Dollar से उठे तूफ़ान में भी दिखी उम्मीद की किरण! ट्रंप की चेतावनी और भारत के लिए छुपा मौका! 2025

जरा सोचिए… अगर पूरी दुनिया अचानक अमेरिकी Dollar को रिजर्व करेंसी मानना बंद कर दे… तो क्या होगा? बैंकिंग सिस्टम हिल जाएगा, शेयर बाजार धड़ाम हो जाएंगे, और अमेरिका—जिसे आज दुनिया का सुपरपावर कहा जाता है—वो एक आम देश बनकर रह जाएगा। जी हां, खुद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि अगर डॉलर ने अपना रिजर्व करेंसी का दर्जा खो दिया… तो ये ऐसा होगा जैसे अमेरिका ने कोई विश्व युद्ध हार लिया हो।

अब सवाल ये है—क्या वाकई ट्रंप को डर है कि अमेरिका Dollar की बादशाहत खो सकता है? और अगर ऐसा हुआ, तो इसका मतलब क्या होगा भारत, चीन, रूस और बाकी दुनिया के लिए? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

आपको बता दें कि डोनाल्ड ट्रंप का ये बयान कोई साधारण बात नहीं है। अमेरिका के राष्ट्रपति स्तर पर इस तरह की पब्लिक स्टेटमेंट आना दर्शाता है कि मामला गंभीर है। ट्रंप न सिर्फ अपने देश की जनता को चेतावनी दे रहे हैं, बल्कि पूरी दुनिया को भी अलर्ट कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर अमेरिकी Dollar गिरा, तो अमेरिका भी बदल जाएगा—और वो देश वैसा नहीं रहेगा जैसा आज है। ट्रंप की ये चिंता ऐसे समय में सामने आई है जब ब्रिक्स देश मिलकर एक बहुत बड़ा गेम खेल रहे हैं… एक ऐसा गेम, जिसका मकसद है अमेरिकी Dollar की बादशाहत को खत्म करना।

दरअसल, ब्रिक्स यानी ब्राजील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका जैसे देश अब Dollar के विकल्प तलाश रहे हैं। कई व्यापारिक सौदे अब अमेरिकी Dollar की जगह लोकल करेंसी में हो रहे हैं। चीन और रूस पहले ही अपनी करेंसी में आपसी ट्रेड शुरू कर चुके हैं। भारत भी कुछ हद तक रूस से रुपये में तेल खरीद चुका है। और यही ट्रंप की सबसे बड़ी चिंता है—कि क्या ये ट्रेंड आगे और बढ़ेगा? क्या ब्रिक्स अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती देने में कामयाब हो जाएगा?

डोनाल्ड ट्रंप ने 1 अगस्त से लागू होने वाले नए Reciprocal Tariffs की घोषणा कर दी है। जापान, ब्राजील, दक्षिण कोरिया और इंडोनेशिया जैसे देशों पर ये नए टैरिफ लगाए जाएंगे। ट्रंप का मानना है कि अमेरिका को फेयर ट्रेड नहीं मिल रहा, और अगर कोई देश अमेरिका पर ज्यादा शुल्क लगाता है, तो अमेरिका भी अब उसी अनुपात में जवाब देगा। लेकिन ब्रिक्स के लिए ट्रंप का रवैया और भी सख्त है। उन्होंने धमकी दी है कि अगर ब्रिक्स देश Dollar से हटकर अपनी अलग मुद्रा की तरफ बढ़ते हैं, तो उन पर अतिरिक्त शुल्क लगाया जाएगा। साफ है—ट्रंप Dollar को लेकर बेहद डरे हुए हैं।

अब यहां सवाल उठता है कि Dollar को इतनी खासियत किसने दी? क्यों पूरी दुनिया आज भी डॉलर को ‘विश्व मुद्रा’ यानी Global Reserve Currency मानती है? इसका जवाब इतिहास में छुपा है। 1944 में ब्रेटन वुड्स एग्रीमेंट के तहत अमेरिकी Dollar को अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए मान्यता मिली। तब से लेकर आज तक, लगभग 90% इंटरनेशनल ट्रेड डॉलर में ही होता है। दुनिया भर के केंद्रीय बैंक अपने विदेशी currency reserves में सबसे ज्यादा हिस्सा डॉलर का रखते हैं। लेकिन अब इस सिस्टम को चुनौती मिल रही है।

ब्रिक्स देश अब एक संयुक्त मुद्रा की चर्चा कर रहे हैं—जो या तो कमोडिटी आधारित होगी या क्रिप्टो टेक्नोलॉजी से जुड़ी होगी। वहीं, चीन और रूस अपने ट्रेड में Dollar की बजाय युआन और रूबल का इस्तेमाल कर रहे हैं। भारत भी रुपये के इंटरनेशनलाइजेशन पर काम कर रहा है। यानी धीरे-धीरे एक नई दुनिया बन रही है जहां Dollar की जरूरत कम होती जा रही है। अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका जैसे कई क्षेत्र अब ब्रिक्स के विस्तार से जुड़ रहे हैं और ये अमेरिका के लिए खतरे की घंटी है।

इतना ही नहीं, कई देशों के केंद्रीय बैंक अब अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड से दूरी बनाकर सोने में Investment कर रहे हैं। गोल्ड रिजर्व लगातार बढ़ रहे हैं, जबकि Dollar होल्डिंग घट रही है। ये साफ संकेत है कि दुनिया अब अमेरिकी फाइनेंशियल सिस्टम पर निर्भर नहीं रहना चाहती। ट्रंप इसे समझते हैं और शायद इसी वजह से इतने आक्रामक हैं।

Donald Trump की ट्रेड पॉलिसी में टैरिफ एक बड़ा हथियार बन चुका है। उन्होंने पहले ईरान को और बाद में रूस को SWIFT जैसे इंटरनेशनल फाइनेंशियल नेटवर्क से बाहर कर दिया था। इसका असर ये हुआ कि बाकी देशों को भी ये डर सताने लगा कि अगर अमेरिका से मतभेद हुआ, तो Dollar सिस्टम से बाहर कर दिए जाएंगे। नतीजा ये हुआ कि कई देशों ने अमेरिकी Dollar पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए काम शुरू कर दिया।

अब बात करते हैं आंकड़ों की। साल 2025 में अब तक अमेरिकी Dollar जापानी येन और यूरो के मुकाबले 10 फीसदी से ज्यादा गिर चुका है। अमेरिकी डॉलर इंडेक्स जो बीते साल 109 के ऊपर था, अब गिरकर 97 पर आ गया है। ये 1973 के बाद सबसे बड़ी गिरावट मानी जा रही है। इसका मतलब है कि ग्लोबल इन्वेस्टर्स अब डॉलर को पहले जितना सेफ नहीं मान रहे।

JP Morgan जैसी बड़ी फाइनेंशियल कंपनियों का भी कहना है कि ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी से ग्लोबल ग्रोथ को झटका लग सकता है। रिपोर्ट्स में कहा गया है कि इससे महंगाई बढ़ेगी, मंदी की संभावना 40% तक रहेगी, और सबसे बड़ा असर Dollar की वैल्यू पर दिखेगा। यानी ट्रंप की आक्रामक रणनीति अमेरिका के लिए ही उलटी पड़ सकती है।

हालांकि, कुछ विशेषज्ञ ये भी कह रहे हैं कि Dollar अभी जल्दी खत्म नहीं होगा। उनका मानना है कि Dollar का वर्चस्व भले ही कमजोर हो रहा हो, लेकिन वो अभी भी सबसे ज्यादा भरोसेमंद और लिक्विड करेंसी है। फिर भी, ये तो तय है कि जमीन खिसक रही है, और ब्रिक्स जैसे संगठन उस जगह को भरने की तैयारी कर रहे हैं।

Donald Trump की चिंता वाजिब भी है। अमेरिका की ताकत सिर्फ उसकी सैन्य शक्ति से नहीं, बल्कि Dollar से आती है। दुनिया भर में Dollar के जरिए व्यापार होता है, और अमेरिका को इससे फायदा होता है। अगर ये शक्ति छीनी गई, तो अमेरिका की स्थिति एक आम विकसित देश जैसी हो सकती है। ट्रंप इसे समझते हैं और इसलिए हर संभव तरीका अपना रहे हैं—चाहे वो टैरिफ हो, ट्रेड वॉर हो या सार्वजनिक बयान।

इस पूरे घटनाक्रम से भारत को भी सबक लेना चाहिए। Dollar पर निर्भरता कम करने की दिशा में भारत ने कुछ कदम जरूर उठाए हैं, जैसे रुपया-रूबल ट्रेड या UPI के इंटरनेशनलाइजेशन की कोशिश। लेकिन ये रास्ता लंबा है और भारत को इससे जुड़ी रणनीतियों पर तेजी से काम करना होगा।

आखिर में सवाल वही है—क्या Dollar का साम्राज्य खत्म होने जा रहा है? ट्रंप की घबराहट इस बात का संकेत है कि खतरा वाकई मौजूद है। ब्रिक्स अगर एक सशक्त वित्तीय विकल्प दे पाता है, तो डॉलर की दुनिया से विदाई की उलटी गिनती शुरू हो सकती है। और तब ट्रंप का बयान—”डॉलर का रिजर्व स्टेटस खोना वर्ल्ड वॉर हारने जैसा है”—सिर्फ डराने वाली चेतावनी नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक सच्चाई बन जाएगा।

इस कहानी का हर पहलू हमें एक बड़ा सबक देता है—सत्ता, ताकत और प्रभुत्व हमेशा स्थायी नहीं होते। वक्त बदलता है, समीकरण बदलते हैं, और जिस चीज को कभी अजेय माना गया, वो भी ध्वस्त हो सकती है। डॉलर की ये कहानी सिर्फ एक करेंसी की नहीं है—ये उस वैश्विक सत्ता की है जो अब चौराहे पर खड़ी है। और जब इतिहास लिखा जाएगा, तो शायद इस दौर को एक टर्निंग पॉइंट कहा जाएगा—जब ब्रिक्स ने चुनौती दी, अमेरिका ने मुकाबला किया, और डॉलर की किस्मत एक नई दिशा में मुड़ गई।

Conclusion

अगर हमारे आर्टिकल ने आपको कुछ नया सिखाया हो, तो इसे शेयर करना न भूलें, ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी और लोगों तक पहुँच सके। आपके सुझाव और सवाल हमारे लिए बेहद अहम हैं, इसलिए उन्हें कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बेहतर बनाने में मदद करती हैं।

GRT Business विभिन्न समाचार एजेंसियों, जनमत और सार्वजनिक स्रोतों से जानकारी लेकर आपके लिए सटीक और सत्यापित कंटेंट प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। हालांकि, किसी भी त्रुटि या विवाद के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं। हमारा उद्देश्य आपके ज्ञान को बढ़ाना और आपको सही तथ्यों से अवगत कराना है।

अधिक जानकारी के लिए आप हमारे GRT Business Youtube चैनल पर भी विजिट कर सकते हैं। धन्यवाद!”

Spread the love

Leave a Comment