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Yes Bank की वापसी की कहानी: कैसे एक भारतीय बैंक ने संकट से निकलकर जापान का भरोसा जीत लिया! 2025

Yes Bank

एक ऐसा बैंक जिसकी नींव तीन अनुभवी दिग्गजों ने मिलकर रखी थी—जिसका नाम भरोसे का पर्याय बन चुका था, जिसके दरवाजे पर लाइन लगती थी खाता खुलवाने की, और जिसकी ब्रोशर में ‘India’s New Age Bank’ लिखा होता था। लेकिन उसी बैंक की दीवारें दरकती गईं, नींव कमजोर होती गई, और एक दिन वो बैंक, जिसकी शुरूआत भारतीयों के दम पर हुई थी, अब जापान की एक बड़ी कंपनी की गोद में पहुंच गया।

ये कहानी है एक सपने के टूटने की, लेकिन उससे पहले उस सपने के बनने की। ये कहानी है Yes Bank की, और उसके उत्थान-पतन की, जो आज भी देश की बैंकिंग इंडस्ट्री के लिए एक सीख बनकर खड़ी है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

साल 2003 की बात है, जब भारत तेजी से निजी बैंकिंग की दिशा में कदम बढ़ा रहा था। सार्वजनिक बैंकों की जड़ें गहरी थीं, लेकिन नई पीढ़ी की ज़रूरतें अलग थीं। इसी बदलाव की हवा में तीन अनुभवी नाम सामने आए—अशोक कपूर, हर्कित सिंह और राणा कपूर।

तीनों का करियर शानदार था। अशोक कपूर एबीएन एमरो बैंक के कंट्री हेड रह चुके थे, हर्कित सिंह डॉयचे बैंक से जुड़े थे और राणा कपूर ANZ Grindlays बैंक में कॉरपोरेट फाइनेंस के प्रमुख रहे थे। उन्होंने साथ मिलकर एक नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी शुरू की, जिसमें नीदरलैंड की रैबोबैंक की 75% हिस्सेदारी थी और बाकी 25% उनके पास। लेकिन उनका असली सपना था—एक फुल-फ्लेज्ड कमर्शियल बैंक।

2004 में जब RBI ने उन्हें बैंकिंग लाइसेंस दिया, तब ‘YES Bank’ नाम से एक नया अध्याय शुरू हुआ। और फिर 2005 में बैंक का IPO आया—जिसने आम Investors का ध्यान खींचा। उस समय जब देश के बड़े बैंक सेविंग अकाउंट पर 4% से 5% ब्याज दे रहे थे, YES Bank ने सीधा 7% की दर पेश की। यही साहसिक फैसला जनता के दिलों में जगह बना गया। अचानक लोगों को लगा कि इस बैंक में कुछ अलग है—और यही ‘अलगपन’ YES Bank की पहचान बन गया।

राणा कपूर को MD और CEO नियुक्त किया गया और अशोक कपूर को चेयरमैन बनाया गया। बैंक ने फटाफट कदम उठाए—रिटेल ग्राहकों के लिए गोल्ड और सिल्वर डेबिट कार्ड, कॉरपोरेट सेक्टर के लिए आकर्षक लोन स्कीमें, और डिजिटल बैंकिंग का आरंभ। YES Bank हर मंच पर इनोवेशन और आक्रामक रणनीति के साथ आगे बढ़ता गया। 2008 तक यह बैंक अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का चेहरा बन गया था। बिजनेस टुडे और KPMG जैसी संस्थाओं ने इसे भारत का सबसे बेहतर बैंक करार दिया। एक ऐसा बैंक जिसे हर युवा ग्राहक, हर तेजी से बढ़ती कंपनी, और हर Investor एक नए युग का प्रतिनिधि मानता था।

लेकिन 2008 में हुए मुंबई हमलों में ताज होटल में मौजूद अशोक कपूर की मौत ने इस सफर पर पहला गहरा धक्का मारा। उस समय किसी को नहीं पता था कि अशोक कपूर की अनुपस्थिति YES Bank के संतुलन को कितना बिगाड़ देगी। अब पूरी कमान राणा कपूर के हाथ में थी। एक ऐसा नेतृत्व, जो आक्रामक था, तेज़ी में था, लेकिन शायद लंबे समय की स्थिरता के लिए तैयार नहीं था।

2014 से 2019 के बीच YES Bank ने जिस रफ्तार से कर्ज बांटना शुरू किया, वह कई experts के लिए चिंता का कारण बन गया। 2014 में बैंक का कुल कर्ज था 55,633 करोड़ रुपये, लेकिन 2019 के अंत तक ये आंकड़ा 2.25 लाख करोड़ रुपये को पार कर गया। यानी सिर्फ 5 सालों में कर्ज चार गुना से भी ज्यादा हो गया। डिपॉजिट्स भी बढ़े, लेकिन उस अनुपात में नहीं। इसके पीछे की सोच थी—तेजी से ग्रोथ, तेजी से मुनाफा। लेकिन ग्रोथ के नाम पर ऐसे कॉरपोरेट्स को लोन दिए गए जो पहले से ही वित्तीय संकट में थे।

2015 में ग्लोबल फाइनेंशियल कंपनी UBS ने अपनी रिपोर्ट में चेताया कि YES Bank का कर्ज मॉडल बेहद असुरक्षित है। लेकिन उस वक्त बैंक के ऊपर ग्लैमर का पर्दा था। बड़ी-बड़ी कॉन्फ्रेंस, अवॉर्ड, TV इंटरव्यूज़ और बाजार में तेजी—किसी को अंदाज़ा नहीं था कि अंदर से दीवारें कमजोर हो चुकी हैं।

2017 में RBI ने बैंक की बैलेंस शीट का विश्लेषण किया, और वहां से शुरू हुई ‘गिरावट की असली कहानी’। रिपोर्ट में सामने आया कि बैंक के डिक्लेयर्ड NPA से कई ज्यादा कर्ज खराब हो चुके थे। राणा कपूर पर उंगलियां उठने लगीं। 2018 में RBI ने उन्हें CEO पद से हटाने का निर्देश दिया। अगले ही महीने चेयरमैन और दो Independent Directors ने इस्तीफा दे दिया। अंदरूनी हालात बिखरने लगे थे।

2019 में हालत इतनी बिगड़ गई कि राणा कपूर को खुद अपने शेयर महज 142 करोड़ रुपये में बेचने पड़े। बैंक में डर का माहौल बन गया—ग्राहक पैसे निकालने की होड़ में लग गए। एटीएम खाली होने लगे, ब्रांचों पर लाइनें बढ़ने लगीं—YES Bank एक ‘bank run’ के मुहाने पर था।

फिर आया मार्च 2020, जब RBI ने सख्त कदम उठाया। 5 मार्च को बैंक पर 30 दिनों का मोरेटोरियम लगा दिया गया। खाताधारक सिर्फ 50,000 रुपये तक ही निकाल सकते थे। देशभर में अफरा-तफरी मच गई। RBI ने स्थिति को संभालने के लिए SBI के तत्कालीन डिप्टी एमडी प्रशांत कुमार को एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त किया।

SBI समेत सात बड़े बैंकों ने YES Bank में Investment किया और बैंक को उबारने की कोशिश शुरू की। धीरे-धीरे स्थिति नियंत्रण में आई। 2022 तक YES Bank ने अपने 48,000 करोड़ रुपये के खराब ऋण JC Flowers ARC को बेच दिए। ये सौदा भारत में अब तक का सबसे बड़ा NPA ट्रांसफर बन गया। बैंक ने JC Flowers में 9.9% हिस्सेदारी ली और अब इसे 19.99% तक बढ़ाने की योजना बना रहा है।

एक और बड़ा बदलाव आया बैंक की लोन नीति में। पहले जहां 60% से ज्यादा लोन बड़े कॉरपोरेट्स को दिए जाते थे, अब 2024 तक 62% लोन रिटेल और SME सेक्टर को दिए जा रहे हैं। SME सेक्टर अधिक स्थायित्व वाला होता है और डिफॉल्ट की संभावना कम होती है। ये कदम बैंक की long term मजबूती के लिए बेहद जरूरी था।

फिर साल 2025 की शुरुआत में एक नई कहानी सामने आई—YES Bank अब भारतीय नहीं रहा। जापान की Sumitomo Mitsui Banking Corporation (SMBC) ने बैंक में 20% हिस्सेदारी खरीद ली। SMBC ने SBI से 13.19% और अन्य बैंकों से 6.81% शेयर खरीदे। डील की कुल कीमत लगभग 13,483 करोड़ रही, और अब SMBC YES Bank की सबसे बड़ी शेयरधारक बन चुकी है।

SMBC की मूल कंपनी SMFG के पास 2 ट्रिलियन डॉलर से अधिक की संपत्ति है, और वह टोक्यो व न्यूयॉर्क दोनों स्टॉक एक्सचेंजों में लिस्टेड है। इसके प्रेसिडेंट अकिहिरो फुकुतोमे हैं और अब SMBC YES Bank के साथ अपनी Technical efficiency, और बैंकिंग अनुभव साझा करने की योजना बना रही है। भारत में यह SMBC का अब तक का सबसे बड़ा Investment है, और यह दर्शाता है कि जापान अब भारत की बैंकिंग व्यवस्था को गंभीरता से ले रहा है।

यह takeover सिर्फ एक ownership ट्रांसफर नहीं, बल्कि एक बड़े बदलाव का प्रतीक है—जहां एक बैंक, जो भारतीयता की पहचान था, अब एक जापानी हाथ में चला गया है। यह एक learning है, एक reflection है कि कैसे ज़्यादा लालच, तेज़ रफ्तार और ग़लत निर्णय एक सफल संस्था को संकट में डाल सकते हैं।

Yes Bank की ये कहानी भारत के बैंकिंग इतिहास का एक आइना है—जिसमें हमें साफ दिखता है कि प्रोफेशनल सफलता और एथिकल जिम्मेदारी का संतुलन कितना आवश्यक है। ये कहानी हर उस युवा बैंकिंग प्रोफेशनल के लिए सीख है जो तेज़ी से सफलता चाहता है लेकिन स्थिरता की नींव भूल जाता है।

Conclusion

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