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Govind Bhadu की सफलता की कहानी – 15 लाख का कर्ज, घर-घर मसाले बेचे, अब बना 20 करोड़ का बिजनेस!

Govind Bhadu

नमस्कार दोस्तों, कल्पना कीजिए एक ऐसा लड़का, जिसकी जेब में कभी अपनी साइकल रिपेयर कराने तक के पैसे नहीं होते थे, जो गांव में पसीना बहाकर ट्यूशन पढ़ाकर महीने के कुछ सौ रुपये जोड़ता था, जो कभी मसाले के पैकेट थैले में भरकर गर्मियों में धूलभरी सड़कों पर घर-घर बेचने जाता था। और फिर एक दिन, उसके ऊपर लाखों रुपये का कर्ज हो जाता है। लोग ताने मारते हैं, दोस्त मुंह मोड़ लेते हैं, रिश्तेदार पीठ पीछे बातें करने लगते हैं कि “इससे कुछ नहीं होगा”।

लेकिन आज वही इंसान तीन कंपनियों का मालिक है, 20 करोड़ का सालाना कारोबार करता है, और 100 से ज्यादा लोगों को नौकरी देकर उनके परिवारों की रोटी का सहारा बना हुआ है। यह कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट की तरह लगती है, लेकिन यह सच्चाई है Govind Bhadu की ज़िंदगी की, जो राजस्थान के एक छोटे से गांव से निकले और अपनी मेहनत, जिद और साहस से दुनिया को दिखा दिया कि हालात चाहे जैसे भी हों, अगर इरादे पक्के हों तो मंज़िल खुद रास्ता बना लेती है।

Govind Bhadu का जन्म राजस्थान के बीकानेर जिले से लगभग 100 किलोमीटर दूर एक छोटे से गांव खाजूवाला में हुआ था। उनका परिवार सामान्य किसान परिवार था, जिसमें खेती ही एकमात्र income का साधन था। उनके पिता खेती करते थे और मां एक गृहिणी थीं।

घर की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी। ऐसे माहौल में बचपन बिताने वाले गोविंद को बहुत जल्दी समझ आ गया था कि अगर कुछ बड़ा करना है, तो रास्ता खुद बनाना होगा। उनके पास न तो कोई कारोबारी गुरु था, न ही कोई बड़ी पूंजी, लेकिन उनके भीतर था एक अडिग विश्वास कि वे कुछ अलग कर सकते हैं।

उनका पहला कारोबार उस उम्र में शुरू हुआ, जब बच्चे सिर्फ खेलने में व्यस्त रहते हैं। एक बार वे अपने दोस्त के साथ वीडियो गेम खेलने गए। वहां उन्होंने देखा कि एक पुराना वीडियो गेम सेंटर हर घंटे के 10 रुपये चार्ज कर रहा था और काफी अच्छा बिजनेस कर रहा है। Govind Bhadu ने तुरंत अंदाजा लगाया कि अगर एक पुराना सेटअप इतना पैसा कमा सकता है, तो इसमें संभावनाएं हैं।

उन्होंने अपनी सीमित बचत से एक पुराना वीडियो गेम खरीदा और हर घंटे के 7 रुपये चार्ज करके अपना खुद का छोटा सेंटर शुरू कर दिया। यह उनका पहला बिजनेस था, और इसमें उन्हें थोड़ी-बहुत कमाई भी होने लगी। उन्होंने उसी कमाई से कॉमिक्स बेचने का छोटा सा काम भी साथ में शुरू किया।

12वीं पास करने के बाद वे बीकानेर चले गए और वहां कंप्यूटर सीखना शुरू किया। लेकिन जेब खर्च के लिए उन्हें अपने आप पर निर्भर रहना पड़ा। इसलिए उन्होंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया, जिससे उन्हें महीने के लगभग 1000 रुपये मिल जाते थे। लेकिन उनका दिमाग हमेशा इस सोच में रहता था कि क्या कुछ ऐसा किया जाए जिससे जिंदगी में बड़ा बदलाव आ सके। वे पढ़ाई के साथ-साथ बिजनेस के नए-नए आइडियाज पर सोचते रहते थे।

बीकानेर का खाजूवाला इलाका बॉर्डर से सटा हुआ है। उस समय देश में करगिल युद्ध का माहौल था और उस इलाके में भारी सैन्य तैनाती थी। Govind Bhadu ने एक और शानदार मौका देखा। उन्होंने सोचा कि वहां की सेना और स्थानीय लोगों के लिए अगर STD-PCO शुरू किया जाए, तो यह एक अच्छा बिजनेस बन सकता है।

उन्होंने अपनी सेविंग से और एक दोस्त के साथ मिलकर PCO शुरू किया। इस बिजनेस से उन्होंने 6 से 8 महीनों में 3 से 4 लाख रुपये तक कमा लिए। लेकिन उन्हें लगा कि यह बिजनेस स्थायी नहीं है और जो सपना वे देख रहे हैं, वह इससे पूरा नहीं होगा। उन्होंने समझदारी दिखाई और यह बिजनेस अपने पार्टनर को सौंपकर आगे बढ़ गए।

STD बिजनेस की कमाई से उन्होंने अगला कदम मसाले के बिजनेस में रखा। Govind Bhadu खुद फैक्ट्री से मसाले लाते, उन्हें पैक करते और फिर दुकानों पर जाकर उन्हें बेचते। इसमें मेहनत बहुत ज़्यादा थी। सुबह से लेकर शाम तक धूप, धूल और थकान के बावजूद वे हर दुकान पर जाते, प्रोडक्ट समझाते और बिक्री करते।

कई बार दुकानदार पैसा समय पर नहीं देते थे। दो-तीन महीने तक पेमेंट अटक जाता था। लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। इसके बाद उन्होंने प्रिंटिंग का काम शुरू किया, फिर जीरे का व्यापार किया। हर बार उन्होंने एक नया प्रयास किया लेकिन हर बार एक सीमित सफलता मिलने के बाद उन्हें लगा कि यह रास्ता उस मुकाम तक नहीं ले जा रहा, जिसकी उन्हें तलाश थी।

तब उन्होंने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर एक कंपनी बनाने का फैसला किया। इस कंपनी का लक्ष्य था एफएमसीजी प्रोडक्ट्स बनाकर बाजार में उतारना। इस बिजनेस को शुरू करने के लिए उन्होंने पिताजी से खेती की जमीन पर 5 लाख रुपये का लोन लिया, बाकी पैसे अपनी सेविंग और दोस्तों से उधार लेकर जुटाए।

उन्होंने एक बड़ा ऑफिस लिया, 20 लोगों की टीम बनाई और पूरी शिद्दत से काम में जुट गए। शुरुआत में सब अच्छा लग रहा था, लेकिन धीरे-धीरे खर्चे बढ़ते गए और कमाई घटने लगी। कंपनी पर दबाव बढ़ने लगा और अंततः उन्हें यह बिजनेस भी बंद करना पड़ा।

जब यह बिजनेस बंद हुआ, तो Govind Bhadu पर 15 लाख रुपये का कर्ज चढ़ चुका था। उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। घर चलाना भी मुश्किल हो गया था। उन्हें अपनी बाइक बेचनी पड़ी और लोगों की बातें सुननी पड़ीं।

रिश्तेदारों ने ताने मारे, दोस्तों ने मुंह फेर लिया, और समाज ने यह तक कह दिया कि “इस लड़के से कुछ नहीं हो सकता।” हर तरफ निराशा का माहौल था। लेकिन तभी उनके पिता ने उन्हें एक उदाहरण देकर प्रेरित किया। उन्होंने कहा, “जब हम खेत में बीज बोते हैं, तो हमें छह महीने तक उसकी देखभाल करनी होती है। कई बार फसल अच्छी होती है, कई बार नहीं। लेकिन क्या हम खेती करना छोड़ देते हैं?” यही बात गोविंद के दिल को छू गई।

उन्होंने दोबारा शुरुआत करने की ठानी। उस वक्त इंडक्शन कुकर नया-नया मार्केट में आया था। उन्होंने इसे बड़े शहरों से होलसेल में खरीदना शुरू किया और खुद उसे दुकानों और ग्राहकों को बेचना शुरू किया। यह बिजनेस धीरे-धीरे चलने लगा और उन्हें अच्छा मुनाफा मिलने लगा। आत्मविश्वास लौटा। फिर उन्होंने हेल्थ प्रोडक्ट्स जैसे बायोमैग्नेटिक थैरेपी से जुड़े प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग शुरू की। लोगों को ये चीजें पसंद आईं और Govind Bhadu का बिजनेस फिर से दौड़ने लगा।

2010 में उन्होंने दिल्ली में अपना ऑफिस खोला और अपने प्रोडक्ट्स को पूरे भारत में सप्लाई करने लगे। 2014 में उन्होंने अपने ब्रांड को अमेजॉन और फ्लिपकार्ट पर लिस्ट किया, जिससे उन्हें डिजिटल रेवेन्यू मिलना शुरू हो गया। ऑनलाइन ऑर्डर्स बढ़ने लगे और उनके कारोबार ने रफ्तार पकड़ ली। उनके ऊपर जो 15 लाख का कर्ज था, वह चुक गया। फिर उन्होंने माइनिंग सेक्टर में भी कदम रखा और वहां भी कामयाबी पाई।

आज Govind Bhadu के पास तीन कंपनियां हैं, सात ब्रांड्स हैं और 100 से ज्यादा लोगों की टीम है। वे सालाना 20 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार कर रहे हैं। और सबसे खास बात यह है कि उन्होंने यह सब बिना किसी बड़ी मदद, किसी इंवेस्टर या किसी गॉडफादर के किया। उन्होंने अपने दम पर, अपनी मेहनत और अपने आत्मविश्वास से सब कुछ हासिल किया।

Govind Bhadu की यह कहानी हमें सिखाती है कि असफलताएं सिर्फ एक पड़ाव होती हैं, मंज़िल नहीं। हर बार गिरने के बाद जो इंसान फिर से खड़ा हो जाता है, वही असली विजेता होता है। उनके जीवन से यह सीख मिलती है कि असली ताकत बाहरी दुनिया में नहीं, हमारे अंदर होती है। परिस्थितियां चाहे जितनी भी कठिन हों, अगर हमारे इरादे मजबूत हों तो हम हर बाधा पार कर सकते हैं।

Conclusion:-

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