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Silver का सुनहरा सफर! क्या बनने जा रही है नया सोना? जानिए दुनिया को चौंकाने वाली सच्चाई I 2025

Silver

रात का समय है… शहर की रोशनी में एक पुरानी हवेली की खिड़की हल्के-हल्के खुलती है। अंदर एक तिजोरी रखी है, और उसके ताले को कोई बड़ी सावधानी से खोल रहा है। ताले के खुलते ही हल्की सी ‘क्लिक’ की आवाज़ आती है, और तिजोरी का दरवाज़ा धीरे-धीरे खुलता है। अंदर जो है, वह आंखों को चौंधिया देता है—लेकिन ये वो सुनहरी चमक नहीं है जिसकी आदत हमारी आंखों को सदियों से है।

यहां Silver की मोटी-मोटी सलाखें सजी हैं, जो रोशनी में ऐसे चमक रही हैं मानो किसी ने चांद की किरणों को कैद कर लिया हो। पीढ़ियों से हमने सुना कि सोना ही असली दौलत है, लेकिन इस बार खेल बदल चुका है। इतिहास की किताबों में दर्ज होगा कि एक दौर ऐसा भी आया जब Silver ने सोने को पछाड़ दिया, और यह सिर्फ़ कीमत का खेल नहीं, बल्कि एक नए आर्थिक युग का संकेत था। सवाल यह है—क्या हम उस समय में पहुंच चुके हैं, जहां चांदी ही नए ‘गोल्ड’ का दर्जा पाएगी? या फिर यह चमक भी कुछ सालों में फीकी पड़ जाएगी? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

आपको बता दें कि पिछले एक साल में Investors के पोर्टफोलियो में एक नया नायक उभरा है—सिल्वर। आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि जहां सोने ने Investors को करीब 30% का रिटर्न दिया, वहीं Silver ने इसे पीछे छोड़ते हुए 33% से ज्यादा का लाभ दिया है। यह अंतर मामूली लग सकता है, लेकिन अरबों-खरबों के Investment बाजार में यह कुछ लोगों को करोड़पति और कुछ को अरबपति बना सकता है।

यह बदलाव सिर्फ़ आकड़ों का खेल नहीं, बल्कि उस सोच का प्रमाण है जो अब Investment की दुनिया में घर कर रही है—कि भविष्य सिर्फ़ पीले धातु का नहीं, बल्कि सफेद चमक वाले मेटल का भी है। इस बदलाव के पीछे की सबसे बड़ी ताकत है—इंडस्ट्रियल डिमांड का विस्फोट। दुनिया सौर ऊर्जा की तरफ बढ़ रही है, इलेक्ट्रिक गाड़ियों की क्रांति आ रही है, 5जी और सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री का विस्तार हो रहा है—इन सबका दिल चांदी से धड़कता है। लेकिन दिक्कत यह है कि जितनी मांग है, उतनी सप्लाई नहीं, और यही अंतर Silver के दामों को आसमान की तरफ धकेल रहा है।

6.1 अरब डॉलर से ज्यादा की assets Managed करने वाली वेल्थ एडवाइजरी फर्म ‘क्लाइंट एसोसिएट्स’ की नई रिपोर्ट ने इस बदलाव को पुख्ता किया है। रिपोर्ट में Silver को “रणनीतिक और दोहरी भूमिका” वाले Investment असेट के रूप में पेश किया गया है, जो आने वाले 12 से 24 महीनों में 15 से 20% तक का रिटर्न दे सकती है। सोचिए, एक समय था जब चांदी को सिर्फ़ बर्तनों, सिक्कों या पूजा के थाल तक सीमित माना जाता था, लेकिन अब यह भविष्य की तकनीकों का इंजन बन गई है। यह बदलाव केवल Investors की कमाई नहीं बढ़ा रहा, बल्कि दुनिया के उद्योगों के नक्शे को भी बदल रहा है।

सोना हमेशा से महंगाई और अनिश्चितता के दौर में ‘सेफ हेवन’ यानी सुरक्षित ठिकाना माना जाता रहा है। जब भी दुनिया में आर्थिक संकट आया, Investors ने सोने की तरफ रुख किया। लेकिन Silver की कहानी अलग है। यह सिर्फ़ एक बहुमूल्य धातु नहीं है, बल्कि उद्योगों की रीढ़ है। सोलर पैनल से लेकर 5जी नेटवर्क टावर तक, इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी से लेकर सेमीकंडक्टर चिप्स तक, हर जगह Silver का इस्तेमाल अनिवार्य हो चुका है। और जब किसी चीज़ की मांग लगातार बढ़ती है, लेकिन उसकी Supply नहीं, तो उसका बाजार मूल्य स्वाभाविक रूप से उछलने लगता है। यही आज चांदी के साथ हो रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार, लगातार चौथे साल Silver की ग्लोबल सप्लाई में घाटा दर्ज हुआ है। 2024 में यह घाटा 149 मिलियन औंस तक पहुंच गया, जो चांदी की कीमतों में तेजी का बड़ा कारण है। यह आंकड़ा केवल माइनिंग कंपनियों के लिए सिरदर्द नहीं, बल्कि पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए चेतावनी है। नए माइनिंग प्रोजेक्ट्स शुरू करना आसान नहीं—खोज, परमिट, पर्यावरण मंजूरी, और फिर उत्पादन में सालों लग जाते हैं। रीसाइक्लिंग पर भी पूरी दुनिया निर्भर नहीं रह सकती, क्योंकि इसमें गुणवत्ता और मात्रा दोनों सीमित हैं। ऐसे में मांग का यह दबाव कीमतों को और ऊपर खींच रहा है, और Investors के लिए यह एक सुनहरा (या कहें—सिल्वर) अवसर बन रहा है।

अब सवाल उठता है—क्या Silver अभी भी अंडरवैल्यूड है? गोल्ड-सिल्वर रेश्यो इस समय 90 पर है, जबकि इसका लॉन्गटर्म एवरेज 68 है। इसका सीधा मतलब है कि चांदी की कीमत अभी भी अपनी वास्तविक क्षमता तक नहीं पहुंची है। खासकर ऐसे समय में जब सोने की कीमतें स्थिर हो रही हैं, चांदी में ऊपर जाने की संभावना ज्यादा है। Investment की दृष्टि से, चांदी भारतीय शेयर बाजार से लो कोरिलेशन (0.21) और सोने से मॉडरेट कोरिलेशन (0.72) रखती है, जो पोर्टफोलियो के रिस्क को बैलेंस करने के लिए बेहतरीन है।

क्लाइंट एसोसिएट्स के इंवेस्टमेंट डायरेक्टर, नितिन अग्रवाल कहते हैं—“Silver अब सिर्फ़ एक कीमती धातु नहीं है, बल्कि यह एक मॉडर्न असेट क्लास है।” और उनकी बात आंकड़ों और रुझानों से मेल खाती है। अगर आने वाले 10 से 15 साल में ग्रीन एनर्जी, डिजिटल कनेक्टिविटी और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी का विस्तार होता है, तो Silver की मांग में आज के मुकाबले कई गुना इजाफा हो सकता है।

साल 2024 में, ग्लोबल सिल्वर सप्लाई 1,015 मिलियन औंस रही—सालाना आधार पर सिर्फ़ 1.7% की वृद्धि। लेकिन डिमांड 1,160 मिलियन औंस तक पहुंच गई। यह फासला बताता है कि बाजार में 149 मिलियन औंस की कमी है। और यह कमी केवल एक साल की बात नहीं, बल्कि चार साल से लगातार बनी हुई है। नई तकनीकों की वजह से सोलर पैनल, ईवी बैटरी और माइक्रोचिप्स जैसी चीजों में Silver की खपत तेज हो रही है, जो कीमतों को और ऊंचा खींच रही है।

हालांकि, डिमांड का पैटर्न बदल रहा है। 2024 में कुल डिमांड में 2.8% की गिरावट दर्ज हुई, लेकिन यह गिरावट पारंपरिक उपयोग—जैसे फिजिकल सिल्वर, Silver के बर्तन और फोटोग्राफी—में कमी की वजह से थी। दूसरी तरफ इंडस्ट्रियल डिमांड में 3.6% की वृद्धि हुई, जो लगातार चौथे साल रिकॉर्ड ऊंचाई पर रही। 2016 से 2024 तक, ग्लोबल सिल्वर डिमांड लगभग 2% की सीजीएआर से बढ़ी है। यह साफ संकेत है कि Silver का असली खेल अब उद्योग और तकनीक में है, न कि सिर्फ़ आभूषण और सजावट में।

लेकिन, हर Investment में Risk भी होते हैं। अगर माइनिंग आउटपुट अचानक बढ़ जाता है, तो सप्लाई में तेजी आ सकती है और कीमतें गिर सकती हैं। ग्लोबल मंदी इंडस्ट्रियल डिमांड को कम कर सकती है। इसके अलावा, इलेक्ट्रॉनिक्स और सोलर एनर्जी जैसे सेक्टर्स में Silver के विकल्प खोजे जाने लगे, तो इसकी मांग में गिरावट आ सकती है। यानी, Investors को सिर्फ़ चमक देखकर अंधा नहीं होना चाहिए, बल्कि रिस्क मैनेजमेंट पर भी ध्यान देना चाहिए।

तो अब सवाल यह है कि Investment कहां और कैसे करें? विकल्प कई हैं—सिल्वर ईटीएफ, सिल्वर ईटीएफ फंड-ऑफ-फंड, फिजिकल सिल्वर, और गोल-लिंक्ड पोर्टफोलियो में हाइब्रिड ग्रोथ-हेज के रूप में शामिल करना। शॉर्ट टर्म में सिल्वर ईटीएफ कॉस्ट-एफिशिएंट और टैक्स बेनिफिट वाला रास्ता है, जबकि लॉन्गटर्म Investor एफओएफ चुन सकते हैं। भारतीय Investors के लिए, जिनके पोर्टफोलियो में पहले से ही इक्विटी और गोल्ड ज्यादा है, Silver एक संतुलन लाने वाला तीसरा स्तंभ बन सकती है।

चांदी को पोर्टफोलियो में शामिल करने के तीन बड़े कारण हैं—पहला, 1 से 2 साल में 15 से 20% रिटर्न की संभावना; दूसरा, स्ट्रक्चरल सप्लाई डेफिसिट और इंडस्ट्रियल डिमांड का उछाल; और तीसरा, इक्विटी और गोल्ड जैसे भारी पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई करने की क्षमता। लॉन्गटर्म में सोना और Silver लगभग समान रिटर्न देते हैं, लेकिन शॉर्ट टर्म में Silver में तेज़ी की संभावना ज्यादा होती है—हालांकि गिरावट भी उतनी ही तेज़ हो सकती है।

कहानी का सार यही है कि आज की Silver सिर्फ़ एक मेटल नहीं, बल्कि भविष्य की ऊर्जा, तकनीक और Investment का केंद्र है। जो लोग इसे समय रहते समझ लेते हैं, वे आने वाले दशक में आर्थिक दौड़ में आगे रहेंगे। और जो इसे नज़रअंदाज करेंगे, वे शायद आने वाले वक्त में सुनेंगे—“जब Silver सोने से आगे निकल रही थी, तब तुम सो रहे थे।”

Conclusion

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