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Geopolitical Risk: China की ‘दरियादिली’ से सावधान! क्यों भारत के लिए ये मदद बन सकती है कठपुतली का जाल? 2025

China

ज़रा सोचिए… आधी रात का समय है। चारों तरफ़ सन्नाटा है और अचानक आपके घर की सारी बत्तियाँ बुझ जाती हैं। आप समझते हैं कि यह बिजली का फॉल्ट है, लेकिन अगले ही पल पता चलता है कि स्विच आपके हाथ में नहीं, किसी और के हाथ में है। वह चाहे तो रोशनी लौटा दे, चाहे तो हमेशा के लिए आपको अंधेरे में धकेल दे। डरावना लगता है ना? लेकिन यही हक़ीक़त भारत जैसे विशाल और मज़बूत देश की है जब बात आती है उन “rare minerals” की, जिन पर आज की पूरी आधुनिक दुनिया टिकी हुई है।

China इस स्विच को अपने हाथ में रखता है, और समय-समय पर इसे चालू या बंद करके पूरी दुनिया को अपनी ताक़त का एहसास कराता है। अभी हाल ही में उसने भारत के लिए यह स्विच “ऑन” कर दिया है—फर्टिलाइज़र, रेयर अर्थ और मैग्नेट जैसे अहम सामानों के Export पर लगी रोक हटाकर। लेकिन सवाल यह है—क्या यह सच में दरियादिली है, या फिर एक नई साज़िश की शुरुआत? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

भारत और China का रिश्ता कभी सीधा नहीं रहा। यह रिश्ता हमेशा शक, प्रतिस्पर्धा और रणनीतिक चालों से भरा रहा है। कभी सीमा पर हाथ मिलाने की तस्वीरें दुनिया भर में दिखती हैं, तो कभी गलवान घाटी की खूनी मुठभेड़ में सैनिकों की शहादत। कभी व्यापारिक समझौते होते हैं, तो कभी बॉर्डर पर टैंक आमने-सामने खड़े होते हैं।

China की नीति हमेशा धुंध से भरी हुई रही है। वह कभी पूरी तरह दुश्मन नहीं दिखता, और कभी सच्चा दोस्त भी नहीं। उसकी असली ताक़त यही है कि वह सामने वाले को असमंजस में रखता है। इस बार भी जब उसने भारत को Export की सुविधा दी, तो यह कदम महज़ व्यापारिक नहीं बल्कि गहरी Geopolitical चाल का हिस्सा है। क्योंकि चीन जानता है कि भारत कई अहम चीज़ों में उस पर निर्भर है।

भारत की यह निर्भरता सबसे ज़्यादा रेयर अर्थ खनिजों पर है। रेयर अर्थ—यह शब्द सुनते ही लगता है कि ये शायद धरती पर बहुत कम मिलते हैं। लेकिन हक़ीक़त यह है कि ये तत्व धरती में मौजूद तो काफी हैं, लेकिन इन्हें निकालना और प्रोसेस करना बेहद मुश्किल है। यह 17 तत्वों का समूह है, जो आधुनिक टेक्नोलॉजी की रीढ़ हैं।

ज़रा अपने आस-पास देखिए—स्मार्टफोन, लैपटॉप, इलेक्ट्रिक गाड़ी, टीवी, पवन चक्की, यहाँ तक कि आपके घर में रखी छोटी सी LED बल्ब—सबमें रेयर अर्थ का इस्तेमाल होता है। सेना की मिसाइलें, जेट इंजन, रडार सिस्टम और अंतरिक्ष में घूमते सैटेलाइट—इन सबका दिल भी इन्हीं खनिजों से धड़कता है। बिना इनके आधुनिक सभ्यता की कल्पना अधूरी है।

अब सोचिए, इन खनिजों पर सबसे ज़्यादा कंट्रोल किसके पास है? जवाब है—China। दुनिया का लगभग 60 से 70 प्रतिशत उत्पादन China करता है। सिर्फ़ यही नहीं, रिफाइनिंग और प्रोसेसिंग का 80 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा भी China के पास है।

यानी अगर ये खनिज ऑस्ट्रेलिया या अफ्रीका से भी निकलें, तो भी उन्हें इस्तेमाल लायक बनाने का काम ज़्यादातर चीन ही करता है। यह ऐसे है जैसे दुनिया भर में गेहूँ उगे, लेकिन आटा पीसने की चक्की सिर्फ़ एक देश के पास हो। फिर वही देश तय करेगा कि किसे रोटी मिलेगी और किसे भूखा रखा जाएगा। यही चीन की असली ताक़त है।

भारत का सबसे बड़ा संकट यही है कि हमारी ज़्यादातर ज़रूरतें China से आती हैं। अगर China सप्लाई रोक दे, तो हमारे उद्योगों पर ताले लग सकते हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स ठप, ऑटोमोबाइल रुक जाएंगे, रक्षा उत्पादन संकट में आ जाएगा और ग्रीन एनर्जी के सपने अधूरे रह जाएंगे। चीन ने पहले भी यही हथियार इस्तेमाल किया है।

जापान को 2010 में इसका स्वाद चखना पड़ा, जब दोनों देशों के बीच समुद्री सीमा विवाद हुआ और चीन ने रेयर अर्थ का Export अचानक रोक दिया। जापानी कंपनियाँ हिल गईं। कार से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स तक सब प्रभावित हुए। अमेरिका और यूरोपीय संघ भी इस हथियार का कई बार शिकार बन चुके हैं। चीन की नीति बड़ी सीधी है—“जब तक तुम मेरी बात मानते हो, तब तक सप्लाई खुली रहेगी। और जैसे ही तुमने विरोध किया, सप्लाई का नल बंद।”

लेकिन China की सबसे खतरनाक चाल यह है कि वह सप्लाई को कभी पूरी तरह बंद नहीं करता। वह जानता है कि अगर वह स्थायी तौर पर रोक लगाएगा, तो देश विकल्प तलाश लेंगे—नए सप्लायर ढूँढेंगे, खुद उत्पादन करेंगे या टेक्नोलॉजी डेवलप करेंगे। इससे उसका असर कम हो जाएगा। इसलिए वह “साइकलिक पॉलिसी” अपनाता है। यानी कभी रोक लगाता है, कभी हटाता है। इससे सामने वाले देश हमेशा अनिश्चितता में रहते हैं। वे कभी भी पूरी तरह स्वतंत्र नहीं हो पाते, और हमेशा डरते रहते हैं कि कहीं कल को सप्लाई पूरी तरह न रुक जाए। यही डर चीन का असली हथियार है।

इस बार भी यही हुआ। भारत और अमेरिका के रिश्तों में थोड़ी दूरी आई, और China ने इस मौके का फायदा उठाया। उसने सोचा कि भारत को थोड़ी राहत देकर उसे अपने पाले में खींचा जा सकता है। लेकिन China कभी किसी को बराबरी से दोस्त नहीं मानता। उसकी सोच हमेशा “या तो दुश्मन, या कठपुतली” वाली रही है। भारत अगर इस दरियादिली पर बहुत खुश हो जाएगा, तो यही गलती होगी। क्योंकि इतिहास गवाह है—चीन का भरोसा काँच की तरह होता है, जो किसी भी पल टूट सकता है।

भारत ने भी इस खतरे को समझ लिया है। यही वजह है कि सरकार ने आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। IREL जैसी सरकारी कंपनी जापान और दक्षिण कोरिया के साथ मिलकर रेयर अर्थ मैग्नेट्स बनाने की कोशिश कर रही है। भारत ने ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, जाम्बिया, पेरू और रूस जैसे देशों से समझौते किए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर साफ़ कहा था कि भारत को अब महत्वपूर्ण खनिजों में आत्मनिर्भर होना ही होगा। देश में 1200 से ज़्यादा जगहों पर खनिज खोज अभियान चल रहे हैं। Mines and Minerals Act में संशोधन करके निजी कंपनियों को भी इस क्षेत्र में उतारा जा रहा है।

लेकिन आत्मनिर्भरता का रास्ता आसान नहीं है। Mining पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है, प्रोसेसिंग महँगी है और इसमें कई साल लगेंगे। चीन को इस बात का पूरा भरोसा है कि भारत अभी शुरुआती चरण में है। जब तक भारत पूरी तरह खड़ा नहीं हो जाता, तब तक China इस हथियार का इस्तेमाल करता रहेगा।

यही कारण है कि यह लड़ाई सिर्फ़ उद्योगों की नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा की भी है। क्योंकि अगर कल को सीमा पर तनाव बढ़ता है और China सप्लाई रोक दे, तो भारत की रक्षा क्षमता सीधे प्रभावित होगी।

आज भारत के सामने दो ही रास्ते हैं। या तो वह China पर भरोसा करके फिर से उसी पर निर्भर हो जाए, या फिर कठिन लेकिन मज़बूत रास्ता चुने और अपनी खनिज चेन खुद बनाए। अमेरिका और यूरोप ने भी पिछले कुछ सालों में नई माइनिंग प्रोजेक्ट शुरू किए हैं। जापान ने ऑस्ट्रेलिया के साथ हाथ मिलाया है। भारत के लिए भी यही रास्ता है।

चीन की असली चाल यही है कि वह समय-समय पर थोड़ी राहत देकर हमें उसी पर टिका रखना चाहता है। यह वैसा ही है जैसे किसी कैदी को ज़ंजीरों में बाँधकर बीच-बीच में थोड़ा पानी दे दिया जाए—ताकि वह कभी आज़ाद होने का सपना भी न देख पाए। भारत को तय करना होगा कि वह इस बार इतिहास से सबक लेता है या नहीं। क्योंकि चीन का भरोसा करना वैसा ही है जैसे बर्फ पर महल बनाना—सुंदर तो दिखेगा, लेकिन किसी भी पल पिघल सकता है।

Conclusion

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