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Moody’s ने की भविष्यवाणी: तेल की दुनिया में भारत बनेगा अगला लीडर, चीन को पछाड़ेगा! 2025

Moody’s

क्या आप यकीन करेंगे कि जो देश कभी वैश्विक तेल बाजार की धुरी था, उसे अब एक उभरती अर्थव्यवस्था मात देने वाली है? वो देश जिसने पूरी दुनिया में कच्चे तेल की मांग को गति दी, अब पीछे हट रहा है… और उसकी जगह लेने वाला है भारत।

जी हां, भारत—जो अब तक तेल Import पर निर्भर रहा है, आने वाले दशक में Global तेल मांग को बढ़ाने वाला सबसे बड़ा देश बनने जा रहा है। यह सिर्फ एक रिपोर्ट नहीं, बल्कि उस आर्थिक बदलाव की दस्तक है जो दुनिया की ऊर्जा राजनीति को पूरी तरह पलट कर रख देगा। और ये बदलाव अचानक नहीं आएगा—यह एक ऐसी प्रक्रिया होगी, जो अगले कुछ सालों में धीरे-धीरे पूरी दुनिया की नीतियों को प्रभावित करेगी। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

रेटिंग एजेंसी Moody’s ने गुरुवार को एक विस्फोटक रिपोर्ट में दावा किया कि अगले दस वर्षों में, चीन की आर्थिक रफ्तार धीमी पड़ जाएगी और उसकी तेल खपत स्थिर हो जाएगी, जबकि भारत की तेल मांग तेजी से बढ़ेगी। यह बदलाव केवल आंकड़ों का खेल नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि कैसे भारत World Economic Forum पर एक नया नेता बनकर उभर रहा है—वो भी ऊर्जा की दुनिया में, जो हमेशा से पश्चिम और चीन के इशारों पर चलती रही है। यह एक ऐतिहासिक मोड़ होगा, जब विकासशील देश तेल खपत के मामले में विकसित राष्ट्रों से आगे निकलने लगेंगे।

इस समय चीन दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता देश है और भारत तीसरे स्थान पर है। लेकिन अब Moody’s की रिपोर्ट कहती है कि दोनों देशों की तेल खपत के ट्रेंड में बड़ा फर्क आ चुका है। चीन में इलेक्ट्रिक वाहनों का बढ़ता प्रचलन, उसकी अर्थव्यवस्था में मंदी और ग्रीन एनर्जी की ओर रुख, तेल की मांग को सीमित कर रहे हैं।

वहीं दूसरी ओर भारत में पेट्रोल और डीजल वाहनों की खपत, उद्योगों का विस्तार और तेजी से बढ़ती आबादी, तेल की मांग को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा रही है। यह सब उस सामाजिक-आर्थिक ट्रांजिशन का हिस्सा है जो भारत को एक औद्योगिक महाशक्ति की दिशा में ले जा रहा है।

Moody’s के मुताबिक, चीन में अगले 3 से 5 साल के भीतर तेल की खपत अपने चरम पर पहुंच जाएगी। इसके बाद वहाँ मांग स्थिर हो जाएगी या गिर सकती है। लेकिन भारत में इसी अवधि में 3 से 5 प्रतिशत की सालाना वृद्धि की संभावना है।

इसका मतलब है कि जहां एक ओर चीन की ऊर्जा खपत थम रही है, वहीं भारत अपनी नई ऊर्जा क्रांति की ओर बढ़ रहा है। और यह वृद्धि केवल आर्थिक नहीं होगी, बल्कि यह राजनीतिक और कूटनीतिक ताकत में भी तब्दील होगी, जहां भारत की भूमिका पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो जाएगी।

यह बदलाव केवल उपभोग तक सीमित नहीं है। इसका असर तेल उत्पादक देशों, अंतरराष्ट्रीय कीमतों और Global geopolitics समीकरणों पर भी पड़ेगा। जब भारत तेल का सबसे बड़ा मांग पैदा करने वाला देश बन जाएगा, तब सऊदी अरब से लेकर रूस तक सभी की नजरें भारत पर टिक जाएंगी।

भारत की आवाज ओपेक की टेबल पर ज्यादा प्रभावशाली होगी। अमेरिका और यूरोप को भी अपनी ऊर्जा रणनीतियों में भारत को प्राथमिकता देनी होगी। यह वह समय होगा जब भारत की जरूरतें Global Energy Policy की धुरी बन जाएंगी।

लेकिन इस सफलता की ओर बढ़ते रास्ते में कुछ बड़ी चुनौतियां भी हैं। Moody’s की रिपोर्ट चेतावनी देती है कि भारत में घरेलू तेल उत्पादन लगातार घट रहा है। अगर यह गिरावट नहीं रुकी, तो देश की Import पर निर्भरता और भी बढ़ जाएगी।

यह आर्थिक संतुलन को बिगाड़ सकता है, और देश के (Current Account Deficit) को भी बढ़ा सकता है। इतना ही नहीं, इससे भारत की मुद्रा पर दबाव बढ़ सकता है, जिससे महंगाई और Import cost दोनों में वृद्धि हो सकती है।

चीन की तुलना में भारत की स्थिति इस लिहाज से कमजोर है कि उसकी तेल कंपनियां अभी भी पुराने कुओं पर निर्भर हैं, और उनमें Investment की गति धीमी है। भारतीय National Oil Companies (NOC) घरेलू उत्पादन बढ़ाने की योजनाएं तो बना रही हैं, लेकिन इन पर अमल धीमा है।

इसके उलट, चीन की NOC कंपनियों ने आक्रामक Investment और तकनीकी सुधारों से अपने उत्पादन को काफी मजबूत बना लिया है। इन कंपनियों ने global level पर Investment बढ़ाकर नई खोज और रिसोर्सेज का दोहन शुरू कर दिया है, जिससे उनकी आत्मनिर्भरता भारत से कहीं अधिक हो गई है।

Moody’s ने यह भी कहा है कि भारत की तेल कंपनियों पर Green technologies में Investment का दबाव भी ज्यादा है। वे एक ओर क्लीन एनर्जी की दिशा में बढ़ने की कोशिश कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हें तेल उत्पादन को भी बनाए रखना है। यह दोहरी जिम्मेदारी उन्हें आर्थिक रूप से तनाव में डाल सकती है, खासकर जब Global financial institutions अब हरित परियोजनाओं को प्राथमिकता दे रही हैं। इस दोधारी रणनीति को संतुलित करना भारत के लिए आने वाले वर्षों में सबसे बड़ी नीति चुनौती साबित हो सकती है।

इस स्थिति में भारत को क्या करना चाहिए? Expert मानते हैं कि भारत को एक बहुस्तरीय रणनीति अपनानी होगी। पहला, उसे घरेलू तेल उत्पादन को बढ़ाने के लिए टेक्नोलॉजी में Investment करना होगा।

दूसरा, उसे अपनी रिफाइनिंग कैपेसिटी को बढ़ाना होगा ताकि वो Import किए गए कच्चे तेल को बेहतर मूल्य में उपयोग कर सके। तीसरा, उसे अपने रणनीतिक भंडारों को मजबूत बनाना होगा ताकि global crisis के समय वह आत्मनिर्भर बन सके। इसके साथ ही, भारत को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर तेजी से ध्यान केंद्रित करना होगा ताकि वह Long term energy security सुनिश्चित कर सके।

Moody’s की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि भारत की Energy demand का विस्तार केवल वाहनों तक सीमित नहीं रहेगा। industry, agriculture, manufacturing, और शहरीकरण में भी तेल की खपत तेजी से बढ़ेगी। जैसे-जैसे भारत डिजिटल और औद्योगिक युग में तेजी से कदम रखेगा, उसकी ऊर्जा जरूरतें भी कई गुना बढ़ेंगी। स्मार्ट सिटी, बुलेट ट्रेन, हवाई अड्डों, बंदरगाहों और रक्षा क्षेत्र में हो रहे Investment भी ऊर्जा मांग को ऊंचाई देंगे, जिससे भारत की Global भूमिका और मजबूत होगी।

भारत को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि वह तेल के साथ-साथ स्वच्छ ऊर्जा में भी संतुलन बनाए रखे। क्योंकि अगर तेल पर अत्यधिक निर्भरता बढ़ती है तो वह एक नई आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौती बन सकती है। यही कारण है कि सरकार ने कई योजनाओं के तहत सौर और हाइड्रोजन ऊर्जा में Investment तेज किया है, लेकिन यह रफ्तार अभी और बढ़नी चाहिए।

यदि भारत इस Energy transition को समय पर कर लेता है तो आने वाले वर्षों में न केवल वह चीन को पीछे छोड़ देगा, बल्कि Global Energy Politics का नया नेतृत्वकर्ता बन जाएगा। वह दिन दूर नहीं जब दिल्ली, रियाद और वाशिंगटन के बीच तेल पर होने वाली चर्चाओं में भारत की शर्तें भी तय होंगी। और तब भारत की नीतियां न केवल दक्षिण एशिया में बल्कि अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों में भी ऊर्जा सहयोग के नए मार्ग खोलेंगी।

तो जब अगली बार आप पेट्रोल पंप पर खड़े होकर कीमतों की चर्चा करें, तो याद रखिए—भारत अब केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि Global energy demand का दिशा निर्देशक बनने की राह पर है। Moody’s की यह रिपोर्ट केवल भविष्य की भविष्यवाणी नहीं, बल्कि एक नए भारत की तस्वीर है जो तेल के बूंद-बूंद से अपनी ताकत गढ़ रहा है।

Conclusion

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