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Tariff की आड़ में छिपा अवसर: ट्रंप की नीति से भारत को मिल सकता है ग्लोबल जॉब मार्केट में फायदा! 2025

Tariff

कल्पना कीजिए, आप सुबह ऑफिस जाने की तैयारी कर रहे हैं, जैसे रोज करते हैं। कॉफी के सिप लेते हुए आप अपने मोबाइल पर न्यूज ब्राउज़ कर रहे हैं। तभी एक हेडलाइन आपकी आंखों के सामने चमकती है—”अमेरिका ने चीन पर फिर से लगाया 245% Tariff” आप इसे स्क्रॉल करके आगे बढ़ जाते हैं, सोचते हैं—ये सब अमेरिका-चीन की लड़ाई है, भारत का क्या लेना देना?

लेकिन आप जो नहीं जानते, वो ये है कि यही हेडलाइन कल आपके ऑफिस की मीटिंग में HR के उस “cost restructuring” स्लाइड का कारण बन सकती है… या फिर आपकी सैलरी स्लिप के उस “दूसरे रंग” में रंगे हुए कॉलम की वजह। क्योंकि जो Tariff वॉर व्हाइट हाउस में साइन होती है, उसकी गूंज आपके वर्क स्टेशन तक पहुंचने में ज़्यादा वक्त नहीं लगाती। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

डोनाल्ड ट्रंप द्वारा शुरू की गई यह Tariff वॉर फिलहाल 90 दिनों के लिए कुछ देशों पर रोकी गई है, लेकिन चीन पर इसका वार अब भी जारी है। और चौंकाने वाली बात ये है कि इस लड़ाई का असर सिर्फ चीन और अमेरिका तक सीमित नहीं है। यह वॉर एक ग्लोबल आर्थिक जाल में बदल गई है, जिसकी हर डोर किसी न किसी देश की इकोनॉमी से जुड़ी है, और हर झटका वहां के आम कामकाजी लोगों की जॉब पर सीधे असर डालता है। जब दो आर्थिक दिग्गज टकराते हैं, तो स्पार्क्स सबसे पहले वर्कफोर्स के हाथ जलाते हैं।

इस संकट का सबसे पहला झटका भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को लग रहा है। खासकर उन कंपनियों को जो अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं। ऑटो इंडस्ट्री, जो भारत में लाखों लोगों को रोजगार देती है, वह अब भारी दबाव में है। कारों के पुर्जे, एक्सेसरीज़ और स्पेयर पार्ट्स का Export जो पहले अमेरिका को होता था, अब महंगा पड़ने लगा है।

अमेरिकी कंपनियां ऑर्डर रद्द कर रही हैं, डील्स टल रही हैं और फैक्ट्रियों में उत्पादन धीमा हो गया है। इसका सीधा असर कर्मचारियों पर पड़ रहा है। जो काम पहले दो शिफ्ट में होता था, वह अब एक में निपट रहा है। कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स की छुट्टी दी जा रही है, और स्थायी कर्मचारियों को “पेड लीव” के नाम पर घर बैठाया जा रहा है।

मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में अगर आप काम कर रहे हैं, तो यह समय आंखें खोलने का है। जो लोग अब तक सिर्फ टेक्निकल स्किल्स पर निर्भर थे, उन्हें अब इंडस्ट्री के ट्रेंड्स, सरकारी नीतियों और जियोपॉलिटिक्स की भी समझ होनी चाहिए। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि इलेक्ट्रिक व्हीकल्स और ग्रीन मैन्युफैक्चरिंग जैसी उभरती इंडस्ट्रीज़ में स्विच करना अब केवल विकल्प नहीं, आवश्यकता बनता जा रहा है। जो कर्मचारी पहले से इन बदलावों की तैयारी में हैं, उनके पास न केवल अपनी नौकरी बचाने का मौका है, बल्कि वो आने वाली नई इंडस्ट्री का हिस्सा भी बन सकते हैं।

अब आते हैं लॉजिस्टिक्स सेक्टर पर। यह सेक्टर ग्लोबल ट्रेड की लाइफलाइन है। लेकिन जब ट्रेड ही लड़खड़ा जाए तो इसकी नसें भी थरथराने लगती हैं। ट्रंप के Tariff के चलते अमेरिका में कंटेनर ट्रैफिक में जबरदस्त गिरावट आई है। कई जहाज बिना माल लिए बंदरगाहों से लौट रहे हैं। जिन कंटेनर्स में पहले सप्लाई भरी होती थी, अब वो खाली जा रहे हैं या रद्द हो रहे हैं। इन स्थितियों का असर भारत पर भी पड़ा है। जिन कर्मचारियों की नौकरियां इन शिपमेंट्स की संख्या पर निर्भर होती थी—जैसे डॉक वर्कर्स, वेयरहाउस सुपरवाइजर, ट्रक ड्राइवर्स और लॉजिस्टिक्स प्लानर—वो अब काम की तलाश में हैं।

इस सेक्टर के कर्मचारियों को एक्सपर्ट्स सुझाव दे रहे हैं कि उन्हें अब, पारंपरिक लॉजिस्टिक्स ऑपरेशंस से आगे बढ़कर नई स्किल्स में हाथ आजमाना चाहिए। रूट ऑप्टिमाइजेशन, डिजिटल वेयरहाउस मैनेजमेंट, एआई-आधारित शिपमेंट ट्रैकिंग जैसी स्किल्स अब न केवल भविष्य की ज़रूरत हैं, बल्कि आपके करियर की सुरक्षा भी बन सकती हैं। अगर आप यह मानकर बैठे हैं कि “मैं 10 साल से काम कर रहा हूं, मुझे कुछ नहीं होगा,” तो ये भ्रम है। आज का बाज़ार अनुभव से नहीं, अनुकूलन क्षमता से चलता है।

फार्मा और इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर की बात करें तो स्थिति और भी गंभीर है। Tariff के चलते इन सेक्टरों में इनपुट कॉस्ट में अचानक 15 से 20% तक की बढ़ोत्तरी हुई है। जो मटेरियल पहले सस्ते में मिल जाता था, अब महंगा हो गया है। खासकर Active Pharmaceutical Ingredients और माइक्रोचिप्स जैसी वस्तुएं अब पहले से महंगी हैं। नतीजतन, फार्मा कंपनियों को प्रॉफिट मार्जिन बचाने के लिए अब खर्च काटने पड़ रहे हैं। और सबसे आसान तरीका कंपनियों के लिए होता है—स्टाफ रिडक्शन।

फार्मा सेक्टर में काम कर रहे लोगों को भी अब समझना होगा कि केवल मेडिकल नॉलेज ही काफी नहीं है। क्लिनिकल डेटा एनालिसिस, ट्रायल मैनेजमेंट और डिजिटल फार्मा सप्लाई जैसे स्किल्स अब अनिवार्य होते जा रहे हैं। जो लोग इन स्किल्स से खुद को लैस नहीं कर रहे, वो इस आर्थिक युद्ध के पहले शिकार बन सकते हैं।

अब बात आती है सबसे जरूरी सवाल पर—कर्मचारी खुद को कैसे बचाएं? एक्सपर्ट देवाशीष चक्रवर्ती कहते हैं कि सबसे पहले अपनी कंपनी की स्थिति का आकलन करें। क्या आपकी कंपनी अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर निर्भर है? क्या कंपनी के रॉ मटेरियल की आपूर्ति चीन या अमेरिका से होती है? क्या कंपनी की क्लाइंट लिस्ट में अमेरिकी या यूरोपीय नाम प्रमुख हैं? अगर इन सवालों का जवाब “हां” है, तो आपको सतर्क हो जाना चाहिए।

इसके साथ ही अब वक्त है कि आप “एक जॉब के लिए एक स्किल” वाले पुराने सोच से बाहर निकलें। मल्टीस्किलिंग आज की सबसे बड़ी सुरक्षा है। यदि आप एक अकाउंटेंट हैं, तो डेटा एनालिटिक्स सीखिए। यदि आप एक इंजीनियर हैं, तो IoT और ऑटोमेशन में ट्रेनिंग लीजिए। अगर आप एक कंटेंट राइटर हैं, तो SEO और डिजिटल मार्केटिंग भी सीखिए। स्किल्स अब सिर्फ प्रोफेशन को मजबूत नहीं करतीं, ये आपको विकल्प देती हैं—विकल्प बदलते समय में टिके रहने के।

दूसरा बड़ा कदम है—Plan B का होना। यानी जब भी आप कोई जॉब करें, एक बैकअप ज़रूर तैयार रखें। आप फ्रीलांसिंग कर सकते हैं, कोई डिजिटल कोर्स चला सकते हैं, या अपने इंटरेस्ट के हिसाब से एक छोटा साइड बिज़नेस खड़ा कर सकते हैं। आज की दुनिया में जॉब सिक्योरिटी का अर्थ सिर्फ एक कंपनी में स्थायी नौकरी नहीं, बल्कि आपकी अपनी क्षमता है कि आप कब, कहां और कैसे अपने लिए नए मौके पैदा कर सकते हैं।

इस Tariff वॉर ने यह दिखा दिया है कि ग्लोबल घटनाओं का सीधा असर स्थानीय स्तर पर होता है। जब व्हाइट हाउस में साइन होता है, तब असर बंगलौर, पुणे, गुरुग्राम या हैदराबाद के ऑफिस में दिखता है। और इसलिए हमें “लोकल इंपैक्ट” को समझना और उसके लिए तैयार रहना सीखना ही होगा।

दुनिया अब एक नए आर्थिक ढांचे की ओर बढ़ रही है। अमेरिका फिर से मैन्युफैक्चरिंग सुपरपावर बनना चाहता है। चीन अपने व्यापारिक दायरे को बचाने के लिए नए बाजार खोज रहा है। भारत, इन दोनों के बीच अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। लेकिन इस पूरे युद्ध में जो सबसे अधिक अनदेखा हो जाता है, वह है—आम कर्मचारी। और अब समय है कि आम कर्मचारी “निराशा का शिकार” नहीं बल्कि “रणनीति का योद्धा” बने।

इस पूरी कहानी का सार एक ही है—Tariff वॉर केवल नेताओं की लड़ाई नहीं है, यह आपकी नौकरी, आपकी सैलरी, आपकी पहचान और आपके परिवार के भविष्य की लड़ाई है। इसलिए अब निर्णय आपको लेना है—क्या आप इस बदलती दुनिया के साथ बदलने को तैयार हैं?

Conclusion

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