भारत के पहलगाम में जब निर्दोषों का खून बहा, जब मासूमों की चीखें घाटियों में गूंजीं, और जब एक बार फिर आतंक का काला साया हमारे तिरंगे पर पड़ा… तो पूरा देश एकजुट हुआ। लेकिन ठीक उसी समय, एक और खामोश लेकिन चौंकाने वाली खबर ने देशवासियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई। खबर यह थी कि जिस देश से यह आतंक उपजा… उसी पाकिस्तान को दुनिया के बड़े-बड़े संस्थान और ताकतवर देश खैरात बांट रहे हैं। यानी भारत पर हमला, और ईनाम Pakistan को? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
यह सवाल जितना असहज है, उतना ही जरूरी भी। भारत पिछले कई दशकों से Pakistan प्रायोजित आतंकवाद का शिकार रहा है। संसद हमला हो या मुंबई बम धमाके, उरी का बदला हो या पुलवामा की त्रासदी—हर बार दर्द भारत को मिला। हर बार बलिदान भारत के सैनिकों का हुआ। लेकिन जब-जब भारत ने अपनी सुरक्षा के लिए सख्त कदम उठाए, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर वही भारत नसीहतों का शिकार बना।
अमेरिका, जो खुद आतंक के खिलाफ Global युद्ध का झंडाबरदार बनता है, वही Pakistan को ‘रणनीतिक साझेदार’ बताकर अरबों डॉलर की मदद देता है। जॉर्डन पीटरसन जैसे विश्वविख्यात मनोवैज्ञानिक तक अमेरिका की इस दोगली नीति पर सवाल उठा चुके हैं। उनका कहना है कि अमेरिका भारत जैसे लोकतंत्र को नसीहत देता है लेकिन Pakistan जैसे आतंकवादियों को पनाह देने वाले देश को मदद करता है। आखिर क्यों?
इसका जवाब अमेरिका के भू-राजनीतिक स्वार्थों में छिपा है। Pakistan ने कभी सोवियत संघ के खिलाफ अमेरिका को रास्ता दिया, अफगानिस्तान में अमेरिकी ऑपरेशनों में मदद की, और चीन तक अमेरिका की पहुंच सुनिश्चित की। इसी उपयोगिता के बदले, Pakistan को उसकी करतूतों के बावजूद नजरअंदाज किया गया। जबकि भारत, जो स्वतंत्र चुनावों, बहुलवाद और न्यायपालिका की मिसाल है, उसे बार-बार Global forums पर नसीहतें मिलती रहीं।
आईएमएफ, जो खुद को Global financial stability का संरक्षक बताता है, उसने भी Pakistan पर मेहरबानी दिखाई। मई 2025 में पाकिस्तान को IMF से 1 अरब डॉलर की दूसरी किश्त मिली। इससे पहले भी लगभग 1 अरब डॉलर का कर्ज Pakistan को दिया जा चुका था। यानी एक तरफ भारत ऑपरेशन सिंदूर के जरिए आतंक के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करता है, और दूसरी तरफ पाकिस्तान को इनाम में मिलती है राहत की बारिश।
IMF के Extended Fund Facility के तहत Pakistan को कुल 7 अरब डॉलर की मदद मिलने वाली है, जिसमें से 2.1 अरब पहले ही मिल चुके हैं। इतना ही नहीं, IMF के Resilience and Sustainability Facility के तहत 1.4 अरब डॉलर की अतिरिक्त व्यवस्था भी की जा चुकी है। और ये सब उस देश को जो खुद अपने देश में आतंकवादी संगठनों को पालता है, उन्हें राजनीतिक संरक्षण देता है और पड़ोसियों के खिलाफ इस्तेमाल करता है।
विश्व बैंक, जिसे हम विकास और गरीबी उन्मूलन का हथियार मानते हैं, वो भी इस बार खैरात देने में पीछे नहीं है। जून 2025 में Pakistan को करीब 20 अरब डॉलर की मदद मिलने की संभावना है। यह मदद ‘स्वच्छ ऊर्जा’ और ‘जलवायु परिवर्तन’ के नाम पर दी जा रही है। लेकिन भारत का तर्क है कि इस पैसे का उपयोग Pakistan अपनी सैन्य मशीनरी को मजबूत करने या आतंकियों को शरण देने में कर सकता है।
ऐतिहासिक रूप से देखें तो विश्व बैंक अब तक Pakistan को 48 अरब डॉलर से अधिक की सहायता दे चुका है। इतनी भारी-भरकम सहायता के बावजूद पाकिस्तान की सूरत नहीं बदली—न अर्थव्यवस्था सुधरी, न आतंकी गतिविधियां रुकीं। क्या यह पैसा सच में विकास में लगा या आतंक के नेटवर्क में?
और केवल IMF या विश्व बैंक ही नहीं, अमेरिका और चीन भी Pakistan की रीढ़ बने हुए हैं। 2002 से 2015 तक अमेरिका ने लगभग 40 अरब डॉलर की आर्थिक और सैन्य सहायता पाकिस्तान को दी। यह मदद आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर दी गई, लेकिन हकीकत में यही पैसा भारत विरोधी गतिविधियों में झोंका गया।
चीन का रवैया भी कुछ अलग नहीं है। वह Pakistan को जून 2025 के अंत तक 3.7 अरब डॉलर का कमर्शियल लोन देने वाला है। इसमें 2.4 अरब डॉलर की राशि जून में मैच्योर होनी है। यह कर्ज युआन में दिया जाएगा—जो चीन की डॉलर के दबदबे को चुनौती देने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
अब सवाल उठता है कि भारत इस दोहरी नीति से कैसे निपटे? हमारे पास क्या रास्ता है, जिससे हम global level पर अपनी स्थिति मजबूत कर सकें और Pakistan जैसे देशों को बेनकाब कर सकें?
सबसे पहला रास्ता है—भारत की अर्थव्यवस्था को और मजबूत बनाना। जब भारत एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरेगा, तो दुनिया की मजबूरी होगी कि वह भारत की बात सुने। आर्थिक ताकत ही कूटनीतिक प्रभाव को जन्म देती है। और भारत इस रास्ते पर तेजी से अग्रसर है।
दूसरा रास्ता है—रक्षा और आत्मनिर्भरता। भारत को अपनी सैन्य क्षमताओं को आधुनिक बनाना होगा, और घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देना होगा। अगर हम अपनी सुरक्षा के लिए किसी दूसरे देश पर निर्भर नहीं रहेंगे, तो कोई भी देश हमें दबाने की हिम्मत नहीं करेगा।
तीसरा रास्ता—विज्ञान और तकनीक में नेतृत्व। अगर भारत Artificial Intelligence, Cyber Security, Space Technology और energy sector में Global नेतृत्व हासिल करता है, तो दुनिया उसे केवल व्यापारिक साझेदार नहीं बल्कि रणनीतिक मार्गदर्शक मानेगी।
भारत को Global forums पर अपने स्टैंड को मज़बूती से रखना होगा। संयुक्त राष्ट्र हो या जी20, ब्रिक्स हो या SCO—हर फोरम पर भारत को साफ और सख्त संदेश देना होगा कि आतंकवाद के खिलाफ कोई समझौता नहीं होगा। भारत को चाहिए कि वह आतंकवाद से जुड़ी खुफिया जानकारी को साझा करे, ताकि Pakistan की पोल खुले।
FATF जैसे संगठन, जो मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के Financing पर नजर रखते हैं, उनके साथ मिलकर भारत को काम करना होगा। Pakistan को ग्रे लिस्ट में बनाए रखना, या फिर ब्लैक लिस्ट तक ले जाना, भारत के लिए रणनीतिक रूप से जरूरी है।
सिर्फ बड़े देश ही नहीं, भारत को अपने पड़ोसियों—नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, भूटान और म्यांमार के साथ भी अपने रिश्ते मजबूत करने होंगे। जब पूरा दक्षिण एशिया भारत के साथ खड़ा होगा, तो Pakistan की अलग-थलग स्थिति और साफ नजर आएगी।
भारत को अपनी संस्कृति, योग, आयुर्वेद और लोकतांत्रिक मॉडल को दुनिया के सामने एक प्रेरणा के रूप में पेश करना चाहिए। यह ‘सॉफ्ट पावर’ भारत को global platform पर एक नैतिक शक्ति प्रदान करेगा।
इस पूरी कहानी में सबसे बड़ी सीख यही है कि भारत को अब और चुप नहीं रहना। अब वक्त है कि हम अपनी ताकत को पहचानें, उसे बढ़ाएं, और दुनिया को दिखाएं कि भारत सिर्फ एक बाजार नहीं, बल्कि एक निर्णायक शक्ति है। और जो आतंक का समर्थन करता है, वह दुनिया से समर्थन पाने का अधिकारी नहीं हो सकता। क्योंकि जब भारत पर हमला होता है, तो वह सिर्फ एक देश नहीं, एक विचार पर हमला होता है। और इस विचार की रक्षा करना अब केवल सरकार का नहीं, हर नागरिक का भी कर्तव्य है। अब भारत खैरात नहीं, कड़वा जवाब देता है। अब भारत सौदे नहीं, सच्चाई चाहता है। अब भारत सिर्फ सहता नहीं, जवाब देता है।
Conclusion
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