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Nilons: भारतीय कंपनी जो बनी दुनिया की सबसे बड़ी टूटी फ्रूटी निर्माता, अचार में भी नंबर वन! 2025

Nilons

ज़रा सोचिए… आप किसी शादी में मिठाई खा रहे हों, सामने केक का टुकड़ा रखा हो या गर्मियों में बच्चों के हाथ में आइसक्रीम हो। हर जगह एक छोटी-सी चीज़ रंग-बिरंगे टुकड़ों के रूप में दिखाई देती है—लाल, हरे, पीले छोटे-छोटे मीठे टुकड़े, जिन्हें हम प्यार से कहते हैं टूटी-फ्रूटी। यह केवल मिठाई का हिस्सा नहीं, बल्कि हमारे बचपन की यादों का हिस्सा है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि यह टूटी-फ्रूटी आखिर बनती कहाँ है? आपको यह जानकर हैरानी होगी कि दुनिया की सबसे बड़ी टूटी-फ्रूटी बनाने वाली कंपनी भारत की है।

और भी दिलचस्प यह है कि यह कंपनी किसी बड़े महानगर से नहीं, बल्कि एक छोटे-से गाँव से निकली और आज यह 500 करोड़ रुपये का FMCG साम्राज्य खड़ा कर चुकी है। यह है Nilons की कहानी—एक ऐसा नाम जिसने केवल अचार से शुरुआत की और अब अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स तक को सप्लाई करता है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

आपको बता दें कि Nilons की शुरुआत किसी बड़ी योजना या भारी Investment से नहीं हुई थी। यह कहानी है संघर्ष और धैर्य की। वर्ष 1962 में जब भारत धीरे-धीरे औद्योगिकरण की ओर बढ़ रहा था, तब महाराष्ट्र के एक छोटे-से गाँव में दीपक संघवी के पिता और चाचा नींबू की खेती करते थे। खेती साधारण थी, लेकिन उस समय विश्व युद्ध ने परिस्थितियाँ बदल दी थीं। युद्ध के दौरान सैनिकों के लिए नींबू बेहद जरूरी हो गया, क्योंकि उसमें मौजूद विटामिन सी उन्हें थकान से लड़ने और बीमारियों से बचाने में मदद करता था। अचानक नींबू की डिमांड आसमान छू गई और यही एक बीज था, जिसने Nilons जैसी कंपनी की नींव रखी।

संघवी परिवार ने सोचा कि केवल नींबू बेचने के बजाय उससे जुड़े वैल्यू-एडेड प्रोडक्ट्स क्यों न बनाए जाएँ। यह सोच साधारण नहीं थी। उस दौर में ग्रामीण किसान केवल फसल उगाने तक सीमित रहते थे, लेकिन संघवी परिवार ने उससे आगे सोच लिया। सबसे पहला प्रोडक्ट बना लाइम कॉर्डियल—एक तरह का शर्बत जो नींबू से तैयार होता था।

धीरे-धीरे उन्होंने इसे बाजार में उतारा। 1967 में उन्होंने सोचा कि क्यों न भारतीयों की सबसे बड़ी पसंद—अचार—के क्षेत्र में भी कदम रखा जाए। लेकिन शुरुआत आसान नहीं थी। सात साल तक लगातार मेहनत करने के बावजूद कंपनी को कोई मुनाफा नहीं हुआ। सात साल का घाटा किसी भी परिवार को तोड़ सकता था, लेकिन संघवी परिवार ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने डटे रहने का फैसला किया।

फिर आया 1970 का वो साल जिसने Nilons का भाग्य बदल दिया। भारतीय सेना से उन्हें इतना बड़ा ऑर्डर मिला, जितना उनके पूरे साल के प्रोडक्शन के बराबर था। और यह सप्लाई पूरी करनी थी सिर्फ़ दो महीने में। कल्पना कीजिए, एक छोटी कंपनी जिसे अभी तक बाजार में पहचान भी नहीं मिली थी, उसे अचानक ऐसा विशाल काम सौंपा गया।

यह चुनौती असंभव सी लग रही थी। लेकिन Nilons ने साबित कर दिया कि जब इरादा मजबूत हो, तो असंभव भी संभव है। दिन-रात मेहनत करके उन्होंने समय पर यह ऑर्डर पूरा किया। और यही पल Nilons के लिए गेम-चेंजर साबित हुआ। इस ऑर्डर के बाद कंपनी को न केवल मुनाफा मिला, बल्कि पहचान और भरोसा भी। सेना जैसी संस्था ने जिस कंपनी पर विश्वास किया, आम जनता ने भी उसी पर भरोसा करना शुरू कर दिया।

1971 में कंपनी ने वह प्रोडक्ट लॉन्च किया जिसने उसे दुनिया भर में पहचान दिलाई—टूटी-फ्रूटी। शुरुआत में यह बस मिठाइयों और आइसक्रीम में इस्तेमाल होती थी। लेकिन धीरे-धीरे यह हर भारतीय रसोई का हिस्सा बन गई। बच्चों के लिए यह टॉफी का स्वाद थी, बड़ों के लिए पान का मज़ा और बेकरी के लिए केक सजाने का तरीका। आज यह छोटा-सा प्रोडक्ट करीब 60 करोड़ रुपये का बिज़नेस करता है। न केवल भारत में, बल्कि यूरोप और अन्य देशों तक Nilons की टूटी-फ्रूटी पहुंचती है। वॉल्स, वाडीलाल और कराची बेकरी जैसे बड़े ब्रांड्स तक इसका इस्तेमाल करते हैं। यह देखना अद्भुत है कि एक छोटे से गाँव से निकली चीज़ कैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंच गई।

दीपक संघवी, जो आज कंपनी के एमडी हैं, कहते हैं कि FMCG बिजनेस कभी आसान नहीं होता। उन्होंने तीन चरणों का ज़िक्र किया। पहला, जब कंपनी 0 से 10 करोड़ रुपये तक जाती है। यह सबसे कठिन दौर होता है, क्योंकि इसमें पूंजी और मेहनत दोनों की भारी जरूरत होती है। दूसरा, 10 से 100 करोड़ का चरण होता है, जो अपेक्षाकृत आसान है क्योंकि ब्रांड पहचान बना लेता है। लेकिन तीसरा चरण, यानी 100 करोड़ से आगे का सफर, फिर से चुनौती भरा होता है। यहाँ आपको लगातार नयापन, डिस्ट्रीब्यूशन और मार्केटिंग में मजबूती लानी होती है।

FMCG का असली खेल है—डिस्ट्रीब्यूशन। चाहे आपका प्रोडक्ट कितना भी अच्छा क्यों न हो, अगर वह ग्राहक तक नहीं पहुँच रहा, तो वह विफल है। दीपक संघवी कहते हैं कि असली जीत उसी की होती है, जिसकी पकड़ हर चैनल पर हो। किराना स्टोर्स से लेकर बिग बाजार और डीमार्ट जैसे मॉडर्न रिटेल तक, होटल-रेस्टोरेंट से लेकर ई-कॉमर्स और क्विक कॉमर्स तक—हर जगह आपके प्रोडक्ट्स होने चाहिए। यही वजह है कि Nilons ने बहुत जल्दी अपनी डिस्ट्रीब्यूशन चेन पूरे भारत में फैला दी। 1970 के दशक में ही असम, कश्मीर और बिहार तक उन्होंने अपने प्रोडक्ट्स पहुंचा दिए थे।

बाजार की जरूरत समझना भी उतना ही अहम है। कई बार कंपनियां वही बनाती हैं जो वे बना सकती हैं, लेकिन असली सफलता उन्हें मिलती है जो वही बनाती हैं जिसकी डिमांड हो। ग्राहक की आदत बदलना महंगा और समय लेने वाला काम है। इसलिए Nilons ने वही प्रोडक्ट बनाए जिन्हें भारतीय रसोई सच में इस्तेमाल करती है। चाहे वह अचार हो, चटनी हो, मसाले हों या कंडिमेंट्स। उन्होंने कभी भी ग्राहकों से दूरी नहीं बनाई। टूटी-फ्रूटी और अचार के बाद उन्होंने धीरे-धीरे अपने प्रोडक्ट लाइन को बढ़ाया और हर घर तक पहुँचाया।

लेकिन किराना स्टोर हमेशा से सबसे मुश्किल चैनल रहा। यहाँ ग्राहक और कंपनी के बीच दुकानदार खड़ा होता है। अगर दुकानदार आपके ब्रांड पर भरोसा नहीं करता, तो वह ग्राहक को नया प्रोडक्ट दिखाएगा ही नहीं। यही कारण है कि Nilons ने मार्केटिंग और वितरण पर बहुत जोर दिया। टीवी विज्ञापन, रोड शो, और छोटे शहरों तक में प्रचार करके उन्होंने ग्राहकों का भरोसा जीता।

Nilons की सबसे अनोखी बात यह है कि आज भी उसका हेडक्वार्टर एक छोटे-से गाँव—उत्तरान (जलगांव, महाराष्ट्र) में है। गाँव की आबादी आज भी सिर्फ़ 20,000 के करीब है। बड़ी कंपनियां जब अपने ऑफिस मेट्रो शहरों में बनाती हैं, तब Nilons ने अपनी जड़ों से जुड़े रहने का फैसला किया। यह दर्शाता है कि अगर आपकी सोच बड़ी है, तो स्थान मायने नहीं रखता।

आज Nilons केवल अचार और टूटी-फ्रूटी तक सीमित नहीं है। कंपनी ने पास्ता, नूडल्स, रेडी-टू-ईट फूड्स, सॉस और मसालों में भी अपनी पहचान बनाई है। लेकिन इसकी सबसे बड़ी ताक़त अब भी वही दो प्रोडक्ट हैं जिन्होंने इसकी नींव रखी थी—अचार और टूटी-फ्रूटी। यह प्रोडक्ट भारतीय स्वाद और परंपरा से इतने गहराई से जुड़े हैं कि इन्हें हर घर में जगह मिल चुकी है।

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि कोई भी आइडिया छोटा नहीं होता। संघर्ष, धैर्य और सही फैसले किसी भी आइडिया को साम्राज्य में बदल सकते हैं। Nilons ने सात साल घाटा झेला, सेना का ऑर्डर पूरा किया और फिर टूटी-फ्रूटी के जरिए दुनिया भर में नाम कमाया। आज जब हम अचार का स्वाद लेते हैं या आइसक्रीम में टूटी-फ्रूटी खाते हैं, तो यह केवल स्वाद नहीं, बल्कि एक छोटे गाँव से उठकर दुनिया तक पहुंचे भारतीय सपने का स्वाद है।

Conclusion

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