नमस्कार दोस्तों, क्या भारत और चीन के व्यापारिक संबंधों में बड़ा बदलाव होने वाला है? क्या भारत चीनी कंपनियों पर लगाए गए प्रतिबंध हटाने का मन बना रहा है? या फिर यह सिर्फ अटकलें हैं, जो जल्द ही शांत हो जाएंगी? हाल ही में भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने एक बयान दिया, जिसने इस बहस को और तेज कर दिया है।
नागेश्वरन ने कहा कि भारत और चीन के बीच आर्थिक रिश्तों में कोई भी बदलाव लाने से पहले, दोनों देशों को अपनी आपसी निर्भरता और आर्थिक हितों को समझना होगा। उन्होंने इसे एक ऐसी प्रक्रिया बताया, “जिसमें दोनों पक्ष पत्थरों को छूकर और पकड़कर नदी पार कर रहे हैं।” उनके इस बयान ने एक नया सवाल खड़ा कर दिया है – क्या india china पर लगे Investment प्रतिबंधों को धीरे-धीरे हटाने की कोशिश कर रहा है, या फिर यह संकेत है कि भारत अपने आत्मनिर्भरता अभियान के तहत चीन से दूरी बनाए रखेगा?
भारत ने चीन पर प्रतिबंध क्यों लगाए थे, और इसके पीछे क्या कारण थे?
भारत और चीन के बीच 2020 तक व्यापारिक संबंध काफी मजबूत थे। लेकिन फिर गलवान घाटी में हुई सैन्य झड़प ने सब कुछ बदल दिया। उस संघर्ष में भारत के कई सैनिक शहीद हुए थे और दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया था। इस घटना के बाद भारत ने कई कड़े फैसले लिए, जिनमें चीनी कंपनियों पर प्रतिबंध और उनके Investment को सीमित करना शामिल था।
भारत सरकार ने ‘National Security’ का हवाला देते हुए चीन के Investors पर सख्त नियम लागू किए। इसके तहत, अब कोई भी चीनी कंपनी को भारत में Investment करने से पहले सरकार की अनुमति लेनी होगी। इस फैसले का असर भारतीय स्टार्टअप्स और टेक कंपनियों पर पड़ा, क्योंकि चीन पहले भारत के डिजिटल और टेक सेक्टर में बड़े पैमाने पर Investment कर रहा था।
इसके अलावा, भारत ने PUBG, TikTok, और UC Browser जैसे 250 से अधिक चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया। इन फैसलों ने भारत में चीन के प्रभाव को काफी हद तक सीमित कर दिया, लेकिन क्या अब भारत अपने रुख में बदलाव कर सकता है?
भारत और चीन के बीच व्यापार घाटा कितना बड़ा है, और इसके आर्थिक प्रभाव क्या हैं?
हालांकि भारत ने चीन के खिलाफ कड़े फैसले लिए, लेकिन व्यापार के मामले में भारत की चीन पर निर्भरता अभी भी बनी हुई है। 2023 में, भारत और चीन के बीच व्यापार 118 अरब डॉलर तक पहुंच गया। लेकिन यहां चिंता की बात यह है कि इसमें भारत का व्यापार घाटा 93 से 95 अरब डॉलर के बीच है।
india china से मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, केमिकल्स और फार्मास्यूटिकल्स Import करता है, जबकि india china को लौह अयस्क, कॉटन और कुछ अन्य कच्चे माल का Export करता है। यानी भारत अभी भी चीन से ज्यादा Import करता है और कम Export करता है, जिससे व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है। यही कारण है कि भारत सरकार ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी नीतियों को बढ़ावा दे रही है, ताकि चीन पर निर्भरता कम हो और घरेलू Production को बढ़ाया जा सके। लेकिन क्या भारत इतनी जल्दी इस लक्ष्य को हासिल कर पाएगा?
क्या india china के बिना भी आगे बढ़ सकता है?
भारत ने आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। सरकार ने चीन के कई उद्योगों पर निर्भरता कम करने के लिए Production Based Incentive (PLI) योजना शुरू की, जिससे इलेक्ट्रॉनिक्स और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में घरेलू Production को बढ़ावा दिया जा सके।
इसके बावजूद, भारत अभी भी कई क्षेत्रों में चीन पर निर्भर है। स्मार्टफोन, लैपटॉप, मेडिकल इक्विपमेंट और सोलर पैनल जैसे Products के लिए india china से बड़ी मात्रा में कच्चा माल और पार्ट्स Import करता है।
सरकार ने स्थानीय Production को बढ़ावा देने के लिए कई कंपनियों को Investment करने के लिए आमंत्रित किया है, लेकिन अभी भी india china की तरह बड़े पैमाने पर मैन्युफैक्चरिंग सेटअप खड़ा नहीं कर पाया है। यही वजह है कि चीन के साथ व्यापार पूरी तरह से बंद करना भारत के लिए आसान नहीं होगा।
चीन पर लगे प्रतिबंध जल्द हट सकते हैं?
मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन के बयान को अगर ध्यान से समझा जाए, तो यह साफ है कि भारत जल्दबाजी में चीन से व्यापार संबंध सुधारने के मूड में नहीं है। उन्होंने कहा कि “यह एक लंबी प्रक्रिया है, जिसमें दोनों देशों को अपनी निर्भरता को पहचानना होगा।”
इसका मतलब यह है कि भारत चीनी Investment पर पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं हटाएगा, लेकिन कुछ क्षेत्रों में आंशिक राहत दी जा सकती है। उदाहरण के लिए, अगर कोई चीनी कंपनी भारत में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाना चाहती है, जिससे भारत में रोजगार बढ़े, तो उसे अनुमति दी जा सकती है। हालांकि, National Security और रणनीतिक उद्योगों में चीन को अभी भी Investment की अनुमति नहीं मिलेगी।
इसके अलावा अगर भारत, चीन पर से कुछ प्रतिबंध हटाने का फैसला करता है, तो इसका सीधा असर भारतीय कंपनियों और स्टार्टअप्स पर पड़ेगा। भारत के कई स्टार्टअप्स को पहले चीन से Investment मिलता था, लेकिन प्रतिबंधों के बाद उन्हें फंडिंग में दिक्कत आने लगी। अगर Investment पर आंशिक राहत दी जाती है, तो भारतीय स्टार्टअप्स को बड़ा फायदा हो सकता है। दूसरी ओर, अगर चीनी कंपनियों को फिर से भारतीय बाजार में प्रवेश मिलता है, तो स्मार्टफोन, लैपटॉप और अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स Products की कीमतें सस्ती हो सकती हैं।
हालांकि, इसका नकारात्मक प्रभाव भी हो सकता है। अगर चीन को भारतीय बाजार में दोबारा प्रवेश मिलता है, तो भारतीय कंपनियों को सस्ते चीनी प्रोडक्ट्स से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा। यह संभव है कि कुछ भारतीय कंपनियों को अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़े।
चीन पर प्रतिबंध रखना सही फैसला है?
यह बहस का विषय है कि भारत को चीन पर लगे प्रतिबंध हटाने चाहिए या नहीं। इसका फायदा भी है और नुकसान भी। अगर प्रतिबंध हटाए जाते हैं, तो भारत को सस्ते उत्पाद मिल सकते हैं और कंपनियों को फंडिंग का फायदा होगा। टेक्नोलॉजी सेक्टर को ग्रोथ में मदद मिलेगी और भारत के स्टार्टअप्स को नए Investment के मौके मिलेंगे। लेकिन दूसरी तरफ, चीनी कंपनियां भारतीय कंपनियों को पछाड़ सकती हैं। National Security को खतरा हो सकता है और व्यापार घाटा और बढ़ सकता है।
इसलिए, भारत को बिना किसी जल्दबाजी के रणनीतिक फैसले लेने होंगे। अगर सरकार चीन के साथ व्यापारिक संबंधों में ढील देती है, तो उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि इससे भारतीय कंपनियों को नुकसान न हो और National Security को कोई खतरा न पहुंचे। सरकार को चाहिए कि घरेलू Production को और बढ़ाए, ज्यादा से ज्यादा विदेशी कंपनियों को भारत में Production के लिए आकर्षित करे और चीन पर निर्भरता कम करने की दिशा में आगे बढ़े।
Conclusion
तो दोस्तों, फिलहाल india china पर लगे प्रतिबंध हटाने के मूड में नहीं है। हालांकि, यह संभव है कि आने वाले समय में कुछ क्षेत्रों में चीन को राहत दी जाए। लेकिन अभी भारत आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है और सरकार यही चाहती है कि भारत का व्यापार घाटा कम हो और देश की मैन्युफैक्चरिंग क्षमता मजबूत हो।
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