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Historical Budget 1991: कैसे मनमोहन सिंह ने भारत की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया?

Historic Budget

नमस्कार दोस्तों, क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि एक ऐसा समय था जब भारत की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से दिवालिया होने के कगार पर खड़ी थी? जब देश के पास इतना कम foreign exchange reserves था कि, सिर्फ दो हफ्तों तक का ही Import किया जा सकता था? महंगाई अपने चरम पर थी, भारतीय रुपये की कीमत गिर चुकी थी, और Global Level पर भारत की साख डूब रही थी। यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि 1991 का भारत था।

तब देश पर भारी कर्ज था, Fiscal deficit 8% तक पहुंच चुका था, और भारत को अपने foreign loan चुकाने में भी दिक्कत हो रही थी। ऐसे में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री नियुक्त किया, जिन पर भारत की अर्थव्यवस्था को बचाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई।

यह आसान नहीं था, क्योंकि दुनिया को संदेह था कि भारत इस संकट से उबर पाएगा या नहीं। लेकिन 24 जुलाई, 1991 को मनमोहन सिंह ने Budget पेश किया, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था की दिशा और दशा बदल दी। उन्होंने ऐसा आर्थिक सुधार लागू किया, जिसने भारत को पूरी दुनिया के लिए व्यापार और Investment के लिए खोल दिया। यह Budget सिर्फ एक सरकारी दस्तावेज नहीं था, बल्कि भारत की आर्थिक आज़ादी की घोषणा थी। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

1991 के Budget ने भारत की तकदीर कैसे बदली?

24 जुलाई, 1991 का दिन भारत के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया। मनमोहन सिंह ने जब संसद में अपना पहला Budget भाषण पढ़ना शुरू किया, तो न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया की निगाहें उन पर थीं। हर कोई देखना चाहता था कि आखिर वह कौन-से कदम उठाने जा रहे हैं, जो भारत की डूबती अर्थव्यवस्था को उबार सकें।

इस Budget में उन्होंने सबसे बड़ा ऐलान किया economic Liberalization, Privatization और Globalization का। यह तीनों सुधार भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक नए युग की शुरुआत थे।

उन्होंने बताया कि सरकार अब बिजनेस और उद्योगों पर अपनी पकड़ ढीली करेगी और Private Sector को आगे बढ़ने का मौका देगी। भारत, जो अब तक एक बंद अर्थव्यवस्था था, अब दुनिया के लिए अपने दरवाजे खोल रहा था। यह निर्णय बेहद साहसी था, क्योंकि उस समय सरकार के लिए विदेशी कंपनियों और Investment को आमंत्रित करना एक बड़ा कदम माना जाता था।

लाइसेंस राज की समाप्ति से भारत में व्यापार और उद्योगों की नई शुरुआत कैसे हुई, और इसका अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?

1991 से पहले भारत में “लाइसेंस राज” नाम की एक व्यवस्था थी। इसका मतलब यह था कि कोई भी नया उद्योग या बिजनेस खोलने के लिए सरकार से कई प्रकार के लाइसेंस लेने पड़ते थे, जो एक बेहद जटिल और भ्रष्टाचार से भरी प्रक्रिया थी।

मनमोहन सिंह ने इस व्यवस्था को समाप्त करने की घोषणा की। उन्होंने उद्योगपतियों को ज्यादा से ज्यादा स्वतंत्रता देने का फैसला किया, ताकि वे बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के अपने बिजनेस को बढ़ा सकें। इस सुधार से भारत में नए उद्योगों और व्यवसायों के लिए रास्ते खुल गए, और देश में आर्थिक गतिविधियां तेज़ हो गईं।

भारत में पहली बार यह समझ आया कि एक मजबूत अर्थव्यवस्था के लिए सरकार का ज्यादा नियंत्रण सही नहीं होता, बल्कि बिजनेस और बाजार को खुली Competition में काम करने देना ही विकास का सही रास्ता है।

टैक्स और सीमा शुल्क में किए गए सुधारों से Foreign Investment को कैसे बढ़ावा मिला?

मनमोहन सिंह के Budget में दूसरा बड़ा फैसला था टैक्स और Import Duties को सरल बनाना। उस समय भारत में Import Duty 300% तक था, जिसका मतलब यह था कि विदेशी सामान भारत में आकर तीन गुना महंगा हो जाता था। इससे न केवल Import मुश्किल था, बल्कि विदेशी कंपनियां भारत में Investment करने से कतराती थीं।

1991 के बजट में Import duty को घटाकर 50% कर दिया गया। इससे दो बड़े फायदे हुए: पहला विदेशी कंपनियों ने भारत के बाजार में आना शुरू किया। दूसरा भारतीय ग्राहकों को कम कीमत पर बेहतर quality के product मिलने लगे। इसके अलावा, कॉरपोरेट टैक्स को 40% से बढ़ाकर 45% किया गया, ताकि सरकार के पास अधिक Revenue आए और वह इस पैसे से अर्थव्यवस्था को स्थिर कर सके। इसके साथ ही आपको बता दें कि इससे पहले भारत में विदेशी कंपनियों के लिए Investment की अनुमति बेहद सीमित थी।

अगर कोई विदेशी कंपनी भारत में बिजनेस करना चाहती थी, तो उसे सरकार से विशेष अनुमति लेनी पड़ती थी, और उसका स्वामित्व भारतीय कंपनियों के साथ ही रह सकता था। 1991 के बजट में Foreign Direct Investment – FDI की सीमा को बढ़ाया गया। अब विदेशी कंपनियां भारत में अपने उद्योग और व्यापार स्थापित कर सकती थीं, जिससे भारत में रोजगार के नए अवसर बनने लगे। इसके अलावा, प्राइवेट कंपनियों को Import करने की आज़ादी दी गई, जिससे वे नई तकनीक और मशीनें ला सकें और भारत का उद्योग सेक्टर विकसित हो सके।

आरबीआई का खजाना फिर से कैसे भरा गया, और भारत को अपना सोना गिरवी रखने की जरूरत क्यों पड़ी?

1991 में भारत का foreign exchange reserves खत्म होने के कगार पर था। देश के पास सिर्फ 6 अरब डॉलर बचे थे, जिससे सिर्फ दो हफ्ते का Import किया जा सकता था। यह स्थिति बेहद खतरनाक थी, क्योंकि अगर सरकार के पास Foreign Exchange नहीं होती, तो वह तेल और अन्य जरूरी सामानों का Import नहीं कर पाती।

इस संकट को दूर करने के लिए मनमोहन सिंह ने बैंक ऑफ इंग्लैंड से 60 करोड़ डॉलर का सोना उधार लिया। यह एक साहसी कदम था, लेकिन इसने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को जरूरी Foreign Exchange उपलब्ध करा दी, जिससे सरकार अपने अंतरराष्ट्रीय दायित्व पूरे कर सकी।

इन आर्थिक सुधारों का क्या असर पड़ा, और इससे नौकरियों में बढ़ोतरी और Investment में उछाल कैसे आया?

1991 का बजट सिर्फ कागज़ी सुधार नहीं था, बल्कि इसके नतीजे जल्द ही दिखने लगे। जब foreign investors भारत आए और प्राइवेट सेक्टर को ज्यादा स्वतंत्रता मिली, तो अर्थव्यवस्था में नई जान आ गई। पहला भारत में नए उद्योग और कंपनियों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी। दूसरा नौकरियों के अवसर तेजी से बढ़े, जिससे लाखों लोगों को रोजगार मिला। तीसरा विदेशी कंपनियों ने भारत में फैक्ट्रियां और ऑफिस खोलने शुरू कर दिए। चौथा आईटी और सेवा क्षेत्र में तेजी से ग्रोथ हुई, जिससे भारत ग्लोबल मार्केट में एक मजबूत प्लेयर बन गया।

Conclusion

तो दोस्तों, आज, जब भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, तो इसका श्रेय 1991 के बजट में हुए सुधारों को जाता है। अगर 1991 में यह आर्थिक सुधार नहीं होते, तो शायद भारत आज भी आर्थिक संकटों से जूझ रहा होता। आज हम जिस “मेक इन इंडिया”, “स्टार्टअप इंडिया”, और “डिजिटल इंडिया” जैसी योजनाओं की बात करते हैं, उनकी नींव 1991 में ही रख दी गई थी।

1991 का बजट सिर्फ एक आर्थिक दस्तावेज नहीं था, बल्कि यह भारत की आर्थिक आज़ादी की शुरुआत थी। अगर यह सुधार नहीं होते, तो शायद आज भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक नहीं होता। अब सवाल आपसे – क्या 1991 का बजट भारत के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण बजट था? हमें कमेंट में बताएं और इस वीडियो को शेयर करें ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग भारत की आर्थिक क्रांति की इस कहानी को जान सकें!

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