य उद्देश्य चीन पर निर्भरता कम करना और Risk को बांटना है।

Apple ने तीन साल पहले टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स को अपना पहला लोकल सप्लायर नियुक्त किया था। यह भारतीय कंपनियों के लिए एक बड़ा अवसर था। इसके बाद से Apple ने भारत में अपनी उपस्थिति को और मजबूत करने की दिशा में काम किया। पहले भारत में केवल iPhone बनाए जाते थे, लेकिन अब जल्द ही Apple अपने AirPods और MacBook जैसे प्रोडक्ट्स का Production भी भारत में शुरू कर सकता है।

Apple के इस बदलाव से भारत को न केवल आर्थिक फायदा हो रहा है, बल्कि इससे हजारों नौकरियां भी पैदा हो रही हैं। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में नई नौकरियों का सृजन हो रहा है, जिससे भारत के युवाओं को रोजगार के बेहतरीन अवसर मिल रहे हैं।

times of India की रिपोर्ट के अनुसार, काउंटरपॉइंट रिसर्च के वाइस प्रेसिडेंट नील शाह ने बताया कि भारत अब, Apple के कंपोनेंट्स बनाकर उन्हें चीन और वियतनाम भेज रहा है, जहां उनकी फाइनल असेंबली होती है। इसका मतलब यह हुआ कि भारत अब सिर्फ iPhone को असेंबल करने तक सीमित नहीं है, बल्कि वह Apple के Global सप्लाई चेन का एक अहम हिस्सा बन चुका है।

यह बदलाव भारत के मैन्युफैक्चरिंग ईकोसिस्टम के विस्तार का संकेत देता है। अभी यह एक्सपोर्ट केवल एनक्लोजर और कुछ चुनिंदा कंपोनेंट्स तक सीमित है, लेकिन आने वाले वर्षों में भारत से एक्सपोर्ट होने वाले Apple कंपोनेंट्स की लिस्ट और भी लंबी हो सकती है। इस सफलता के पीछे भारत सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ और ‘प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना’ का बड़ा योगदान रहा है। सरकार ने भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए कई आकर्षक योजनाएं शुरू कीं, जिससे Global कंपनियों को भारत में Investment करने के लिए प्रोत्साहन मिला। इससे भारत धीरे-धीरे एक मजबूत इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग हब में बदल रहा है।

भारत का यह बदलाव चीन के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है। चीन अभी भी इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग में सबसे आगे है, लेकिन भारत जिस तेजी से इस क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है, वह चीन की मोनोपॉली को कमजोर कर सकता है।

experts का मानना है कि अगर भारत इसी गति से अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को मजबूत करता रहा, तो 2030 तक भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट एक्सपोर्ट 35 से 40 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। यह चीन के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि इससे उसकी सप्लाई चेन पर भारत का प्रभाव बढ़ेगा और Global बाजार में भारत की Competition मजबूत होगी।

भारत की टेक्नोलॉजी और मैन्युफैक्चरिंग क्षमता को लेकर Apple और अन्य अंतरराष्ट्रीय कंपनियों की रुचि बढ़ रही है। आने वाले वर्षों में, यह संभावित है कि Apple अपने कई और प्रोडक्ट्स की असेंबली और मैन्युफैक्चरिंग भारत में ही शिफ्ट कर दे। इससे यह साफ हो जाता है कि भारत अब सिर्फ एक उपभोक्ता बाजार नहीं है, बल्कि एक ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की राह पर है। अगर Apple और अन्य कंपनियां इसी तरह भारत में अपने ऑपरेशन्स का विस्तार करती रहीं, तो भारत Global टेक्नोलॉजी मैन्युफैक्चरिंग के केंद्र के रूप में उभर सकता है।

यह बदलाव भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए क्रांतिकारी साबित हो सकता है। इससे न केवल रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, बल्कि यह देश को आत्मनिर्भर बनने की दिशा में भी आगे ले जाएगा। भारत ने Importer से Exporter बनने का जो सफर तय किया है, वह भारत की औद्योगिक और तकनीकी क्षमता को दुनिया के सामने साबित कर रहा है।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले वर्षों में भारत इस क्षेत्र में कितना आगे बढ़ता है और क्या वह चीन की जगह ले सकता है? एक बात तो साफ है—भारत की शाइनिंग Apple स्टोरी अभी सिर्फ शुरुआत है, आने वाले समय में यह और भी बड़ी सफलता की कहानी लिख सकती है।

Conclusion

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