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US-China Trade War: अमेरिका से भिड़ा चीन, भारत बना ग्लोबल सप्लाई चेन का हीरो – बढ़ी उम्मीदें, चमका मौका! 2025

Trade War

कल्पना कीजिए, एक ऐसा पल जब पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था सांसें रोक लेती है। Global बाजार थम जाते हैं, Investor घबरा जाते हैं और दो महाशक्तियाँ – अमेरिका और चीन – एक बार फिर सीधे टकरा जाती हैं। लेकिन इस बार लड़ाई सिर्फ व्यापार की नहीं है, रणनीति की है।

और इस बार चीन के पास एक ऐसा दांव है, जिसकी तरफ कोई सोच भी नहीं रहा था – भारत। हां, वही भारत जिससे अभी कुछ साल पहले ही सीमा पर तलवारें खिंची थीं। पर अब चीन उसी भारत को दोस्त बनाने पर आमादा है। सवाल ये है – क्या चीन की ये चाल अमेरिका को घुटनों पर ला सकती है? और क्या भारत इस पूरे खेल में किंगमेकर बनने जा रहा है? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

दोस्त का दोस्त दोस्त होता है, ये तो हम सबने सुना है। लेकिन जब दुश्मन का दुश्मन दोस्त बन जाए, तो खेल दिलचस्प हो जाता है। कुछ ऐसा ही हो रहा है मौजूदा Global व्यापार युद्ध में। अमेरिका और चीन के बीच छिड़ी Tariff की जंग ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। जहां अमेरिका एक के बाद एक झटके दे रहा है, वहीं चीन न सिर्फ पलटवार कर रहा है, बल्कि अमेरिका के सहयोगियों को भी अपने खेमे में लाने की रणनीति पर काम कर रहा है।

2 अप्रैल को जब अमेरिका ने चीन से आने वाले Products पर 34% अतिरिक्त Tariff लगाने का ऐलान किया, तो बीजिंग बुरी तरह तिलमिला उठा। ये वही अमेरिका है जिसने ट्रंप की सत्ता में आते ही पहले 20% का झटका दिया था। अब कुल मिलाकर चीन पर अमेरिका का Tariff 54% तक पहुंच चुका है, जो भारत के मुकाबले दोगुना है। भारत पर अमेरिका ने जितना भार डाला, चीन को उससे दोगुनी मार झेलनी पड़ रही है।

ऐसे में चीन ने भी पलटवार करने में देर नहीं की। फरवरी 2025 में जब ट्रंप प्रशासन ने पहली बार 20% Tariff लगाया था, तो अगले ही दिन चीन ने भी अमेरिकी Products पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ा दी थी। अब एक बार फिर चीन ने साफ चेतावनी दी है – Tariff का जवाब Tariff से मिलेगा। ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक, चीन ने अमेरिका से साफ कहा है कि ट्रेड वॉर में कोई विजेता नहीं होता। और अगर अमेरिका अपनी एकतरफा नीति नहीं बदलेगा, तो चीन भी अपने हितों की रक्षा के लिए हरसंभव कदम उठाएगा।

लेकिन यहां सिर्फ बयानबाज़ी नहीं हो रही है। रणनीति भी तैयार की जा रही है – और इसमें सबसे दिलचस्प मोड़ आता है, भारत के साथ चीन की बढ़ती नज़दीकियों का। एक समय था जब गलवान घाटी की घटना के बाद भारत और चीन के रिश्ते बर्फ से भी ज्यादा ठंडे हो गए थे। लेकिन अब चीन ने एक बार फिर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। और ये महज औपचारिकता नहीं है – इसके पीछे अमेरिका पर दबाव बनाने की बड़ी साज़िश छिपी है।

चीन से आने वाले Products पर 34% अतिरिक्त टैरिफ

ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने चीन पर पहले 10% Tariff लगाया, फिर उसे 20% तक बढ़ा दिया। इसके जवाब में चीन ने न केवल अमेरिकी Import पर अतिरिक्त 10 से 15 प्रतिशत Tariff लगाया, बल्कि अमेरिकी कंपनियों पर भी शिकंजा कसना शुरू कर दिया। चीन ने 25 अमेरिकी कंपनियों को Investment और Export प्रतिबंधों की सूची में डाल दिया। साथ ही मांस, डेयरी, अनाज, फल, सब्जी और समुद्री Products पर भी टैक्स बढ़ा दिया गया।

इस पूरे घटनाक्रम ने चीन को एक नई दिशा में सोचने पर मजबूर किया – अमेरिका को अकेले टक्कर नहीं दी जा सकती, लेकिन अगर उसके सहयोगी देशों को अपने पक्ष में कर लिया जाए, तो तस्वीर बदल सकती है। इसी रणनीति के तहत चीन अब जापान और दक्षिण कोरिया के साथ हाथ मिला रहा है। तीनों देश मिलकर फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को तेज़ी से आगे बढ़ा रहे हैं। चीन जापान और साउथ कोरिया से सेमीकंडक्टर का कच्चा माल मंगवाने के लिए तैयार है, जबकि जापान और कोरिया चीन से चिप्स खरीदने में रुचि दिखा रहे हैं।

लेकिन सबसे चौंकाने वाला कदम चीन ने तब उठाया, जब उसने भारत को एक सीधा ऑफर दिया – कि वह भारत के ज्यादा से ज्यादा प्रोडक्ट्स Import करेगा और व्यापार सहयोग को नई ऊंचाई पर ले जाएगा। चीन में भारत के राजदूत शू फेइहोंग ने ग्लोबल टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि चीन, भारत के साथ मिलकर काम करना चाहता है ताकि ज्यादा भारतीय प्रोडक्ट्स को चीनी बाजार में पहुंचाया जा सके।

अगर इस बयान की गहराई को समझें, तो इसमें छिपा संकेत बेहद साफ है – चीन अमेरिका के बजाय भारत से अपने रिश्ते बेहतर कर अमेरिका पर दबाव बनाना चाहता है। और भारत के लिए भी यह एक सुनहरा मौका हो सकता है, बशर्ते यह सारा खेल सिर्फ दिखावे का न हो।

दरअसल, जनवरी में ही भारत और चीन ने लगभग 5 साल बाद सीधी हवाई सेवाएं फिर से शुरू करने का फैसला लिया था। यह फैसला भारत के वरिष्ठ राजनयिक विक्रम मिस्री और चीन के विदेश मंत्री वांग यी की मुलाकात के बाद हुआ। इसका मकसद था – व्यापार और आर्थिक मतभेदों को सुलझाना। यह एक ऐसा इशारा था जो यह दिखा रहा था कि चीन अब भारत के साथ रिश्तों में नरमी लाना चाहता है।

पिछले वित्त वर्ष में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार 4% बढ़कर 118 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। यानी दोनों देशों के कारोबारी रिश्ते अभी भी मजबूत हैं, भले ही राजनीतिक तौर पर तनाव बना हुआ हो। लेकिन अब जब चीन अमेरिका से जूझ रहा है, तो भारत को नए सिरे से सहयोगी के रूप में देख रहा है।

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने यहां तक कह दिया कि भारत और चीन को और अधिक निकटता से काम करना चाहिए। उन्होंने भारतीय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से संवाद में कहा कि दोनों देशों को व्यापारिक रिश्तों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने की जरूरत है। चीन ने वादा किया है कि वह भारत के सबसे ज्यादा Products का Import करेगा। इसका मतलब है – दवाइयां, कृषि उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल और आईटी सर्विसेज जैसे क्षेत्रों में भारतीय Export को नई रफ्तार मिल सकती है।

अब सवाल ये उठता है कि क्या भारत चीन की इस दोस्ती का प्रस्ताव स्वीकार करेगा? क्या यह कदम भारत को अमेरिका से दूर कर देगा? या फिर भारत दोनों महाशक्तियों के बीच संतुलन बनाकर एक नई Global भूमिका निभा पाएगा?

विश्लेषक मानते हैं कि भारत इस वक्त बेहद मजबूत स्थिति में है। एक तरफ वह अमेरिका का रणनीतिक साझेदार है, तो दूसरी ओर चीन जैसे आर्थिक महाशक्ति को भी अपनी तरफ खींचने की ताकत रखता है। अगर भारत समझदारी से कदम बढ़ाता है, तो वह इस व्यापार युद्ध में एक निर्णायक खिलाड़ी बन सकता है।

अमेरिका के लिए ये स्थिति बेहद असहज हो सकती है। उसे लगता है कि भारत उसका साथी है, लेकिन अगर भारत चीन के साथ व्यापारिक रिश्ते बढ़ाता है, तो अमेरिका के लिए यह बड़ा झटका होगा। खासकर तब, जब अमेरिका ने खुद भारत को चीन से आगे रखने की कोशिश की थी।

लेकिन भारत के लिए ये सिर्फ रणनीति का खेल नहीं है। यह उसके उद्योगों, exporters और व्यापारिक संगठनों के लिए एक अवसर है। अगर चीन सचमुच भारतीय Products को तवज्जो देता है, तो यह भारत के MSME सेक्टर, टेक्सटाइल, कृषि और फार्मा इंडस्ट्री को नई ऊंचाई दे सकता है।

फिलहाल, चीन की चाल अमेरिका को असहज कर चुकी है। अब सवाल ये है कि इस शतरंज की बिसात पर भारत अगला मोहरा कैसे चलता है। क्या वह चीन की पेशकश को कूटनीतिक चतुराई से अपने हक में इस्तेमाल करेगा? या फिर अमेरिका को नाराज़ न करने की कोशिश में इस मौके को गंवा देगा? इतिहास गवाह है – जब दो महाशक्तियाँ लड़ती हैं, तो तीसरा खिलाड़ी सबसे ज्यादा फायदा उठाता है। और इस बार वो तीसरा खिलाड़ी भारत हो सकता है। लेकिन हर चाल फूंक-फूंककर चलनी होगी। क्योंकि गलती की गुंजाइश नहीं है।

Conclusion

शतरंज की बिसात पर भारत अगला मोहरा

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