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Inspiring: Bitcoin की बढ़ती ताकत! सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी के बाद अब बनेगा भारत में क्रिप्टो का कानून? 2025

Bitcoin

सोचिए एक ऐसी समानांतर अर्थव्यवस्था, जो ना रिजर्व बैंक के दायरे में आती है, ना Income Tax Department की नज़रों में और ना ही संसद में इसके लिए कोई स्पष्ट कानून। फिर भी हर दिन लाखों रुपये इसमें ट्रांसफर हो रहे हैं, लाखों लोग इसका हिस्सा बनते जा रहे हैं। यह कोई फिल्मी स्क्रिप्ट नहीं है, बल्कि हमारे ही देश में चल रहा एक ऐसा सिस्टम है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अब ‘हवाला’ की तरह खतरनाक और अवैध कहकर चेताया है।

Bitcoin और क्रिप्टो ट्रेडिंग पर कोर्ट की सख्त टिप्पणी ने पूरे देश में हलचल मचा दी है और अब सवाल उठ रहा है—कब जागेगी सरकार? अब यह सवाल केवल कानूनी नहीं, बल्कि नैतिक, आर्थिक और सामाजिक जिम्मेदारी का भी बन चुका है। यह मौन आक्रोश उस तबके की आवाज़ बन रहा है जो डिजिटल भविष्य के भ्रम में वर्तमान की नीतिगत खामियों से आंखें मूंदे बैठा है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से तीखे सवाल पूछते हुए कहा कि, आखिर क्रिप्टोकरेंसी को रेगुलेट करने वाला कानून अब तक क्यों नहीं बना? कोर्ट ने यह टिप्पणी गुजरात के एक अवैध बिटकॉइन ट्रेडिंग केस की सुनवाई के दौरान की, जिसमें आरोपी शैलेश भट्ट ने जमानत याचिका दाखिल की थी।

जस्टिस सूर्यकांत और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि क्रिप्टोकरेंसी एक समानांतर अंडरग्राउंड इकॉनमी बन चुकी है, जो देश की वित्तीय स्थिरता के लिए गंभीर खतरा बनती जा रही है।

यह केवल एक व्यक्ति का मामला नहीं है—यह पूरे तंत्र का सवाल है। ये नीतिगत सुस्ती अब आर्थिक आतंकवाद को बढ़ावा देने के स्तर तक पहुंच रही है, जहां अपराधी तकनीक का इस्तेमाल कर कानूनी खामियों का फायदा उठा रहे हैं। और यही सुस्ती धीरे-धीरे देश की अर्थव्यवस्था के मूलभूत ढांचे को कमजोर करने का काम कर रही है।

कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा, क्या आप जानबूझकर क्रिप्टो को रेगुलेशन से दूर रख रहे हैं? इस सवाल ने पूरे सिस्टम की नींव पर चोट कर दी। न्यायालय ने कहा कि क्रिप्टोकरेंसी को बैन करने की बात नहीं हो रही, लेकिन बिना रेगुलेशन यह तंत्र हवाला और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे अवैध व्यापार को हवा दे रहा है। अदालत ने यह भी कहा कि पारदर्शिता और आर्थिक सुरक्षा के लिए इसे नियंत्रण में लाना जरूरी है।

इस टिप्पणी के बाद भारत में क्रिप्टो Investors और रेगुलेटर्स के बीच बहस तेज हो गई है। डिजिटल अर्थव्यवस्था के इस सबसे बड़े अनकंट्रोल्ड डोमेन पर अब राष्ट्रीय स्तर पर चिंतन शुरू हो गया है। सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप इस बात की पुष्टि करता है कि अब यह विषय केवल तकनीकी experts का नहीं रहा, यह एक न्यायिक और संवैधानिक प्रश्न बन चुका है।

जिस केस की सुनवाई में ये बातें सामने आईं, उसमें आरोपी शैलेश भट्ट का नाम गुजरात के बड़े बिटकॉइन कारोबारियों में आता है। सरकारी पक्ष के अनुसार, भट्ट ने हाई रिटर्न का लालच देकर लोगों को Investment के लिए फंसाया और कई मामलों में अपहरण तक कराया।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कोर्ट को बताया कि आरोपी एक संगठित नेटवर्क का हिस्सा था, जो क्रिप्टो की आड़ में अवैध धंधे चला रहा था। वहीं बचाव पक्ष ने दलील दी कि भारत में क्रिप्टो ट्रेडिंग गैरकानूनी नहीं है और जब कोई स्पष्ट कानून नहीं है, तो गिरफ्तारी कैसे जायज़ हो सकती है? यह वही उलझन है, जिससे देश के लाखों Investor भी जूझ रहे हैं—नियम नहीं है, फिर भी अपराध माना जा रहा है। कानून की अनुपस्थिति में न तो न्यायिक स्पष्टता बन पाई है, न ही Investors का भरोसा।

यही सवाल सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से पूछ लिया—जब दो साल पहले ही आपसे डिजिटल करेंसी पर नीति लाने को कहा गया था, तो अब तक कानून क्यों नहीं बना?

अदालत ने कहा कि क्रिप्टो ट्रेडिंग अब केवल एक ट्रेंड नहीं, बल्कि एक नई अंडरग्राउंड इकोनॉमी बन चुकी है, जिसे न कोई टैक्स कर रहा है, न ट्रैक कर पा रहा है। ये एक ऐसा क्षेत्र बन गया है जहां अपराधी भी सुरक्षित महसूस करते हैं क्योंकि यहां कोई रेगुलेटिंग एजेंसी नहीं है जो उन पर नजर रख सके।

यह पारदर्शिता की जगह अस्पष्टता, और वैधता की जगह अनिश्चितता को जन्म दे रहा है, जो किसी भी आधुनिक लोकतंत्र की सबसे बड़ी विफलता मानी जाएगी। सरकार का यह रवैया केवल सुस्ती नहीं, बल्कि वित्तीय नीतियों के प्रति गंभीर उदासीनता का संकेत है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और कोटिश्वर सिंह ने कहा कि, बिटकॉइन ट्रेडिंग की मौजूदा स्थिति ठीक वैसी ही है जैसी हवाला कारोबार की होती थी—बिना कोई पहचान, बिना कोई हिसाब-किताब और बिना किसी नियम के करोड़ों का ट्रांजैक्शन। कोर्ट ने कहा कि सरकार को यह नहीं सोचना चाहिए कि मामला खत्म हो गया है, बल्कि उसे समझना चाहिए कि हर दिन ये तंत्र और गहरा होता जा रहा है।

इससे न केवल आर्थिक नुकसान हो सकता है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरा हो सकता है। यह एक साइलेंट फाइनेंशियल बम है, जो किसी भी वक्त देश की अर्थव्यवस्था को हिला सकता है। इसकी आड़ में आतंकवादियों, साइबर अपराधियों और ड्रग ट्रैफिकर्स तक को फंडिंग पहुंचाई जा सकती है, जो एक स्वतंत्र और सुरक्षित राष्ट्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है।

यह मामला जब मीडिया में आया तो एक नई बहस शुरू हो गई—क्या भारत में क्रिप्टो को रेगुलेट करना संभव है? क्या सरकार किसी दबाव में इस मुद्दे को टाल रही है? और क्या आज तक जो Investor इसमें पैसा लगा रहे हैं, वो सुरक्षित हैं या अनजाने में किसी अवैध नेटवर्क का हिस्सा बनते जा रहे हैं?

इन सवालों ने पूरे देश में डिजिटल करेंसी को लेकर एक बार फिर से नया विमर्श शुरू कर दिया है। experts का मानना है कि भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण बाजार में यदि तकनीक को सही ढंग से नियमबद्ध नहीं किया गया, तो यह आर्थिक आपदा का मुख्य कारण बन सकता है। और इस बहस का अंत तब तक नहीं होगा, जब तक कि सरकार इसपर स्पष्ट नीति, जवाबदेही और दिशा नहीं देती।

सरकार की ओर से अभी तक कोई स्पष्ट जवाब नहीं आया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी के बाद केंद्र को अब जल्द ही कोई नीति सामने लानी होगी। यह कानून केवल क्रिप्टो ट्रेड को नियंत्रित करने के लिए नहीं होगा, बल्कि यह भारत की डिजिटल इकोनॉमी की पारदर्शिता, सुरक्षा और विकास के लिए आवश्यक है। experts का मानना है कि अगर जल्द रेगुलेशन नहीं आया तो भारत में क्रिप्टो का भविष्य हवाले, स्कैम और अवैध व्यापार से ही जुड़ जाएगा। और तब सरकार के पास केवल पछतावे और सफाई के अलावा कुछ नहीं बचेगा। क्रिप्टो की अनदेखी अब उस मोड़ पर पहुंच चुकी है, जहां केवल कानून ही समाधान है।

अब जब देश की सबसे बड़ी अदालत ने खुद इसे ‘हवाला जैसा व्यापार’ कह दिया है, तो यह न केवल चेतावनी है, बल्कि एक निर्णायक क्षण है। यह वह वक्त है जब भारत को तय करना है कि वह इस उभरती तकनीक को अवैधता की छाया से निकालकर उसे भविष्य की पारदर्शी, विनियमित और जिम्मेदार अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनाना चाहता है या नहीं।

क्रिप्टो का अस्तित्व अब केवल Investment का माध्यम नहीं, बल्कि नीति और नियमन की परीक्षा भी बन चुका है। सरकार को अब दिखाना होगा कि वह तकनीक की समझ और जिम्मेदारी दोनों रखती है, वरना यह मौन अनदेखी एक दिन बहुत भारी पड़ सकती है। यह संकट सिर्फ न्यायपालिका का नहीं, पूरे राष्ट्र की सामूहिक नीति बुद्धि का इम्तिहान है।

Conclusion

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