ज़रा सोचिए… काठमांडू की सड़कों पर भीड़ उमड़ी हुई है। चेहरों पर गुस्सा, हाथों में तख्तियाँ और मोबाइल फ़ोन हवा में लहराते हुए युवा। ये वही बच्चे हैं जो सुबह उठते ही सबसे पहले इंस्टाग्राम खोलते हैं, क्लास के बीच में स्नैपचैट पर स्टोरी डालते हैं, और रात को सोने से पहले फेसबुक पर स्क्रॉल करते-करते थक जाते हैं।
लेकिन अचानक एक दिन सरकार ने कह दिया—अब Social Media बंद। 26 बड़े-बड़े प्लेटफ़ॉर्म्स पर बैन लगा दिया गया। और तभी इन बच्चों का गुस्सा फूट पड़ा। यह सिर्फ़ इंटरनेट बंद होने की कहानी नहीं है, बल्कि यह उस जेनरेशन का विद्रोह है, जो डिजिटल स्क्रीन के बिना अपनी ज़िंदगी की कल्पना तक नहीं कर पाती। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
नेपाल सरकार ने हाल ही में जो आदेश दिया, उसने पूरे देश में हलचल मचा दी। सरकार ने कहा कि जो भी Social Media प्लेटफ़ॉर्म नेपाल में चलाना चाहते हैं, उन्हें यहाँ ऑफिस खोलना होगा, सरकार से रजिस्ट्रेशन करना होगा और शिकायत सुनने का सिस्टम बनाना होगा। टिकटॉक और वाइबर जैसी कंपनियों ने नियम मान लिए, इसलिए वे बच गईं। लेकिन फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, रेडिट और दर्जनों ऐप्स ब्लॉक कर दिए गए। राजधानी काठमांडू में जैसे ही यह खबर फैली, हजारों युवा सड़कों पर उतर आए। उनकी नाराज़गी साफ़ थी—“हमारी दुनिया मत छीनो।”
ये वही जेनरेशन है जिसे हम Gen-Z कहते हैं। यानी 1997 से 2012 के बीच जन्म लेने वाले बच्चे। यह वह दौर था जब इंटरनेट और स्मार्टफोन दुनिया को बदल रहे थे। इसी माहौल में पले-बढ़े बच्चे अब जवान हो चुके हैं। इनकी ज़िंदगी का हर पहलू डिजिटल है—दोस्ती, प्यार, पढ़ाई, काम, मनोरंजन सब कुछ। रिसर्च कहती है कि यह जेनरेशन रोज़ाना 4 से 6 घंटे सिर्फ Social Media पर बिताती है। यानी दिन का चौथाई हिस्सा! इंस्टाग्राम पर रील्स देखना, यूट्यूब पर शॉर्ट्स स्क्रॉल करना, मीम्स पर हँसना और दोस्तों की स्टोरीज चेक करना—यही है इनकी रोज़मर्रा की दुनिया।
नेपाल में जब बैन लगा तो यह सिर्फ़ इंटरनेट की पाबंदी नहीं थी, बल्कि यह उनकी पहचान पर चोट जैसा लगा। युवाओं का कहना है कि Social Media उनके लिए सिर्फ़ टाइमपास नहीं है। यही उनकी आवाज़ है, यही उनकी अभिव्यक्ति का जरिया है। यही वह जगह है जहाँ वे दुनिया से जुड़ते हैं। और अब जब सरकार ने यह सब छीन लिया तो उन्हें लगा कि उनकी पीढ़ी को चुप कराने की कोशिश हो रही है।
सोचिए, इंस्टाग्राम के बिना एक कॉलेज स्टूडेंट की लाइफ कैसी लगेगी? रोज़ाना के पोस्ट, डेली स्टोरीज, लाइक्स और कमेंट्स से मिलने वाली छोटी-छोटी खुशियाँ अचानक गायब हो जाएँ। फेसबुक पर दोस्तों के साथ बहस, ग्रुप चैट्स और मीम शेयरिंग एक झटके में बंद हो जाएँ। यह उसी तरह है जैसे किसी ने अचानक बच्चों से उनका खेल का मैदान छीन लिया हो।
नेपाल सरकार के तर्क भी अपने आप में अलग हैं। उनका कहना है कि Social Media कंपनियाँ बिना किसी ज़िम्मेदारी के देश में पैसा कमा रही हैं। फेक न्यूज़, साइबर क्राइम और ऑनलाइन फ्रॉड जैसे मामलों की शिकायतें बढ़ रही थीं। सरकार चाहती है कि कंपनियाँ लोकल दफ्तर खोलें, ताकि जिम्मेदारी तय हो सके। लेकिन सवाल यह है—क्या इतनी बड़ी सज़ा सही है कि पूरी की पूरी जेनरेशन की डिजिटल लाइफ ही रोक दी जाए?
Gen-Z की आदतें अब सिर्फ़ मनोरंजन तक सीमित नहीं रहीं। यह पीढ़ी Social Media को जानकारी पाने का साधन मानती है। पहले लोग अखबार और टीवी पर भरोसा करते थे, लेकिन आज का युवा न्यूज़ ब्रेकिंग ट्विटर या इंस्टा पर देखता है। किसी आंदोलन की शुरुआत हो या नया फैशन ट्रेंड, यह सब इन्हीं प्लेटफॉर्म्स पर जन्म लेते हैं। यही वजह है कि जब नेपाल में बैन लगा तो युवाओं को लगा कि सरकार सिर्फ़ ऐप्स नहीं रोक रही, बल्कि उनकी पूरी आवाज़ दबा रही है।
अगर आंकड़ों पर नज़र डालें तो भारत जैसे देशों में भी इंस्टाग्राम, यूट्यूब और स्नैपचैट सबसे ज्यादा पॉपुलर हैं। इंस्टाग्राम तो युवाओं की पहली पसंद है। और यही ट्रेंड नेपाल में भी दिखता है। यही वजह है कि बैन का असर इतना गहरा हुआ। vicinotech की एक रिपोर्ट बताती है कि Gen-Z शॉर्ट वीडियो और मीम्स में सबसे ज्यादा वक्त बिताते हैं। 15 सेकंड की रील हो या 30 सेकंड का यूट्यूब शॉर्ट—अगर शुरुआती 3 सेकंड में ध्यान नहीं खींचती तो वे उसे स्वाइप कर देते हैं। यही इस पीढ़ी की आदत है—फास्ट, डायनेमिक और विज़ुअल।
मीम्स इस जेनरेशन की भाषा बन चुके हैं। राजनीति पर कटाक्ष करना हो, पढ़ाई-लिखाई की टेंशन हो या रिश्तों की उलझन—हर बात मीम के ज़रिए कही जाती है। और अब जब यह भाषा ही छीन ली गई तो गुस्सा भड़कना स्वाभाविक था।
नेपाल की सड़कों पर प्रदर्शन करते हुए छात्रों की आँखों में सिर्फ़ गुस्सा ही नहीं, बल्कि डर भी झलक रहा था। डर इस बात का कि अगर आज यह बैन स्थायी हो गया तो उनकी पूरी पीढ़ी दुनिया से कट जाएगी। एक कॉलेज स्टूडेंट ने मीडिया से कहा—“हमारे लिए Social Media सिर्फ़ मनोरंजन नहीं, बल्कि करियर का रास्ता भी है। हम यूट्यूब पर कंटेंट बनाते हैं, इंस्टाग्राम पर ब्रांड्स के साथ काम करते हैं। अगर यह सब बंद हो गया तो हम बेरोज़गार हो जाएँगे।”
यानी यह बैन सिर्फ़ व्यक्तिगत आज़ादी का मुद्दा नहीं है, बल्कि अर्थव्यवस्था और रोजगार से भी जुड़ा है। आज के दौर में कितने ही युवा कंटेंट क्रिएशन से पैसा कमा रहे हैं। टिकटॉक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब उनके लिए रोज़गार के साधन बन चुके हैं। नेपाल जैसे छोटे देश में जहाँ नौकरी के अवसर कम हैं, वहाँ डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने हज़ारों युवाओं को करियर बनाने का मौका दिया था। और अब जब यह दरवाज़ा बंद हुआ तो गुस्सा और बढ़ गया।
दुनिया भर में देखा जाए तो Social Media सिर्फ़ एक मनोरंजन का साधन नहीं है। यह राजनीति को प्रभावित करता है, समाज को जोड़ता है और कभी-कभी सरकारों के खिलाफ़ आंदोलन की ताक़त भी बनता है। अरब स्प्रिंग से लेकर हांगकांग प्रोटेस्ट तक, हर जगह Social Media ने जनता की आवाज़ को मंच दिया है। यही डर नेपाल सरकार का भी है—कि कहीं यह मंच उनके खिलाफ़ न इस्तेमाल हो।
लेकिन सवाल यह है कि क्या बैन ही समाधान है? क्या यह सही नहीं होगा कि सरकार और कंपनियाँ मिलकर कोई संतुलित रास्ता निकालें, जिसमें न तो नागरिकों की आज़ादी छीनी जाए और न ही देश की सुरक्षा से समझौता हो?
Gen-Z की आदतें बदलना आसान नहीं है। यह वह पीढ़ी है जो डिजिटल हवा में सांस लेती है। अगर इंटरनेट और Social Media से इन्हें अलग कर दिया जाए तो यह अपने आपको अधूरा महसूस करते हैं। यही वजह है कि नेपाल का यह बैन सिर्फ़ एक नीति का मुद्दा नहीं है, बल्कि पूरी एक जेनरेशन की बेचैनी का आईना है।
नेपाल के इस विवाद से एक और बड़ा सवाल उठता है—क्या बाकी देशों में भी ऐसा हो सकता है? क्या भारत जैसे देशों में सरकारें कभी Social Media कंपनियों पर इसी तरह की पाबंदी लगा सकती हैं? और अगर ऐसा हुआ तो करोड़ों युवाओं की ज़िंदगी पर इसका क्या असर पड़ेगा? आज की दुनिया में Social Media “डिजिटल ऑक्सीजन” बन चुका है। और जब किसी से ऑक्सीजन छीन ली जाती है तो वह स्वाभाविक रूप से तिलमिला उठता है। नेपाल के Gen-Z भी उसी तिलमिलाहट में सड़कों पर हैं।
यह कहानी हमें यही सिखाती है—तकनीक जितनी ताक़त देती है, उतनी ही निर्भरता भी पैदा करती है। और जब वही तकनीक अचानक छिन जाए तो विद्रोह जन्म लेता है। नेपाल का Social Media बैन सिर्फ़ एक देश की खबर नहीं है, बल्कि यह आने वाले समय की चेतावनी है। दुनिया के हर देश को अब यह तय करना होगा कि आज़ादी और नियंत्रण के बीच संतुलन कैसे बनाएँ।
Conclusion
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