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Hikal: कंपनी के मालिकाना हक पर भाई-बहन की खींचतान! जानें बाबा कल्याणी की असली चाहत। 2025

Hikal

ज़रा सोचिए… एक तरफ़ वह परिवार जिसने दशकों तक भारत की इंडस्ट्री को आकार दिया, अरबों रुपये की कंपनियां खड़ी कीं और ग्लोबल बिज़नेस की दुनिया में भारतीय नाम को चमकाया। और दूसरी तरफ़ वही परिवार अब एक ऐसी लड़ाई में फँस चुका है, जिसने कंपनी बोर्डरूम की दीवारों को युद्धभूमि बना दिया है। एक भाई और एक बहन—जिन्होंने बचपन से लेकर जीवन के सबसे कठिन दौर तक एक-दूसरे का साथ दिया—आज इस मुकाम पर आ पहुँचे हैं कि उनके बीच तलवारें खिंच चुकी हैं।

मामला सिर्फ़ कंपनी के मालिकाना हक का नहीं है, बल्कि यह उस भरोसे का भी है जो एक पारिवारिक समझौते पर टिका था। सवाल उठता है—आख़िर कैसे भारत फोर्ज़ के चेयरमैन और एमडी बाबा कल्याणी और उनकी बहन सुगंधा हिरेमठ, जो Hikal कंपनी की नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं, इतने बड़े टकराव में आ गए? और क्या यह झगड़ा सिर्फ़ पारिवारिक है या फिर भारत की कॉरपोरेट गवर्नेंस पर भी सवाल खड़े करता है? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

Hikal कंपनी की नींव सुगंधा हिरेमठ के पति जयदेव हिरेमठ ने रखी थी। उस दौर में कंपनी शुरू करने के लिए पूंजी की ज़रूरत थी, और यह पूंजी बाबा और सुगंधा के पिता ने उपलब्ध करवाई। इसके बदले में शेयर सूरजमुखी नामक इकाई को जारी किए गए, जो बाबा और सुगंधा के पिता के स्वामित्व में थी।

यहाँ से कहानी शुरू होती है—क्योंकि उस वक़्त एक पारिवारिक समझौता हुआ था कि इन शेयरों को बाद में हिरेमठ परिवार को ट्रांसफर कर दिया जाएगा। लेकिन आज दशकों बाद, सुगंधा का आरोप है कि बाबा कल्याणी ने अपनी ज़िम्मेदारी पूरी नहीं की। उनका दावा है कि 34% हिस्सेदारी जो आज कल्याणी परिवार के पास है, वह दरअसल हिरेमठ परिवार की होनी चाहिए थी। यही विवाद अब बॉम्बे हाईकोर्ट की चौखट पर पहुँच चुका है।

लेकिन यह सिर्फ़ अदालत तक सीमित नहीं है। असली लड़ाई Hikal के बोर्डरूम में हो रही है। दिसंबर 2023 में, बाबा कल्याणी को Hikal के बोर्ड से बाहर होना पड़ा क्योंकि उन्हें ज़रूरी वोट नहीं मिले। यह अपने आप में ऐतिहासिक था—31 साल तक कंपनी के बोर्ड में बने रहने वाले व्यक्ति को अपने ही घर में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

सुगंधा और उनके परिवार ने बाबा की दोबारा नियुक्ति का विरोध किया था। अब बारी आई है बाबा के बेटे अमित कल्याणी की। 50 वर्षीय अमित पिछले 13 साल से Hikal के बोर्ड में नॉन-एग्जीक्यूटिव और नॉन-इंडिपेंडेंट डायरेक्टर रहे हैं। अब वे एक बार फिर से चुनाव लड़ रहे हैं, और उनकी किस्मत ई-वोटिंग के जरिए तय होने वाली है।

ई-वोटिंग की आख़िरी तारीख़ खत्म होने के बाद मंगलवार को नतीजे सामने आएंगे। यहाँ दिलचस्प मोड़ यह है कि सुगंधा और उनके परिवार के पास Hikal की लगभग 35% हिस्सेदारी है, जबकि बाबा और उनके परिवार के पास 34% हिस्सेदारी है। यानी दोनों परिवार लगभग बराबरी की स्थिति में हैं।

अब यह इस पर निर्भर करता है कि शेष 31% हिस्सेदारी रखने वाले संस्थागत और रिटेल Investor किसके पक्ष में जाते हैं। सितंबर 2024 में जब सुगंधा की बोर्ड में दोबारा नियुक्ति हुई थी, तब संस्थागत और रिटेल Investors ने उनका साथ दिया था। लेकिन क्या अमित के मामले में भी वही कहानी दोहराई जाएगी?

शेयरधारक सलाहकार फर्मों की राय भी बंटी हुई है। एसईएस ने अमित की नियुक्ति का समर्थन किया है। उनका तर्क है कि भले ही अमित के पास कई डायरेक्टरी पद हैं, लेकिन चूंकि ये सभी एक ही प्रमोटर समूह के भीतर हैं, इसलिए यह कोई बड़ी समस्या नहीं है। दूसरी ओर, आईआईएएस ने इसके खिलाफ राय दी है।

उनका कहना है कि जब तक परिवार आपसी विवाद सुलझा नहीं लेता, तब तक बोर्ड में दोबारा नियुक्ति की मांग करना कंपनी के संचालन और निर्णय लेने की प्रक्रिया पर असर डालेगा। आईआईएएस साफ कहता है कि पहले विवाद निपटाइए, फिर बोर्ड में लौटिए। यह सुझाव इस बात का संकेत है कि यह विवाद सिर्फ़ परिवार का मामला नहीं रहा, बल्कि अब यह कंपनी के शेयरधारकों और गवर्नेंस के लिए भी चिंता का विषय है।

अब ज़रा सोचिए—जहाँ भारत फोर्ज़ जैसी दिग्गज कंपनी के चेयरमैन बाबा कल्याणी का नाम विश्वस्तरीय इंडस्ट्री लीडर्स में लिया जाता है, वहीं उसी परिवार में एक कंपनी Hikal पर मालिकाना हक़ की जंग छिड़ी हुई है। यह कहानी हमें टाटा परिवार या रिलायंस परिवार की आंतरिक लड़ाइयों की याद दिलाती है, जहाँ परिवार के भीतर के विवाद सार्वजनिक हो गए और कंपनियों की दिशा बदल गई। बाबा कल्याणी, जिन्हें भारतीय ऑटोमोटिव और डिफेंस सेक्टर में उनके योगदान के लिए जाना जाता है, अब अपनी बहन के साथ अदालत और बोर्डरूम की लड़ाई में उलझ गए हैं।

अमित कल्याणी का करियर भी यहाँ केंद्र में आ जाता है। वे भारत फोर्ज़, कल्याणी स्टील्स और कई अन्य कंपनियों के बोर्ड में हैं। हाल ही में उन्होंने शेफलर इंडिया के बोर्ड से इस्तीफ़ा दिया, यह कहते हुए कि वे अन्य पेशेवर प्रतिबद्धताओं में व्यस्त हैं। सवाल यह है कि क्या उनके पास Hikal जैसी कंपनी को समय देने के लिए पर्याप्त ऊर्जा और फोकस है? एसईएस का मानना है कि चूंकि ये सभी पद एक ही परिवार की कंपनियों में हैं, इसलिए यह कोई बड़ी चिंता नहीं है। लेकिन विरोधी पक्ष मानता है कि इतने पदों पर बैठे रहने से स्वतंत्रता और निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है।

सुगंधा हिरेमठ का पक्ष बिल्कुल अलग है। उनका कहना है कि यह सिर्फ़ डायरेक्टरी पद का मुद्दा नहीं है, बल्कि मालिकाना हक का है। वे यह भी दावा करती हैं कि उनके पति जयदेव हिरेमठ की मेहनत और दृष्टि से Hikal की नींव पड़ी थी। शुरुआती पूंजी ज़रूर कल्याणी परिवार से आई थी, लेकिन वह एक समझौते के तहत थी, जिसमें शेयर बाद में हिरेमठ परिवार को वापस होने थे। अगर यह सही है, तो सवाल उठता है कि क्या बाबा कल्याणी ने वास्तव में अपनी ज़िम्मेदारी निभाई या नहीं?

दूसरी ओर, बाबा कल्याणी का कहना है कि ऐसा कोई लिखित समझौता मौजूद नहीं है। उनका दावा है कि Hikal में उनकी हिस्सेदारी पूरी तरह वैध है और इस पर किसी और का दावा नहीं बनता। यही वह बिंदु है जिस पर मामला बॉम्बे हाईकोर्ट में पहुँच गया है। कोर्ट का फ़ैसला आने वाले महीनों में दोनों परिवारों की किस्मत तय करेगा। अगर कोर्ट सुगंधा के पक्ष में जाता है, तो हिरेमठ परिवार Hikal का नियंत्रण हासिल कर सकता है। लेकिन अगर कोर्ट बाबा के पक्ष में गया, तो कल्याणी परिवार की पकड़ और मज़बूत हो जाएगी।

यह विवाद हमें भारतीय पारिवारिक कंपनियों की उस पुरानी समस्या की याद दिलाता है—जहाँ परिवार की एकता टूटने पर कंपनियों का भविष्य दांव पर लग जाता है। टाटा समूह में साइरस मिस्त्री और रतन टाटा का विवाद, या फिर रिलायंस परिवार में मुकेश और अनिल अंबानी का बंटवारा—यह सब उदाहरण हैं कि परिवार और बिज़नेस जब टकराते हैं, तो परिणाम सिर्फ़ कोर्टरूम में ही नहीं, बल्कि शेयर मार्केट और Investors की जेबों में भी दिखाई देता है।

आज जब ई-वोटिंग पूरी हो चुकी है और सबकी निगाहें नतीजों पर टिकी हैं, यह सवाल और भी बड़ा हो गया है—क्या अमित कल्याणी को बोर्ड में जगह मिलेगी या फिर उनकी राह भी वही होगी जो उनके पिता बाबा कल्याणी की हुई थी? और क्या यह विवाद आने वाले दिनों में और गहराएगा?

Hikal की कहानी सिर्फ़ एक भाई-बहन की खींचतान की कहानी नहीं है। यह भारतीय कॉरपोरेट गवर्नेंस, Investors के भरोसे और पारिवारिक समझौतों की नाजुकता की भी कहानी है। यह हमें बताती है कि चाहे कितनी भी बड़ी कंपनियां हों, अंततः उनका भविष्य उन रिश्तों और फैसलों पर निर्भर करता है जो बंद कमरों में लिए जाते हैं।

Conclusion

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