कल्पना कीजिए… दुनिया के दो सबसे बड़े देश—अमेरिका और चीन—एक ऐसे व्यापारिक युद्ध से जूझ रहे हों, जिसने Global अर्थव्यवस्था की नींव हिला दी हो। टैरिफ की तलवारें लहराई जा रही हों, और बाजारों में अनिश्चितता की धुंध छा गई हो। और तभी, अचानक… दोनों देश आपसी सहमति से 90 दिन का विराम लेते हैं। सिर्फ़ 90 दिन के लिए टैरिफ घटाए जाते हैं। लेकिन इस ‘सांस्कृतिक शांति’ के बीच एक तीसरा देश चुपचाप देख रहा है—भारत।
और फिर, World Bank की तरफ से चेतावनी आती है—“भारत के पास सिर्फ़ 5 साल हैं… अगर इस मौके को नहीं पकड़ा, तो अगली कतार में खड़ा होने के लिए तैयार रहिए।” यह कोई साधारण खबर नहीं, बल्कि भारत के आर्थिक भविष्य को लेकर सबसे अहम चेतावनी है—एक अवसर भी, और चुनौती भी। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
अमेरिका और चीन ने हाल ही में घोषणा की है कि वे अगले 90 दिनों के लिए एक-दूसरे के Import पर लगने वाले भारी टैरिफ को घटा रहे हैं। चीन जहां अमेरिका से आने वाले सामान पर 125% की जगह 10% टैरिफ लगाएगा, वहीं अमेरिका भी चीन के Products पर 145% की जगह 30% टैक्स लेगा। यह व्यापारिक विराम भले ही अस्थायी हो, लेकिन इसका असर स्थायी हो सकता है। क्योंकि इसी खामोशी में छिपा है एक बड़ा Global बदलाव—सप्लाई चेन का पुनर्गठन।
भारत के लिए यह महज एक समाचार नहीं, बल्कि एक रणनीतिक अवसर है। क्योंकि जैसे ही अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक खींचतान शुरू हुई थी, पूरी दुनिया की कंपनियों ने अपने Alternative supply sources को खोजना शुरू कर दिया था। और भारत, वियतनाम, मैक्सिको जैसे देशों को मौका मिला था Global production का नया केंद्र बनने का। अब जब अमेरिका और चीन ने 90 दिनों का विराम लिया है, तो दुनिया की नज़र इस बात पर टिक गई है कि कौन इस नई व्यवस्था में खुद को स्थापित करेगा।
World Bank के अध्यक्ष अजय बंगा ने इसी संदर्भ में भारत को जो सलाह दी है, वह अनदेखा नहीं की जा सकती। उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि भारत के पास अपने आंतरिक सिस्टम, नियमों, और व्यापार बाधाओं को सुधारने के लिए एक सीमित खिड़की है—सिर्फ 5 साल की। यही वो समय है जब भारत अपने व्यापारिक तंत्र को global level पर Competitive बना सकता है।
अजय बंगा का कहना है कि दुनिया में अब अनिश्चितता का वातावरण है—चीन और अमेरिका के बीच की भू-राजनीति, टैरिफ की नीतियां, और व्यापार समझौते अब सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि राजनीतिक अस्त्र बन चुके हैं। ऐसे में एक देश अगर स्थायित्व और भरोसे का प्रतीक बन जाए, तो पूरी दुनिया का Investment उसकी ओर मुड़ सकता है। भारत के पास वही अवसर है।
उनके मुताबिक, अमेरिका की सबसे बड़ी ताकत उसकी “कम व्यापारिक बाधाएं” हैं। अमेरिका में टैरिफ औसतन 10% या उससे कम रहते हैं, जबकि विकासशील देशों में यह आंकड़ा बहुत ज्यादा होता है। भारत को अपने ही अंदर झांकने की जरूरत है—कि क्या हमारी नीतियां, टैक्स स्ट्रक्चर, और ब्यूरोक्रेसी आज भी विदेशी कंपनियों के लिए एक जाल बनी हुई हैं?
वास्तव में, भारत को अब आत्मनिरीक्षण करना होगा कि क्या वह वाकई एक ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनने के लिए तैयार है। क्या हमारे पास वो बुनियादी ढांचा है जो Foxconn, Tesla या Apple जैसी कंपनियों को आकर्षित कर सके? क्या भारत की नीति और ज़मीनी व्यवस्था उतनी तेज़, सस्ती और भरोसेमंद है जितनी वियतनाम या इंडोनेशिया की?
अगर आप पिछले 20 साल का Global व्यापार ट्रेंड देखें, तो एक और चौंकाने वाली बात सामने आती है—Global व्यापार नाममात्र के आंकड़ों में दोगुना हो चुका है। लेकिन इसमें सबसे खास बात यह है कि विकासशील देशों के आपसी व्यापार की हिस्सेदारी भी 20% से बढ़कर 40% हो गई है। यानि अब ग्लोबल ट्रेड केवल अमीर देशों के बीच नहीं, बल्कि विकासशील देशों के बीच भी गहराता जा रहा है।
लेकिन जब आप इस विकासशील व्यापार के अंदर झांकते हैं, तो एक सच्चाई सामने आती है—कि दक्षिण एशिया यानी हमारा इलाका इस रेस में काफी पीछे है। अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन क्षेत्र भी कमज़ोर हैं। असली लाभ ले रहे हैं—पूर्वी एशिया, प्रशांत और यूरोप के कुछ हिस्से। इसका मतलब यह हुआ कि भारत जैसे देशों के पास एक ‘छिपी हुई संभावना’ है—जो अभी तक पूरी तरह से उपयोग में नहीं लाई गई है।
अजय बंगा ने यही संकेत दिया है कि भारत अब “इंटर-रीजनल ट्रेड” यानी पड़ोसी देशों और यूरोप जैसे बाजारों के साथ व्यापार को मजबूत करने पर फोकस करे। भारत ने यूके के साथ हाल ही में मुक्त व्यापार समझौता पूरा किया है, और यूरोपीय यूनियन के साथ भी ऐसी ही बातचीत चल रही है। अगर भारत अपने पड़ोसियों के साथ भी रणनीतिक साझेदारियां करता है, तो यह नया ग्लोबल ट्रेड आर्किटेक्चर तैयार कर सकता है—जो भारत को केंद्र में रखेगा।
भारत के सामने अब दो रास्ते हैं—या तो वह अपने पुराने सिस्टम पर कायम रहे और देखता रहे कि अवसर कैसे दूसरे देशों के हाथ में चला गया, या फिर वह अपनी नीतियों, प्रक्रियाओं और सोच को अगले 5 साल में इतना चुस्त और भरोसेमंद बना दे कि दुनिया के Investor बिना हिचक के भारत आएं।
अब सवाल ये उठता है—क्या भारत तैयार है? क्या हम उन अवरोधों को दूर करने की हिम्मत रखते हैं जो पिछले कई दशकों से हमारे व्यापारिक विकास में रोड़ा बने हुए हैं? क्या हम टैक्स सिस्टम को सरल बना सकते हैं, क्या हम लॉजिस्टिक लागत को कम कर सकते हैं, क्या हम लेबर लॉ को आधुनिक बना सकते हैं?
आज भारत की सबसे बड़ी पूंजी उसकी युवा जनसंख्या है, उसका विशाल बाजार है, और उसकी राजनीतिक स्थिरता है। लेकिन अगर इन खूबियों को सही समय पर सही दिशा नहीं मिली, तो यह अवसर वियतनाम, थाईलैंड, बांग्लादेश या यहां तक कि अफ्रीका तक खिसक सकता है।
वर्ल्ड बैंक की यह चेतावनी दरअसल एक मौका है—एक ऐसा मौका जिसे भारत को न केवल समझना है, बल्कि पकड़कर उस पर दौड़ लगानी है। क्योंकि अगर अगले 5 साल में भारत अपने सिस्टम को सुधार लेता है, तो वह न केवल चीन के विकल्प के रूप में खड़ा हो सकता है, बल्कि अमेरिका और यूरोप की सप्लाई चेन का नया केंद्र भी बन सकता है।
क्योंकि जब तक अमेरिका और चीन का व्यापार युद्ध पूरी तरह सुलझता नहीं, तब तक हर बड़ी कंपनी अपने बैकअप प्लान पर काम करेगी। और भारत अगर समय रहते खुद को ‘बैकअप’ से ‘प्राइम चॉइस’ बना पाए, तो आने वाले दशक में वह 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था से भी आगे निकल सकता है।
यही समय है जब भारत को अपने उद्योगों को सपोर्ट करना होगा, MSME को डिजिटल बनाना होगा, मैन्युफैक्चरिंग में Investment बढ़ाना होगा, और इंफ्रास्ट्रक्चर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्षम बनाना होगा। भारत के सामने आज दुनिया का सबसे बड़ा सवाल खड़ा है—क्या आप तैयार हैं उस दौड़ के लिए, जिसकी शुरुआत हो चुकी है और जिसकी मंज़िल अरबों डॉलर की अर्थव्यवस्था है?
Conclusion
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