Doomscrolling से आएगा पैसा! अब स्क्रॉलिंग बनेगी नई जॉब और कमाई का जरिया। 2025

ज़रा एक पल रुकिए और सोचिए… रात का सन्नाटा है। घड़ी की सुइयाँ दो बजे का इशारा कर रही हैं। आप अपने कमरे की बत्ती बुझाकर बिस्तर पर लेटे हैं, लेकिन नींद का नामो-निशान नहीं। हाथ में मोबाइल है और आप उंगलियों से स्क्रीन पर बार-बार स्क्रॉल कर रहे हैं। एक वीडियो खत्म होती है तो दूसरा अपने-आप चल पड़ता है, एक मीम देखकर आप हँसते हैं तो अगला आपको और देर तक रोके रखता है।

आपकी आँखें लाल हो रही हैं, सिर भारी लग रहा है, लेकिन दिमाग कहता है—“बस एक और वीडियो, बस एक और पोस्ट।” यही वह आदत है जिसे लोग अक्सर समय की बर्बादी कहते हैं, माँ-बाप डाँटते हैं, दोस्त मजाक उड़ाते हैं और डॉक्टर चेतावनी देते हैं। लेकिन अब वही आदत आपकी नौकरी भी बन सकती है। जी हाँ, वही Doomscrolling जिसे अब तक बुरी लत माना जाता था, उसे एक कंपनी ने आधिकारिक करियर ऑप्शन बना दिया है। यह कदम उठाया है Monk Entertainment के को-फाउंडर और सीईओ विराज शेट ने। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

Doomscrolling—यह शब्द सुनने में जितना नया लगता है, इसकी जड़ें उतनी ही गहरी हैं। पहली बार यह शब्द दुनिया की जुबान पर आया 2020 में, जब कोविड महामारी ने पूरी दुनिया को घरों में कैद कर दिया था। उस समय लोग लगातार अपने फोन पर सिर्फ एक ही काम कर रहे थे—खबरें पढ़ना। मौतों के आंकड़े, अस्पतालों की हालत, डरावनी तस्वीरें और भविष्य की अनिश्चितता।

लोग सोने से पहले भी यही देखते और उठते ही फिर वही सिलसिला शुरू। यही लगातार नकारात्मक और भयावह खबरों को स्क्रॉल करना Doomscrolling कहलाया। 2023 में यह शब्द आधिकारिक डिक्शनरी में शामिल हो गया और तब से यह एक ग्लोबल ट्रेंड बन गया। लेकिन सोचिए, वही आदत जिसे विशेषज्ञ मानसिक स्वास्थ्य के लिए जहर मानते थे, अब किसी कंपनी का वैध जॉब टाइटल बन गई है।

विराज शेट ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर अचानक एक पोस्ट किया—“Hiring Doom-Scrollers.” यह देखकर लोगों की आँखें खुली रह गईं। क्योंकि यह पहली बार था जब किसी ने सोशल मीडिया पर, आलस और लत कहे जाने वाले व्यवहार को पेशेवर स्किल की तरह पेश किया। उन्होंने न केवल हायरिंग का ऐलान किया, बल्कि जॉब की योग्यता भी शेयर की।

और ये योग्यताएँ किसी डिग्री या बड़े कॉलेज की नहीं थीं, बल्कि वही थीं जो हर दूसरे नौजवान रोज करता है। जैसे—6 घंटे से ज्यादा का स्क्रीन टाइम, और वह भी स्क्रीनशॉट प्रूफ के साथ। मतलब अब आपका फोन पर बिताया गया समय आपके रिज़्यूमे की ताकत बनेगा। इसके अलावा, हर नए क्रिएटर के बारे में जानकारी रखना, Reddit और ICG जैसे फोरम्स को अखबार की तरह पढ़ना, हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में Skilled होना और Excel जैसी बेसिक स्किल्स आना।

सोचिए, जिन चीजों को अब तक सिर्फ टाइमपास कहा जाता था, वही अब जॉब की क्वालिफिकेशन हैं। यह अपने आप में एक क्रांति जैसा है। यह वैसा ही है जैसे कोई कहे—“अगर तुमने दिन में 100 मीम देखे हैं, तो तुम्हें नौकरी मिल सकती है।” डिजिटल युग का यही सबसे बड़ा विरोधाभास है।

लेकिन सवाल यह है कि आखिर किसी कंपनी को ऐसे लोगों की जरूरत क्यों पड़ी? इसका जवाब है सोशल मीडिया की तेज़ रफ्तार दुनिया। आज का जमाना है क्रिएटर इकोनॉमी का। हर दिन हजारों नए वीडियो, मीम और पोस्ट बनते हैं। हर घंटे एक नया ट्रेंड उठता है और ऑडियंस की पसंद बदल जाती है। ब्रांड्स और डिजिटल एजेंसियों के लिए यह जरूरी है कि वे इन सब पर नजर रखें।

Monk Entertainment जैसी कंपनियाँ जानती हैं कि जिन लोगों को घंटों सोशल मीडिया स्क्रॉल करने की आदत है, वे ट्रेंड्स को सबसे पहले पकड़ते हैं। वे ऑडियंस की नब्ज समझते हैं, क्रिएटर्स के नए आइडियाज पहचानते हैं और इंटरनेट के मूड को पढ़ लेते हैं। ऐसे लोग उनके लिए सोने की खान साबित हो सकते हैं।

सोशल मीडिया पर इस जॉब पोस्ट को देखकर लोगों की प्रतिक्रियाएँ भी कम दिलचस्प नहीं थीं। किसी ने मजाक में लिखा—“अब तो मां-बाप को बता सकता हूँ कि मोबाइल चलाना भी नौकरी है।” किसी और ने कहा—“मेरा स्क्रीन टाइम 10 घंटे है, क्या मैं तुरंत जॉइन कर सकता हूँ?”

एक ने लिखा—“डूमस्क्रोलिंग अब स्किल बन गई है, लगता है मैं प्रोफेशनल हूँ।” इस पर खूब मीम भी बने और लोग हँसी-मजाक करते रहे। लेकिन दूसरी ओर कई लोग गंभीर भी हो गए। उन्होंने पूछा—“क्या वाकई यह सही है? क्या यह नई पीढ़ी को और आलसी नहीं बना देगा?”

विशेषज्ञों की राय इस मामले में खास मायने रखती है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि डूमस्क्रोलिंग का सबसे बड़ा खतरा है मानसिक स्वास्थ्य। लगातार 6 से 8 घंटे मोबाइल पर बिताने का मतलब है कि आप नकारात्मक खबरों और तुलना की दुनिया में फँस जाते हैं। इससे चिंता, अवसाद, नींद की समस्या और ध्यान की कमी जैसी परेशानियाँ बढ़ती हैं।

देर रात तक स्क्रीन पर आँखें गड़ाए रखने से आँखों में जलन, सिरदर्द और यहाँ तक कि लंबे समय में नजर कमजोर होने की समस्या भी आ सकती है। और सबसे बड़ा नुकसान यह है कि इंसान का वास्तविक सामाजिक जीवन खत्म होने लगता है। आप दोस्तों से मिलना छोड़ देते हैं, परिवार के साथ समय कम बिताते हैं और धीरे-धीरे अकेलेपन की गिरफ्त में आ जाते हैं।

तो क्या इसका मतलब है कि यह नौकरी खतरनाक है? सच तो यह है कि इसका उत्तर पूरी तरह संतुलन में छिपा है। अगर डूमस्क्रोलिंग को पेशेवर जिम्मेदारी की तरह अपनाया जाए, time management किया जाए और बीच-बीच में मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाए, तो यह नौकरी नुकसान नहीं बल्कि फायदेमंद हो सकती है। आखिरकार, दुनिया में हर काम का असर अच्छा या बुरा इस बात पर निर्भर करता है कि उसे किस तरह किया जाता है। जैसे गेमिंग। कभी गेम खेलना सिर्फ समय की बर्बादी माना जाता था, लेकिन आज ई-स्पोर्ट्स खिलाड़ी करोड़ों की कमाई कर रहे हैं। ठीक वैसे ही, मोबाइल पर स्क्रॉल करने की आदत भी करियर का जरिया बन सकती है।

Monk Entertainment का यह कदम यह भी दिखाता है कि कैसे कंपनियाँ लगातार नए-नए प्रयोग कर रही हैं। इस कंपनी की नींव रखी थी विराज शेट और रणवीर अल्लाहबादिया यानी BeerBiceps ने। आज यह कंपनी भारत की सबसे बड़ी क्रिएटर मैनेजमेंट और डिजिटल मार्केटिंग एजेंसियों में से एक है। यह कंटेंट प्रोडक्शन, ब्रांड पार्टनरशिप, क्रिएटर मैनेजमेंट और डिजिटल कैंपेन में काम करती है। ऐसे में, डूमस्क्रोलिंग जैसी आदत को नौकरी का हिस्सा बनाना उनकी क्रिएटिव सोच को दर्शाता है।

अब सोचिए, कल तक जो लोग अपने फोन पर 6 से 8 घंटे बिताकर दोषी महसूस करते थे, वही अब “डूमस्क्रोलर” कहलाएँगे। यह शब्द सुनने में भले ही मजाकिया लगे, लेकिन आने वाले समय में यह उतना ही लोकप्रिय जॉब हो सकता है जितना आज “कंटेंट क्रिएटर” या “सोशल मीडिया मैनेजर।”

भविष्य की तस्वीर में शायद हमें यह भी देखने को मिले कि कंपनियाँ अपनी टीम में अलग-अलग तरह के स्क्रोलर्स रखेंगी—कोई न्यूज़ स्क्रोलर, कोई मीम स्क्रोलर, कोई शॉर्ट्स स्क्रोलर। और इन सबकी रिपोर्ट्स मिलकर तय करेंगी कि इंटरनेट पर कौन-सा ट्रेंड ब्रांड्स के लिए फायदेमंद है।

Conclusion

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