कल्पना कीजिए… कोई व्यक्ति एक साथ चार कंपनियों में काम कर रहा हो। दिन के 24 घंटे, लेकिन ज़िम्मेदारियाँ चार गुना। मीटिंग्स में वह शायद ही कुछ कहता हो, रिपोर्ट्स भेजने में तेज़ी दिखाता है लेकिन गहराई से नहीं करता। कैमरा बंद, कॉल में “मुझे कुछ नहीं जोड़ना है”, और LinkedIn पर प्रोफाइल अस्पष्ट।
ऐसा लगे जैसे कोई छाया में रहकर पैसा छाप रहा हो—एक, दो नहीं, पूरे चार स्टार्टअप्स से तनख्वाह लेते हुए। और जब ये राज़ खुलता है, तो सिलिकॉन वैली तक खलबली मच जाती है। ऐसा ही हुआ है एक भारतीय इंजीनियर—Soham Parekh के साथ, जिनके नाम ने एक ही झटके में अमेरिका से भारत तक मूनलाइटिंग की बहस को फिर से जगा दिया है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
Soham Parekh… एक ऐसा नाम जो पहले शायद कोडिंग समुदाय के बाहर ज्यादा प्रसिद्ध नहीं था, लेकिन अब ग्लोबल टेक इंडस्ट्री में हर टेबल पर चर्चा का विषय बन चुका है। उन पर आरोप है कि उन्होंने एक साथ चार से पाँच स्टार्टअप्स में काम किया और वह भी बिना किसी कंपनी को जानकारी दिए। अमेरिका के जाने-माने टेक एंटरप्रेन्योर सुहैल दोशी ने जब ट्विटर पर इस बात का खुलासा किया कि, Soham Parekh उनके स्टार्टअप में काम कर रहे थे और साथ ही चार और कंपनियों में भी एक्टिव थे, तो हर कोई चौंक गया। यह सिर्फ एक कर्मचारी की बात नहीं थी, यह एक पूरी प्रणाली की ईमानदारी पर सवाल बन चुका था।
Soham Parekh का मामला सोशल मीडिया पर जंगल की आग की तरह फैला। सुहैल दोशी ने ट्वीट में लिखा—”भारत का एक लड़का, Soham Parekh, एक साथ चार स्टार्टअप्स में काम कर रहा है।” उन्होंने इसके साथ Soham Parekh का सीवी भी साझा किया जिसमें डायनेमो AI, यूनियन AI, सिंथेसिया और एलन AI जैसी कंपनियों का नाम दर्ज था। इस ट्वीट के बाद न सिर्फ सोशल मीडिया में हलचल मच गई, बल्कि बाकी स्टार्टअप्स के संस्थापक भी अपने-अपने अनुभव सामने लाने लगे। कुछ ने उसे ‘बेहद स्मार्ट’ बताया, तो कुछ ने ‘धोखेबाज़’ कहा।
लिंडी स्टार्टअप के फाउंडर फ्लो क्रिवेलो ने बताया कि उन्होंने भी एक हफ्ते पहले ही Soham Parekh को नौकरी पर रखा था। इंटरव्यू में उन्हें सोहम की स्किल्स से प्रभावित भी किया, लेकिन जैसे ही मूनलाइटिंग की बात सामने आई, उन्होंने उसे तुरंत बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसी तरह Fleet AI के सीईओ निकोलई ओपोरोव ने कहा कि सोहम उनके साथ भी लंबे समय से काम कर रहा था, और वह यह देखकर हैरान हैं कि वह कैसे इतने सालों से यह सब कर पा रहा है।
Antimetal कंपनी के CEO मैथ्यू पार्कहर्स्ट ने तो Soham Parekh को स्मार्ट और पसंदीदा इंटर्न तक बताया, लेकिन अंततः मूनलाइटिंग के आरोपों के बाद उसे भी निकाल दिया गया। Warp के प्रोडक्ट हेड मिशेल लिम ने बताया कि उन्होंने सोहम को ट्रायल पर रखा था, लेकिन जब उन्होंने बाकी कंपनियों के साथ उसके संबंधों के बारे में सुना, तो उन्होंने एग्रीमेंट खत्म कर दिया। इन सभी कंपनियों की प्रतिक्रियाएं एक ही दिशा में इशारा कर रही थीं—Soham Parekh ने जिस भरोसे के साथ जॉब्स ली थीं, वह भरोसा अब टूटा है।
Soham Parekh का दावा है कि उन्होंने मुंबई यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया और फिर जॉर्जिया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से मास्टर्स की डिग्री हासिल की। हालांकि अब उनके सीवी के हर दावे की जांच की जा रही है। अभी तक उन्होंने खुद कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन सुहैल दोशी के अनुसार, सोहम ने व्यक्तिगत रूप से उनसे माफ़ी मांगी और कहा—”क्या मैंने अपना करियर पूरी तरह बर्बाद कर दिया है? मैं अपनी स्थिति को सुधारने के लिए क्या कर सकता हूं?” इस एक सवाल ने इंटरनेट पर बहस को और गहरा कर दिया।
अब सवाल उठता है—आखिर मूनलाइटिंग होता क्या है? मूनलाइटिंग का अर्थ है जब कोई कर्मचारी अपने मुख्य नौकरी के अलावा चुपचाप अन्य कंपनियों में भी काम करता है, आमतौर पर बिना अपनी पहली कंपनी को बताए। यह प्रैक्टिस भारत में भी चर्चा का विषय रही है, खासतौर पर कोविड के बाद रिमोट वर्क कल्चर के दौरान। आईटी कंपनियों जैसे विप्रो, इंफोसिस और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज ने इस मुद्दे पर सख्ती दिखाई है। उनका मानना है कि मूनलाइटिंग कंपनी की नीति, डेटा सुरक्षा और कर्मचारी प्रतिबद्धता के खिलाफ है।
सोशल मीडिया पर ऐसे कर्मचारियों की तकनीकें भी उजागर हुई हैं। एक Reddit यूजर ने बताया कि कैसे मूनलाइटिंग करने वाले कर्मचारी AI टूल्स का इस्तेमाल करते हैं, मीटिंग्स में कैमरा बंद रखते हैं, पहले ही हफ्ते छुट्टी ले लेते हैं, अपने कैलेंडर को “फोकस टाइम” से ब्लॉक करते हैं और काम को आउटसोर्स कर देते हैं। वे तेजी से कार्य करते हैं, ताकि बाकी समय दूसरी नौकरियों के लिए बचा सकें। इस तरह वे एक साथ 3 से 5 नौकरियों को मैनेज कर लेते हैं—और सैलरी? करोड़ों में।
एक Reddit स्क्रीनशॉट में एक मूनलाइटर दावा करता है कि, वह एक साथ पाँच नौकरियाँ करके सालाना 6.85 करोड़ रुपये तक कमा रहा है। वह रोज़ाना 3,000 डॉलर यानी लगभग 2.5 लाख रुपये कमाता है। उसकी रणनीति है—“झूठ बोलो, धोखा दो और चुराओ।” यह बात इसलिए भी डरावनी है क्योंकि उस कम्युनिटी में पाँच लाख से ज़्यादा सदस्य हैं, जिनमें से बहुत से इसी रणनीति को अपना रहे हैं। और Soham Parekh का नाम जैसे इन सबका प्रतिनिधित्व करने लगा है।
तीन साल से Soham Parekh ने कई नौकरियाँ एकसाथ निभाईं, वो भी पूरी तरह रिमोट मोड में। खुद को ‘कंसल्टेंट’ बताकर वह नियमित ऑफिस मीटिंग्स से दूर रहता, लेकिन ज़रूरी काम समय पर करता। यूएस टाइम ज़ोन में काम करके उसने अपने शेड्यूल को इस तरह बांधा कि हर नौकरी को वह उतना समय दे सके जिससे लगे कि वह समर्पित है—लेकिन असल में वह हर जगह आंशिक रूप से मौजूद था। यह उसकी मैनेजमेंट स्किल थी या सिस्टम की कमजोरी—इस पर अभी भी बहस जारी है।
विडंबना यह है कि जब दुनिया भर में लोग नौकरियों की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं, वहाँ एक व्यक्ति इतने अवसरों को एक साथ जी रहा था। और अब जबकि ये मामला उजागर हो चुका है, तब भी Reddit और Discord जैसे प्लेटफॉर्म्स पर ये चर्चा हो रही है कि “क्या Soham Parekh अब भी कहीं और काम कर रहा होगा?” यानी, पूरी टेक इंडस्ट्री के लिए यह एक चेतावनी बन चुका है।
कई लोग Soham Parekh को धोखेबाज़ मानते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो उसे सिस्टम के एक ‘हैक’ करने वाले के रूप में देखते हैं। उनका मानना है कि अगर कंपनियाँ अपने कर्मचारियों को रिमोट वर्क देते हुए ठीक से निगरानी नहीं रख पा रही हैं, तो इसमें दोष किसका है? क्या यह कर्मचारियों की चालाकी है या कंपनियों की लापरवाही? क्या हर गलती के लिए सिर्फ कर्मचारी को ही कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए?
Soham Parekh का मामला सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी नहीं है, यह उस बदलती हुई कार्य संस्कृति की तस्वीर है जहाँ पारंपरिक नियम अब डिजिटल युग की जटिलताओं के सामने कमजोर पड़ते दिख रहे हैं। एक दौर था जब नौकरी सिर्फ 9 से 5 का मामला थी, लेकिन आज की दुनिया में एक ही लैपटॉप से पाँच कंपनियों को जवाब देना संभव है। और जब तक सिस्टम अपडेट नहीं होता, तब तक ‘सोहम’ जैसे नाम सामने आते रहेंगे।
Conclusion
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