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Game-changing: Mining से बदल रहा है गेम चीन की म्यांमार में गहरी खुदाई, लेकिन भारत बना रहेगा मज़बूत खिलाड़ी! 2025

Mining

रात के अंधेरे में एक शांत जंगल के भीतर जब गड्ढों से धुआं निकलता है, और खदानों में मशीनों की घरघराहट सुनाई देती है, तब शायद ही किसी को अंदाज़ा होता है कि ये आवाज़ें आने वाले वक़्त की राजनीति तय करेंगी। म्यांमार के दूरदराज़ पहाड़ियों में हो रही Mining गतिविधियाँ अब केवल जमीन के नीचे दबे खज़ाने की नहीं, बल्कि वैश्विक सत्ता संतुलन की कहानी बन गई हैं।

और इस कहानी का सबसे खतरनाक किरदार है—चीन। एक ऐसा देश जो खुद तो म्यांमार से rare mineral मंगा रहा है, लेकिन जब बात दूसरों की आती है तो सप्लाई पर ताले डाल देता है। सवाल ये नहीं है कि चीन क्या कर रहा है… सवाल ये है कि पूरी दुनिया उसकी चालों के आगे क्यों बेबस है? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

रेयर अर्थ मिनरल्स—नाम जितना सामान्य लगता है, असर उतना ही असाधारण है। ये 17 खनिज जैसे कि लैंथेनम, नियोडियम, प्रासियोडियम—हमारे रोज़मर्रा के स्मार्टफोन, टीवी, इलेक्ट्रिक कार, विंड टरबाइन, और यहां तक कि सोलर पैनलों तक में जरूरी हैं। ये छोटे-छोटे तत्व नहीं, बल्कि आधुनिक तकनीक की नींव हैं। और दिक्कत ये है कि इनकी खदानें दुनिया में बहुत कम जगहों पर हैं। उन्हें निकालना बेहद जटिल, महंगा और पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील होता है।

चीन इस जाल को वर्षों पहले समझ चुका था। उसने न सिर्फ खुद के भीतर रेयर अर्थ का Mining तेज़ किया, बल्कि सबसे बड़ा गेम खेला—वह इन मिनरल्स की ग्लोबल सप्लाई चेन का मालिक बन गया। आज जब हम बात करते हैं कि चीन 61% खुद Mining करता है, तो इससे भी बड़ा सच ये है कि वो दुनिया की 92% सप्लाई पर नियंत्रण रखता है। यानी अगर उसने आंखें तरेरीं, तो अमेरिका, यूरोप, भारत सबको सांस रोकनी पड़ जाती है।

यही हुआ था जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर हैवी टैरिफ लगाकर कारोबारी दबाव बनाया। जवाब में चीन ने रेयर अर्थ के एक्सपोर्ट नियम बदल दिए। नतीजा? अमेरिका और भारत जैसे देश सन्न रह गए। अमेरिका भले ही चीन से डील कर बैठा, लेकिन भारत के शिपमेंट अब भी बंद हैं। सवाल ये है कि चीन इतना मजबूत कैसे बना? और दुनिया इतनी कमजोर क्यों?

अब जब इस बहस की परतें खुलती हैं, तो जो तस्वीर सामने आती है, वह चौंका देने वाली है। चीन, जो खुद को दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक बताता है, वह असल में अपनी ज़रूरत के लिए म्यांमार से कच्चा माल Import करता है। CNBC की रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में चीन ने म्यांमार से लगभग 42,000 मीट्रिक टन रेयर अर्थ मंगवाए। ये आंकड़ा एक अलार्म है, खासकर तब, जब चीन बाहर दुनिया को ब्लैकमेल करता है, और भीतर से खुद Import पर निर्भर होता है।

यहाँ म्यांमार की भूमिका अचानक बड़ी हो जाती है। म्यांमार—जिसे हम राजनीतिक अस्थिरता और सैन्य शासन के कारण आमतौर पर अनदेखा करते हैं—अब दुनिया के सबसे संवेदनशील खनिजों का एक छुपा हुआ केंद्र बन चुका है। और इस केंद्र पर चीन का शिकंजा कसता जा रहा है।

रिसर्चर डेविड मेरिमैन बताते हैं कि म्यांमार में IAC (Ion Adsorption Clay) टाइप की नई खदानों का तेजी से निर्माण हो रहा है। ये खदानें भारी rare earth से भरपूर हैं। चीन ने इन पर सीधी या परोक्ष भागीदारी बढ़ा दी है। यानी म्यांमार Mining करता है, और खनिज चीन पहुंचते हैं। वहां उन्हें प्रोसेस कर, चीन दुनिया को सप्लाई करता है—अपने नियमों के साथ। एक तरह से देखा जाए तो चीन खुद उत्पादन से ज़्यादा लॉजिस्टिक्स और सप्लाई चेन पर कंट्रोल कर के ही सुपरपावर बन गया है।

भारत जैसे देश, जिनके पास तकनीकी क्षमता है, लेकिन रेयर अर्थ का सीमित एक्सेस, इस चाल में बुरी तरह फंस गए हैं। भारत ने भी प्रयास किए हैं—कई सरकारी कंपनियाँ जैसे IREL (इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड) और डीआरडीओ इस क्षेत्र में सक्रिय हैं। लेकिन समस्या जमीनी हकीकत की है—यहां खदानें कम हैं, नीति जटिल है और पर्यावरणीय स्वीकृति प्रक्रिया बेहद धीमी। नतीजा? भारत आज भी चीन पर निर्भर है।

रेयर अर्थ को लेकर भारत की ये असुरक्षा कई क्षेत्रों में असर डाल रही है। इलेक्ट्रिक व्हीकल मिशन हो, डिफेंस टेक्नोलॉजी, या सेमीकंडक्टर निर्माण—हर जगह रेयर अर्थ एक बुनियादी आवश्यकता है। लेकिन अगर सप्लाई ही ना हो, तो आत्मनिर्भर भारत की कल्पना कैसे साकार होगी?

अब बात करते हैं चीन की असली चाल की। वह जानता है कि दुनिया अब रेयर अर्थ के वैकल्पिक स्रोतों की खोज में लगी है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, और भारत जैसे देश माइनिंग प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं। लेकिन चीन इन प्रयासों को धीमा करने के लिए अपने दामों में छूट देता है, कभी नया एक्सपोर्ट नियम लागू करता है, तो कभी म्यांमार जैसे देशों से सीधे हस्तक्षेप करता है। वह नहीं चाहता कि दुनिया आत्मनिर्भर बने—उसकी रणनीति स्पष्ट है—निर्भरता बनाए रखना।

यही वजह है कि Expert इस हालात को एक ‘जियोइकोनॉमिक वेपन’ कह रहे हैं। चीन ने रेयर अर्थ को एक कूटनीतिक हथियार बना लिया है। जब भी वह राजनीतिक दबाव में होता है, वह इस हथियार को निकालता है। जैसे ही कोई देश चीन के विरुद्ध खड़ा होता है, चीन सप्लाई रोकता है, दाम बढ़ाता है या अप्रत्यक्ष रोकथाम करता है।

अब सवाल यह है—क्या भारत इस जाल से निकल सकता है? क्या हमारे पास विकल्प हैं? क्या म्यांमार के खनिज संसाधनों तक भारत को सीधी पहुँच मिल सकती है? इसके लिए भारत को एक व्यापक रणनीति बनानी होगी। म्यांमार में रणनीतिक Investment, घरेलू माइनिंग सुधार, और वैकल्पिक देशों के साथ साझेदारी जैसे ऑस्ट्रेलिया या ब्राजील से Import समझौते करने होंगे।

भारत को न केवल Mining करना सीखना होगा, बल्कि उसे रिफाइन करना, प्रोसेस करना और उससे जुड़े पूरे वैल्यू चेन पर नियंत्रण पाना होगा। इसके लिए प्राइवेट सेक्टर को भी साथ लाना पड़ेगा, नीति आयोग और माइनिंग मंत्रालय को तेज़ी से निर्णय लेने होंगे।

दुनिया अब एक नई जंग की ओर बढ़ रही है—यह युद्ध तेल, गैस या हथियारों का नहीं, बल्कि रेयर अर्थ का है। और जो भी इस युद्ध को जीतेगा, वही भविष्य की टेक्नोलॉजी और भू-राजनीति का मालिक बनेगा।

भारत के लिए यह सिर्फ एक संकट नहीं, बल्कि अवसर भी है। अगर वह चीन की चालों को समझकर जवाब देता है, तो वह Global supply chain में अपनी जगह बना सकता है। वरना आने वाले वर्षों में स्मार्टफोन से लेकर सोलर पैनल तक—हर चीज़ के लिए चीन की दया पर निर्भर रहना पड़ेगा।

तो अब वक्त है कि भारत, अमेरिका और बाकी लोकतांत्रिक देश मिलकर इस नई ‘खनिज नीति’ पर साथ आएं। म्यांमार जैसे देशों में एकजुट Investment हो, पारदर्शी तरीके से संसाधन निकाले जाएं, और चीन की मोनोपॉली को चुनौती दी जाए I क्योंकि एक बात तो तय है—रेयर अर्थ अब सिर्फ खनिज नहीं, बल्कि सत्ता का स्रोत बन चुका है। और इस सत्ता के खेल में जो चुप रहेगा, वही सबसे पहले हारेगा।

Conclusion

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