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Fantasy Sports में छिपा है कमाई का खजाना! खिलाड़ी भी खुश, सरकार भी फायदे में! 2025

Fantasy Sports

ये कहानी एक ऐसे खेल की है, जिसमें मैदान पर खिलाड़ी होते हैं, लेकिन जीत और हार तय होती है मोबाइल स्क्रीन पर। यूजर्स टीम बनाते हैं, दांव लगाते हैं और उम्मीद करते हैं कि आज किस्मत उनका साथ देगी। लेकिन इस पूरे खेल में जो सबसे बड़ा खिलाड़ी है, वो न कोई कैप्टन है, न कोई बॉलर और न ही कोई Fantasy Sports

सबसे बड़ा विजेता है—सरकार। हां, वही सरकार जो इस डिजिटल जुए को कानूनी दायरे में लाकर न सिर्फ उसे वैध बनाती है, बल्कि उस पर टैक्स लगाकर भारी कमाई भी करती है। ये खेल जितना रोमांचक है, उतना ही खतरनाक भी। और जब आप इसका पूरा बिज़नेस मॉडल समझेंगे, तो आपको अंदाज़ा होगा कि असली बाज़ीगर कौन है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

फैंटेसी स्पोर्ट्स, एक ऐसा शब्द जो अब हर खेल प्रेमी की जुबान पर है। खासकर क्रिकेट के दीवाने इस खेल के मोहपाश में बुरी तरह उलझ चुके हैं। ड्रीम 11, माई 11 सर्किल, MPL, गेमज़ी जैसे ऐप्स ने एक पूरी नई डिजिटल दुनिया खड़ी कर दी है, जिसमें लोग अपनी ‘ड्रीम टीम’ बनाकर लाखों रुपए जीतने का सपना देखते हैं। ये ऐप्स आपको लाइव मैच के दौरान एक आभासी टीम बनाने की छूट देते हैं, जिसमें आप अपने मनपसंद खिलाड़ियों को चुनते हैं और उनके रियल-टाइम प्रदर्शन के हिसाब से अंक अर्जित करते हैं।

ये खेल जितना दिखने में आसान लगता है, उतना ही मनोवैज्ञानिक रूप से जटिल होता है। ये एक आदत की तरह बन जाता है, जिसमें यूजर बार-बार वापस आता है। कई बार जीत की खुशी मिलती है, लेकिन अधिकतर बार हार का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद ये खेल लोगों को बांधकर रखता है क्योंकि इसमें जुड़ा होता है एक ‘रियल मैच’ जैसा अनुभव। जब आप अपनी बनाई हुई टीम के खिलाड़ियों को मैदान में रन बनाते हुए या विकेट लेते हुए देखते हैं, तो आपको ऐसा लगता है मानो आप खुद उस खेल का हिस्सा हैं। यही एहसास लोगों को फिर से खेलने के लिए प्रेरित करता है, बार-बार।

फैंटेसी स्पोर्ट्स का रोमांच इस कदर बढ़ गया है कि सेलेब्रिटीज भी इन प्लेटफॉर्म्स को प्रमोट करने में जुट गए हैं। बड़े-बड़े क्रिकेटर्स, फिल्म स्टार्स, और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स लगातार इन ऐप्स का प्रचार कर रहे हैं। ड्रीम 11 के विज्ञापनों में एमएस धोनी हों या माई11सर्किल में सौरव गांगुली, इन चेहरों ने आम जनता का विश्वास जीतने में बड़ी भूमिका निभाई है। लेकिन असली सच्चाई तब सामने आती है जब आप इसके अंदर छिपे गणित को समझते हैं।

इस पूरे खेल का सबसे चौंकाने वाला पहलू है इसका बिजनेस मॉडल। मान लीजिए पांच लोगों ने 100 100 रुपये का दांव लगाया यानी कुल 500 रुपये। सबसे पहले सरकार इसमें से 28% जीएसटी काट लेती है यानी 140 रुपये। इसके बाद जो 360 रुपये बचे, उसमें से ऐप कंपनी अपना 20% कमीशन काटती है—करीब 72 रुपये। अब बचे 288 रुपये, जिसे एक खिलाड़ी ने जीता, लेकिन उसे भी पूरी राशि नहीं मिलती क्योंकि सरकार TDS के रूप में 30% और काट लेती है यानी करीब 86 रुपये। अब हाथ में आता है सिर्फ 202 रुपये। यानी 100 रुपये लगाकर आपको 102 रुपये का नेट फायदा। पर ये भी तब, जब आप जीत जाएं।

अब सोचिए, जब एक दांव में ही सरकार 226 रुपये कमा रही है और ऐप मालिक को भी 72 रुपये मिल रहे हैं, तो असली खिलाड़ी कौन है? सरकार, जो सबसे ऊपर बैठी है और हर दांव से मोटी रकम कमा रही है। और यूजर? वो अपने 100 रुपये दांव पर लगाकर या तो हार जाता है, या थोड़ा सा जीतकर खुश हो जाता है। लेकिन एक अनुमान के मुताबिक, फैंटेसी स्पोर्ट्स में किसी यूजर के जीतने की संभावना मात्र 0.00007% होती है। यानी जीत लगभग नामुमकिन है।

बहुत सारे लोग इस उम्मीद में बार-बार खेलते हैं कि इस बार जरूर जीतेंगे। कई लोग एक ही मैच में 3 से 4 टीमें बनाते हैं, ताकि किसी न किसी से जीतने की संभावना बने। लेकिन हर टीम के साथ खर्च भी बढ़ता है। और जब जीत नहीं मिलती, तो नुकसान गहराता चला जाता है। इसे एक तरह का ऑनलाइन जुआ कहा जा सकता है, जिसे वैधता की चादर ओढ़ा दी गई है।

अब जरा इस बाजार के पैमाने को समझते हैं। टीम इंडिया के हर अंतरराष्ट्रीय मैच में औसतन 200 करोड़ रुपये से ज्यादा का दांव लगाया जाता है। और अगर घरेलू टूर्नामेंट्स, आईपीएल, वर्ल्ड कप, और अन्य अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों को जोड़ दिया जाए, तो ये आंकड़ा 10 लाख करोड़ रुपये के पार पहुंच जाता है। 2022 में इस इंडस्ट्री का रेवेन्यू था 6,800 करोड़ रुपये और 2027 तक इसके 25,240 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। यानी यह एक उभरता हुआ सुनहरा कारोबार है, जिसमें हर दिन नई रकम झोंकी जा रही है।

यूज़र्स की संख्या भी तेज़ी से बढ़ रही है। 2016 में जहां फैंटेसी स्पोर्ट्स खेलने वाले सिर्फ 20 लाख थे, वहीं 2018 में यह संख्या 5 करोड़ हो गई। 2020 में यह आंकड़ा 10 करोड़ पार कर गया और 2022 में 18 करोड़ तक पहुंच गया। अनुमान है कि 2027 तक 50 करोड़ से ज्यादा लोग इस खेल से जुड़े होंगे। सोचिए, यह संख्या कितनी विशाल है और इससे कितना राजस्व सरकार और कंपनियों को मिल रहा है।

सरकार के लिए यह एक सुनहरा अवसर बन गया है। GST और TDS के ज़रिए सरकारी खजाना हर दांव के साथ भरता जा रहा है। कुछ राज्य सरकारों ने तो इस पर और टैक्स बढ़ाने की मांग भी की है। वहीं केंद्र सरकार ने इसे ऑनलाइन गेमिंग का नाम देकर कानूनी ढांचे में बनाए रखा है, जिससे विवाद की संभावना कम हो सके। लेकिन इस खेल की असली जड़ें जुए से मिलती-जुलती हैं, चाहे वो कितना ही लीगल क्यों न हो।

फैंटेसी गेम्स को लेकर कानूनी बहस भी चलती रही है। कुछ राज्य सरकारें इसे सट्टा मानती हैं, तो कुछ इसे कौशल आधारित खेल। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार इसे “skill based gaming” करार दिया है, लेकिन आलोचक मानते हैं कि जब इसमें हार-जीत पैसा तय कर रहा हो, तो उसे जुए से अलग नहीं किया जा सकता।

अब बात करते हैं यूजर्स की मनोस्थिति की। एक बार कोई व्यक्ति इसमें जीत जाता है, तो वह उस जीत के नशे में बार-बार खेलने लगता है। और जब हारता है, तो नुकसान की भरपाई के लिए फिर से दांव लगाता है। इस तरह यह एक चक्रव्यूह बन जाता है, जिससे निकलना बहुत मुश्किल हो जाता है। कई मामलों में लोग अपनी जमा पूंजी तक गंवा चुके हैं, कर्ज में डूब गए हैं, और मानसिक अवसाद तक झेल चुके हैं।

ऐसे में यह ज़रूरी है कि इस खेल को खेलने वाले लोग इसके जोखिम को समझें। यह एक रोमांचक खेल हो सकता है, लेकिन इसमें आपकी जेब, आपकी मानसिक स्थिति और आपके रिश्ते तक दांव पर लग सकते हैं। सरकार को भी चाहिए कि वह इस उद्योग को केवल टैक्स कमाने का जरिया न बनाए, बल्कि इसके सामाजिक प्रभाव पर भी ध्यान दे। नियम और नियंत्रण जितने सख्त होंगे, उतनी ही कम हानि लोगों को होगी।

आखिर में यही कहा जा सकता है कि फैंटेसी स्पोर्ट्स आज सिर्फ खेल नहीं, एक उद्योग है। लेकिन इस उद्योग में असली विजेता न कोई टीम है, न कोई खिलाड़ी, और न ही कोई फैंटेसी यूजर—असली जीत सरकार की है, जो हर दांव से सबसे ज़्यादा कमाती है। और अगर आप इसमें भाग लेना चाहते हैं, तो पहले ये सोचिए कि आप खेल खेल रहे हैं, या खेल आपके साथ खेल रहा है।

Conclusion

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