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Pakistan से निकलेगा रास्ता? कटोरे से बम तक की कहानी अब बदल रही है – इकॉनॉमी को बचाने की नई उम्मीद! 2025

Pakistan

एक ऐसा देश, जो हर बार जंग के मुहाने पर पहुंचकर वापस लौट आता है—क्योंकि उसकी जेब में न बारूद है, न बजट। जहां सेना की गूंज है, लेकिन पेट खाली हैं। जहां मिसाइलें तो हैं, लेकिन रोटियों का हिसाब आईएमएफ से मांगा जाता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं Pakistan की, जो इस वक्त इतिहास के सबसे खतरनाक मोड़ पर खड़ा है—जहां एक तरफ भारत से टकराव चरम पर पहुंच चुका है, तो दूसरी तरफ घर के अंदर भुखमरी, कर्ज और तबाही का तूफान उठा हुआ है।

और अब, इसी तबाही में एक और अध्याय जुड़ गया है—आईएमएफ से मिली एक और किस्त। लेकिन सवाल ये है—क्या ये पैसा Pakistan की सांसों को बचाएगा, या आतंक की आग में झोंक दिया जाएगा? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

Pakistan के लिए International Monetary Fund यानी IMF कोई नया नाम नहीं है। लेकिन इस बार हालात कुछ अलग हैं। 10 मई को भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर तो हो गया, लेकिन उससे पहले जो तनाव और हमले हुए, उनके जवाब में भारत ने जो कार्रवाई की, उससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पूरी तरह हिल गई। हालात इतने खराब हो गए कि Pakistan को एक बार फिर कटोरा लेकर IMF के दरवाज़े पर खड़ा होना पड़ा। और आश्चर्यजनक रूप से, IMF ने फिर से एक अरब डॉलर की किस्त जारी कर दी।

ये रकम उन्हें एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी (EFF) के तहत दी गई है। लेकिन क्या ये पहली बार है? नहीं! Pakistan पिछले 70 सालों से IMF से इसी तरह कर्ज लेता आ रहा है। अब तक 25 बार। सोचिए, 25 बार एक ही संगठन से कर्ज लेना, और फिर भी हालात हर बार वैसे के वैसे। एक ऐसा देश जो बार-बार मदद तो मांगता है, लेकिन उसका सही इस्तेमाल कभी नहीं करता।

IMF के आंकड़े बताते हैं कि 1958 से लेकर अब तक Pakistan को कुल 44.57 अरब डॉलर की मदद मंजूर हुई, जिसमें से 28.2 अरब डॉलर जारी भी कर दिए गए। लेकिन आज भी Pakistan की हालत यह है कि उसकी अर्थव्यवस्था 350 अरब डॉलर से आगे नहीं बढ़ पाई। भारत की तुलना में तो यह आंकड़ा बेहद शर्मनाक है, क्योंकि भारत की GDP अब 4 ट्रिलियन डॉलर के करीब पहुंच चुकी है।

तो सवाल उठता है कि ये पैसा कहां गया? इसका जवाब बहुत सीधा है—देश के विकास पर नहीं, आतंक पर खर्च हुआ। Pakistan की खुफिया एजेंसियां, आतंकी संगठन—जैसे लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद—इन सबको मिलने वाली फंडिंग का रास्ता कहीं न कहीं इन अंतरराष्ट्रीय कर्जों से होकर गुजरता है। भारत ने इस पर कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चेतावनी दी है। यहां तक कि IMF की हालिया बैठक से पहले भी भारत ने साफ-साफ कहा कि, Pakistan को मिलने वाली मदद का उपयोग भारत विरोधी गतिविधियों में हो सकता है।

लेकिन IMF ने फिर भी आंखें मूंद लीं, और Pakistan को एक और अवसर दे दिया। इस मदद को लेकर भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में आलोचना हो रही है। क्योंकि सब जानते हैं—ये कर्ज एक अस्थायी ऑक्सीजन है, जो मरीज की बीमारी नहीं हटाता, सिर्फ वेंटिलेटर का समय बढ़ा देता है।

अब ज़रा Pakistan की मौजूदा हालत पर नज़र डालते हैं—देश का विदेशी कर्ज अब 130 अरब डॉलर को पार कर गया है, जो उसकी GDP का करीब 42% है। सबसे बड़ा कर्ज चीन का है, जिसने Pakistan को अपने कर्ज-जाल में इस कदर जकड़ लिया है कि अब निकलना लगभग नामुमकिन हो गया है। चीन ने सीपैक और कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के नाम पर अरबों डॉलर झोंक दिए, लेकिन उसका रिटर्न Pakistan के विकास में नहीं, बल्कि चीन के दबदबे में दिख रहा है।

Pakistan के विदेशी मुद्रा भंडार की बात करें, तो वो महज़ 15 अरब डॉलर के करीब है—जो मुश्किल से तीन महीने के Import के लिए पर्याप्त है। यानी अगर एक तिमाही भी विदेशी सप्लाई बंद हो जाए, तो Pakistan पूरी तरह घुटनों पर आ जाएगा।

गरीबी की बात करें, तो 2023 में जहां यह दर 40.2% थी, वहीं 2024 में यह बढ़कर 40.5% हो गई। यानी हर तीन में से एक पाकिस्तानी आज भी गरीबी की रेखा के नीचे जी रहा है। और यह उस देश की हालत है जिसे हर साल अरबों डॉलर का कर्ज मिलता है। सोचिए, अगर इतने पैसे भारत या किसी विकासशील देश को मिले होते, तो वहां कितनी प्रगति होती।

इसके अलावा, महंगाई की मार भी कम नहीं है। 2023 में औसत महंगाई दर 38% तक पहुंच गई थी, और 2024 में यह गिरकर भी 24% पर अटक गई—जो अब भी किसी भी देश के लिए खतरनाक है। लोग रोजमर्रा की जरूरतों के लिए तरस रहे हैं—खाद्यान्न, दवाइयां, बिजली, गैस… सब कुछ महंगा, और आमदनी शून्य के करीब।

बेरोजगारी भी देश को खा रही है। आतंकवाद के डर से विदेशी कंपनियां Pakistan से मुंह मोड़ रही हैं। 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, युवाओं में बेरोजगारी की दर 9.7% रही। लेकिन असल तस्वीर इससे कहीं ज़्यादा भयावह है, क्योंकि लाखों लोग तो अब नौकरी तलाशना ही छोड़ चुके हैं।

सबसे डरावनी बात ये है कि Pakistan अब भुखमरी की कगार पर है। 2024 के (Global Hunger Index) में Pakistan का स्थान 127 देशों में से 109वां है। वहां की 80% आबादी को पर्याप्त पोषण नहीं मिल पा रहा। एक ओर कर्ज के आंकड़े हैं, और दूसरी ओर भूख से मरते बच्चे—ये एक ऐसे राष्ट्र की कहानी है जो सिर्फ झूठे गौरव और झूठी रणनीति पर टिका है।

अब सवाल उठता है कि क्या इस बार मिला IMF का कर्ज Pakistan की हालत सुधारेगा? जवाब—संभव नहीं। क्योंकि इतिहास ने बार-बार साबित किया है कि पाकिस्तान कर्ज को कर्ज ही बनाए रखता है, विकास नहीं। वो उसे आतंक, हथियार, और राजनीतिक प्रचार में खर्च करता है। अगर वास्तव में पाकिस्तान सुधार चाहता, तो 25 कर्ज कार्यक्रमों के बाद उसकी सड़कों पर रोटियां बिखरी होतीं, न कि लाशें।

स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान की रिपोर्ट बताती है कि सिर्फ IMF ही नहीं, बल्कि Asian Development Bank, World Bank और अन्य संस्थानों से भी Pakistan को भारी-भरकम मदद मिली है। वित्त वर्ष 2023 और 2024 में ही ADB से 3.6 अरब डॉलर और World Bank से 4.3 अरब डॉलर मिले हैं। लेकिन देश की अर्थव्यवस्था एक इंच भी ऊपर नहीं उठी।

Moody’s जैसी रेटिंग एजेंसियों ने Pakistan को चेताया है कि वह अब किसी भी युद्ध की स्थिति झेलने के लायक नहीं बचा है। IMF की ये ताजा किस्त, आर्थिक सुधार नहीं, बल्कि एक बायपास सर्जरी जैसी है—जो दिल को थोड़ी देर के लिए चलाएगी, पर इलाज नहीं करेगी।

भारत के साथ बढ़ते टकराव के बीच, Pakistan की यह आर्थिक हालत बेहद चिंता का विषय है। भारत की अर्थव्यवस्था जहां दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी इकॉनॉमी बन चुकी है, वहीं पाकिस्तान एक ऐसे दलदल में धंसा है, जहां से निकलने के लिए उसे पहले अपनी नीतियों और सोच में बदलाव लाना होगा। आतंक को छोड़ना होगा, और विकास को अपनाना होगा।

लेकिन क्या Pakistan ऐसा कर पाएगा? क्या वह वाकई कर्ज का सही उपयोग करेगा? या फिर एक बार फिर IMF, ADB और World Bank के पैसे से टैंक खरीदे जाएंगे, आतंकियों को ट्रेनिंग दी जाएगी, और भारत पर हमला करने की साजिशें रची जाएंगी? अगर यह जारी रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब IMF भी कह देगा—अब और नहीं! और तब पाकिस्तान के पास न रोटी होगी, न रणनीति… सिर्फ अफसोस और अकेलापन।

Conclusion

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