Israel: अगर युद्ध भड़का तो भारत की ये इंडस्ट्रीज़ होंगी मालामाल! जानिए Israel-Iran War का सकारात्मक असर। 2025

कल्पना कीजिए, एक सुबह आप अखबार उठाते हैं और पहली ही खबर में लिखा है—”तेल की कीमतें 150 डॉलर प्रति बैरल पार कर गईं, मिडिल ईस्ट में टैंकर फंसे हुए हैं, और भारत में कई इंडस्ट्रीज की सांसें अटक गई हैं।” क्या ये सिर्फ एक कल्पना है? नहीं। Israel और ईरान के बीच बढ़ता युद्ध इसी दिशा में बढ़ता दिख रहा है। और अगर हालात वाकई बिगड़ गए, तो भारत की कई बड़ी इंडस्ट्रीज पर इसका गहरा असर पड़ सकता है। लेकिन कैसे? किस सेक्टर को कितना नुकसान होगा? किसका फायदा भी हो सकता है? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

क्रिसिल की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक अभी तक इस युद्ध का भारत की कॉरपोरेट दुनिया पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ा है। लेकिन यही शांति कितनी देर टिकेगी, कोई नहीं जानता। क्योंकि मिडिल ईस्ट की राजनीति जितनी पेचीदा है, उतनी ही खतरनाक भी। भारत का ईरान से सीधा व्यापार बासमती चावल तक सीमित है, और Israel से हमारे व्यापार में हीरे, उर्वरक और इलेक्ट्रिकल इक्विपमेंट्स शामिल हैं। लेकिन यह सीमित व्यापार भी अगर रुक गया, या भुगतान में देरी हुई, तो क्या होगा?

सबसे पहला असर दिखेगा तेल पर। अगर युद्ध लम्बा चला और मिडिल ईस्ट से सप्लाई बाधित हुई तो कच्चे तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं। और भारत, जो अपनी तेल की ज़रूरतों का लगभग 85% Import करता है, उसके लिए यह सीधी मार होगी। अब अगर कीमतें बढ़ीं, तो अपस्ट्रीम ऑयल कंपनियां जैसे ONGC को फायदा होगा क्योंकि उनके पास उत्पादन की लागत वही रहेगी, पर बिक्री महंगी होगी। लेकिन डाउनस्ट्रीम कंपनियां जैसे IOC और BPCL को दिक्कत होगी, क्योंकि उन्हें रिफाइनिंग में ज्यादा खर्च करना पड़ेगा और वे हर बार कीमत बढ़ा नहीं सकतीं। यानी इनका मार्जिन सिकुड़ जाएगा।

तेल की कीमतों का असर सिर्फ तेल कंपनियों तक नहीं रुकेगा। इससे उन इंडस्ट्रीज पर भी मार पड़ेगी जो अपनी लागत में पेट्रो-प्रोडक्ट्स पर निर्भर करती हैं। जैसे स्पेशलिटी केमिकल इंडस्ट्री। इस सेक्टर की ऑपरेशनल कॉस्ट का 30% कच्चे तेल से जुड़ा होता है। और पहले से ही ये इंडस्ट्री चीन से डंपिंग और मांग में कमी जैसी समस्याओं से जूझ रही है। अब अगर तेल महंगा हो गया, तो लागत और बढ़ेगी, और कंपनियां ग्राहकों पर दाम नहीं थोप पाएंगी। नतीजा? मार्जिन में भारी गिरावट।

इसी तरह, पेंट इंडस्ट्री पर भी संकट के बादल मंडराएंगे। पेंट का निर्माण 30% इनपुट कच्चे तेल पर आधारित होता है। लेकिन बाजार में प्रतियोगिता इतनी है कि कंपनियां दाम बढ़ाने से डरती हैं। मतलब? तेल की कीमतें बढ़ेंगी, लागत बढ़ेगी, लेकिन बिक्री मूल्य नहीं बढ़ेगा। इससे मुनाफा घटेगा और शेयर बाजार में इन कंपनियों की वैल्यू गिर सकती है।

अब बात करते हैं एविएशन इंडस्ट्री की। एयरलाइंस कंपनियों के ऑपरेटिंग खर्च का 35 से 40% हिस्सा सिर्फ ईंधन होता है। अब सोचिए अगर कच्चा तेल महंगा हो जाए, साथ ही अगर युद्ध के कारण एयरस्पेस बंद हो जाए या डायवर्जन लगे, तो विमान को लंबा रूट लेना पड़ेगा, समय भी बढ़ेगा और ईंधन की खपत भी। नतीजा? घाटा। लेकिन फिर भी, मांग अगर बनी रही, तो कंपनियां किराया बढ़ाकर कुछ हद तक घाटा पूरा कर सकती हैं। यानी यह सेक्टर दबाव में रहेगा लेकिन पूरी तरह टूटेगा नहीं।

टायर इंडस्ट्री की बात करें तो इसमें तो लागत का आधा हिस्सा ही कच्चे तेल पर आधारित होता है। अब अगर तेल महंगा हुआ तो टायर कंपनियों की लागत बढ़ेगी। रिप्लेसमेंट मार्केट में तो वे दाम बढ़ा सकती हैं, लेकिन कार कंपनियों को बेचते वक्त दाम बढ़ाना आसान नहीं होता। उन्हें समय लगता है। और उस समय में जो नुकसान होगा, वो सीधा उनकी बैलेंस शीट पर दिखेगा।

पैकेजिंग और सिंथेटिक टेक्सटाइल इंडस्ट्री में तो तेल का और भी ज्यादा असर है। इनके लिए तो लागत का 70 से 80% हिस्सा कच्चे तेल से जुड़ा होता है। इन कंपनियों को अगर तुरंत दाम बढ़ाने की इजाजत न मिले, तो ये भारी घाटे में जा सकती हैं। हालांकि डिमांड-सप्लाई की स्थिति अच्छी है, इसलिए वे कुछ हद तक ग्राहक को बोझ ट्रांसफर कर सकती हैं। लेकिन वो भी तुरंत नहीं। एक-दो तिमाही का असर जरूर पड़ेगा।

अब बात करते हैं बासमती चावल की, जिसे भारत ईरान और Israel दोनों को Export करता है। 2025 में कुल बासमती Export का 14% हिस्सा इन दोनों देशों को गया। लेकिन बासमती एक जरूरी खाद्यान्न है, इसकी मांग बहुत ज्यादा घटेगी नहीं। और भारत के पास मिडिल ईस्ट के दूसरे देश, यूरोप और अमेरिका जैसे बड़े बाजार हैं, जो इसकी भरपाई कर सकते हैं। लेकिन अगर युद्ध लंबा चला, तो भुगतान में देरी हो सकती है। और अगर ईरान पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगते हैं तो बासमती एक्सपोर्ट पर दबाव आ सकता है।

अब हीरा सेक्टर की बात करें तो, भारत का हीरा उद्योग दुनिया भर में मशहूर है। लेकिन हीरा पॉलिश करने के बाद उसका बड़ा हिस्सा Israel जैसे ट्रेडिंग हब से होकर गुजरता है। भारत के कुल हीरा Export का 4% Israel को जाता है, और 2% कच्चा हीरा वहीं से आता है। अब अगर Israel युद्ध में उलझा रहा, तो यह चेन बाधित हो सकती है। हालांकि भारत के पास बेल्जियम और यूएई जैसे विकल्प हैं। साथ ही, अंतिम ग्राहक अमेरिका और यूरोप में हैं, तो सेक्टर की रिकवरी संभव है।

इसके अलावा, फर्टिलाइजर सेक्टर पर भी इसका असर साफ दिखेगा। इजरायल म्यूरेट ऑफ पोटाश (MoP) का बड़ा उत्पादक है। भारत ने पिछले साल 7% MoP Israel से Import किया था। हालांकि भारत की उर्वरक जरूरतों में MoP की हिस्सेदारी 10% से भी कम है, और भारत रूस और कनाडा जैसे देशों से भी MoP खरीदता है। यानी आपूर्ति में समस्या होगी तो भी भारत को वैकल्पिक स्रोत मिल सकते हैं। फिर भी कीमतें बढ़ सकती हैं, और किसानों पर इसका असर आएगा।

अब जब हम इन सब सेक्टर्स की बात कर चुके हैं, तो एक और अहम बिंदु आता है—ट्रांसपोर्टेशन। युद्ध के कारण अगर समुद्री रास्ते असुरक्षित हो जाते हैं, या बीमा कंपनियां प्रीमियम बढ़ा देती हैं, तो माल ढुलाई की लागत बढ़ेगी। खासतौर से एक्सपोर्ट और इम्पोर्ट करने वाली कंपनियों पर इसका सीधा असर पड़ेगा। अगर एयरस्पेस बंद हो गया, तो एयर फ्रेट महंगा हो जाएगा। और ये सब मिलकर भारत के ट्रेड बैलेंस को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

फिर आता है महंगाई का मुद्दा। अगर तेल, ट्रांसपोर्ट और केमिकल्स की कीमतें बढ़ती हैं, तो इसका असर आम आदमी तक जाएगा। पेंट महंगा होगा, टायर महंगे होंगे, हवाई यात्रा महंगी होगी, खाद महंगी होगी। और जब लागत महंगी होती है, तो कंपनियां कीमतें बढ़ाती हैं। इससे महंगाई बढ़ेगी, और रिजर्व बैंक को ब्याज दरें बढ़ानी पड़ सकती हैं। यानी एक छोटा-सा युद्ध भारत की पूरी आर्थिक व्यवस्था को झकझोर सकता है।

लेकिन हर संकट में एक अवसर भी छिपा होता है। जैसे अपस्ट्रीम ऑयल कंपनियों को फायदा होगा। बासमती की डाइवर्सिफाइड डिमांड भारत को सुरक्षित रखेगी। टायर कंपनियां रिप्लेसमेंट मार्केट में तेजी से दाम बढ़ा सकती हैं। और हीरा सेक्टर बेल्जियम और यूएई की मदद से रास्ता निकाल सकता है। लेकिन ये फायदे तभी तक हैं जब युद्ध सीमित समय तक चले। अगर यह महीनों चला, तो बात सिर्फ़ सेक्टर की नहीं, बल्कि संपूर्ण अर्थव्यवस्था की होगी।

तो अब सवाल ये है—क्या भारत तैयार है? क्या भारत के इंडस्ट्रियल सेक्टर्स इस वैश्विक भूचाल को झेल पाएंगे? या फिर हमें एक नई रणनीति की जरूरत है जो इस तरह के भू-राजनीतिक खतरों से सुरक्षित रखे। ये सवाल सिर्फ कंपनियों के नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था के भविष्य से जुड़े हैं। और इसका जवाब आने वाला वक्त ही देगा।

Conclusion

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