एक रात की कल्पना कीजिए — बाहर मूसलधार बारिश हो रही है, आपका सारा सामान एक बरसाती कमरे से बाहर फेंक दिया गया है, जेब में सिर्फ 23 रुपए बचे हैं, और फोन का नेटवर्क तक काट दिया गया है क्योंकि बिल नहीं चुकाया गया। ऐसे अंधेरे में जब पूरी दुनिया सो रही होती है, कोई एक लड़का आँखों में ख्वाब लिए बैठा होता है। उसके पास न पैसा है, न कोई जान-पहचान, और न ही कोई सिक्योरिटी। लेकिन है तो बस एक चीज — हिम्मत।
ये कहानी है Ritesh अग्रवाल की — एक ऐसे लड़के की जो इस हालत से निकलकर न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया के 30 से ज्यादा देशों में अपनी कंपनी का परचम लहराता है। जिसने कभी सस्ती और साफ होटल ढूँढने के लिए संघर्ष किया, आज वह लाखों ट्रैवलर्स को उनकी मंज़िल तक पहुँचने में मदद करता है। रितेश की कहानी सिर्फ एक बिज़नेस की नहीं, बल्कि उस सोच की कहानी है, जो कठिनाइयों के आगे झुकती नहीं, बल्कि उन्हें चीरते हुए आगे बढ़ती है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
बॉलीवुड की तरह, स्टार्टअप की दुनिया में भी ग्लैमर होता है — सफल संस्थापक, बड़ी गाड़ियाँ, स्टेज पर भाषण और मीडिया में चमकती तस्वीरें। लेकिन इस चमक-धमक के पीछे बहुत गहरे अंधेरे छुपे होते हैं। जब हम कहते हैं कि Ritesh अग्रवाल के पास सिर्फ 23 रुपए बचे थे, तो ये कोई फिल्मी स्क्रिप्ट नहीं, बल्कि उनकी हकीकत थी। आज जब वह Shark Tank India जैसे मंच पर जज बनते हैं, करोड़ों की डील्स करते हैं, और दुनिया उन्हें एक रोल मॉडल की तरह देखती है — उस ऊँचाई के पीछे वो लंबी सीढ़ियाँ थीं जो आंसुओं, भूख, नींद की कमी और अस्वीकृति से बनी थीं।
Ritesh का जन्म ओडिशा के बिस्मकटक नामक छोटे से कस्बे में हुआ था। उनका परिवार साधारण था — उनके पिता एक दुकान चलाते थे। ज़िंदगी सीमित थी लेकिन सपने असीम। Ritesh बचपन से ही उन बच्चों में से नहीं थे जो चुपचाप स्कूल से घर आकर टीवी देखते थे। वे इंटरनेट पर घंटों बिज़नेस आइडिया खोजते, टेक्नोलॉजी के बारे में पढ़ते, और खुद से सवाल करते कि दुनिया कैसे बदलती है? वे हमेशा अपनी दुकान से बाहर की दुनिया के बारे में सोचते थे, जहां वो कुछ ऐसा कर सकें जो करोड़ों लोगों की ज़िंदगी बदल दे।
जब Ritesh 12वीं में पढ़ रहे थे, तब उनके परिवार को इतनी आर्थिक तंगी झेलनी पड़ी कि उन्हें अपना घर बेचना पड़ा। वे एक छोटे से बरसाती कमरे में शिफ्ट हो गए — एक ऐसी जगह जहाँ न ठीक से बाथरूम था, न सुरक्षा, न सुविधा। लेकिन Ritesh के अंदर का सपना अब और भी तेज़ी से जलने लगा था। उन्होंने दिल्ली में इंडियन स्कूल ऑफ बिज़नेस एंड फाइनेंस में दाखिला लिया, लेकिन उन्हें जल्दी ही एहसास हुआ कि ये रास्ता उनके लिए नहीं है। उन्होंने तीसरे ही दिन कॉलेज छोड़ दिया और अपने स्टार्टअप पर फोकस करने का फैसला किया। ये निर्णय लेना आसान नहीं था, खासकर जब आपके पास न सपोर्ट हो, न पैसा।
उनका शुरुआती समय बेहद कठिन था। एक समय तो ऐसा आया जब जहाँ वे रहते थे, वहां से उन्हें आधी रात को बाहर निकाल दिया गया। बारिश हो रही थी, सारा सामान सड़क पर था और उनके पास सिर्फ 23 रुपए थे। उनका फोन भी कट चुका था। किसी को कॉल नहीं कर सकते थे, मदद नहीं मांग सकते थे। किसी और के लिए ये हालत शायद ज़िंदगी खत्म कर देती, लेकिन Ritesh के लिए ये आग थी — वही आग जिसने उन्हें आगे बढ़ाया।
Ritesh को यात्रा करने का शौक था और उन्होंने अपनी यात्राओं के दौरान एक बड़ी समस्या को पहचाना — बजट ट्रैवलर्स के लिए सस्ते, साफ और भरोसेमंद होटल ढूंढना बहुत मुश्किल है। यही से उन्हें एक आइडिया आया। 2011 में महज 17 साल की उम्र में उन्होंने ओरावेल स्टेजेस नाम की एक वेबसाइट शुरू की, जो Airbnb की तरह काम करती थी। लेकिन उन्होंने जल्दी ही महसूस किया कि भारतीय बाज़ार को एक अलग अप्रोच की ज़रूरत है। भारतीय ट्रैवलर को एक ऐसे प्लेटफॉर्म की जरूरत है जो न केवल होटल बुकिंग दे, बल्कि स्टैंडर्ड क्वालिटी भी सुनिश्चित करे।
2013 में उन्होंने इसी आइडिया को नया नाम दिया — OYO Rooms। “On Your Own” — ये नाम खुद में बहुत कुछ कहता है। शुरुआत में तो होटल मालिकों ने उन्हें सीरियसली नहीं लिया। उन्हें लगता था कि एक बच्चा उनसे होटल पार्टनरशिप की बात कर रहा है। लेकिन Ritesh ने हार नहीं मानी। वे खुद होटल जाते, साफ-सफाई जांचते, स्टाफ को ट्रेनिंग देते, और खुद ही फोटो खींचकर वेबसाइट पर डालते। उन्होंने हर उस चीज़ को खुद किया, जो आज एक टीम करती है।
इसी बीच Ritesh को जीवन की एक और सबसे बड़ी सफलता मिली — थिएल फेलोशिप। ये फैलोशिप PayPal के को-फाउंडर पीटर थिएल की ओर से दी जाती है, और Ritesh इसे पाने वाले पहले भारतीय बने। उन्हें 1 लाख डॉलर की ग्रांट मिली, जिससे उन्होंने OYO का इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया। इस रकम का इस्तेमाल उन्होंने तकनीकी विकास, टीम बनाने, और होटल नेटवर्क तैयार करने में किया। यह वो दौर था जब भारत में स्टार्टअप्स का कल्चर बस शुरू हो रहा था, और Ritesh अग्रवाल उस लहर के सबसे चमकते चेहरे बनकर उभरे।
OYO की ग्रोथ रफ्तार किसी रॉकेट की तरह थी। 2016 तक OYO भारत के 200 शहरों में पहुंच चुकी थी। 2018 आते-आते Ritesh अग्रवाल दुनिया के दूसरे सबसे युवा सेल्फ-मेड अरबपति बन गए। उस समय उनकी नेटवर्थ 1.1 बिलियन डॉलर के आसपास थी। फोर्ब्स ने उन्हें ‘30 अंडर 30 एशिया’ की सूची में शामिल किया। टाइम मैग्ज़ीन ने उन्हें ‘100 मोस्ट इन्फ्लुएंशियल पीपल इन द वर्ल्ड’ में जगह दी। भारतीय युवाओं के लिए वे एक नया रोल मॉडल बन चुके थे — एक ऐसा रोल मॉडल जिसने दिखाया कि कोई भी सपना छोटा नहीं होता।
लेकिन हर सफर में कुछ मोड़ मुश्किल भी होते हैं। 2020 में जब कोरोना महामारी आई, तो होटल इंडस्ट्री सबसे ज़्यादा प्रभावित हुई। OYO को भी तगड़ा झटका लगा। कंपनी को करीब 4,500 करोड़ का नुकसान हुआ। हजारों बुकिंग्स कैंसिल हुईं, निवेशकों का भरोसा डगमगाया, और कई होटल्स हमेशा के लिए बंद हो गए। लेकिन Ritesh ने फिर भी हार नहीं मानी। उन्होंने क्वारनटीन सेंटर मॉडल पर काम किया, वर्क फ्रॉम होटल जैसे इनोवेशन लाए और टीम को दोबारा खड़ा किया।
आज Ritesh सिर्फ OYO को आगे नहीं बढ़ा रहे, बल्कि अब उन्होंने फूड बिज़नेस में भी उतरने का फैसला किया है। रेस्टोरेंट्स, क्लाउड किचन और डिलीवरी मार्केट में उनका आगमन हो चुका है। जैसे ही ये खबर आई, पूरे फूड सेक्टर में हलचल मच गई। ज़ोमैटो और स्विगी जैसे दिग्गजों को भी अब टेंशन होने लगी है, क्योंकि जब कोई लड़का 23 रुपए से शुरुआत करके 16,000 करोड़ की कंपनी बना सकता है, तो वो किसी भी सेक्टर को हिला सकता है।
Ritesh अग्रवाल की कहानी उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो छोटे कस्बों से आते हैं, जिनके पास ना कोडिंग की डिग्री है, ना बड़े कॉलेज का नाम, ना बड़ा नेटवर्क। सिर्फ सपने हैं, और उन्हें पूरा करने की दीवानगी। ये कहानी बताती है कि रास्ता चाहे जितना मुश्किल हो, अगर इरादा मजबूत हो, तो हर सपना पूरा हो सकता है।
Conclusion
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