GST Big Update: 12% और 28% स्लैब खत्म करने की मोदी सरकार की मास्टरप्लान I

ज़रा सोचिए… एक ऐसी सुबह जब पूरा देश आज़ादी का 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा हो, लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तिरंगे को सलामी दे रहे हों, और अचानक उनके भाषण में एक ऐसा ऐलान गूंज उठे जो सीधे करोड़ों भारतीयों की जेब से जुड़ा हो। पीएम मोदी कहते हैं—“इस दिवाली आपके डबल दिवाली का काम मैं करने वाला हूं।”

बस, इसी एक लाइन ने देश के करोड़ों घरों के भीतर उम्मीद और उत्सुकता दोनों जगा दी। क्योंकि जो खबर आई, वह थी—GST के मौजूदा 12% और 28% टैक्स स्लैब को खत्म करने की तैयारी। सवाल उठता है—क्या वाकई ऐसा होने वाला है? अगर हां, तो इसका असर हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर कितना गहरा होगा? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

आजादी के 79 साल बाद भी जब हम अपने आर्थिक ढांचे को देखें, तो पाते हैं कि टैक्स व्यवस्था हमेशा आम आदमी की सबसे बड़ी चिंता रही है। जब 2017 में GST लागू हुआ, तो इसे भारत की “सबसे बड़ी टैक्स सुधार क्रांति” बताया गया। एक देश—एक टैक्स की परिकल्पना लोगों को आकर्षित कर रही थी। लेकिन वक्त बीतने के साथ-साथ यह साफ हो गया कि GST जितना आसान दिखता है, उतना आसान लागू करना नहीं है। अलग-अलग स्लैब्स ने कई बार कन्फ्यूजन पैदा किया। 0%, 5%, 12%, 18% और 28% के पांच बड़े टैक्स ढांचे में आम आदमी और कारोबारियों को, समझना मुश्किल होता गया कि कौन-सा प्रोडक्ट किस स्लैब में आता है।

लेकिन अब सरकार इस पूरे ढांचे को और सरल बनाने की तैयारी में है। सूत्रों के मुताबिक, मोदी सरकार 12% और 28% वाले स्लैब को खत्म करने पर विचार कर रही है। यानी आने वाले दिनों में सिर्फ दो बड़े स्लैब बचेंगे—5% और 18%। अब सोचिए, अगर ऐसा होता है तो रोज़मर्रा के खर्च, खाने-पीने से लेकर कपड़े और मोबाइल फोन जैसी ज़रूरी चीज़ें सस्ती हो सकती हैं। यह सीधे आपके बजट को हल्का करने वाला कदम साबित हो सकता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर ऐलान करते हुए कहा कि यह बदलाव “नेक्स्ट जनरेशन GST रिफॉर्म्स” का हिस्सा है। उन्होंने वादा किया कि इस दिवाली लोगों को एक ऐसा तोहफ़ा मिलेगा, जिससे न सिर्फ टैक्स कम होंगे, बल्कि छोटे व्यापारियों और MSME को भी बहुत राहत मिलेगी। ज़रा सोचिए, एक छोटा दुकानदार, जो हर महीने GST की जटिलताओं में उलझ जाता है, अगर उसके लिए टैक्स स्ट्रक्चर आसान हो जाए तो उसका काम कितना आसान हो जाएगा।

अब यहां पर सबसे अहम सवाल उठता है—आखिर सरकार क्यों ऐसा बड़ा बदलाव करने जा रही है? दरअसल, सरकार का मानना है कि अगर टैक्स स्लैब्स को कम कर दिया जाए, तो लोगों की खपत यानी खर्च बढ़ेगा। और जब खपत बढ़ेगी तो सरकार को टैक्स से होने वाला नुकसान भी अपने-आप पूरा हो जाएगा। यह एक तरह से “कम टैक्स—ज्यादा खपत—ज्यादा कमाई” का नया फार्मूला होगा।

लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि ये सुधार सिर्फ अच्छे और आसान सामान पर ही नहीं, बल्कि हानिकारक वस्तुओं पर भी कड़े टैक्स लगाने का इशारा करते हैं। जैसे तंबाकू और पान मसाला पर अब 40% टैक्स का प्रस्ताव है। यानी सरकार साफ कर रही है कि जो चीज़ें आम जनता की सेहत के लिए नुकसानदेह हैं, उन पर बोझ कम नहीं होगा।

दूसरी तरफ, ऑनलाइन गेमिंग इंडस्ट्री को लेकर भी सरकार का प्लान सामने आया है। खबर है कि ऑनलाइन गेमिंग को “हानिकारक वस्तु” की श्रेणी में रखकर सबसे ऊंचा टैक्स लगाया जा सकता है। इस फैसले से एक तरफ तो सरकार का Revenue बढ़ेगा, लेकिन दूसरी तरफ गेमिंग कंपनियों और उनके करोड़ों यूज़र्स को गहरा झटका भी लग सकता है।

अगर इस पूरे प्रस्ताव पर गौर करें तो सबसे बड़ा फायदा आठ प्रमुख सेक्टर्स को मिलेगा—कपड़ा, खाद, नवीकरणीय ऊर्जा, ऑटोमोबाइल, हस्तशिल्प, कृषि, स्वास्थ्य और बीमा। मतलब, रोज़मर्रा की ज़िंदगी और उत्पादन से जुड़े वे सारे सेक्टर जो सीधे जनता और उद्योग दोनों के लिए अहम हैं, अब इस बदलाव से सस्ते और सुगम हो सकते हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पिछले आठ सालों में उनकी सरकार ने टैक्स के बोझ को कम करने की कोशिश की है, और अब समय आ गया है कि GST को रिव्यू किया जाए। इसके लिए हाई पावर कमेटी बनाई गई है और राज्यों से भी विचार-विमर्श किया गया है। यहां यह भी समझना ज़रूरी है कि GST सिर्फ केंद्र सरकार का मामला नहीं है, बल्कि इसमें राज्यों की सहमति भी अहम है। क्योंकि GST से मिलने वाला Revenue राज्यों के खजाने में भी बड़ा हिस्सा जोड़ता है।

तो सवाल यह है कि क्या सभी राज्य इस प्रस्ताव पर सहमत होंगे? अगर हां, तो दिवाली से पहले देश को एक ऐसा तोहफ़ा मिल सकता है, जो सीधा जेब पर असर डालेगा। लेकिन अगर कुछ राज्य विरोध करते हैं, तो यह योजना शायद धीमी पड़ सकती है।

वित्त मंत्रालय ने साफ कहा है कि यह प्रस्ताव तीन स्तंभों पर आधारित है—संरचनात्मक सुधार, दरों को युक्तिसंगत बनाना और आम लोगों की ज़िंदगी आसान करना। सरकार चाहती है कि टैक्स का बोझ ज़्यादा न लगे और उपभोक्ताओं को राहत मिले। यही कारण है कि पेट्रोलियम जैसे संवेदनशील उत्पादों को अभी भी GST के दायरे में नहीं लाया गया है।

अब यहां पर एक दिलचस्प सवाल और उठता है—क्या GST में यह बदलाव सिर्फ चुनावी राजनीति का हिस्सा है? क्योंकि दिवाली और आने वाले महीनों में कई बड़े राज्यों में चुनाव भी होने वाले हैं। ऐसे में टैक्स घटाना और जनता को तोहफ़ा देना एक तरह से सरकार की “पॉलिटिकल स्ट्रैटेजी” भी हो सकती है।

लेकिन अगर राजनीति से इतर देखें, तो यह बदलाव सचमुच गेम-चेंजर हो सकता है। कल्पना कीजिए, जब किसी मिडिल क्लास परिवार का मासिक बजट बनेगा, तो साबुन, टूथपेस्ट, कपड़े और मोबाइल जैसी ज़रूरी चीज़ें सस्ती होंगी। इससे उनकी जेब में ज़्यादा पैसे बचेंगे और वही पैसा शायद वे दूसरी ज़रूरी चीज़ों पर खर्च करेंगे। इससे अर्थव्यवस्था में भी नई ऊर्जा आएगी।

भारत जैसे देश में, जहां करोड़ों लोग आज भी मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास से जुड़े हैं, वहां टैक्स में यह राहत एक नई उम्मीद जगा सकती है। और यही कारण है कि इसे “डबल दिवाली” कहा जा रहा है।

इतिहास गवाह है कि बड़े आर्थिक सुधार अक्सर जनता की ज़िंदगी को बदलने में अहम भूमिका निभाते हैं। 1991 की Economic Liberalization Policy ने भारत को नई दिशा दी थी। 2016 का नोटबंदी और उसके बाद 2017 का GST, दोनों ने भारत की टैक्स व्यवस्था को बदल दिया। और अब अगर 12% और 28% वाले स्लैब खत्म हो जाते हैं, तो यह अगले दशक का सबसे बड़ा आर्थिक बदलाव माना जाएगा।

लेकिन सवाल यही रहेगा कि क्या यह बदलाव सभी के लिए फायदेमंद होगा? अमीर और गरीब दोनों को बराबर राहत मिलेगी या नहीं? क्या लक्सरी प्रोडक्ट्स खरीदने वाले और रोटी-दाल खरीदने वाले दोनों पर इसका असर समान होगा? यह तो आने वाले दिनों में साफ होगा।

प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में कहा कि “हमने समय की मांग को देखते हुए GST की समीक्षा शुरू की है। यह बदलाव छोटे व्यापारियों और सामान्य नागरिक दोनों के लिए बड़ी राहत लेकर आएगा।” यह बयान न सिर्फ एक आर्थिक वादा है, बल्कि यह राजनीति और जनता की उम्मीदों के बीच पुल का भी काम करता है।

आखिर में सवाल यही है कि इस दिवाली भारत की जनता को कैसा तोहफ़ा मिलेगा। क्या सच में 12% और 28% का बोझ हट जाएगा? क्या हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी आसान हो जाएगी? या यह भी सिर्फ एक वादा बनकर रह जाएगा?

Conclusion

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