सोचिए, आपके घर का टूटा-फूटा मोबाइल, खराब लैपटॉप, पुराना स्पीकर या वायरलेस नेकबैंड… जिसे आप कचरा समझकर एक कोने में फेंक चुके हैं, कोई उसे उठाकर करोड़ों की कंपनी बना दे—यकीन करना मुश्किल है न? लेकिन यही सच्चाई है। वो चीजें जिन्हें आपने कभी दोबारा छूने तक की नहीं सोची, उन्हीं बेकार पड़ी तकनीकों से किसी ने 1411 करोड़ रुपये का साम्राज्य खड़ा कर दिया है। और इस कहानी के पीछे हैं एक नाम—शरद खंडेलवाल, जिनकी सोच और मेहनत ने GNG Electronics को एक नई ऊंचाई दी। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
हम अक्सर कहते हैं कि ‘जुगाड़’ भारतीयों की पहचान है। लेकिन अगर जुगाड़ को सिस्टम, तकनीक और विजन के साथ जोड़ा जाए, तो वो ‘जुगाड़’ एक दिन करोड़ों की कंपनी बन जाता है। शरद खंडेलवाल ने भी कुछ ऐसा ही किया। उन्होंने देखा कि देश में हर घर, हर ऑफिस में ई-कचरे की भरमार है। हर कोई नए गैजेट्स खरीद रहा है, और पुराने कबाड़ की तरह किसी कोने में पड़े रहते हैं। लेकिन उन्हें समझ आ गया था—यही है उनका ‘सोना’।
साल था 2016, महीना था अक्टूबर। दुनिया त्योहारों में डूबी थी, लेकिन शरद खंडेलवाल कुछ अलग सोच रहे थे। उन्होंने ‘इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार’ नाम से एक स्टार्टअप शुरू किया, जो पुराने और बेकार आईटी डिवाइसेज को नया जीवन देता था। उनका मॉडल बड़ा साफ था—पुराने लैपटॉप्स और डेस्कटॉप्स को खरीदो, उन्हें रिफर्बिश करो यानी नए जैसा बनाओ, और फिर आम लोगों तक कम कीमत में पहुंचाओ। यही बना GNG Electronics का आधार।

शुरुआत आसान नहीं थी। किसी भी बिजनेस में शुरुआत में लोग सवाल करते हैं, भरोसा नहीं करते, हंसते हैं। लेकिन शरद ने हार नहीं मानी। उन्होंने रिफर्बिशमेंट को एक गंभीर और भरोसेमंद प्रक्रिया बनाया। उन्होंने ऐसा सिस्टम खड़ा किया, जिसमें हर एक डिवाइस 21 स्टेप की सख्त क्वालिटी चेक से गुजरता है। यानी ग्राहक को सिर्फ ‘पुराना दिखने वाला’ नया प्रोडक्ट नहीं, बल्कि भरोसे के साथ एक दमदार मशीन मिलती है।
उन्होंने सिर्फ रीसाइक्लिंग पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि टेक्नोलॉजी, ग्राहक संतुष्टि और पर्यावरण—तीनों पर बराबर ध्यान दिया। GNG Electronics ने माइक्रोसॉफ्ट, HP और Lenovo जैसी दिग्गज कंपनियों से “अधिकृत रिफर्बिशर” का दर्जा भी हासिल कर लिया। यानी अब वो कंपनियां भी GNG को अपना भरोसेमंद पार्टनर मानने लगीं। ये एक बड़ा मोड़ था इस कंपनी की यात्रा में।
आज GNG Electronics साल 2025 के फाइनेंशियल ईयर में 1,411 करोड़ का रेवेन्यू हासिल कर चुका है। आप अंदाजा लगाइए—जब इतने बड़े-बड़े टेक स्टार्टअप 100 करोड़ छूने को तरसते हैं, तब एक ऐसा स्टार्टअप जो ‘कबाड़’ से शुरू हुआ, वो हजार करोड़ पार कर गया। और इसकी तुलना अगर न्यूजाइसा से करें, जिसने 66 करोड़ ही कमाए, तो GNG ने 21 गुना ज्यादा ग्रोथ दिखाई है।

सिर्फ भारत में ही नहीं, GNG Electronics अब अमेरिका और यूएई में भी अपनी पहचान बना चुका है। वहां की कंपनियां भी GNG से डिवाइसेज रेंट पर लेती हैं, उन्हें रीफर्बिश करवाती हैं। ये सिर्फ एक बिजनेस नहीं, बल्कि एक ‘मूवमेंट’ बन चुका है—ई-कचरे के खिलाफ एक सशक्त कदम।
शरद खंडेलवाल का मानना है कि ई-कचरा सिर्फ एक घरेलू समस्या नहीं, बल्कि एक वैश्विक खतरा है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ई-कचरा उत्पादक देश है। साल 2022 में भारत में करीब 16 लाख टन ई-कचरा पैदा हुआ था, लेकिन उसमें से सिर्फ 5 लाख टन ही प्रोसेस हो पाया। बाकी 11 लाख टन कचरा, हमारी जमीन, हवा और जल को नुकसान पहुंचा रहा है।
यहीं GNG Electronics का काम शुरू होता है। वो इन कबाड़ों को उठाते हैं, उन्हें नया जीवन देते हैं और पर्यावरण को बचाते हैं। और ये सब करते हैं एक मजबूत सिस्टम के तहत, जिसमें Trained engineers, strict standards और Technical efficiency शामिल है।
GNG सिर्फ प्रोडक्ट बेचने तक सीमित नहीं है। उन्होंने एक ऐसा मॉडल तैयार किया है, जिसमें लोग ये डिवाइस किराए पर भी ले सकते हैं। सोचिए—अगर एक स्टूडेंट को लैपटॉप चाहिए लेकिन नया खरीदना संभव नहीं, तो वो GNG से 500 में महीना भर के लिए किराए पर ले सकता है। ऑफिसेस के लिए भी ये एक आदर्श मॉडल बन गया है, जहां सैकड़ों डिवाइसेज़ की जरूरत होती है और लागत कम रखना ज़रूरी होता है।

2025 में GNG ने करीब 3.6 लाख लैपटॉप्स को रिफर्बिश किया और उन्हें नया जीवन दिया। इन डिवाइसेज़ की उम्र औसतन 5 साल तक बढ़ा दी गई—सोचिए, अगर ये सारे लैपटॉप कचरे में जाते, तो कितना नुकसान होता। लेकिन शरद की सोच ने इन्हें ‘ई-कचरे’ से ‘ई-शक्ति’ में बदल दिया।
GNG Electronics का IPO भी अब चर्चा में है। बीते दो दिनों में यह 24 गुना से ज्यादा सब्सक्राइब हो चुका है। Investor जानते हैं कि ये सिर्फ एक मुनाफे वाला स्टार्टअप नहीं, बल्कि भविष्य का मॉडल है। जहां हर घर का पुराना गैजेट एक अवसर है, और हर ग्राहक एक संभावित सहयोगी।
शरद खंडेलवाल की कहानी सिर्फ एक बिजनेस की नहीं, एक मिशन की कहानी है। एक ऐसा मिशन जो पर्यावरण, आर्थिक व्यावसायिकता और सामाजिक बदलाव तीनों को साथ लेकर चल रहा है। उनके लिए पैसा कमाना उद्देश्य नहीं था, बदलाव लाना था। और जब इरादे नेक हो, तो पैसा अपने आप पीछे-पीछे आता है।
शरद कहते हैं, “ई-कचरा हमारे भविष्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है, और अगर हम आज इससे नहीं निपटे, तो कल बहुत देर हो जाएगी।” यही सोच उन्हें बाकियों से अलग बनाती है। जहां बाकी लोग सिर्फ रेवेन्यू और सेल्स की बात करते हैं, वहीं शरद ‘सस्टेनेबिलिटी’ और ‘ग्रीन फ्यूचर’ की बात करते हैं।

उनकी टीम, जिसमें सैकड़ों इंजीनियर, तकनीशियन और सपोर्ट स्टाफ शामिल हैं, हर दिन एक मिशन की तरह काम करती है। हर डिवाइस को न सिर्फ मरम्मत किया जाता है, बल्कि उसका एक नया जीवन दिया जाता है—नई उम्मीद, नया भरोसा।
उनका 21-स्टेप क्वालिटी चेक सिस्टम आज भारत में एक बेंचमार्क बन गया है। ग्राहक जब GNG से कोई प्रोडक्ट खरीदता है, तो उसे सिर्फ एक मशीन नहीं, बल्कि 3 साल की वारंटी, ईज़ी मेंटेनेंस, और बायबैक गारंटी मिलती है। यानी पैसा वसूल भरोसा।
आज जब हर तरफ स्टार्टअप्स धड़ाधड़ खुलते हैं और साल-भर में बंद भी हो जाते हैं, GNG Electronics की कहानी इस भीड़ में एक दमकते सितारे की तरह है। क्योंकि उन्होंने ‘मूल्य’ पर ध्यान दिया, ‘मुनाफे’ से पहले। और यही वजह है कि आज देश के युवा उद्यमी उनकी मिसाल देते हैं।
कई युवाओं ने शरद से प्रेरणा लेकर अपने शहरों में मिनी रिफर्बिशमेंट सेंटर्स खोले हैं। उन्होंने सिखाया कि बिजनेस सिर्फ नया बेचने से नहीं, पुराने को सही तरीके से दोबारा इस्तेमाल करने से भी चल सकता है। ये ही है ‘वेस्ट टू वैल्थ’ की असली परिभाषा।

शरद खंडेलवाल का सपना है कि भारत को ई-कचरे से मुक्त बनाया जाए। और इसके लिए उन्होंने सिर्फ भाषण नहीं दिए, जमीनी स्तर पर एक पूरा बिजनेस मॉडल खड़ा कर दिया। एक ऐसा मॉडल जो स्कूल, ऑफिस, घर—हर जगह ई-कचरे को पहचानता है, इकट्ठा करता है और फिर उसे नए जीवन में ढालता है।
इस वीडियो का मकसद है सिर्फ GNG की तारीफ करना नहीं, बल्कि हर दर्शक को यह समझाना कि आपके घर का पुराना मोबाइल भी क्रांति का हिस्सा बन सकता है। आज अगर आप अपने बेकार गैजेट को GNG को देते हैं, तो आप न सिर्फ पैसा कमाते हैं, बल्कि धरती मां को भी बचाते हैं।
यह कहानी उस भरोसे की है जो एक आदमी ने खुद से किया। उस नजरिए की है जो दूसरों को कबाड़ दिखा, लेकिन उसे अवसर दिखाई दिया। और उस जुनून की है जिसने भारत की सबसे चमकदार ई-कचरा स्टार्टअप को जन्म दिया।
Conclusion

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