कल्पना कीजिए—एक ऐसा वक्त जब भारत की सरहदों पर सिर्फ गोलियों की आवाज़ ही नहीं, बल्कि रणनीति की गरज भी सुनाई दे रही है। एक तरफ पाकिस्तान को ऑपरेशन सिंदूर के जरिए करारा जवाब दिया गया, और अब दूसरी तरफ भारत का अगला निशाना चीन है।
लेकिन इस बार मैदान जंग का नहीं, बाजार का है। भारत अब सीधे चीन की अर्थव्यवस्था पर वार करने जा रहा है, और इसके लिए सरकार ने वो चाल चली है जो दिखने में साधारण है, लेकिन असर ऐसा करेगी कि ड्रैगन की नींव हिल जाएगी। चीन ने जब पाकिस्तान का साथ दिया, तो भारत ने भी फैसला कर लिया कि अब चीन की कमजोर नस को दबाना है, और अब ये लड़ाई कूटनीति से आगे बढ़कर supply chain और Technical standards तक जा पहुंची है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
सरकार ने अब तय कर लिया है कि इलेक्ट्रिक उपकरणों की एक खास कैटेगरी पर BIS यानी ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स का मार्क अनिवार्य होगा। यानी अगर कोई भी इलेक्ट्रिक उत्पाद इस मानक पर खरा नहीं उतरेगा तो उसे भारत में न बेचा जाएगा और न इस्तेमाल किया जाएगा।
पहली नजर में ये एक आम तकनीकी आदेश लगता है, लेकिन इसके पीछे की रणनीति को समझना जरूरी है। दरअसल, चीन पिछले कुछ वर्षों से भारत में घटिया क्वालिटी के इलेक्ट्रिक Products की बाढ़ लेकर आ रहा था—चाहे वह इलेक्ट्रिक टॉयलेट हो, स्पा इक्विपमेंट हो, या फिर सस्ता हेयर क्लिपर और टोस्टर। अब यही जगह भारत ने चुन ली है जवाब देने के लिए, जिससे ड्रैगन को आर्थिक चोट लगे और देश की औद्योगिक नींव मजबूत हो।
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, यह फैसला उन तमाम शिकायतों के बाद आया है जो चीन से आने वाले इलेक्ट्रिक Products की खराब क्वालिटी को लेकर की गई थीं। सरकार को लगातार इन प्रोडक्ट्स के खराब होने, जल्दी खराब पड़ने और उपभोक्ता सुरक्षा को खतरा होने की शिकायतें मिल रही थीं।
और फिर इसी बीच जब ऑपरेशन सिंदूर हुआ और चीन ने पाकिस्तान का समर्थन किया, तो सरकार ने यह तय कर लिया कि अब जवाब सिर्फ सीमा पर नहीं, व्यापार में भी दिया जाएगा। भारत अब इस बात को सुनिश्चित करना चाहता है कि उसके नागरिकों को न केवल सुरक्षित उत्पाद मिलें, बल्कि यह भी कि इन Products के पीछे किसी ऐसे देश की मंशा न छिपी हो जो हमारी संप्रभुता पर प्रश्नचिह्न लगाता है।
सरकार की इस घोषणा को उद्योग जगत ने हाथों-हाथ लिया है। कई उद्यमियों का कहना है कि यह कदम चीन पर सीधा व्यापारिक प्रहार है और इससे ‘वोकल फॉर लोकल’ को नया संबल मिलेगा।
क्योंकि अब बाजार में ऐसी मांग पैदा होगी जिसे देश के स्थानीय उद्योगों को पूरा करना होगा। पहले जहां छोटे उपकरण—जैसे हेयर क्लिपर, मसाजर, एग बीटर, इलेक्ट्रिक ब्रश और स्टीम कुकर—लगभग पूरी तरह चीन से Import होते थे, वहीं अब इन्हें भारत में ही बनाने की तैयारी शुरू हो चुकी है। इससे न केवल भारतीय उत्पादकों को बढ़ावा मिलेगा बल्कि युवाओं को रोजगार के नए अवसर भी प्राप्त होंगे, जो आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य की ओर एक बड़ा कदम है।
इस क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर की घोषणा DPIIT यानी, Department of Industry and Internal Trade Promotion द्वारा 19 मई को की गई थी, और यह आदेश 19 मार्च 2026 से प्रभाव में आएगा। यानी भारत ने चीन को पूरे दो साल का अल्टीमेटम दे दिया है—या तो अपने Products की गुणवत्ता सुधारो या अपना बाजार छोड़ दो। इस दौरान सरकार भारत में मैन्युफैक्चरिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को और मजबूत करेगी ताकि जब तक प्रतिबंध प्रभावी हो, तब तक देश की जरूरतें देश से ही पूरी हों। यह योजना सिर्फ एक टेक्निकल मानक तक सीमित नहीं, बल्कि एक रणनीतिक योजना है जिसमें भारत अपनी वैश्विक स्थिति को और मजबूत कर सकता है।
यह कदम न केवल चीन के सस्ते लेकिन घटिया Products को भारत से बाहर करेगा, बल्कि घरेलू उद्योगों को भी आत्मनिर्भर बनने का मौका देगा। खासकर छोटे और मझोले उद्यमों को अब एक ऐसा स्पेस मिलेगा, जिसमें वे चीन के मुकाबले टिकाऊ और बेहतर प्रोडक्ट्स बनाकर बाजार में जगह बना सकें। सरकार का यह निर्णय व्यापार के क्षेत्र में रणनीतिक प्रतिशोध का उदाहरण बनता जा रहा है। इसके माध्यम से यह स्पष्ट संदेश गया है कि भारत अब केवल रक्षात्मक नहीं, बल्कि आक्रामक आर्थिक नीति अपना रहा है जो व्यापारिक नीति को कूटनीति से जोड़ता है।
इस कदम के पीछे सिर्फ क्वालिटी नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक सोच भी छुपी हुई है। जब एक देश दुश्मन देश का खुला समर्थन करता है, तो उसके Products को देश के बाजार में जगह देना, कहीं न कहीं उस दुश्मनी को आर्थिक समर्थन देने जैसा है। यही कारण है कि भारत अब एक-एक करके उन सभी सेक्टर्स की पहचान कर रहा है, जहां चीन की पकड़ मजबूत है और वहां से उसका असर कम किया जा सके। यह सिर्फ व्यापारिक जवाब नहीं बल्कि संप्रभुता की रक्षा की रणनीति है।
यह निर्णय सिर्फ व्यापार का नहीं, बल्कि आत्मसम्मान का भी है। भारत अब साफ कर चुका है कि जो देश हमारी पीठ में छुरा घोपेंगे, उन्हें हम अपने दरवाज़े से सामान बेचने की छूट नहीं देंगे। और चीन को यह संदेश स्पष्ट रूप से मिल चुका है। यह कदम उन लाखों भारतीयों की आवाज है जो सस्ती वस्तुओं के बहाने अपनी सुरक्षा से समझौता नहीं करना चाहते। यही वजह है कि अब देश में एक नई चेतना पैदा हो रही है जो कह रही है—’मेड इन इंडिया, मेड फॉर इंडिया’।
अब जब सरकार ने BIS सर्टिफिकेशन को अनिवार्य कर दिया है, तो चीन के हजारों करोड़ के छोटे इलेक्ट्रॉनिक्स कारोबार पर सीधा असर पड़ेगा। और यह प्रभाव सिर्फ एक वर्ष का नहीं होगा, बल्कि एक लंबी अवधि तक चीन की इलेक्ट्रॉनिक्स Export policy को नुकसान पहुंचाएगा। क्योंकि यह कोई अस्थायी टैक्स नहीं, बल्कि स्थायी मानक है जिसे यदि कोई विदेशी कंपनी नहीं मानती तो वह भारत में टिक ही नहीं पाएगी।
चीन के लिए यह नुकसान केवल व्यापार का नहीं, बल्कि विश्वास का भी है। भारतीय उपभोक्ता अब जागरूक हो चुका है, और वह जान चुका है कि सस्ता हमेशा बेहतर नहीं होता। सरकार द्वारा लिए गए इस निर्णय से लोगों में ‘वोकल फॉर लोकल’ की भावना और प्रबल होगी और लोग foreign products की बजाय Native products को प्राथमिकता देंगे। यही सोच भारत को long term आर्थिक स्वतंत्रता और तकनीकी आत्मनिर्भरता की ओर ले जाएगी।
अब अगला लक्ष्य है इन Products की मैन्युफैक्चरिंग को बड़े पैमाने पर भारत में शुरू करना। इसके लिए सरकार ‘PLI स्कीम’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसे अभियानों को तेज कर रही है। आने वाले दो सालों में भारत के छोटे-छोटे शहरों में भी इलेक्ट्रिक शेवर, फ्राइंग पैन, मसाजर, और फुट वार्मर जैसी वस्तुएं बनने लगेंगी, जिससे रोज़गार भी बढ़ेगा और भारत का Import पर निर्भरता भी घटेगा। यह पहल ग्रामीण औद्योगिक क्रांति की नींव डाल सकती है जिससे भारत की संपूर्ण अर्थव्यवस्था को ऊर्जा मिलेगी।
यह रणनीति चीन को उसी भाषा में जवाब देने की है, जिसमें वह दुनिया भर के बाज़ारों को चुनौती देता है—आक्रामक व्यापार। लेकिन भारत का यह वार न केवल आक्रामक है, बल्कि विवेकपूर्ण भी है। इसमें जनता की जरूरत, देश की सुरक्षा और आर्थिक आत्मनिर्भरता, तीनों का बारीकी से ख्याल रखा गया है। यह योजना दर्शाती है कि भारत अब केवल Importer देश नहीं रहना चाहता, बल्कि Exporter राष्ट्र बनने की दिशा में भी मजबूत कदम उठा चुका है।
Conclusion
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