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Arvind Srinivas: गूगल क्रोम खरीदने वाला भारतीय और 34.5 अरब डॉलर की सफलता की दास्तान! 2025

Arvind Srinivas

सोचिए… आप एक सुबह नींद से उठते हैं, मोबाइल खोलते हैं और न्यूज़ ऐप की स्क्रीन पर एक हेडलाइन आपकी आंखों में ठहर जाती है—“भारतीय मूल के एक उद्यमी ने गूगल क्रोम को खरीदने का 34.5 अरब डॉलर का ऑफर दिया।” आप दोबारा पढ़ते हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए कि कहीं आंखें धोखा तो नहीं दे रहीं। आखिर यह वही गूगल क्रोम है जिसे पूरी दुनिया रोज़ इस्तेमाल करती है, जो तीन अरब से ज्यादा यूज़र्स का भरोसा है, जो गूगल के साम्राज्य का दरवाज़ा है।

और अब, कोई इसे खरीदना चाहता है! दिल में सवाल उठता है—कौन है यह इंसान, जिसने दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनियों में से एक के सीने पर हाथ रखकर यह कह दिया—“मैं तुम्हारा सबसे कीमती प्रोडक्ट खरीदना चाहता हूं”? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे। Arvind Srinivas श्रीनिवास की कहानी, जिसमें साहस है, सपनों की पराकाष्ठा है और वो जज़्बा है जो आम इंसानों को दिग्गजों के सामने खड़ा कर देता है।

चेन्नई की गलियों से निकला यह लड़का बचपन में ही अलग था। वह सिर्फ किताबें पढ़ने वाला, परीक्षा में अच्छे नंबर लाने वाला लड़का नहीं था। वह हर चीज़ के पीछे छिपे “क्यों” और “कैसे” को तलाशने वाला था।

बचपन में, जब उसके हमउम्र क्रिकेट या वीडियो गेम में खोए रहते, Arvind Srinivas अपने कंप्यूटर के साथ घंटों बिताता—कभी किसी कोड को समझने की कोशिश करते हुए, तो कभी इंटरनेट पर टेक्नोलॉजी से जुड़ी नई-नई खोजों के बारे में पढ़ते हुए। परिवार वाले उसकी यह आदत देखकर अक्सर कहते—“ये लड़का या तो बहुत बड़ा इंजीनियर बनेगा या फिर कोई पागल आविष्कारक।” शायद उन्हें अंदाजा नहीं था कि यह बच्चा आगे चलकर ऐसी चाल चलेगा, जिससे गूगल जैसे दिग्गज को भी चौंकना पड़ेगा।

स्कूल खत्म होने के बाद Arvind Srinivas का अगला पड़ाव था Indian Institute of Technology—IIT मद्रास। यहां उसने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, और यही वह जगह थी जहां उसका आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रति प्रेम गहराता गया। लैब में देर रात तक मशीन लर्निंग के एल्गोरिदम पर काम करना, किताबों और रिसर्च पेपर्स में डूबे रहना, और यह सोचना कि कैसे मशीनों को इंसानों की तरह सोचने पर मजबूर किया जा सकता है—यही उसकी दिनचर्या बन गई। यहां रहते हुए ही उसे अहसास हुआ कि उसका भविष्य AI में है, और उसे इस दिशा में कुछ बड़ा करना है।

IIT से निकलने के बाद Arvind Srinivas ने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले का रुख किया। यहां उसने कंप्यूटर साइंस में पीएचडी की और साथ ही अपने सपनों को अंतरराष्ट्रीय मंच मिला। अमेरिका में रहते हुए, उसे दुनिया के कुछ बेहतरीन दिमागों के साथ काम करने का मौका मिला—जिनमें AI के पायनियर माने जाने वाले योशुआ बेंगियो भी शामिल थे। कल्पना कीजिए, आपके गुरु वही व्यक्ति हों, जिनकी किताबें आपने पढ़ी हों, जिनके बारे में आपने सिर्फ टेक आर्टिकल्स में सुना हो—तो कैसा लगता होगा? यही वह अनुभव था जिसने अरविंद को न सिर्फ टेक्निकल रूप से मजबूत किया, बल्कि उसे वैश्विक स्तर पर सोचने और सपने देखने की हिम्मत भी दी।

इसके बाद आया OpenAI में काम करने का मौका—वही कंपनी जिसने ChatGPT बनाया। Arvind Srinivas ने वहां चार महीने रिसर्च इंटर्न के रूप में बिताए, और ChatGPT के शुरुआती विकास चरण का हिस्सा बने। फिर उन्होंने DeepMind में पांच महीने काम किया, जहां उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के और भी जटिल क्षेत्रों में कदम रखा। इन अनुभवों ने उन्हें यह सिखाया कि AI सिर्फ एक टेक्नोलॉजी नहीं, बल्कि आने वाले कल की दुनिया की रीढ़ है।

लेकिन उनकी कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। 2020 से 2021 के बीच उन्होंने गूगल में काम किया, और वहां उन्होंने इंटरनेट और सर्च टेक्नोलॉजी के उस इंजन को करीब से देखा जो पूरी दुनिया को चलाता है। गूगल में बिताए इस समय ने उन्हें यह समझने का मौका दिया कि सर्च इंजन, ब्राउज़र और डिजिटल इकोसिस्टम कैसे एक-दूसरे से जुड़े हैं और क्यों क्रोम गूगल के लिए सिर्फ एक प्रोडक्ट नहीं, बल्कि उसका दिल है।

2022 में Arvind Srinivas ने तीन साथियों—एंडी कोनविंस्की, डेनिस याराट्स और जॉनी हो—के साथ मिलकर Perplexity AI की स्थापना की। उनका विज़न था—एक ऐसा AI-संचालित सर्च इंजन जो यूज़र्स को सिर्फ लिंक नहीं, बल्कि सीधे और स्पष्ट जवाब दे। इस प्लेटफॉर्म ने जल्द ही अपनी पहचान बनाई और तीन साल के भीतर इसकी वैल्यूएशन 14 अरब डॉलर तक पहुंच गई। लेकिन Arvind Srinivas के सपने यहीं नहीं रुके।

2025 में, जब अमेरिका में गूगल पर एक बड़ा एंटीट्रस्ट केस चल रहा था, Arvind Srinivas ने वह कदम उठाया जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी—गूगल को 34.5 अरब डॉलर का ऑफर भेजा, क्रोम ब्राउज़र खरीदने के लिए। सोचिए, जिस कंपनी की खुद की वैल्यूएशन 14 अरब डॉलर है, वह गूगल के सबसे महत्वपूर्ण प्रोडक्ट के लिए दोगुने से भी ज्यादा कीमत ऑफर कर रही है!

सोशल मीडिया पर तूफान मच गया। कुछ लोगों ने इसे मार्केटिंग स्टंट कहा, कुछ ने पागलपन, तो कुछ ने इसे एक मास्टरस्ट्रोक बताया। अमेरिका में चल रहे केस में जज ने माना था कि गूगल ने डिफ़ॉल्ट सर्च इंजन बने रहने के लिए अरबों डॉलर खर्च किए। अगर अदालत गूगल को क्रोम बेचने पर मजबूर करती, तो? शायद यही वह मौका था जिसे Arvind Srinivas ने भांप लिया था।

लेकिन असली सवाल था—पैसा कहां से आएगा? अब तक Perplexity AI ने एनवीडिया और सॉफ्टबैंक जैसे दिग्गजों से करीब 1 अरब डॉलर जुटाए थे। 34.5 अरब डॉलर के सौदे के लिए उन्हें प्राइवेट इक्विटी और बड़े Investment फंड्स की जरूरत थी। Arvind Srinivas का दावा था कि कई बड़े फंड इस डील के लिए तैयार हैं। उनका वादा था—क्रोम खरीदने के बाद मौजूदा टीम को बरकरार रखना, कोई छिपा बदलाव नहीं करना, और अगले दो साल में क्रोम और उसके ओपन-सोर्स वर्ज़न क्रोमियम में 3 अरब डॉलर का Investment करना।

यह भी याद रखने वाली बात है कि यह Arvind Srinivas का पहला साहसिक प्रस्ताव नहीं था। इससे पहले उन्होंने टिकटॉक के अमेरिकी ऑपरेशन को अपने साथ मर्ज करने का ऑफर भी दिया था। यानी वह बड़े खेल खेलने में माहिर थे, और जानते थे कि टेक्नोलॉजी के बाज़ार में कब, कहां और कैसे कदम रखना है।

अब, वह खुद का AI ब्राउज़र “कॉमेट” लॉन्च करने की तैयारी में हैं। उनका मानना है कि अगर क्रोम उनके पास आ जाता है तो यह यूज़र्स के लिए एक बेहतर और भरोसेमंद अनुभव देगा। लेकिन अगर गूगल ने मना कर दिया तो? क्या “कॉमेट” क्रोम को टक्कर दे पाएगा?

इंडस्ट्री के जानकारों का मानना है कि सुंदर पिचाई क्रोम बेचने के लिए राज़ी नहीं होंगे। आखिर यह गूगल की सर्च और एडवर्टाइजिंग मशीन का मुख्य दरवाज़ा है। इसे छोड़ना गूगल के बिज़नेस मॉडल को कमजोर करना होगा। लेकिन एक बात तय है—Arvind Srinivas ने इस ऑफर के जरिए अपने और अपनी कंपनी का नाम दुनिया भर में पहुंचा दिया है।

आज Arvind Srinivas की नेट वर्थ 242 करोड़ रुपये से ज्यादा है। लेकिन उनके लिए यह पैसा शायद उतना मायने नहीं रखता, जितना यह कि उन्होंने दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनियों में से एक को अपनी शर्तों पर बात करने के लिए मजबूर किया। चाहे यह डील हो या न हो, उन्होंने यह साबित कर दिया है कि सपनों की कोई सीमा नहीं होती—और सही वक्त पर सही चाल चलने वाला एक शख्स भी अरबों डॉलर की ताकत वाले साम्राज्य को चुनौती दे सकता है। और आने वाले सालों में, जब भी कोई पूछेगा—“क्या एक छोटा स्टार्टअप दुनिया के सबसे बड़े टेक दिग्गज को चुनौती दे सकता है?”—तो जवाब में सिर्फ एक नाम आएगा—Arvind Srinivas।

Conclusion

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