Fertilizer पर चीन की चाल नाकाम! भारत ने किसानों के लिए दिखाई ताकत और किया करारा जवाब। 2025

पहली बार जब ये खबर आई कि चीन ने भारत के किसानों को निशाना बनाया है—तो पूरा देश सन्न रह गया। सोचिए, एक ऐसा देश जो पहले ही खाद्यान्न संकट और जलवायु की चुनौतियों से जूझ रहा हो, अगर उसकी रीढ़ माने जाने वाले किसानों की खाद की Supply रोक दी जाए, तो क्या होगा? चीन ने यही किया।

चुपचाप, बिना किसी आधिकारिक प्रतिबंध के, भारत में आने वाली स्पेशल Fertilizer की सप्लाई को धीमा कर दिया। न शोर, न ऐलान—बस खामोशी से भारत की जड़ों पर वार। लेकिन चीन ये भूल गया था कि भारत अब वो नहीं रहा जो चुपचाप सह ले। भारत ने इस साजिश का न सिर्फ जवाब दिया, बल्कि ऐसा जवाब दिया कि ड्रैगन अब खुद हैरान है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

चीन को लगा था कि अगर वह भारत में इस्तेमाल होने वाले Special fertilizers की Supply को बाधित कर देगा, तो भारतीय किसान बेबस हो जाएंगे। सब्जियां, फल, फूल—जिन्हें उगाने के लिए पॉलिमर-कोटेड यूरिया, चीलेटेड माइक्रोन्यूट्रिएंट्स, पोटैशियम नाइट्रेट और मोनोअमोनियम फॉस्फेट जैसे स्पेशल फर्टिलाइजर ज़रूरी होते हैं—उनकी खेती रुक जाएगी। चीन जानता था कि भारत इन Fertilizers के लिए 80% तक उसी पर निर्भर है। लेकिन भारत ने चीन की इस चाल को समय रहते भांप लिया।

केंद्र सरकार ने न सिर्फ खतरे को महसूस किया, बल्कि तुरंत एक्शन भी लिया। जैसे ही चीन ने धीमी सप्लाई की चाल चली, भारत सरकार ने देश की प्रमुख सरकारी, निजी और सहकारी Fertilizer कंपनियों को बुलाया और मीटिंग की। संदेश साफ था—हमें अब किसी भी कीमत पर आत्मनिर्भर बनना होगा। जो चीज़ हम चीन से लेते रहे हैं, अब वही हमें खुद बनानी है—वो भी बड़े स्तर पर, हाई क्वालिटी के साथ।

इसी दिशा में भारत ने तेज़ी से काम शुरू किया। इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड यानी IFFCO ने 2011 में ही स्पेशल फर्टिलाइज़र का घरेलू उत्पादन शुरू कर दिया था। लेकिन अब यह समय था उस स्केल को बढ़ाने का। IFFCO की मौजूदा प्रोडक्शन कैपेसिटी 15,000 टन प्रति वर्ष की है। मगर समस्या ये थी कि अभी तक भारत के पास कुछ खास स्पेशल फर्टिलाइज़र जैसे मोनोअमोनियम फॉस्फेट (MAP) और कैल्शियम नाइट्रेट बनाने की तकनीक ही नहीं थी। चीन इसी टेक्नोलॉजी की ताकत से खेल खेल रहा था।

तभी एंट्री होती है एक भारतीय स्टार्टअप—इशिता इंटरनेशनल की। इस कंपनी ने कुछ ऐसा किया जो चीन भी नहीं सोच पाया था। इशिता इंटरनेशनल ने भारत में उपलब्ध कच्चे माल के आधार पर एक यूनिक तकनीक विकसित की—जिससे MAP, कैल्शियम मैग्नीशियम, कैल्शियम नाइट्रेट और अन्य पानी में Soluble fertilizers का निर्माण संभव हो गया। एक तरह से कहें तो, भारत ने खुद अपनी खाद्य सुरक्षा की चाबी तैयार कर ली।

इशिता इंटरनेशनल के बिजनेस डेवलपमेंट मैनेजर योगेश चव्हाण बताते हैं कि, उनके पायलट प्रोजेक्ट को सरकार का पूरा समर्थन मिल रहा है। यह प्लांट 10,000 टन MAP और 5,000 से 7,000 टन अन्य स्पेशल फर्टिलाइज़र बनाने की क्षमता रखता है। अब वे commercial level पर बड़े Investment की तलाश में हैं, ताकि भारत को आत्मनिर्भर बनाया जा सके। और यहीं से चीन का प्लान ध्वस्त हो गया।

भारत की इस तकनीकी जीत ने चीन की नीति को झटका दिया। चीन ने जो उत्पाद भारत भेजने से रोके थे, अब उन्हीं को दूसरे देशों में Export कर, वहां से भारत पहुंचाने लगा—लेकिन भारी कीमत पर। चीन को लगा शायद भारत पीछे हट जाएगा, लेकिन भारत तो अब स्पेशल फर्टिलाइज़र के अपने सपनों की खेती करने निकल पड़ा था।

इस कहानी का एक और पहलू है सल्फर की बात। भारत सल्फर के लिए अभी भी मिडल ईस्ट जैसे देशों से Import करता है—कोरोमंडल इंटरनेशनल, दीपक Fertilizer और नेशनल Fertilizer जैसी कंपनियां इसमें मुख्य भूमिका निभाती हैं। लेकिन यह भी तय है कि आने वाले वर्षों में भारत इस मोर्चे पर भी आत्मनिर्भर बनने के रास्ते पर है। जो देश चंद्रयान भेज सकता है, वह खाद की थैली क्यों नहीं बना सकता?

अब बात करें चीन की उस चाल की, जिसने ये पूरी हलचल शुरू की। चीन ने अपने यहां से भारत को कोई आधिकारिक एक्सपोर्ट बैन नहीं लगाया, लेकिन सब-कुछ धीरे-धीरे किया। सप्लाई चेन को स्लो किया, कंटेनर डिले किए, और कस्टम प्रोसेस में देरी की। चीन को लग रहा था कि भारत के किसान परेशान होंगे, सरकार घुटने टेक देगी, और वह अपने डिप्लोमैटिक एजेंडा को आगे बढ़ा पाएगा।

लेकिन भारत ने दिखा दिया कि मुश्किल वक्त में वह घबराता नहीं, बल्कि नई राह बनाता है। इस बीच एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन अब कैल्शियम नाइट्रेट जैसे Fertilizers को अन्य देशों जैसे UAE, मलेशिया या सिंगापुर में भेजता है, और वहां से भारत आता है—जिससे भारत को शिपिंग पर 50 से 60% ज्यादा खर्च उठाना पड़ता है। लेकिन भारत सरकार इस खेल को समझ गई है। और अब सरकार उस कच्चे माल पर फोकस कर रही है, जिसकी मदद से हम खुद फर्टिलाइज़र बना सकें।

सॉल्युबल फर्टिलाइज़र इंडस्ट्री एसोसिएशन के नेशनल प्रेसिडेंट रजिब चक्रवर्ती ने एक महत्वपूर्ण बात कही—“पहले हम तकनीक के लिए चीन पर निर्भर थे। लेकिन अब हम अपनी तकनीक से अपने किसानों को खाद देंगे।” यह लाइन केवल एक कथन नहीं, बल्कि भारत की बदलती मानसिकता की घोषणा है।

किसान अब केवल मौसम या मंडियों पर ही निर्भर नहीं रहना चाहते। वह चाहता है कि उसकी मिट्टी को वही पोषण मिले, जो विदेशों में मिलता है। वह चाहता है कि अगर उसकी जमीन में कैल्शियम की कमी है, तो वह फर्टिलाइज़र विदेश से लाने के बजाय देश में ही पा सके। और सरकार भी अब यही चाहती है। क्योंकि जब किसान आत्मनिर्भर होगा, तभी देश सशक्त होगा।

भारत सरकार इस दिशा में न सिर्फ नीति बना रही है, बल्कि फील्ड पर काम भी हो रहा है। कृषि मंत्रालय से लेकर उद्योग मंत्रालय तक, सभी विभागों ने स्पेशल फर्टिलाइज़र इंडस्ट्री के साथ बातचीत शुरू कर दी है। निजी कंपनियों को सब्सिडी और Investment प्रोत्साहन दिया जा रहा है, ताकि वे रिसर्च और उत्पादन दोनों को बढ़ा सकें। और ये कदम केवल वर्तमान संकट का समाधान नहीं, बल्कि भविष्य की नींव रख रहे हैं।

आंकड़े बताते हैं कि भारत में करीब 60% खेती अभी भी Fertilizers पर निर्भर है। और जैसे-जैसे फल, सब्जी और फूलों की मांग बढ़ रही है, वैसे-वैसे स्पेशल फर्टिलाइज़र की जरूरत भी बढ़ेगी। ऐसे में भारत के पास कोई और विकल्प नहीं था, सिवाय इसके कि वो चीन से हटकर अपनी राह बनाए। और अब जब देश ने वो राह पकड़ ली है, तो चीन की मंशा टूट चुकी है।

जो कभी भारत को कमजोर समझता था, आज वही भारत दुनिया को दिखा रहा है कि वह किसी के दबाव में नहीं आता। यह एक संदेश है, सिर्फ चीन को नहीं, बल्कि उन सभी देशों को जो सोचते हैं कि भारत को सप्लाई रोककर उसकी नीतियों को प्रभावित किया जा सकता है।

इस पूरी कहानी में सबसे बड़ी जीत किसान की है। क्योंकि अब वो जानता है कि उसकी ज़रूरतें सरकार समझ रही है। और सरकार भी अब केवल बातों से नहीं, काम से जवाब दे रही है। स्टार्टअप्स, पब्लिक सेक्टर, प्राइवेट कंपनियां—सभी मिलकर भारत की खाद्य सुरक्षा का भविष्य रच रहे हैं। आज भारत सिर्फ फर्टिलाइज़र नहीं बना रहा, वो अपना आत्मविश्वास बना रहा है।

वो मिट्टी की नहीं, नीति की खेती कर रहा है। वो केवल खाद नहीं उगा रहा, बल्कि उन सपनों को सींच रहा है, जो कभी चीन जैसे देशों की चालों में सूख जाते थे। और जब अगली बार कोई देश भारत की जड़ों पर वार करने की कोशिश करेगा, तो उसे याद रहेगा—भारत अब वही करता है, जो दुनिया को चौंका दे। क्योंकि अब भारत सिर्फ प्रतिक्रिया नहीं देता, बल्कि रणनीति से खेलता है I

Conclusion

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