AirPods बना इंडिया का बड़ा मौका! चीन की चाल से हिली सप्लाई, अब मैन्युफैक्चरिंग की कमान भारत के हाथ में? 2025

कल्पना कीजिए… तेलंगाना के कोंगरा कलां में एक हाई-टेक फैक्ट्री 24 घंटे चल रही है। अंदर हजारों मशीनें घूम रही हैं, इंजीनियर और टेक्निशियन पूरी ताकत से दुनिया के सबसे पॉपुलर वायरलेस ईयरबड्स – Apple के AirPods – बना रहे हैं। लेकिन एक सुबह कुछ बदल जाता है। मशीनें रुकती हैं। एक सेक्शन में अचानक सन्नाटा छा जाता है।

और फिर एक शब्द गूंजता है – “सप्लाई ब्लॉक हो गई है।” क्या कोई टेक्निकल दिक्कत आई है? नहीं… ये मामला सिर्फ स्क्रू या वायर की कमी का नहीं है। असली वजह है – चीन। वो चीन जो भारत में बने हर मजबूत कदम को रोकना चाहता है। और इस बार उसने हमला किया है एक अनदेखे, लेकिन बेहद कीमती चीज़ पर—Rare Earth Elements पर। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

आप सोच रहे होंगे, Rare Earth Elements यानी वो क्या बला है? और इसका AirPods से क्या रिश्ता? दरअसल, आपके वायरलेस ईयरबड्स, जो इतना बेहतरीन साउंड देते हैं, उनमें कुछ बेहद खास धातुएं होती हैं—जैसे नियोडिमियम और डिस्प्रोसियम। ये कोई आम मेटल नहीं हैं। इनसे बनते हैं वो पावरफुल मैग्नेट्स जो AirPods में साउंड की जान डालते हैं। लेकिन इनका सबसे बड़ा सप्लायर है—चीन। और चीन ने इसी सप्लाई को रोक दिया। वजह? अमेरिका और चीन के बीच चल रहा टैरिफ वॉर। लेकिन नुकसान किसे हुआ? भारत को। और इससे सबसे ज्यादा झटका लगा फॉक्सकॉन की उस यूनिट को जो तेलंगाना में Apple के AirPods बना रही थी।

फॉक्सकॉन ने इस यूनिट को अप्रैल 2023 में चालू किया था। यह यूनिट चीन के बाहर AirPods उत्पादन की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा थी। Apple ने सोचा था—अगर चीन में संकट हो, तो भारत उनका अगला मेन्युफैक्चरिंग हब बन सकता है। लेकिन शायद चीन को ये बात हज़म नहीं हुई। उसने अपनी सबसे ताकतवर चाल चली—Rare Earth Elements का एक्सपोर्ट बंद कर दिया। और यहीं से शुरू हुआ भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता के रास्ते में एक नया मोड़।

असल में यह कहानी सिर्फ उत्पादन बाधित होने की नहीं है—यह कहानी है भारत और चीन के बीच तकनीकी वर्चस्व की जंग की। जब चीन ने Rare Earth Elements पर बैन लगाया, तो सबसे पहले असर पड़ा AirPods की मैन्युफैक्चरिंग पर। अचानक ही उस प्लांट में ज़रूरी एलिमेंट्स की कमी हो गई, जिससे चुंबक नहीं बन पाए, और नतीजा—प्रोडक्शन स्लो हो गया। फॉक्सकॉन ने इसे स्वीकार भी किया, लेकिन साथ ही कहा कि अब स्थिति सुधर रही है। कंपनी के मुताबिक, सप्लाई धीरे-धीरे दोबारा बहाल हो रही है, और उत्पादन रफ्तार पकड़ रहा है।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। चीन की ये चाल सिर्फ AirPods तक सीमित नहीं है। Rare Earth Elements का इस्तेमाल सिर्फ ईयरबड्स में ही नहीं, बल्कि मोबाइल, लैपटॉप, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स, और यहां तक कि रक्षा उपकरणों में भी होता है। चीन दुनिया का सबसे बड़ा Rare Earth Supplier है। और जब वह चाहे, तब दुनिया की टेक्नोलॉजी सप्लाई चेन को रोक सकता है। यानी एक तरह से उसने पूरी दुनिया को अपनी मर्जी का बंधक बना रखा है। और जब भारत जैसे देश आत्मनिर्भर बनने की कोशिश करते हैं, तो वो इन तत्वों की Supply रोक कर दबाव बनाता है।

भारत में Foxconn और Tata Electronics, दोनों ही Apple के अहम सप्लायर हैं। लेकिन Foxconn की तेलंगाना यूनिट को जिस तरह से चीन ने झटका देने की कोशिश की, वो कोई संयोग नहीं था। अप्रैल की शुरुआत में जब चीन ने Rare Earth Export पर बैन लगाया, तो उसमें खासतौर पर सात कैटेगरी की वस्तुएं शामिल थीं—समारियम, गैडोलिनियम, टेरबियम, डिस्प्रोसियम, ल्यूटियम, स्कैंडियम और यिट्रियम। इनमें से कई Apple के प्रोडक्ट्स के लिए ज़रूरी हैं। खासकर डिस्प्रोसियम, जो मैग्नेट की मजबूती के लिए बेहद जरूरी है।

इसी बैन के बाद Foxconn ने अपनी चिंता तेलंगाना सरकार को बताई। फिर सरकार ने यह मामला केंद्र सरकार के डीपीआईआईटी विभाग तक पहुंचाया। यानी अब यह सिर्फ एक सप्लाई चेन का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय नीति का सवाल बन चुका था। केंद्र सरकार को अब यह तय करना था कि चीन की इस चाल का जवाब कैसे दिया जाए। और भारत की रणनीति साफ थी—जैसे-जैसे चीन बैकफुट पर जाएगा, भारत अपनी घरेलू माइनिंग और सप्लाई चेन पर ध्यान केंद्रित करेगा।

इसके साथ ही आपको बता दें कि ये पहली बार नहीं है जब चीन ने ऐसा किया हो। कुछ समय पहले उसने भारत में आईफोन के प्रोडक्शन में लगे 300 चीनी इंजीनियरों को अचानक वापस बुला लिया था। यह कदम भी भारत के मैन्युफैक्चरिंग सपनों को झटका देने के इरादे से उठाया गया था। लेकिन भारत ने तब भी हार नहीं मानी। iPhone का प्रोडक्शन जारी रहा, और आज भारत Apple का एक प्रमुख निर्माण केंद्र बन चुका है। इससे चीन की बेचैनी और बढ़ गई है।

चीन की रणनीति साफ है—वो नहीं चाहता कि भारत उसका विकल्प बने। क्योंकि अगर Apple जैसी कंपनी चीन को छोड़कर भारत आती है, तो यह न सिर्फ आर्थिक नुकसान है, बल्कि उसकी वैश्विक साख पर भी चोट है। यही कारण है कि वह कभी Rare Earth Export रोकता है, तो कभी इंजीनियर बुला लेता है, तो कभी foreign investors को डराने की कोशिश करता है। लेकिन भारत अब वह पुराना भारत नहीं रहा, जो इन चालों से डर जाए।

फॉक्सकॉन के एक सीनियर अधिकारी के अनुसार, “थोड़ी मंदी ज़रूर आई थी, लेकिन अब चीजें सुधर रही हैं। Rare Earth Elements की सप्लाई चेन लंबी ज़रूर है, लेकिन कंपनी हालात को संभालने में सक्षम है।” रिपोर्ट्स बताती हैं कि अगर सब कुछ ठीक रहा, तो 45 से 50 दिनों में डिस्प्रोसियम की नई खेप भारत पहुंच जाएगी। यानी आने वाले समय में उत्पादन दोबारा फुल स्पीड पर आ जाएगा।

लेकिन इस पूरी घटना ने भारत को एक महत्वपूर्ण सबक दे दिया है—अगर आत्मनिर्भर बनना है, तो Rare Earth Elements जैसे रणनीतिक संसाधनों की खुद Supply करनी होगी। भारत के पास भी Rare Earth Minerals हैं, लेकिन अभी तक उनका Mining और रिफाइनिंग उस स्तर पर नहीं पहुंचा है। अब सरकार को इस दिशा में तेजी से कदम उठाने की ज़रूरत है।

यह मामला सिर्फ टेक्नोलॉजी या व्यापार का नहीं, बल्कि रणनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा का भी है। अगर चीन एक बटन दबाकर भारत की फैक्ट्री बंद कर सकता है, तो यह हमारी सप्लाई चेन की कमजोरी दिखाता है। और यही वो जगह है, जहां सुधार की सबसे ज्यादा ज़रूरत है।

इस घटना के बाद केंद्र सरकार और रक्षा मंत्रालय ने Rare Earth Element की घरेलू सप्लाई बढ़ाने के लिए नए प्रस्तावों पर विचार शुरू कर दिया है। उद्योग जगत की राय भी यही है कि भारत को अब वैकल्पिक सप्लाई चेन, ऑस्ट्रेलिया जैसे साझेदार और घरेलू खनिज संसाधनों पर फोकस करना चाहिए। क्योंकि जब देश की तकनीकी आत्मनिर्भरता दांव पर हो, तो हर सेकंड की कीमत होती है।

आज भारत एक ऐसे मोड़ पर है, जहां वो चीन की चालों का शिकार भी है और चुनौती भी। लेकिन हर बार की तरह, इस बार भी भारत ने हार नहीं मानी। फॉक्सकॉन की यूनिट फिर से चल रही है। प्रोडक्शन लाइन दोबारा सक्रिय हो चुकी है। और Rare Earth Elements की नई खेप रास्ते में है। लेकिन साथ ही देश की आंखें भी खुल गई हैं। अब यह सिर्फ एक बार की कहानी नहीं, बल्कि आने वाले समय की रणनीति बन चुकी है।

अगर हमें भविष्य में ऐसे झटकों से बचना है, तो हमें अपने भीतर ताकत पैदा करनी होगी। माइनिंग से लेकर मैन्युफैक्चरिंग तक, हमें आत्मनिर्भर बनना होगा। और सबसे बड़ी बात—हमें चीन जैसी चालबाज़ियों का मुकाबला नीतियों से नहीं, बल्कि दूरदर्शिता और तैयारी से करना होगा।

Conclusion

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